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    ताइवान व चीन

    वर्तमान में चीन और ताइवान के बीच में तनाव बना हुआ है। चीन जहां पर ताइवान को खुद का अंग मानने के लिए लगातार दबाव बना रहा है, वहीं ताइवान, चीन के दबाव का विरोध कर रहा है। हाल ही में खबर भी आई है कि चीनी सेना की बढ़ती मौजूदगी से ताइवान ने भी अपने रक्षा बजट में बढ़ोतरी की है। इससे पहले भी ताइवान चीन के निरंतर बढ़ते सैन्य अभ्यास को देश की सुरक्षा के लिए भारी खतरा बताया था।

    वर्तमान में चीन का प्रतिनिधित्व दो अलग-अलग नामों के द्वारा होता है। पहला रिपब्लिक ऑफ चाइना (चीनी गणराज्य अथवा ताइवान) है और दूसरा पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (मुख्य रूप से चीन) है।

    इन दोनों देशों को सम्मिलित रूप से चीन के अंतर्गत माना जाता है। चीन खुद पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के तहत जाना जाता है। वहीं ताइवान को भी चीन अपना ही हिस्सा मानता है। इसलिए ही ताइवान को चीनी गणराज्य का दर्जा दिया हुआ है।

    दरअसल द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, चीन की मुख्य भूमि को लेकर रिपब्लिक ऑफ चाइना सरकार से विवाद शुरू हुआ था। तब चीनी गणराज्य ने खुद को चीन से अलग मानने को कहा था। तब माओ जेडोंग के नेतृत्व में समूह ने पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना का निर्माण किया था।

    पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना यानि मुख्यतः चीन खुद की भूमि पर तो अपना हक जताता ही है और साथ ही ताइवान को भी अपना हिस्सा बताता है। ताइवान खुद को स्वतंत्र राष्ट्र मानता है और चीन के नियंत्रण को समाप्त करना चाहता है।

    चीन, ताइवान व उसके आस-पास के छोटे द्वीपों पर अपनी संप्रभुता होने का दावा जताता है।

    सीधे तौर पर कहे तो चीन, ताइवान को अपना हिस्सा होने का दावा करता है। चीन का तर्क है कि ताइवान रिपब्लिक ऑफ चाइना का ही नाम है जो कि पहले चीन के कब्जे में रहा है। वहीं ताइवान, चीन को अवैध देश के नजरिये से देखता है।

    जैसा की साल 1992 की आम सहमति के बाद चीन को एक ही देश के रूप में माना जाता है। लेकिन अब अंतरराष्ट्रीय समुदाय पर दबाव है कि वो रिपब्लिक ऑफ चाइना और पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना को चीनी राष्ट्र के एकमात्र प्रतिनिधि के रूप में चुने।

    फिलहाल देखा जाए तो दुनिया के अधिकतर देशों ने चीन के साथ आधिकारिक कूटनीतिक संबंध स्थापित किए है तो ताइवान के साथ आर्थिक और सांस्कृतिक संबंधों को बनाए रखा है।

    क्या ताइवान स्वतंत्र है?

    चीन व ताइवान के बीच में स्वतंत्रता को लेकर ही झगड़ा है। वर्तमान में ताइवान सरकार पूरी तरह से आत्मनिर्भर, लोकतांत्रिक ढंग से चुनी हुई व खुद का संचालन करने वाली है। ताइवान की अर्थव्यवस्था व मुद्रा चीन से संबंधित नहीं है। कानूनी और वीजा दृष्टिकोण से भी देखा जाए तो ताइवान में आने वाले लोगों को यहां का वीजा लेना पड़ता है न कि चीन का।

    ताइवान व चीन के वीजा नियम अलग-अलग है। साथ ही सीमा शुल्क नियम अलग-अलग है। अगर मुद्रा के प्रयोग की बात की जाए तो ताइवान चीनी मुद्रा रेनमिनबी या हांग कांग डॉलर का प्रयोग नहीं करता है। ताइवान की खुद की स्वतंत्र मुद्रा है।

    कई मानकों के मुताबिक ताइवान में मुक्त बाजार अर्थव्यवस्था और बड़े व अधिक उन्नत उद्योग है। यहां के लोगों में उच्च शिक्षा की गुणवत्ता है और अंग्रेजी अच्छी तरह से जानी आती है। खासतौर पर ताइवान की राजधानी ताइपे के लोग तो बेहद विनम्र और अच्छे व्यवहार के लिए मशहूर है।

    ताइवान के बुनियादी ढांचे को अत्यधिक विकसित किया गया है। ताइवान का वातावरण काफी खुला है। बैंक और मुद्रा विनिमय, ट्रांजिट सेवाओं, इंटरनेट का उपयोग और सरकारी अधिकारियों के साथ संपर्क करने में लोगों को कोई परेशानी नहीं आती है। ताइपे में बड़े बंदरगाहों के द्वारा पड़ोसी देशो के लिए व्यापक स्तर पर खुला बाजार बना हुआ है।

    ताइवान अंतरराष्ट्रीय उत्पादों का भी व्यापक आदान-प्रदान करता है। साथ ही उच्च-आईटी व मशीनरी को दुनिया में निर्यात करता है। 1980 के दशक के बाद से ताइवान में आर्थिक वृद्धि भी काफी हो रही है। इतनी सुविधाओं व स्वतंत्रता के हिसाब से ही ताइवान खुद को चीन के आधिपत्य में शामिल नहीं करना चाहता है।

    लेकिन चीन के दबाव की वजह से ताइवान की राजनयिक क्षमता गंभीर रूप से सीमित है। चीन के साथ चल रहे संघर्षों व टकराव की वजह से ताइवान अंतरराष्ट्रीय संगठनों व सम्मेलनों में हिस्सा बेहद सीमित रूप से ही ले पाता है। ताइवान की ओलंपिक टीम को भी चीनी ताइपे के नाम से बुलाया जाता है। साथ ही अलग राष्ट्रगान व ध्वज का उपयोग करना पड़ता है।

    संक्षेप में कहा जाए तो ताइवान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चीनी गणराज्य के नाम से ही जाना जाता है। ओलंपिक व एशियाई खेलों में ताइवान को चीनी ताइपे के नाम से पुकारा जाता है। चीन अभी भी ताइवान को अपना अंग ही मानता है और ताइवान की स्वतंत्रता को स्वीकार नहीं करता है। चीन सैन्य ताकतों के बल पर ताइवान को लगातार धमकी दे रहा है।