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    चीनी परियोजना बीआरआई का पोस्टर

    चीन की महत्वकांक्षी परियोजना बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव में भारत के रवैये से चीन काफी नाराज़ है और भारत ने हाल ही में बीजिंग में आयोजित बीआरआई की दूसरी बैठक के आयोजन में भी शामिल न होने के संकेत दिए हैं। इससे सम्बंधित चीनी सरकार का मुखपत्र या सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स में भारत के बीआरआई में शामिल होने के बाबत रिपोर्ट प्रकाशित की गयी है।

    रिपोर्ट के मुताबिक, बीआरआई परियोजना में इटली के शामिल होने का प्रभाव भारतीय अधिकारीयों पर भी पड़ा है जो लम्बे वक्त से बीआरआई का विरोध कर रहे थे। पुलवामा में बीते माह एक आतंकी हमला हुआ और भारत में चीन विरोधी लहर बहने लगी। भारत की जनता असंतुष्ट है कि चीन ने यूएन में मसूद अज़हर को वैश्विक आतंकी की सूची में डालने के बाबत देरी से फैसला दिया था। अगर नरेंद्र मोदी आगामी हफ़्तों में सम्मेलन में शामिल होने के लिए चीन की यात्रा की योजना का ऐलान कर देते है तो जनता के भटके विचारो का असर आगामी लोकसभा चुनावो में दिखता।

    रिपोर्ट में कहा कि “भारत की क्षेत्रीय अखंडता और सम्प्रभुता की मूल समास्याओं के लिए बीआरआई पर दोष मढ़ना बेहद बाकार बहाना है, क्योंकि आतंकी हमले के बाद भारत में राष्ट्रवाद की भावनाएं बढ़ रही है। मोदी चुनावी जंग को जीतने के लिए इस मंच का बहिष्कार कर रहे हैं। ताकि वह चीन के प्रति अपने सख्त रवैये को दिखा सके और मतदाताओं का दिल जीत सके।”

    वन बेल्ट वन रोड़ योजना
    इस चित्र में आप देख सकते हैं चीन की बेल्ट एंड रोड योजना किस प्रकार भारत को घेरती है

    आर्टिकल के मुताबिक, इस मंच पर 100 राष्ट्रों और क्षेत्रों के लोग शामिल होंगे। अगर एक या दो देश शामिल नहीं भी होते तो चीन को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है। बहरहाल भारत विवादित मुद्दों पर बातचीत और अन्य देशों के आर्थिक सहयोग का विस्तार करने से वंचित रह जायेगा। इस काफी ऐसे देश है जो भारत के महत्वपूर्ण आर्थिक साझेदार है। अगर भारत इस सम्मेलन का बहिष्कार करता है तो इसका खामियाजा उसकी अर्थव्यवस्था को भुगतना होगा।

    भारत की आवाम कई राजनीतिक और सामाजिक मसलों पर अपना ध्यान केंद्रित कर रही है ऐसे में आर्थिक स्थिति गिरती जाएगी। अधिक जनसँख्या वाले राष्ट्र में रोजगार का सृजन पर्याप्त नहीं हो रहा हैं। बेरोजगारी के बढ़ने से राष्ट्रवाद की भावना बढ़ेगी और चीनी विरोधी भावनाएं बढ़ेंगी। अप्रैल में मंच में शामिल होने के लिए अभी भारत के पास वक्त है। भारत को समझना चाहिए कि यह बैठक सहयोग एक मंच है न कि पाकिस्तान के खिलाफ अपनी असंतुष्टता को जाहिर करने का मंच और बीआरआई के जरिये द्विपक्षीय विवादों को सुलझाने का मंच है।

    बीआरआई परियोजना में भारत शामिल नहीं हुआ और वह एशियाई इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बांका का सबसे बड़ा कर्ज लेने वाला देश है। यह बहुपक्षीय बैंक बीआरआई परियोजना में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका में है। अगर भारत दूसरे सम्मेलन का बहिष्कार भी करता है, तो इससे घबराने का कोई कारण नहीं है। एआईआईबी से भारत का कर्ज उसे भविष्य में बीआरआई में प्रवेश करने के शर्मशार करेगा।

    बेल्ट एंड रोड का हिस्सा क्यों नहीं है भारत?

