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    Indian Flag

    विंस्टन चर्चिल और रूडयार्ड किपलिंग : आज 15 अगस्त को सम्पूर्ण भारत और भारतीय जनमानस ने आज़ादी के 75 साल पूरे होने के जश्न मना रहा है। प्रधानमंत्री द्वारा हर घर तिरंगा फहराने का आह्वान ने निश्चित ही आम जनमानस को एक अलग एहसास दे रहा है।

    इतिहास के पन्नों को पलटकर देखें तो भारत की आज़ादी का हर एक सालगिरह 20 सदी के पूर्वार्द्ध (First half of 20th Century) के कई जाने-माने विद्वानों और बड़े नेताओं को आईना दिखाता है। हालाँकि उनमें से ज्यादातर अब इस दुनिया मे नहीं रहे, लेकिन उनके विचार आज भी हवा में तैर रहे हैं।

    जब भारत अपने आज़ादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब ब्रिटेन के प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल या जाने माने लेखक रूडयार्ड किपलिंग जैसे विद्वानों का मत था कि भारत को आज़ादी मिल भी गई तो यह एक राष्ट्र के रूप में अपनी ही विविधताओं के कारण स्वतः ही बिखर जाएगा।

    परंतु इनमें से किसने सोंचा होगा कि जिसे वह भारत की कमजोरी समझ रहे थे, असल मे वही भारत की ताक़त है। तब किसे पता था कि विविधताओं में एकता ही भारत की पहचान बन जाएगी और सम्पूर्ण भारत वर्ष को एक सूत्र में एक ही झंडे के नीचे पिरोए रखेगा।

    कितने गलत थे विंस्टन चर्चिल

    विंस्टन चर्चिल
    भारत को लेकर कितने गलत थे तब विंस्टन चर्चिल (Image:Twitter)

    विंस्टन चर्चिल- ब्रिटेन के सबसे सम्मानित नेताओं में से एक रहे हैं। उन्हें आदर के भाव से वहां देखा जाता है क्योंकि उन्होंने हिटलर के नाज़ियों के ख़िलाफ़ तब मुकाबला किया जब उनकी पार्टी का कोई सहयोगी भी उनके साथ खड़े होने को तैयार नहीं था। लेकिन यही महान ब्रिटिश नेता भारत के बारे में क्या ख्याल रखता था, यह जानने के बाद कम से कम एक भारतीय तो उनके नाम के आगे “महान” शब्द नहीं लगाना चाहेगा।

    भारतीयों के बारे में चर्चिल का मानना था कि “वे जानवर जैसे लोग हैं और उनका धर्म भी पशुओं जैसा है।” गाँधी के प्रति उनका रवैया और बंगाल में भुखमरी के समय चर्चिल के फैसले से हर कोई वाकिफ़ है।

    चर्चिल मानते थे कि भारत में किसी भी सूरत में ब्रिटिश शासन अनिश्चितकाल तक कायम रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत ना एक देश है न राष्ट्र; यह एक महाद्वीप है जिसमें कई देश बसे हैं। यह यूरोप में समानांतर ही है; पर यूरोप थोड़ा भिन्न है कि वह एक राजनीतिक इकाई नहीं है। भारत मे जाति और धर्म का बँटवारा यूरोप की तुलना में ज्यादा गहरा है।

    1932 में लिखे एक नोट में चर्चिल लिखते हैं कि भारत कभी भी एक स्वतंत्र राष्ट्र नहीं हो सकता, जिस लोग देख सकें। जबकि इसी दौर में एक और ब्रिटिश नेता इरविन गाँधी से मिलता है और भाँप लेता है कि भारत मे राष्ट्रवाद की लहर को ज्यादा लंबे वक्त तक नहीं रोका जा सकता है।

    प्रसिद्ध इतिहासकार रामचन्द्र गुहा एक लेख में (2019 में) लिखते हैं कि चर्चिल एक निर्लज्ज साम्राज्यवादी थे जो यह मानते थे कि भारतीयों को हमेशा अंग्रेजो के गुलाम रहना चाहिए। वह घर (ब्रिटेन) में राष्ट्रीय स्वतंत्रता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का बचाव करते थे लेकिन विदेश में नस्लीय भेदभाव को बढ़ावा देते थे, यह विंस्टन चर्चिल की राजनीति का अंतर्विरोध था।

