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    चीन-ताइवान-अमेरिका

    अमेरिका के पूर्व अधिकारीयों ने चेताया कि ताइवान के साथ संबंधों के तहत अमेरिका कांग्रेस ने चीन विरोधी रवैया अख्तियार कर रखा है, इससे यह साल तनावपूर्ण हो सकता है और सरकार भी ताइवान के साथ करीबी संबंधों की पैरवी कर रही हैं।

    पूर्वी एशियाई मामलों के अमेरिकी राजनयिक सुसान थोरटॉन ने कहा कि “वह चिंतित है कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प जलसंयोगी संबंधों की संवेदनशीलता को नहीं समझ पा रहे हैं। यह अमेरिका और चीन के बीच बहुत जल्दी संघर्ष का केंद्र बन जायेगा अगर इसे बेहतर तरीके से संभाला न गया।”

    अमेरिका ने हाल ही में ताइवान को 60 एफ-16 वी लड़ाकू विमान खरीदने की गुजारिश को स्वीकार कर लिया था। चीन ने इस कदम को बेहद भयावह करार दिया था हाल ही में अमेरिकी नौसेना ने नौचालन की स्वतंत्रता के तहत ताइवान के जलमार्ग पर अभ्यास किया था।

    बीते मंगलवार को अमेरिकी सीनेट में ताइवान पर पॉलिसी की समीक्षा और ताइवान के साथ सैन्य संबंधों का विस्तार करने के लिए एक बिल प्रस्तुत किया गया था।

    साउथ चाइना मोर्निंग पोस्ट के मुताबिक लॉ स्कूल की सीनियर फेलो थॉर्टन ने कहा कि “मैं रक्षा उपकरणों की खरीद को जारी रखने की उम्मीद रखती हूँ लेकिन इसके लिए विधान खतरनाक है और डोनाल्ड ट्रम्प्को इस मसले के बाबत को समझ नहीं है। अगर ताइवान एक्ट पारित हो जाता है तो इसकी समीक्षा अमेरिकी राष्ट्रपति करेगा और रक्षा मंत्रालय को ताइवान की सेना को प्रशिक्षण देने और हथियार बेचने के निर्देश देगा।

    यह विधेयक अमेरिका से अपील है कि वह वन चीन पॉलिसी के बाबत दोबारा सोचे जिसे अमेरिका के सुरक्षा सलाहकार जॉन बोल्टन ने तैयार किया था। वांशिगटन के ब्रूकिंग इंस्टीटूशन के सीनियर फेलो रिचर्ड बुश ने कहा कि “यह बिल पुष्टि करता है कि कांग्रेस ताइवान को राजनैतिक स्तर से समर्थन कर रहा है क्योंकि अमेरिकी कांग्रेस का माहौल चीन विरोधी भावनाओं से भरा हुआ है।”

    हाउस ऑफ़ रेप्रेसेंटिव्स की सुनावई में माइक पोम्पिओ ने कहा था कि “ताइवान ट्रैवल एक्ट के लिए वह अधिक कार्रवाई करेंगे।” यह बीते वर्ष कांग्रेस में सर्वसम्मति से पारित हो गया था और वांशिगटन व तायपेई के बीच उच्च स्तरीय यात्रा की अनुमति देता था।

    बेजिंग ने कई बार वांशिगटन को  संपर्क न रखने और सैन्य संबंधों को तोडना के लिए कहा है। ताइवान के साथ अमेरिका का कोई आधिकारिक समझौता नहीं है लेकिन फिर भी वांशिगटन तायपेई का सबसे बड़ा हथियार निर्यातक है और कानून के तहत अमेरिका द्वीप की रक्षा के लिए बाध्य है।

    बीते हफ्ते ताइवान की राष्ट्रपति त्साई इंग वेन ने वांशिगटन में हेरिटेज फाउंडेशन इवेंट वीडियो लिंक के जरिये सम्बोधित किया था। ऐसा ही एक भाषण 9 अप्रैल को यूएस सेंटर फिर स्ट्रेटजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज में भी देंगी। यह भाषण ताइवान रिलेशन्स एक्ट के 40 वर्ष पूरे होने से एक दिन पहले होगा। इस एक्ट में अमेरिका ने ताइवान के साथ अपने संबंधों की व्याख्या की है। साल 1979 में ताइवान को बीजिंग से अलग मान्यता दी गयी है।

    पूर्व अधिकारी ने कहा कि “ट्रम्प प्रशासन के हर एक कोने में गलत लोग गलत सलाह दे रहे हैं। इन्हे लगता है कि चीन व्यापार, ताइवान और तकनीक पर समर्पण कर देगा।”

