Wed. May 1st, 2024
    Katchhatheevu Island

    Katchatheevu Island: देश इस वक़्त लोकसभा चुनाव के मुहाने पर खड़ा है। राजनीतिक दल एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। इसी क्रम में आज (रविवार, 31 मार्च) को प्रधानमंत्री मोदी ने प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस पर इतिहास में कच्चाथीवू द्वीप (Katchatheevu Island) को इंदिरा गांधी सरकार द्वारा श्रीलंका को सौंपने को लेकर हमला बोला।

    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (पहले ट्वीटर) पर लिखा:-

    नए खुलासे में यह सामने आया है कि किस तरह से कांग्रेस ने कच्चाथीवू द्वीप को हाँथ से जाने दिया था। इस नई जानकारी से हर भारतीय गुस्से में है और लोगों के दिमाग मे एक बात फिर स्पष्ट हो गया है कि हम कांग्रेस पर कभी भी भरोसा नहीं कर सकते।

    प्रधानमंत्री का यह पोस्ट टाइम्स ऑफ इंडिया में छपे एक रिपोर्ट के बाद आया है जिसमें BJP तमिलनाडु के अध्यक्ष अन्नामलई द्वारा प्राप्त एक RTI के जवाब के हवाले से बताया गया है कांग्रेस कभी भी कच्चाथीवू द्वीप को लेकर गंभीर नहीं थी। इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि, जवाहर लाल नेहरू ने भी एक बार यह कहा था कि जरूरत पड़ी तो वे इस द्वीप पर अपने अधिकारों को छोड़ने के लिए भी नहीं हिचकिचाएंगे।

    हालांकि यह कोई पहली बार नहीं है कि प्रधानमंत्री मोदी या उनके पार्टी बीजेपी द्वारा कच्चाथीवू द्वीप का मुद्दा उठाया है। इस से पहले प्रधानमंत्री ने इस मुद्दे को संसद की पटल पर भी उठाया था। लेकिन इस वक़्त इस मुद्दे को उठाकर उन्होंने इसे तमिलनाडु की राजनीति में आगामी चुनाव के मद्देनजर एक राजनीतिक सरगर्मी जरूर बढ़ाई है।

    कच्चाथीवू द्वीप (Katchatheevu Island)

    Katchatheevu Island
    Geographical Location of Katchatheevu Island.(Image Source: Google/ The Week)

    कच्चाथीवू द्वीप भारत और श्रीलंका के बीच स्थित पाक जलडमरूमध्य (Palk Strait) के पास स्थित 285 एकड़ का एक आबादी-विहीन द्वीप है जिसकी अधिकतम लंबाई 1.6 KM तथा सर्वाधिक चौड़ाई 300मीटर के करीब है। यह द्वीप (Katchatheevu Island) तमिलनाडु के रामेश्वरम तट से तकरीबन 33KM दूर उत्तरपूर्व दिशा में स्थित है। यह श्रीलंका के जाफना द्वीप से 62 KM दक्षिण पश्चिम में स्थित है।

    कच्चाथीवू द्वीप (Katchatheevu Island) एक नवीन भौगोलिक संरचना है जिसका निर्माण 14वीं सदी में एक ज्वालामुखी विस्फोट के परिणामस्वरूप हुआ था। कच्चाथीवू पूरी तरह से आबादी-हीन द्वीप है। यह द्वीप स्थायी तौर पर बसने के लिए उपयुक्त नहीं है क्योंकि यहाँ पर पेय जल का स्रोत नहीं है।

    मानव-निर्माण के नाम पर यहाँ सिर्फ एक बीसवीं सदी में निर्मित कैथोलिक चर्च – सेंट एंथोनी चर्च स्थित है। इस चर्च मे हर साल एक धार्मिक कार्यक्रम आयोजित होता है जिसमें भारत और श्रीलंका दोनों तरफ के ईसाई धर्मावलंबियों का जत्था भाग लेता है। वर्ष 2023 में तकरीबन 2500 भारतीयों ने रामेश्वरम से चलकर कच्चाथीवू द्वीप में इस कार्यक्रम में भाग लिया था।