     रूडयार्ड किपलिंग भी मानते थे, ‘भारतीय शासन चलाने में असक्षम’

    अपने जमाने के प्रसिद्ध लेखक और Poetic Voice of British Imperialism in India कहे जाने वाले रूडयार्ड किपलिंग भी विंस्टन चर्चिल के तरह मानते थे कि भारतीयों के पास भारत पर शासन चलाने की काबिलियत नहीं है। लेकिन चर्चिल के तरह वे भारत की विविधता को कोई समस्या नहीं मानते थे।

    किपलिंग की ऐसी सोच के पीछे नस्लभेदी विचारधारा से प्रभावित होना था। कहते हैं कि किपलिंग को भारत से तो प्यार था, लेकिन भारतीयों से नहीं। इसके पीछे का तर्क यह कि जिस भारत ने उनको सबकुछ दिया, उन्होंने जलियांवाला बाग हत्याकांड के दोषी जनरल डायर का भारतीयों पर।अंधाधुंध गोलियां चलाने के बाद भी समर्थन किया था।

    ऐसा नहीं है कि सिर्फ रूडयार्ड किपलिंग या विंस्टन चर्चिल ही ऐसे थे जिन्हें भारत की एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में इसकी क्षमता पर संदेह था। ऐसे कई अन्य महान हस्तियां और भी थीं जिनका मानना था कि भारत अपनी ही समस्याओं में उलझ कर फिर से किसी विदेशी ताक़त का गुलाम बन जायेगा।

    आज़ादी के 75 वर्ष बाद भारत

    असल मे तब का भारत तमाम समस्याओं से जूझ रहा था। 1947 के पहले ही भारत मे धर्म के नाम पर बंटवारे की आवाज बुलंद होने लगी थी। जाति-विभेद की जड़ें काफ़ी गहरी थीं जो कहीं ना कहीं एक हद तक आज भी व्याप्त है।

    दुनिया की राजनीति भी द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद दो महाशक्तियों के बीच बंट गयी थी। ऐसे में भारत ने गट-निरपेक्षता की नीति अपनाई जो निःसंदेह एक बड़ा निर्णय था। गरीबी, भूखमरी, महामारी और बेरोजगारी से त्रस्त भारत आधुनिकता और इंडस्ट्रीज के मामले में दुनिया से काफ़ी पीछे था।

    फिर भारत का भूभाग भौगोलिक और भाषाई विविधता से भरा हुआ था जिसे एकीकृत करना इतना आसान नहीं था। ऐसी तमाम वजहें थीं जिसे लेकर दुनिया को लगने लगा था कि क्या भारत के नेतृत्वकर्ता इन समस्याओं का निदान कर पाएंगे?

    लेकिन आज जब आज़ादी के 75 वर्ष बाद भारत के हर घर, कार्यालय, संस्थाओं और लालकिले पर तिरंगा लहराता है तो यह न सिर्फ एक आज़ाद देश का परिचायक है बल्कि दुनिया भर को एक संदेश जाता है कि भारत ने न सिर्फ अपनी परेशानियों से पार पाया है, बल्कि भारत और भारतीयों को हीन समझने वाले विचारधारा वाले गालों को भी एक तमाचा जड़ा है।

    मेरी निजी इच्छा है कि अगर मौका मिला तो रूडयार्ड किपलिंग और विंस्टन चर्चिल के कब्रगाहों पर कभी जाऊं और आदर से 2 फूल तथा एक प्रतीकात्मक तिरंगा रख आऊं ताकि अगर उनकी आत्मा कहीं भी हो तो उसे एक संदेश जाए कि “महान” विंस्टन चर्चिल, भारत न सिर्फ अपने शासन को संभाल रहा है, बल्कि जल से लेकर नभ तक, पाताल से लेकर अंतरिक्ष तक भारत और भारतीय अपनी धाक जमा रखे हैं।

    By Saurav Sangam

    | For me, Writing is a Passion more than the Profession! | | Crazy Traveler; It Gives me a chance to interact New People, New Ideas, New Culture, New Experience and New Memories! ||सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहाँ; | ||ज़िंदगी गर कुछ रही तो ये जवानी फिर कहाँ !||

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