    रैंड कारपोरेशन का वरिष्ठ रक्षा जानकार डेरेक ग्रॉसमैन ने कहा कि “ट्रम्प प्रशासन और अमेरिकी कांग्रेस स्पष्ट है कि उन्हें अमेरिकी-ताइवान के सम्बन्ध सशक्त बनाने हैं। चीन को हर दिशा में मात देने के लिए वांशिगटन ‘समस्त सरकार’ के दृष्टिकोण से आगे बढ़ रहा है। ताइवान को कैलिबर हथियार बेचे जायेंगे और ट्रम्प की इंडो-पैसिफिक स्ट्रैटर्जी में द्वीप को भी शामिल किया जायेगा।”

    ताइवान पर अमेरिका का पक्ष

    taiwan and US

    डोनाल्ड ट्रम्प की सरकार आने के बाद से अमेरिका ताइवान को लेकर चीन पर लगातार निशाना साधता आया है। अमेरिका नें इस दौरान ताइवान से लगातार रक्षा सौदे किये हैं और चीन को यह सन्देश देने की कोशिश की है कि अमेरिका सुरक्षा के मामले में ताइवान के साथ खड़ा है।

    ताइवान पर चीन के कब्जे से पहले तक अमेरिका और ताइवान के बीच सामान्य सम्बन्ध थे। जब चीनी ग्रह युद्ध के बाद ताइवान चीन का हिस्सा माना गया, तबसे अमेरिका का ताइवान के लिए पक्ष साफ़ नहीं था।

    मार्च 16, 2018 को अमेरिका की संसद में ‘ताइवान ट्रेवल एक्ट‘ पास किया गया, जिसके बाद से अमेरिका और ताइवान के बीच रिश्ते आधिकारिक बन गए थे।

    इस नियम के बाद से अमेरिकी सरकार सीधे ताइवान की सरकार से सम्बन्ध बनाने शुरू कर दिए थे, जिससे चीन की सरकार काफी नाराज हुई है। चीन की सरकार का मानना है कि ताइवान चीन का आंतरिक अंग है और ताइवान की कोई अलग से सरकार नहीं है। चीन ताइवान के राष्ट्रपति को ‘राष्ट्रपति’ नहीं मानता है।

    पढ़ें: क्या ताइवान चीन का हिस्सा है?

    ताइवान का पक्ष

    चीन जहां पर ताइवान को खुद का अंग मानने के लिए लगातार दबाव बना रहा है, वहीं ताइवान, चीन के दबाव का विरोध करता है।

    वर्तमान में चीन का प्रतिनिधित्व दो अलग-अलग नामों के द्वारा होता है। पहला रिपब्लिक ऑफ चाइना (चीनी गणराज्य अथवा ताइवान) है और दूसरा पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (मुख्य रूप से चीन) है।

    ताइवान में खुद की सरकार है और सरकार पूरी तरह से आत्मनिर्भर, लोकतांत्रिक ढंग से चुनी हुई व खुद का संचालन करने वाली है। ताइवान की अर्थव्यवस्था व मुद्रा चीन से संबंधित नहीं है।

    यदि इसे कानूनी और वीजा दृष्टिकोण से भी देखा जाए तो ताइवान में आने वाले लोगों को यहां का वीजा लेना पड़ता है न कि चीन का।

    ऐसे में ताइवान के लोगों का मानना है कि उन्हें ताइवान के रूप में एक अलग देश चाहिए और चीन और उनका रहन-सहन काफी अलग है। इसके लिए ताइवान नें अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों से सहायता लेना शुरू कर दिया है।

    चीन के प्रभुत्व को बढ़ता देखकर कई देशों नें ताइवान के पक्ष में आवाज उठाना शुरू कर दिया है। यदि दक्षिण एशिया की बात करें, तो जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत ताइवान के समर्थन में हैं।

    भारत हालाँकि खुलकर ताइवान के पक्ष में नहीं बोलता है, क्योंकि भारत के चीन के साथ भी काफी मजबूत सम्बन्ध हैं। लेकिन भारत दक्षिणी चीन सागर में चीन के प्रभुत्व को कम करने के लिए अक्सर अपनी नौसेना को वहां भेजता है।

    भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया अक्सर दक्षिणी चीन सागर में संयुक्त सैन्य अभ्यास करते हैं, जिससे चीन को यह सन्देश दिया जाता है, कि वह ताइवान पर जबरन अधिकार नहीं जमा सकता है।

    By कविता

    कविता ने राजनीति विज्ञान में स्नातक और पत्रकारिता में डिप्लोमा किया है। वर्तमान में कविता द इंडियन वायर के लिए विदेशी मुद्दों से सम्बंधित लेख लिखती हैं।

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