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    भारत @ 1947

    “विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस (Partition Horror Remembrance Day)” : 14 अगस्त की तारीख देश-दुनिया के इतिहास का एक ऐसा महत्वपूर्ण पन्ना है जो एक ही घटना से जुड़े दो हमसाया मुल्कों पाकिस्तान और भारत- के लिए कहीं खुशी तो कहीं गम का एहसास करवाता है। पाकिस्तान जहाँ इसे अपना स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाता है वहीं भारत इसे “विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस” के रूप में मनाता है।

    14 अगस्त 2021 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक ट्वीट कर के कहा था कि “विभाजन के दर्द को कभी भुलाया नहीं जा सकता। लाखों की संख्या में हमारे बहनों भाइयों को विस्थापित होना पड़ा और विचारहीन नफरत और हिंसा के कारण बड़ी संख्या में लोगों ने अपनी जान गंवाई थी। उनके संघर्ष और बलिदान के याद में 14 अगस्त के दिन को भारत विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस के रूप में मनाएगा।”

    14 अगस्त- दरअसल यही वह तारीख है जब दुनिया के पटल पर अखंड भारत का विभाजन कर एक नया मुल्क पाकिस्तान बना और इसके बाद जो हुआ उसकी टीस आजतक लाखों परिवारों के दिलों में सरहद के दोनों तरफ़ आज भी जिंदा है।

    14 अगस्त 1947 को पाकिस्तान तथा उसके ठीक एक दिन बाद 15 अगस्त 1947 को भारत को दो पृथक देश घोषित किया गया। इतिहास के पन्नों में तो यह एक विशाल देश का विभाजन था लेकिन असल मे यह दिलों का, परिवारों का, रिश्तों का और भावनाओं का बंटवारा था।

    विभाजन: भारतीय इतिहास का सबसे काला अध्याय

    विभाजन विभीषिका की स्मृति का स्मरण : India At 75
    विभाजन के बाद दुनिया ने इतिहास का सबसे बड़ा विस्थापन देखा। अनुमानतः तकरीबन 1.45 करोड़ लोग सरहद के एक तरफ से दूसरी तरफ विस्थापित हुए। (Image Source : Newsclick)

    14 अगस्त को विभाजन की घोषणा के साथ ही रातों रात लाखों लोग अपने ही छत के तले बेघर हो गए…अपने ही रिश्तेदारों से बिछुड़ने पर मजबूर हो गए… अपने जमीन-जायदाद, मकान-दुकान, नाते-रिश्ते सब छोड़कर एक मुल्क से दूसरे मुल्क में जाने पर मज़बूर हो गए।

    भारत विभाजन की घोषणा के बाद देश भर में दंगे-फ़साद, लूट-पाट, मार-काट और बलात्कार जैसी घटनाएं सरहद के दोनों तरफ़ शुरू हो गए। कल तक जो हिन्दू-मुस्लिम एक होकर अंग्रेजों के ख़िलाफ़ लड़ रहे थे, बंटवारे की घोषणा के बाद वह एक दूसरे के ही जान के प्यासे बन गए थे।

    पुरुषवादी समाज में पुरूषों के निर्णय का सबसे ज्यादा दंश विस्थापन के दौरान महिलाओं ने झेला। उन्होंने न सिर्फ अपने भाई, बेटा, पति आदि को खोया बल्कि उन्हें मानसिक उत्पीड़न और शारीरिक बलात्कार का भी शिकार होना पड़ा।

    कुल मिलाकर एक फैसले ने देश के हर कोने में कोहराम मचा दिया था। ऑफिसियल स्त्रोतों को माने तो इस विध्वंस में मारे गए लोगों की संख्या 5 लाख थी। हालांकि जानकर बताते हैं कि यह संख्या हक़ीक़त में इस से दो या तीन गुनी ज्यादा थी।

    ट्रेनों में भर भर कर लाशें सरहद के एक तरफ़ से दूसरी तरफ हफ़्तों और महीनों तक जाती रहीं। पैदल और अन्य साधनों से विस्थापन के दौरान भूख, बीमारी आदि के कारण कितनी मौतें हुईं, उसका अंदाज़ा लगाना मुश्किल है।