    चीन की वन बेल्ट वन रोड योजना का भारत शुरुआत से ही बहिष्कार कर रहा है। इसके सबसे मुख्य कारण है: चीन पाकिस्तान आर्थिक मार्ग (सीपीईसी)

    यह मार्ग भारतीय राज्य जम्मू कश्मीर से होकर गुजरता है। यह इलाका वर्तमान में पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में आता है, लेकिन भारत इसे अपना हिस्सा मानता है।

    अपने क्षेत्र की संप्रभुता को ध्यान में रखते हुए भारत नें चीन से साफ़ कर दिया है कि जब तक चीन भारत के साथ सुलह नहीं कर लेता है, तब तक भारत इससे नहीं जुड़ सकता है

    इसके अलावा अन्य कारण यह है कि भारत को लगता है कि इस योजना से भारत के आस-पास वाले देशों में चीन का प्रभुत्व बहुत ज्यादा बढ़ जाएगा

    उदाहरण के तौर पर, चीन नें श्रीलंका में हंबनटोटा बंदरगाह का विकास किया था इसे बनाने में 1 अरब डॉलर के लगभग खर्च आया था। जब श्रीलंका समय पर चीन का कर्ज चुकाने में असमर्थ रहा, तब चीन नें इस बंदरगाह का संचालन अपने हिस्से में ले लिया।

    श्रीलंका के अलावा चीन नें मालदीव में भी भारी निवेश किया था। मालदीव की अब्दुल्ला यामीन की सरकार नें चीन से भारी लोन लिया था। हाल ही में मालदीव की नवनिर्वाचित इब्राहीम सोलिह की सरकार नें भारत की मदद से चीन का कर्ज चुकाया है।

    इसके अलावा बांग्लादेश, म्यांमार और नेपाल जैसे देश भी चीन के करीबा जाते दिख रहे हैं

    ऐसे में चीन भारत के आसपास मौजूद देशों में अपनी उपस्थिति बढाकर भारत पर दबाव बनाना चाहता है

    इसके अलावा चीन अफ्रीकी देशों में भी भारी निवेश कर रहा है

    अफ्रीकी देशों में चीन द्वारा किया गया निवेश
    अफ्रीकी देशों में चीन द्वारा किया गया निवेश (स्त्रोत: ब्रुकिंग)

    अफ्रीका के अलावा चीन यूरोपीय देशों में भी भारी निवेश कर रहा है। हाल ही में इटली नें चीन की बेल्ट एंड रोड योजना से जुड़ने का एलान किया है।

    ऐसे में भारत को लगता है कि इतनी बड़ी मात्रा में चीन का प्रभुत्व भारत की संप्रभुता के लिए ठीक नहीं है

    भारत नें हालाँकि बेल्ट एंड रोड योजना का विकल्प खोज लिया है

    भारत और जापान ने हाल ही में आर्थिक और विदेशी निवेश से सम्बंधित कई समझौते किये थे। चीन ने अब भारत की एशिया-अफ्रीका विकास मार्ग पर सवाल उठाते हुए इसे अपने वन बेल्ट वन रोड़ से तुलना की है।

    अगले महीने बेल्ट एंड रोड का सम्मलेन का आयोजन करेगा चीन

    bri summit
    चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग बेल्ट एंड रोड सम्मलेन 2018 में बोलते हुए

    चीन इस साल का बेल्ट एंड रोड सम्मलेन अप्रैल में चीन में आयोजित करेगा। इस सम्मलेन में 50 से ज्यादा देशों के अधिकारी आ सकते हैं।

    चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग नें पिछले साल एशिया आर्थिक सहयोग सम्मलेन में इसकी घोषणा की थी। जिनपिंग नें कहा था कि चीन की कोशिश है कि वह छोटे और आर्थिक दृष्टि से कमजोर देशों में निर्माण कार्य कर सके, जिससे दोनों देशों को फायदा हो सके।

    शी जिनपिंग के मुताबिक,

    चीन सभी देशों के साथ मिलकर कार्य करना चाहता है, जिससे दोनों पक्षों का फायदा हो सके। इस योजना से एशिया-निर्धारित क्षेत्र में रोजगार के अवसर बढ़ेंगे, साथ ही सभी देश आर्थिक निवेश भी पा सकेंगे।

    जाहिर है बेल्ट एंड रोड परियोजना चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की अहम् योजना है, जिसकी घोषणा उन्होनें पांच साल पहले की थी।

    इस योजना के तहत चीन 80 से ज्यादा देशों में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से निवेश कर वहां निर्माण कार्य आदि करने में जोर दे रहा है, वहीँ चीन की कोशिश है कि इस कर्ज के जरिये भारी मुनाफा कमाया जा सके।

    जो देश कर्ज चुका नहीं पाते हैं, चीन उनके भूभाग पर कब्ज़ा कर लेता है।

    पश्चिमी देश जैसे अमेरिका, फ्रांस आदि नें सभी देशों को इसके लिए चेताया है, लेकिन अभी तक चीन कई देशों को मनाने में सफल हो चुका है।

    By कविता

    कविता ने राजनीति विज्ञान में स्नातक और पत्रकारिता में डिप्लोमा किया है। वर्तमान में कविता द इंडियन वायर के लिए विदेशी मुद्दों से सम्बंधित लेख लिखती हैं।

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