    कच्चाथीवू द्वीप और इतिहास के पन्ने

    मध्यकालीन इतिहास में यह द्वीप श्रीलंका के जाफना राज्य का हिस्सा था। लेकिन 17वीं सदी आते आते इसपर नियंत्रण रामेश्वरम के नजदीकी शहर रामनाथपुरम के रामनाड जमींदारों का हो गया था।

    ब्रिटिश शासनकाल के दौरान कच्चाथीवू द्वीप मद्रास प्रसिडेंसी का हिस्सा बन गया। 1921 मे भारत और श्रीलंका जब दोनों ही ब्रिटिश उपनिवेश का हिस्सा रहा, ने ही कच्चाथीवू द्वीप (Katchatheevu Island) को मछली पकड़ने की सीमा तय करने के लिए ही अपना दावा किया।

    बाद में एक सर्वे ने कच्चाथीवू द्वीप (Katchatheevu Island) को श्रीलंका का हिस्सा बताया लेकिन तब एक ब्रिटिश समिति ने इस सर्वे को चुनौती दी जिसका आधार था कि यह द्वीप रामनाथपुरम के रामनाड जमींदारी व्यवस्था का हिस्सा रहा था। इस द्वीप को लेकर सारा विवाद यहीं से शुरू हुआ जो 1974 तक चला।

    “भारत श्रीलंका समुद्री सीमा” समझौता, 1974

    India Sri Lanka Maritime Border Agreement 1974
    (Image Source: Google/ The Leaflet)

    1974 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी ने भारत श्रीलंका समुद्री सीमा विवाद को हमेशा के लिए सुलझाने का फैसला किया।

    भारत-श्रीलंका समुद्री सीमा समझौता के तहत तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कच्चाथीवू द्वीप (Katchatheevu Island) को श्रीलंका को देने का फैसला किया। इस फैसले के पीछे की सोच यह थी कि इस द्वीप का कूटनीतिक और रणनीतिक रूप से कोई ज्यादा महत्त्व नहीं था और इसे श्रीलंका को सौंपने से दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों मे मजबूती आएगी।

    हालांकि इस समझौते के तहत यह तय हुआ कि भारतीय मछुआरों को कच्चाथीवू द्वीप (Katchatheevu Island) तक जाने की अनुमति थी। लेकिन श्रीलंका ने इस अनुमति को भारतीय मछुआरों के कच्चाथीवू द्वीप तक पहुंचने के अधिकार को “आराम करने, जाल सुखाने और बिना वीज़ा के कैथोलिक चर्च तक कि यात्रा तक” ही सीमित बताया।

    कुलमिलाकर दोनों देशों के अलग अलग दृष्टिकोण के कारण उपरोक्त समझौता के तहत मछली पकड़ने के अधिकार का मुद्दा नहीं सुलझ सका।

    1976 में हुए एक और समझौता हुआ, जब भारत मे आपातकाल लागू था, इसके तहत किसी भी देश को दूसरे देश के विशेष आर्थिक क्षेत्र में मछली पकड़ने से रोक दिया। ऐसे में मछली पकड़ने के अधिकार के संबंध में अनिश्चितता बाकी स्थिति बरकरार रहा क्योंकि कच्चाथीवू द्वीप किसी भी देश के EEZ के बिल्कुल किनारे पर स्थित है।

    कच्चाथीवू द्वीप पर तमिलनाडु की स्थिति

    इंदिरा गाँधी की सरकार में तमिलनाडु राज्य विधानसभा से परामर्श किए बिना कच्चाथीवू को श्रीलंका को “दे दिया गया”। उस समय ही, द्वीप पर रामनाद जमींदारी के ऐतिहासिक नियंत्रण और भारतीय तमिल मछुआरों के पारंपरिक मछली पकड़ने के अधिकारों का हवाला देते हुए, इंदिरा गांधी के कदम के खिलाफ जोरदार विरोध प्रदर्शन हुए थे।

    1991 में, श्रीलंकाई गृहयुद्ध में भारत के विनाशकारी हस्तक्षेप के बाद, तमिलनाडु विधानसभा ने फिर से कच्चाथीवू को पुनः प्राप्त करने और तमिल मछुआरों के मछली पकड़ने के अधिकारों की बहाली की मांग की। तब से, कच्चाथीवू द्वीप (Katchatheevu Island) बार-बार तमिल राजनीति में सामने आया है।

