भारत जोड़ो यात्रा (Bharat Jodo Yatra): “भारत की राजनीति को समझना है तो पहले भारत को समझो। उसके लिए सम्पूर्ण भारत की यात्रा करो वह भी कान खोलकर लेकिन मुँह बंद रहे।” यह सलाह थी देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को उनके राजनीतिक गुरु गोपाल कृष्ण गोखले की जब युवा गाँधी दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे।
गोखले ने महात्मा गाँधी को “मुँह बंद लेकिन कान खुला” रखने की सलाह इसलिए दिया ताकि गाँधी अपनी बात न कहकर वह सुनें जो देश की आम जनता उनसे कहना चाहती थी लेकिन उनकी बात को कोई सुनने वाला नहीं था। गाँधी ने गोखले की बात को गुरुमंत्र के तरह माना और उसके बाद गाँधी इस देश की हर निरीह की आवाज बन गए।
मौजूदा वक्त में कांग्रेस नेतृत्व को भी इसी की जरूरत है- जनता से सीधे जुड़ाव और संवाद की। बीते कुछ दशकों में कांग्रेस पार्टी का शीर्ष नेतृत्व उन नेताओं से घिरा रहा है जिनका जमीं पर खुद का कोई जनाधार नही है।
नतीज़तन पार्टी का जनता से जुड़ाव खत्म होते चला गया और आज देश की सबसे पुरानी पार्टी भारतीय राजनीति के हाशिये पर खड़ी है। ऐसे में भारत जोड़ो यात्रा कांग्रेस पार्टी के मौजूदा राजनीतिक हालात के लिहाज़ से मील का पत्थर साबित हो सकता है।
भारतीय राजनीति में “यात्रा” का महत्व
भारतीय राजनीति में “यात्राओं” का इतिहास काफ़ी लंबा रहा है। साथ ही यह भी सत्य है कि यात्राओं ने कई बड़े नेताओं के लिए या तो सत्ता का दरवाजा खोला है या फिर उन्हें सत्ता के करीब लाकर खड़ा किया है।
यात्राओं के इतिहास का जब भी भारतीय राजनीति में जिक्र होगा तो सबसे पहले महात्मा गांधी द्वारा भारत के विभिन्न हिस्सों की यात्रा की चर्चा होती है। एक साधारण वक़ील मोहनदास गाँधी को “महात्मा” और “राष्ट्रपिता” की गरिमा हासिल करवाने में उनकी तमाम यात्राओं का बड़ा अहम किरदार रहा है।
गाँधी की दांडी यात्रा ने अंग्रेजों की नींद उड़ा दी थी और इस से न सिर्फ भारत बल्कि दुनिया को एक संदेश गया कि आधी दुनिया पर राज करने वाले इन अंग्रेजी हुकूमत को भी झुकाया जा सकता है।
प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू ने कोई भी विशेष ऐसी राजनीतिक यात्रा नहीं की लेकिन उनकी यात्रा मानसिक रूप से अहमदनगर के जेल में बैठे बैठे जरूर पूरी मानी जायेगी जब उन्होंने “डिस्कवरी ऑफ इंडिया” नामक किताब लिख डाली। एक तरह से यह भी हिंदुस्तान के चिर-प्राचीन इतिहास के विभिन्न समयकाल और भारत के अलग अलग रंगों की यात्रा ही है जो शरीर को जेल के चहारदीवारी के भीतर लेकिन मन की यात्राओं के अनुभवों पर आधारित था।
भारत की राजनीति में वैसे तो कई नेताओं ने अपनी पदयात्रा, रथयात्रा आदि निकाली है। पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने भी 1983 में कन्याकुमारी से राजघाट तक 4260 Km की लंबी भारत यात्रा 6 महीने तक की थी। इस यात्रा का सबसे बड़ा हासिल यह था कि भारतीय राजनीति में चंद्रशेखर को मजबूती से स्थापित कर दिया था।
आंध्र प्रदेश में NT रामा राव की सम्पूर्ण आंध्र प्रदेश की यात्रा का भी जिक्र भारतीय राजनीति के लिहाज से अतिमहत्वपूर्ण है जिसके परिणामस्वरूप तेलगु देशम पार्टी (TDP) की स्थापना हुई और यह किसी से छुपा नहीं है कि यह पार्टी वहाँ कई दफा सत्ता मे काबिज हुई।
इसी क्रम में लाल कृष्ण आडवाणी की रथयात्रा का जिक्र न हो, तो यह बेईमानी होगी। हालांकि उनकी यात्रा के तुरंत बाद भारतीय जनता पार्टी केंद्र की सत्ता में नहीं आयी लेकिन इस यात्रा ने “राम मंदिर और हिंदुत्व” का एक ऐसा एजेंडा दे गया था जिसके दम पर पार्टी ने अगले दो दशक में अपनी राजनीतिक कद को फर्श से अर्श तक पहुंचा दिया।
कांग्रेस के भारत जोड़ो यात्रा के प्रमुख सिपहसालार मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह खुद भी यात्राओं का अनुभव रखते हैं। उनकी नर्मदा यात्रा को मध्य प्रदेश की राजनीति में एक अहम अध्याय माना जाता है।
भारत जोड़ो यात्रा और कांग्रेस की चुनौती
