भारत की कई संस्थाओं को 25 अप्रैल को बीजिंग में आयोजित आगामी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के सम्मेलन में चीन ने आमंत्रण भेजा हैं। यह भारतीय कारोबारियों की बीआरआई सम्मेलन में शिरकत को सुनिश्चित करने का प्रयास है क्योंकि भारत सरकार इस समारोह का बहिष्कार करने का मन बना बैठी है।
कारोबारी संगठनों को न्योता
टाइम्स ऑफ़ इंडिया के मुताबिक कारोबारी संगठन और कंपनियां इस समारोह में शरीक होने पर असमंजस की स्थिति में हैं, यह एक महत्वपूर्ण नेटवर्किंग अवसर है। इनमे से अधिकतर इस मसले पर सरकार की सीमा को पार नहीं करना चाहते हैं लेकिन कई कारोबारी कारणों से इसमें शरीक होने की इच्छा रखते है।
100 देशों की सरकार और व्यापारी समूह इसमें भागीदारी करेंगे और 40 से अधिक देशों के सरकार के प्रमुख इसमें हिस्सा लेंगे। भारत बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का विरोध करता रहा हैं क्योंकि पाकिस्तानी अधिकृत कश्मीर से गुजरकर यह भारत की सम्प्रभुता का उल्लंघन करता है। साल 2017 में भारत ही एकमात्र प्रमुख देश था जिसने इस सम्मेलन का बहिष्कार किया था, जबकि कट्टर आलोचक अमेरिका ने भी अपने प्रतिनिधि भेजे थे।
भारत करेगा बहिष्कार
चीन में भारत के राजदूत विक्रम मिश्री ने हाल ही में संकेत दिया कि “भारत इस बैठक में उपस्थित नहीं होगा। कोई भी देश ऐसे सम्मेलन में शरीक नहीं होगा जो उनकी मूल चिंताओं, सम्प्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता को बुरी तरह नज़रअंदाज़ करता हो।”
चीनी आमंत्रण इस तरीके से तैयार किये गए हैं कि संस्था या व्यापारी समूह कम से कम सब फोरम मीटिंग में आराम से शामिल हो सके चाहे मुख्य कन्वेंशन में नहीं आये। चीन के एनजीओ के संगठन द्वारा आयोजित सम्मेलन के लिए भारतीय संस्थाओं को निमंत्रण भेज दिया है। इस पैनल में पर्यावरण, एनजीओ के नेटवर्किंग और कानूनी मसलों और भ्रष्टाचार से बचने के अन्य तरीकों के बाबत चर्चा की जाएगी।
चीन को साइड मीटिंग्स में अच्छी भारतीय भागीदारी की उम्मीद है जबकि मुख्य सत्र में सभी नदारद हो सकते हैं। लेकिन चिंता का विषय यह है कि साइड मीटिंग में भारतीय कारोबारियों की उपस्थिति को चीन सार्वजनिक स्तर पर इस्तेमाल कर सकता है कि भारत का अधिकतम कारोबारी समुदाय बीआरआई के समर्थन में हैं जबकि सरकार इसका विरोध कर रही है।
भारत की जरूरत क्यों है चीन को?
