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    सीपीईसी की बैठक

    चीन-पाक आर्थिक गलियारे पर दोनों देशों के मध्य पहली रणनीति वार्ता का आयोजन चीन में मंगलवार को आयोजित हुआ और इसमें दोनों देशों के विदेश मंत्रियों ने शिरकत की थी। ग्लोबल टाइम्स के मुताबिक इस बैठक की सह अध्यक्षता चीनी विदेश मंत्री वांग यी और पाक विदेश म्नत्री शाह महमूद कुरैशी ने की थी।

    चीन और पाकिस्तान ने कई मसलों पर रज़ामंदी जाहिर की है। इसमें बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव, सीपीईसी, आतंकवाद, अफगानिस्तान और दक्षिण एशिया में तनाव को कम करना है।

    चीनी विदेश मंत्री ने कहा कि “विश्व में या क्षेत्री में किस तरह चीजे परिवर्तित होती है इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है। पाकिस्तान की सम्प्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता, आज़ादी और सम्मान के साथ चीन पूरी मज़बूती के साथ खड़ा है। दक्षिण एशिया में शान्ति और स्थिरता क्षेत्र के सभी देशों के हित में हैं।”

    उन्होंने कहा कि “भारत-पाकिस्तान सम्बन्ध में तनाव को कम करने के लिए पाकिस्तान द्वारा उठाये जरुरी क़दमों की हम सराहना करते हैं। चीन दोनों मुल्कों से संयम बरतने और मतभेदों को शांतिपूर्ण तरीके से सुलझाने का आग्रह करते हैं।”

    चीन ने दोहराया कि “इस संकट के समय वह अपने सदाबहार दोस्त पाकिस्तान के साथ खड़ा है और पाक की क्षेत्रीय अखंडता और सम्प्रभुता का मज़बूती से समर्थन करेगा।” चीन के विदेश मंत्री वांग यी और पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने पुलवामा में हुए फियादीन हमले पर वार्ता की थी।

    सीपीईसी में सहयोग

    सीपीईसी की बैठक से पूर्व आयोजित मुलाकात में पाकिस्तानी प्रतिनिधियों ने कहा कि “चीन-पाक में सहयोग का अर्थ किसी तीसरे देश पर निशाना साधना नहीं है। भारत को समझना चाहिए कि पाकिस्तान में आर्थिक विकास से भारत के आर्थिक विकास में भी फायदा होगा।”

    पाकिस्तानियों ने कहा कि “गलियारों को विदेशी ताकतों द्वारा बर्बर आतंकी हमलों से खतरा है और चीन व पाकिस्तान आतंकवाद के विरोध में व्यापक सहयोग करेंगे।” पाकिस्तान की नौ राजनीतिक दलों ने पहली बैठक में शिरकत की थी। शाह महमूद कुरैशी ने कहा कि “पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान और शी जिनपिंग सीपीईसी की सफलता की कहानी दुसरे बीआरआई सम्मेलन में साझा करने के लिए कंधे से कन्धा मिलाकर खड़े हैं।

    सीपीईसी की चुनौती

    यह गलियारा दोनों मुल्कों को फायदा पंहुचाने की बजाये सुरक्षा चुनौतियों से जूझ रहा है। 23 नवंबर 2018 को पाकिस्तान में स्थित चीनी दूतावास में आतंकी हमला हुआ था। पाकिस्तान नेशनल पार्टी के जनरल सेक्रेटरी राणा अली कसर ने कहा कि “गरीबी के बढ़ने और शिक्षा की कमी के कारण कई लोगों को आतंकी बनना पड़ रहा है। चीन ने पाक में जीवन स्तर को सुधारने के लिए काफी कार्य किये हैं।

    उन्होंने कहा कि “पाकिस्तानी सरकार को अधिक जनता तक सीपीईसी का फायदा पंहुचने के लिए अधिकतम प्रयास करने चाहिए और उसके बाद सरजमीं पर पनप रहे आतंकवाद को चरमपंथ का खात्मा करना चाहिए।”

    भारत को बनाया निशाना

    पाकिस्तान और चीन नें इस बैठक में कई तरीकों से भारत पर निशाना साधा है। पाकिस्तान और चीन द्वारा जारी बयान में कहा गया है कि दोनों देश सीपीईसी को किसी भी खतरे से सुरक्षित रखेंगे।

    जाहिर है इसके जरिये इनका निशाना भारत की ओर है।

    भारत हमेशा से सीपीईसी के विरोध में रहा है। भारतीय विरोध का भी दोनों देशों नें जिक्र किया।

    संयुक्त बयान में कहा गया, “सीपीईसी के विरोध में फैलाई जा रही गलत ख़बरों का खंडन करते हुए दोनों देश इस योजना को हर खतरे से सुरक्षित रखेंगे।”

    संयुक्त बयान के कुछ अहम् बिंदु:

    1. बातचीत के दौरान दोनों देशों नें हर प्रकार के द्विपक्षी मुद्दे, जैसे सीपीईसी और अन्य राष्ट्रिय मुद्दों के बारे में गहनता से चर्चा की।
    2. सीपीईसी के बारे में फैलाई जा रही गलत ख़बरों का खंडन करने की बात कही।
    3. दोनों देशों के बीच अधिक से अधिक राजनैतिक और कूटनैतिक मुलाकातें होनी चाहिए।
    4. दोनों देश एक दुसरे के भूभाग की संप्रभुता की रक्षा करें।
    5. आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में एक दुसरे का सहयोग करने की बात कही गई।
    6. चीन और पाकिस्तान नें अफगानिस्तान में शान्ति स्थापित करने के लिए हरसंभव प्रयास करने की बात कही।
    7. संयुक्त राष्ट्र और अन्य वैश्विक मंचों में दोनों देश एक दुसरे का साथ दें।

    सीपीईसी का विरोध क्यों करता है भारत?

    चीन पाकिस्तान इकनोमिक कोरिडोर सीपीईसी योजना

    सीपीईसी का यह मार्ग भारतीय राज्य जम्मू कश्मीर से होकर गुजरता है। यह इलाका वर्तमान में पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में आता है, लेकिन भारत इसे अपना हिस्सा मानता है।

    इसके अलावा अन्य कारण यह है कि भारत को लगता है कि इस योजना से भारत के आस-पास वाले देशों में चीन का प्रभुत्व बहुत ज्यादा बढ़ जाएगा

    उदाहरण के तौर पर, चीन नें श्रीलंका में हंबनटोटा बंदरगाह का विकास किया था इसे बनाने में 1 अरब डॉलर के लगभग खर्च आया था। जब श्रीलंका समय पर चीन का कर्ज चुकाने में असमर्थ रहा, तब चीन नें इस बंदरगाह का संचालन अपने हिस्से में ले लिया।

    श्रीलंका के अलावा चीन नें मालदीव में भी भारी निवेश किया था। मालदीव की अब्दुल्ला यामीन की सरकार नें चीन से भारी लोन लिया था। हाल ही में मालदीव की नवनिर्वाचित इब्राहीम सोलिह की सरकार नें भारत की मदद से चीन का कर्ज चुकाया है।

    By कविता

    कविता ने राजनीति विज्ञान में स्नातक और पत्रकारिता में डिप्लोमा किया है। वर्तमान में कविता द इंडियन वायर के लिए विदेशी मुद्दों से सम्बंधित लेख लिखती हैं।

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