    आजादी के वक़्त भारत की आबादी करीब 40 करोड़ थी। आज़ादी मिलने के बहुत पहले से जिन्ना और अन्य मुश्लिम नेता कुल आबादी के लगभग एक चौथाई मुसलमानों के लिए अलग मुल्क की मांग करते रहे।

    जिन्ना की ज़िद के कारण भारत का विभाजन कर दिया गया और इसके बाद दुनिया ने इतिहास का सबसे बड़ा विस्थापन देखा। अनुमानतः तकरीबन 1.45 करोड़ लोग सरहद के एक तरफ से दूसरी तरफ विस्थापित हुए।

    14 अगस्त की स्मृति का स्मरण महत्वपूर्ण

    स्पष्ट है कि देश का विभाजन और उसके बाद विस्थापन और विभाजन-जनित अन्य घटनाएं भारतीय इतिहास के सबसे काले अध्याय है। लेकिन 15 अगस्त को आजादी का पर्व मनाने वाले आज की पीढ़ियों को जश्न के पहले उस आज़ादी के लिए हमारे पूर्वजों द्वारा चुकाई गयी कीमत का स्मरण होना जरूरी है।

    विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस यह याद दिलाता रहे कि जिस मज़हब की लड़ाई ने इस देश का बँटवारा कर दिया और हमारे लाखों पूर्वजों को अकाल मौत में धकेल दिया, आज 75 साल के परिपक्व लोकतंत्र में ऐसे मज़हबी नफरत की कोई जगह नही होनी चाहिए।

    असल मे (मेरे निजी विचार में) यह कहना की भारत का बँटवारा धर्म के आधार पर हुआ था, (मुझे) अर्धसत्य लगता है। क्योंकि  सच तो यही है कि धर्म के आधार पर सिर्फ पाकिस्तान का निर्माण हुआ था, भारत ने तो उस वक़्त भी सभी धर्मों को एकसमान आश्रय दिया था।

    अव्वल तो यह कि स्वतंत्र भारत ने अपने संविधान में मुस्लिमों सहित सभी अल्पसंख्यक वर्ग को विशेष अधिकार दे रखा है ताकि उनको संरक्षण दी सके। इसका सुखद परिणाम भी सबके सामने है।

    आज के भारत मे कोई अब्दुल कलाम मिसाइलमैन और राष्ट्रपति बन जाता है; अज़ीम प्रेमजी भारत को कंप्यूटर की ताकत देता है; कोई मोहम्मद कैफ़ अंग्रेजों को उसी के घर मे नेस्टवेस्ट ट्रॉफी में नेस्तनाबूद कर देता है; कोई हामिद अंसारी उपराष्ट्रपति का पद संभालता है; कोई ए. आर. रहमान अपने धुन से ऑस्कर जीत जाता है; …तो कोई निखत जरीन भारत के लिए  बॉक्सिंग का पदक जीतती है।

    धर्म के नाम पर बने पाकिस्तान की हालत जो हैं, उसकी बानगी FATF लिस्ट में पाकिस्तान का स्थान से मिल जाती है। पाकिस्तान किस तरह आर्थिक मोर्चे पर चीन का उपनिवेश बन कर रह गया है, यह कोई छुपी बात नहीं है।

    आज भारत आज़ादी के अमृत महोत्सव मना रहा है लेकिन इस दौरान रह रहकर साम्प्रदायिक झगड़ो ने अपना फन उठाने की कोशिश की है। इस साल तो शुरुआत के 6 महीने सम्प्रदायवाद के ही भेंट रहे जब हर महीने देश के किसी ना किसी राज्य से दंगे-फ़साद और हुड़दंगबाजी की खबरें आती रही।

    ऐसे समय मे विभाजन विभीषिका की स्मृति का स्मरण और भी आवश्यक तथा महत्वपूर्ण है। देश को चेताया जाए कि वह ना भूले की अतीत में इसी मज़हबी पागलपन में न सिर्फ देश को तोड़ा था बल्कि लाखों लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी।

    By Saurav Sangam

    | For me, Writing is a Passion more than the Profession! | | Crazy Traveler; It Gives me a chance to interact New People, New Ideas, New Culture, New Experience and New Memories! ||सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहाँ; | ||ज़िंदगी गर कुछ रही तो ये जवानी फिर कहाँ !||

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