भारत जोड़ो यात्रा को लेकर कांग्रेस पार्टी के भीतर एक ग़जब का उत्साह देखा जा सकता है और इसके पीछे वजह भी है कि इस यात्रा को दक्षिण के राज्य तमिलनाडु और केरल में खूब समर्थन भी मिल रहा हैं।
Yatris and leaders from across the country march on, alongside Shri @RahulGandhi, to free India from the shackles of unemployment, price rise and divisive politics.#BharatJodoYatra pic.twitter.com/atJEM8SHdy
— Congress (@INCIndia) September 19, 2022
हालांकि अभी इस यात्रा को काफी लंबा वक्त और लंबी दूरी तय करनी है। लेकिन शुरुआती 12 दिनों में कांग्रेस में निश्चित ही एक नई ऊर्जा देखी जा सकती है। पार्टी की सोशल मीडिया इकाई भी अब BJP के IT सेल को जमकर टक्कर दे रही है और प्रेस में भी इस यात्रा को खासा तवज्जो मिल रही है।
परंतु एक सच्चाई यह भी है कि इस यात्रा की परीक्षा तब मानी जायेगी जब यह उत्तर भारत या मध्य भारत के राज्यो में प्रवेश करेगी। भारत जोड़ो यात्रा तब अपने कुल समय काल के उतर्रार्ध में होगी और इन इलाकों में भारतीय जनता पार्टी के मजबूत जमीनी राजनीतिक प्रभाव से सामना होगा। ऐसे में कांग्रेस के अपील की भी और कांग्रेस के यात्रा में शामिल नेताओं की ऊर्जा के लिए भी चुनौती भरा समय होगा।
राजनीतिक यात्राओं की सबसे अच्छी बात जो मेरे निजी विचार में है कि इस से आम जनता और नेता की बीच की दूरी थोड़ी कम हो जाती है। आज कल वैसे ही भारतीय राजनीति में बड़े नेता भगवान के समान हो गए हैं जिनका आम जनता से द्विपक्षीय संवाद लगभग नदारद है।
जनता की आवाज, जिसने उनको चुनकर संसद और राज्य के विधानसभा में भेजती है, वह इन नेताओं तक कई चैनलों और फिल्टर्स से होकर पहुँचती है। ऐसे में इन यात्राओं के कारण ही अगर राहुल गांधी के कद का कोई नेता जनता के बीच जाता है और सीधा संवाद करता है तो निश्चित ही इसका महत्व बढ़ जाता है।
दूसरा पक्ष यह भी है कांग्रेस को भी बस यात्रा की दूरी और सोशल मीडिया पर प्रचार के साथ साथ अपने नेता की जनता से जुड़ाव को मजबूत करने पर ध्यान देना होगा। राहुल गाँधी पर यही तो आरोप लगता रहा है कि उनका आम जनता से वह जुड़ाव नहीं है जो उनके विपक्षी यानी मोदी जी का है।
राहुल गांधी और उनके पार्टी में भारत जोड़ो यात्रा के सूत्रधार तमाम लोगों को भारतीय राजनीति में तमाम यात्राओं के इतिहास से सबक लेनी होगी। गाँव और छोटे कस्बों की जनता के पास कहने को बहुत कुछ है, लेकिन उनको सुनने वाला कोई नेता पास नहीं जाता। राहुल और उनकी पार्टी को इन्ही जनता के नब्ज को टटोलना होगा इस यात्रा के बहाने तभी भारत जोड़ो यात्रा का असली मकसद पूरा होगा।
साथ ही कांग्रेस पार्टी और उनके नेता को तैयार रहना होगा उनके विरोधियों द्वारा तमाम तरह के उपहास भरे विरोध के लिए, जो कि भारतीय राजनीति में आजकल एक आवश्यक आयाम बनता जा रहा है।
अभी भारत जोड़ो यात्रा के शुरुआती हफ्ते ही गए हैं लेकिन इन्हीं दो हफ्ते में भारतीय जनता पार्टी के तरफ से हर तरफ की कोशिश इस यात्रा के महत्व को कम करने की की जा चुकी है।
तमिलनाडु बीजेपी के IT सेल चीफ CTR निर्मल कुमार पर आरोप है कि उन्होंने राहुल गाँधी की उनकी भांजी के साथ वाली तस्वीर पोस्ट कर के उनके चरित्र हनन तक की कोशिश की है। हालाँकि बाद में उन्होंने उस ट्वीट को डिलीट क्र दिया और उन्हें बाद में सफाई भी देना पड़ा।
Don’t spread your Fake and false propaganda @zoo_bear, here is the translation:
“#pappu seems to be happy applying henna and play with kids, worried about that 10 persons who is going yatra with #pappu thinking him as a serious material” https://t.co/ZQsEKQlHH1
— CTR.Nirmal kumar (@CTR_Nirmalkumar) September 18, 2022
कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चुनौती यही है कि इस घटिया राजनीति में ना उलझकर जनता के बीच उनका विश्वास जीतना है, ठीक उसी तरह जैसे लंबे दौर तक चले किसान आंदोलन पर तमाम छींटाकशी के बावजूद उसे आम जनता का विश्वास हासिल था। नतीजा, उस आंदोलन के आगे सरकार और उनके तमाम सिस्टम को झुकना पड़ा था।