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    बलिदान की गाथा, शौर्य का मंत्र: क्या बताता है पराक्रम दिवस? यहां पढ़ें!

    हर साल 20 जनवरी को भारतवर्ष वीरता और बलिदान की प्रेरणादायक कहानियों को पराक्रम दिवस के रूप में याद करता है। यह वह दिन है जो हमें उन अमर शहीदों को नमन करने का अवसर देता है, जिन्होंने मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी।

    हम नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 127वीं जयंती भी मना रहे हैं। नेताजी का नाम स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में सुनहरे अक्षरों में लिखा है। वह ऐसे क्रांतिकारी थे, जिन्होंने अंग्रेजी हुकूमत को कंपा दिया और आजादी की ज्वाला को देश के कोने-कोने में पहुंचाया। उनकी ‘दिल्ली चलो’ का नारा आज भी युवाओं को देशभक्ति का पाठ पढ़ाता है।

    पराक्रम दिवस का आयोजन लेफ्टिनेंट जनरल अरुण कुमार वैद्यक, सीडीएस (सेवानिवृत्त) द्वारा 2014 में प्रस्तावित किया गया था। यह प्रस्ताव 2017 में भारत सरकार द्वारा स्वीकार किया गया था, तब से हर साल 20 जनवरी को राष्ट्रीय स्तर पर पराक्रम दिवस मनाया जाता है। इस दिन राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में इंडिया गेट पर एक भव्य समारोह आयोजित किया जाता है, जिसमें राष्ट्रपति शहीद सैनिकों को श्रद्धांजलि देते हैं और देश की रक्षा में उनके योगदान को याद करते हैं।

    समारोह के दौरान वीर सैनिकों के शौर्यपूर्ण कार्यों को याद किया जाता है। उनके साहस और बलिदान की कहानियों को सुनाया जाता है, जिससे युवा पीढ़ी प्रेरित हो और देश सेवा का संकल्प ले। पराक्रम दिवस न केवल हमारे अतीत के वीरों का सम्मान करता है, बल्कि वर्तमान के सैनिकों का मनोबल भी बढ़ाता है। यह दिन हमें यह याद दिलाता है कि राष्ट्र की रक्षा हमारे पुरखों ने कितने बलिदानों के साथ की है और अब हमारी बारी है कि उस विरासत को संभालें।

    इस वर्ष पराक्रम दिवस पर हमें नेताजी सुभाष चंद्र बोस के स्वप्न को साकार करने का संकल्प भी लेना चाहिए। हमें एक मजबूत, विकसित और आत्मनिर्भर भारत बनाने का प्रयास करना चाहिए। हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हमारे वीरों का बलिदान व्यर्थ न जाए और भारत विश्वपटल पर एक चमकता हुआ सितारा बनकर उभरे।

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