    पिछले साल, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और डीएमके नेता एमके स्टालिन ने श्रीलंका के प्रधान मंत्री रानिल विक्रमसिंघे की भारत यात्रा से पहले पीएम मोदी को एक पत्र लिखा था, जिसमें पीएम से कच्चाथीवू द्वीप (Katchatheevu Island) के मामले सहित प्रमुख मुद्दों पर चर्चा करने के लिए कहा गया था।

    हालाँकि, कच्चाथीवू कच्चाथीवू द्वीप (Katchatheevu Island) पर केंद्र सरकार की स्थिति काफी हद तक अपरिवर्तित बनी हुई है। यह तर्क दिया गया है कि चूंकि द्वीप हमेशा विवाद में रहा है, “भारत से संबंधित कोई भी क्षेत्र नहीं दिया गया और न ही संप्रभुता छोड़ी गई।”

    2014 में तत्कालीन अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था: “कच्चाथिवु 1974 में एक समझौते के तहत श्रीलंका गया था… आज इसे वापस कैसे लिया जा सकता है? यदि आप कच्चातिवू को वापस चाहते हैं, तो आपको इसे वापस पाने के लिए युद्ध में जाना होगा।”

    कच्चाथीवू द्वीप Vs द्विपक्षीय सीमा समझौता की राजनीति

    जैसे ही प्रधानमंत्री मोदी ने कांग्रेस पर श्रीलंका को कच्चाथीवू द्वीप (Katchatheevu Island) सौंपने का आरोप लगाकर हमला बोला। वर्तमान सरकार के तमाम मंत्रीगण और उनकी भारतीय जनता पार्टी कच्चाथीवू द्वीप को लेकर कांग्रेस पर लगातार आक्रामक है और इसे एक चुनावी मुद्दा बनाने पर आमादा है।

    इसके जवाब में विपक्ष के तरफ से भी प्रधानमंत्री को उनके कार्यकाल में भारत -बांग्लादेश सीमा समझौता को लेकर घेरने की कोशिश कर रही है। इस समझौते के तहत २०१५ में 100वां संविधान समझौते के तहत बांग्लादेश को 17,160 एकड़ जमीन दिया गया जबकि इसके बदले भारत को 7,110 एकड़ जमीन प्राप्त हुआ।

    इसी क्रम में कई मीडिया रिपोर्ट जिसमे यह दावा किया जाता रहा है कि चीन ने भारत के हिस्से के एक बड़े भूभाग पर कब्ज़ा किया है, को और लद्दाख के वर्तमान आंदोलन को आधार बनाते हुए भी वर्तमान सरकार से विपक्ष ने सवाल खड़ा किया।

    कुलमिलाकर सत्तापक्ष हो या विपक्ष दोनों तरफ से चुनावी फायदे के लिए एक दूसरे के कार्यकाल में हुए कूटनीतिक और रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण द्विपक्षीय समझौते को उठाया है।

    आश्चर्य तो यह कि प्रधानमंत्री और उनके मंत्री जब कच्चाथीवू द्वीप से जुड़े सवाल तमिलनाडु के राजनीती में कुछ राजनीतिक बढ़त के लिए उठाया है लेकिन इस गड़े मुद्दे (Katchatheevu Island) को उठाने के पहले यह नहीं सोचा कि इस से हमारे पड़ोसियों के साथ के द्विपक्षीय सम्बन्धो पर असर पड़ सकता है। इस वक़्त एक कड़वी हक़ीक़त यही है कि भारत का अपने पड़ोसी देशो से सम्बन्ध उतना बेहतर नहीं है जितना हुआ करता था।

    By Saurav Sangam

    | For me, Writing is a Passion more than the Profession! | | Crazy Traveler; It Gives me a chance to interact New People, New Ideas, New Culture, New Experience and New Memories! ||सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहाँ; | ||ज़िंदगी गर कुछ रही तो ये जवानी फिर कहाँ !||

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