Sat. Nov 23rd, 2024
    सारा अली खान ने बात की अपनी कामयाबी पर और वे क्यों कभी नहीं बुलाएंगी खुद को स्टार...

    इन दिनों, बॉलीवुड में दो ही खान छाये हुए हैं-एक थे तैमुर अली खान और अब उन्हें कम्पटीशन देने आ गयी है उनकी बहन सारा अली खान। ‘केदारनाथ‘ से ‘सिम्बा‘ तक, हर जगह केवल सारा ही सारा छाई हुई हैं। मगर इतना प्यार और सम्मान मिलने के बाद भी उन्होंने कहा है कि ना उनके पास स्टार जैसा महसूस करने का वक़्त है और नाही वे खुद को भविष्य में ऐसा महसूस करने देगी।

    हाल ही में दिए एक इंटरव्यू में सारा ने विस्तार से चर्चा की-

    सारा मुबारक हो, आप तो स्टार बन गयी हैं?

    अरे कहाँ? मैं तो बस काम में उलझी हुई हूँ। मेरे पास स्टार जैसा महसूस करने का वक़्त ही नही है। मुझे नहीं लगता कि मैं अभी से स्टार बन गयी। मगर मैं आशा करती हूँ कि मैं एक दिन उस मुकाम तक पहुँच जाऊ। मुझे नहीं लगता कि मैं भविष्य में भी खुद को ऐसा महसूस करने दूंगी। जैसे ही मैंने ऐसा किया, दूसरे आपको उस जगह पर देखना बंद कर देंगे।

    आपकी खूबसूरत दादी शर्मिला टैगोर कहती हैं कि आप किसी युवा के मुकाबले ज्यादा शिष्ट है। तो यह आत्मविश्वास कहाँ से आता है?

    मुझे लगता है कि यह ईमानदार होने से आता है। और यही एकमात्र तरीका है। जो झूठ बोल सकते हैं, वे ऐसा कर ले। मैं नहीं कर सकती। मैं जैसे ही झूठ बोलूंगी वैसे ही हकलाने लगूंगी। मुझे सच्चा रहना ही पसंद है।

    आपको परिवार और मीडिया से किस तरह की प्रतिक्रियाएं मिल रही हैं?

    परिवार से उम्मीद नहीं की जा सकती। वे अच्छा ही बर्ताब करेंगे मैं जो कुछ भी करूँ, आखिर मैं उनकी बेटी हूँ। लेकिन समीक्षकों और दर्शकों ने जिस तरह से मुझे प्रतिक्रिया दी है, वह बहुत प्यारी हैं। यह एक ऐसा क्षण है जिसे मैं अपने जीवन में कभी नहीं भूलूंगी।

    क्या आप सभी से मिल रहे प्यार के लायक हैं?

    इसका 80 फीसदी, मैं लायक हूँ। अन्य 20 फीसदी मुझे नहीं पता कि यह कहां से आ रहा है। और यह मुझे बहुत आभारी और भावुक कर रहा है। मुझे अभिनय का कोई अनुभव नहीं है। मेरे पास मेरी ईमानदारी थी।

    ‘केदारनाथ’ कैमरे के सामने मेरा पहला अनुभव था। बेशक मैं ‘कलयुग’ में अपनी माँ (अमृता सिंह) की शूटिंग और ‘ओमकारा’ में मेरे पिता (सैफ अली खान) को देखने से लिए पहले फिल्म सेट पर जा चुकी थी। लेकिन वहाँ मैंने जो किया वह मेरे माता-पिता के सह-कलाकारों के मेकअप के साथ खेलना था।

    ‘केदारनाथ’ मेरा पहला अवसर था जहाँ मुझे फिल्म निर्माण को समझने और इस का हिस्सा बनने का मौका मिला। सेट पर मैंने केवल अपनी ईमानदारी के बलबूते पर काम किया। ज़ाहिर है, मैं हमेशा से ही अभिनेत्री बनना चाहती थी।

    आपका पालन-पोषण ज्यादातर आपकी मां ने किया है। अपने पिता के आस-पास नहीं होने के कारण, क्या आपने कभी कमी महसूस करी?

    मैं उस व्यवस्था से ठीक थी। मुझे लगता है कि अलग-अलग घरों में दो खुश माता-पिता होना, एक ही घर में दो दुखी माता-पिता की तुलना में बहुत अधिक बेहतर है। मुझे लगता है कि मैं आज जैसी भी हूँ वे इसलिए क्योंकि मेरी मां ने मुझे एक सेकंड के लिए भी किसी तरह की कमी महसूस नहीं होने दी। जब से मैं और मेरा भाई पैदा हुए हैं तबसे उन्होंने हमारी देखभाल के अलावा कुछ नहीं हुआ।

    तो उन्होंने कभी आपको आपके पिता की कमी महसूस नहीं होने दी?

    मेरे पिता हमेशा हम दोनों के लिए केवल एक फोन कॉल ही दूर थे। मुझे कभी नहीं लगा कि वह मेरे लिए मौजूद नहीं है। कई मायनों में, मुझे खुशी है कि मेरे माता-पिता एक साथ नहीं थे। मुझे पता है कि वे कभी एक साथ खुश नहीं रह पाएँगे।  और अगर वे खुश नहीं होते, तो मैं खुश नहीं रह पाती।

    अब सैफ तैमूर पर इतना ध्यान देते हैं जो आपको कभी नहीं मिला। क्या आपको जलन नहीं होती?

    बिल्कुल नहीं। वह मेरा भाई है। मैं तुम्हें कुछ बताती हूँ। जब मेरे पिता हमारे साथ रह रहे थे, तो वह पूरी तरह से मेरे साथ थे। जब वह चले गए, तब भी वह देखभाल कर रहे थे। ऐसा कुछ नहीं है जो वह मेरे लिए नहीं करेंगे। मेरे पिता जिस तरह से तैमूर के लिए हैं मेरे लिए वैसे नहीं हो सकते हैं। लेकिन यह मुझे किसी भी तरीके से कम स्पेशल महसूस नहीं करा सकता।

    क्या आप उनके साथ आगे काम करना चाहती हैं?

    भगवान की दुआ से हम जल्द काम करेंगे। मगर ये बार बार नहीं होगा। मगर ऐसी कोई स्क्रिप्ट आई जो हम दोनों के लिए ही फायदेमंद होगी तो हम बिना कुछ सोचे काम कर लेंगे।

    आपके भाई इब्राहिम ने ‘केदारनाथ’ और ‘सिम्बा’ और आप के बारे में क्या कहा था?

    वह विदेश में पढ़ रहा है और वह परिवार का एकमात्र सदस्य है जिसने मेरी फिल्में नहीं देखी हैं।

    क्या वह अभिनेता बनने की ख्वाहिश रखते हैं?

    हाँ। लेकिन जैसा कि मैंने देखा है, यह सपना देखना तो आसान है लेकिन इसे हासिल करना बहुत मुश्किल है। लेकिन मुझे लगता है कि इब्राहिम में प्रतिभा है। एक बार उन्होंने मेरी मां और मेरे लिए एक मोनोलोग किया था और मैं उस कागज़ को पकड़े हुए खड़ी थी जिसमे एक्ट की लाइन लिखी हुई थी। मगर मैं कागज़ की तरफ देख ही नहीं पाई क्योंकि मैं उनकी आँखे ही देखने में व्यस्त थी। वे बहुत भावपूर्ण हैं।

     

    By साक्षी बंसल

    पत्रकारिता की छात्रा जिसे ख़बरों की दुनिया में रूचि है।

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