चीन नें 2013 में जबसे वन बेल्ट बन रोड योजना की घोषणा की थी, तब से ही चीन की कोशिश है कि वह भारत को इसमें शामिल कर ले। इसके बहुत से कारण हो सकते हैं।
सबसे बड़ा कारण यह है कि भारत एक बहुत बड़ा बाजार है और यहाँ चीन को काफी फायदा संभव है।
उदाहरण के तौर पर पाकिस्तान जैसे आर्थिक रूप से कमजोर देश में चीन लगभग 62 अरब डॉलर निवेश कर रहा है। ऐसे में यदि चीन को भारत में निवेश करने की अनुमति मिलती है, तो वह एक मोटा मुनाफा कमाने की कोशिश करेगा।
आपको बता दें कि जापान से पहले चीन नें भारत में बुलेट ट्रेन लाने की योजना को भारत के सामने रखा था। चीन नें कहा था कि वह जापान से पहले भारत को बुलेट ट्रेन दे सकता है। लेकिन जापान नें भारत को बहुत ही सस्ते दर पर कर्ज दिया था, जिसकी वजह से भारत सरकार नें जापान को चुना था।
इसके बाद हालाँकि चीन नें भारत को निर्माण विकास के लिए कई सुझाव दिए थे, लेकिन भारत नें इससे जुड़ने से मना कर दिया था।
वन बेल्ट वन रोड के जरिये चीन अरब सागर और हिन्द महासागर जैसे व्यापारिक मार्गों पर उपस्थिति दर्ज कराना चाहता है। चीन नें श्रीलंका, पाकिस्तान, बांग्लादेश जैसे देशों में निवेश किया है, जहाँ से पानी तक पहुंचना काफी आसान हो जाता है।
हाल ही में खबर आई थी कि बांग्लादेश के पायरा नामक बंदरगाह पर चीन कब्ज़ा कर सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि चीन नें इस बंदरगाह के निवेश के लिए 60 करोड़ डॉलर दिए थे, जिसे चुकाने में बांग्लादेश असमर्थ प्रतीत हो रहा है।
इससे पहले चीन नें श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह पर भी कब्ज़ा कर लिया था। इसके अलावा पाकिस्तान के ग्वादर पर चीन का संचालन जारी है।
बेल्ट एंड रोड से भारत की नाराजगी?
चीन की वन बेल्ट वन रोड योजना का भारत शुरुआत से ही बहिष्कार कर रहा है। इसके सबसे मुख्य कारण है: चीन पाकिस्तान आर्थिक मार्ग (सीपीईसी)।
यह मार्ग भारतीय राज्य जम्मू कश्मीर से होकर गुजरता है। यह इलाका वर्तमान में पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में आता है, लेकिन भारत इसे अपना हिस्सा मानता है।
अपने क्षेत्र की संप्रभुता को ध्यान में रखते हुए भारत नें चीन से साफ़ कर दिया है कि जब तक चीन भारत के साथ सुलह नहीं कर लेता है, तब तक भारत इससे नहीं जुड़ सकता है।
इसके अलावा अन्य कारण यह है कि भारत को लगता है कि इस योजना से भारत के आस-पास वाले देशों में चीन का प्रभुत्व बहुत ज्यादा बढ़ जाएगा।
उदाहरण के तौर पर, चीन नें श्रीलंका में हंबनटोटा बंदरगाह का विकास किया था। इसे बनाने में 1 अरब डॉलर के लगभग खर्च आया था। जब श्रीलंका समय पर चीन का कर्ज चुकाने में असमर्थ रहा, तब चीन नें इस बंदरगाह का संचालन अपने हिस्से में ले लिया।
श्रीलंका के अलावा चीन नें मालदीव में भी भारी निवेश किया था। मालदीव की अब्दुल्ला यामीन की सरकार नें चीन से भारी लोन लिया था। हाल ही में मालदीव की नवनिर्वाचित इब्राहीम सोलिह की सरकार नें भारत की मदद से चीन का कर्ज चुकाया है।
इसके अलावा बांग्लादेश, म्यांमार और नेपाल जैसे देश भी चीन के करीबा जाते दिख रहे हैं।
ऐसे में चीन भारत के आसपास मौजूद देशों में अपनी उपस्थिति बढाकर भारत पर दबाव बनाना चाहता है।
इसके अलावा चीन अफ्रीकी देशों में भी भारी निवेश कर रहा है।
अफ्रीका के अलावा चीन यूरोपीय देशों में भी भारी निवेश कर रहा है। हाल ही में इटली नें चीन की बेल्ट एंड रोड योजना से जुड़ने का एलान किया है।
ऐसे में भारत को लगता है कि इतनी बड़ी मात्रा में चीन का प्रभुत्व भारत की संप्रभुता के लिए ठीक नहीं है।
भारत नें हालाँकि बेल्ट एंड रोड योजना का विकल्प खोज लिया है।
भारत और जापान ने हाल ही में आर्थिक और विदेशी निवेश से सम्बंधित कई समझौते किये थे। चीन ने अब भारत की एशिया-अफ्रीका विकास मार्ग पर सवाल उठाते हुए इसे अपने वन बेल्ट वन रोड़ से तुलना की है।