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    खाद्य संकट (Food Crisis) in the World

    यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद जिस तरह से यह युद्ध खींचता ही जा रहा है, दुनिया भर में इसके परिणाम महसूस किये जा रहे हैं। कहने को तो यह युद्ध महज़ दो देशों के बीच ही है, परन्तु ग्लोबलाइजेशन के इस दौर में इसकी वजह से महंगाई से लेकर ऊर्जा संकट (Energy Insecurity) तक और अब “खाद्य असुरक्षा (Food Insecurity)” जैसे कई संकट के बादल पुरी दुनिया पर मंडराने लगे हैं।

    जब 24 फरवरी 2022 को रूस जैसे विशाल देश ने पड़ोसी यूक्रेन पर आक्रमण किया तो दुनिया भर के विशेषज्ञों में एक बड़े वर्ग को लगा कि रूस के आगे यूक्रेन ज्यादा दिन टिक नहीं पायेगा। लेकिन यूक्रेन ने बहादुरी से लड़ा और न सिर्फ लड़ा बल्कि अब रूस को अपनी नीतियों पर वापस सोचने पर मज़बूर कर दिया है।

    अब जैसे-जैसे यह युद्ध लंबा खींचता जा रहा है, दुनिया के कई हिस्सों संकट के नए बादल मंडराने लगे हैं। महंगाई का डंका पूरी दुनिया मे बज रहा है, तेल की कीमतें आसमान छू रही है। रूस पर अमेरिका सहित कई पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों के कारण विश्व की अर्थव्यवस्था पर गंभीर असर पड़ा है। इन सब के बीच “खाद्य असुरक्षा (Food Insecurity)” की एक ऐसी समस्या भी है जिस से दुनिया के छोटे बड़े हर देश को जूझना पड़ रहा है।

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    रूस और यूक्रेन: खाद्य सामग्रियों के निर्यात का बड़ा केंद्र

    दुनिया के कई देशों के लिए-रूस और यूक्रेन-दोनों देश खाद्य सुरक्षा के लिहाज़ से अति महत्वपूर्ण है। ये दोनों देश गेहूँ के बड़े निर्यातक देश माने जाते हैं। विश्व के गेहूँ निर्यात में रूस की हिस्सेदारी 18 प्रतिशत व यूक्रेन की हिस्सेदारी 10% की है।

    अफ्रीका महाद्वीप के कई देश अनाज की आपूर्ति के लिए इन्हीं दोनों देशों पर निर्भर हैं। मिस्र दुनिया मे सबसे ज्यादा गेंहूँ आयात करने वाला देश है और इसने पिछले साल आपने आयात का लगभग 80% गेंहूँ इन्हीं दो देशों से खरीदा था। मिस्र के तरह ही करीब 25 देश ऐसे हैं जिनकी जरूरत का 50% से भी ज्यादा हिस्सा इन्ही दो देशों के ऊपर निर्भर करता है।

    संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य कार्यक्रम (UNWFP) जो दुनिया भर में जरूरतमंद लोगों को खाना खिलाता है, उसके अनाज का भी 50% हिस्सा यूक्रेन से लेता है। UNWFP के एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर में 69 करोड़ लोग एक शाम का खाना नहीं जुटा पाते हैं।

    जलवायु परिवर्तन (Climate Change) के कारण खाद्य संकट (Food Crisis) पहले ही चिंता के सबब से ऊपर था, इस दो देशों के बीच के युद्ध ने इसे और भी भयावह बना दिया है।

    इस युद्ध के कारण उत्पन्न हुए खाद्य असुरक्षा (Food Insecurity) के खतरे से वह देश भी नहीं बच पा रहे हैं जो अनाज का आयात रूस या यूक्रेन से नहीं भी करते होंगे। क्योंकि उन देशों में खाद्य सामग्री की कीमतें बढ़ती जा रही है और आबादी का एक बड़ा हिस्सा भूख और खाद्य असुरक्षा के मुहाने पर खड़ा है।

