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    अमेरिका के विशेष दूत ज़लमय खलीलजाद

    अफगानिस्तान में सुलह के लिए नियुक्त किये गए अमेरिका के विशेष प्रतिनिधि ज़लमय खलीलजाद ने बुधवार को इस्लामाबाद में पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री से मुलाकात की थी। अफगानिस्तान में 17 साल से जारी जंग को खत्म करने के लिए अमेरिका नें पाकिस्तान की मदद मांगी थी।

    हाल ही में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अफगान में शांति के पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री को पत्र लिखा था। सितम्बर के बाद अमेरिकी प्रतिनिधि की पाकिस्तान की यह तीसरी यात्रा है। अमेरिकी प्रतिनिधि की पद पर आसीन होने से पूर्व खलीलजाद को पाकिस्तान का विरोधी माना जाता था। उन्होंने अफगानिस्तान की अस्थिरता के लिये हमेशा पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराया था और आतंकवादियों को अपने आदिवासी इलाकों में पनाह देने का आरोप लगाया था।

    पाकिस्तान के लिए ऐसे ख्यालातों के कारण ज़लमय खलीलजाद की पाकिस्तान यात्रा से पूर्व मानव अधिकार मंत्री शरीन मजारी ने ट्वीट कर कहा कि इस बार अपना घमंड और घृणित सोच को लेकर इस्लामाबाद मत आना।

    पाकिस्तान विरोधी और तालिबान विरोध विचारों के बावजूद अमेरिकी प्रतिनिधि ने सबको शांति वार्ता प्रक्रिया के लिए तैयार कर लिया था।

    तालिबान का एक प्रतिनिधि समूह भी बातचीत के लिए इस्लामाबाद में उपस्थित होगा। इस दौरान तालिबान का समूह अमेरिकी प्रतिनिधि, उनकी टीम और पाकिस्तान विभाग के साथ बातचीत करेगा। पाकिस्तानी अधिकारियों के तरफ से इस खबर की पुष्टि नहीं की गई है और न इससे इनकार किया गया है।

    डोनाल्ड ट्रम्प की इमरान खान को चिट्ठी

    सोमवार को डोनाल्ड ट्रम्प प्रशासन ने इमरान खान को चिट्ठी लिखकर मदद मांगी थी। डॉन के मुताबिक इस पत्र में तालिबान के साथ शांति बैठक का आयोजन करने का आग्रह किया गया है। अमेरिका अब इस जंग की समाप्ति चाहता है। अमेरिकी अधिकारियों के मुताबिक 17 सालों की इस जंग में तीनों देशों का आर्थिक संतुलन गड़बड़ाया हैं और हज़ारों सैनिक इस जंग में कुर्बान हुए हैं।

    हाल ही में डोनाल्ड ट्रम्प ने कहा था कि पाकिस्तान ने अमेरिका के लिए कुछ भी नहीं किया है, सिर्फ आतंकियों से जंग के नाम पर अमेरिका का खाजा लूटा है, लेकिन अब बस। हालांकि पाकिस्तान ने अमेरिका के इस कदम का स्वागत किया है और जंग के अंत के लिए संभव कार्य करने पर रजामंदी जताई थी।

    अफगानिस्तान में अमेरिका ने लगभग 14 हज़ार सैनिक तैनात किये हुए हैं। यह सैनिक अफगानिस्तान के सैनिकों को प्रशिक्षण में सहायता करते हैं साथ ही इस्लामिक स्टेट जैसे आतंकी समूहों के खिलाफ अभियान के बारे में निर्देश भी देते हैं। तालिबान के लगातार हमलों के बाद अमेरिका के सैनिक साल 2001 में इस अभियान का हिस्सा बने थे। तालिबान का सितम्बर 2011 में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए हमले में भी हाथ था।

    हाल ही में रूस ने अफगानिस्तान में शांति और स्थिरता के लिए चरमपंथी तालिबान समूह के साथ शांति वार्ता का आयोजन किया था।

    By कविता

    कविता ने राजनीति विज्ञान में स्नातक और पत्रकारिता में डिप्लोमा किया है। वर्तमान में कविता द इंडियन वायर के लिए विदेशी मुद्दों से सम्बंधित लेख लिखती हैं।

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