    खाद्य सुरक्षा (Food Security) को लेकर भारत की भूमिका

    भारत अनाजों के लिए खासकर गेंहूँ और चावल के लिए आत्मनिर्भर है लेकिन इस युद्ध के कारण दुनिया भर में छाई महंगाई की वजह से खाद्य सामग्री की कीमतें यहाँ भी बढ़ती जा रही है। बावजूद इसके भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ के बैठक में दुनिया भर में उत्पन्न हुए इस संकट से निपटने के लिए अपने दरवाजे खोल दिये हैं।

    संयुक्त राष्ट्र में भारत ने कहा कि इस संकट से बचने के लिए हमे रचनात्मक प्रतिक्रिया देने की आवश्यकता है। भारत के प्रतिनिधि स्नेहा दुबे ने कहा कि भारत ने अफगानिस्तान की बिगड़ती मानवीय स्थिति को देखते हुए उसे 50000 मीट्रिक टन गेंहूँ देने का फैसला किया था।

    ठीक उसी तरह, भारत ने म्यांमार को भी 10000 टन गेंहूँ और चावल दिये हैं। भारत दुनिया के और देशों के लिए भी आगे भविष्य में ऐसी ही सहायता और सहयोग के लिए तैयार है।

    खाद्य सुरक्षा (Food Security) को लेकर भारत की अपनी भी चुनौतियां कम नहीं

    कोविड19 के दौरान लगातार दो साल से लगभग 80 करोड़ आबादी को फ्री राशन (मुख्यतः अनाज) देने के कारण भारतीय खाद्य निगम के गोदाम भी अब धीरे-धीरे खाली होने लगे हैं।

    इस साल मार्च में अत्यधिक गर्मी के कारण गेंहूँ की उपज भी प्रभावित हुआ है। सरकार इस साल गेहूँ की खरीद भी कम करने को सोच रही है। अब इन सभी कारकों को जोड़कर देखें तो कुल मिलाकर खाद्य पदार्थों की कीमतें और बढ़ने के आसार हैं।

    खुदरा महंगाई दर जो मार्च में लगभग 7% था, इसके लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार खाद्य पदार्थों का बास्केट ही रहा है। मार्च में गेंहूँ का थोक महंगाई दर 14% रहा है जो यथाशीघ्र नियंत्रण में लेने की जरूरत है।

    खाद्य संकट : CPI Inflation in March 2022
    Image Source: Business Insider

    रूस, यूक्रेन और बेलारूस फ़र्टिलाइज़र के सबसे बड़े उत्पादक देश हैं। साथ ही इस युद्ध के कारण फॉस्फोरस और पोटैशियम जैसे रसायनों का सप्लाई भी बाधित हुआ है जिसका असर खाद या उर्वरक कंपनियों के उत्पादन पर पड़ेगा। आगामी खरीफ़ फसलों के बुआई के दौरान उर्वरकों की कीमतें बढ़ने की पूरी संभावना है जिस से चावल के उत्पादन पर भी असर पड़ेगा।

    इसलिये खाद्य सुरक्षा (Food Security) को लेकर भारत की चुनौतियां कम नही है लेकिन अच्छी बात यह है कि जब कोविड 19 के कारण सभी उद्योग ठप पड़ गए थे तब भी कृषि सेक्टर का विकास दर पॉजिटिव रहा था।

    अतः यह साफ है कि युद्ध दो देश के बीच छिड़ा है पर उसका असर पूरी दुनिया पर पड़ा है। खासकर विकासशील देशों के बैलेंस ऑफ पेमेंट पर इसका असर जबरदस्त पड़ा है।

    अभी यह युद्ध जिस मुकाम पर है, यह कहना मुश्किल है कि यह युद्ध कब तक खींचेगा। इसलिए दुनिया के सभी नेताओं और प्रभावी संस्थाओं को हरसंभव कोशिश करनी चाहिए कि जल्दी से जल्दी युद्ध खत्म कर शांति बहाल किया जाए वरना कोई जीते कोई हारे, इसका असर सबसे ज्यादा पूरी दुनिया के गरीबों और मध्यम वर्ग के ऊपर पड़ रहा है।

    By Saurav Sangam

    | For me, Writing is a Passion more than the Profession! | | Crazy Traveler; It Gives me a chance to interact New People, New Ideas, New Culture, New Experience and New Memories! ||सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहाँ; | ||ज़िंदगी गर कुछ रही तो ये जवानी फिर कहाँ !||

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