Mon. Dec 9th, 2024
    Hoysala Temples are included in UNESCO World heritage List

    3 Hoysala Temples in UNESCO World Heritage: हाल ही में यूनेस्को के विश्व धरोहर कमिटी (UNESCO’s World Heritage Committee) की रियाद, सऊदी अरब में सम्पन्न हुई बैठक में कर्नाटक के तीन मंदिरों को एक साथ विश्व धरोहरों की सूची में शामिल करने का फैसला किया गया।

    इन तीनों मंदिरों को 11वीं और 12वीं शताब्दी में प्रसिद्ध होयसल वंश के शासकों द्वारा बनवाया गया था। इन्हें यूनेस्को की विश्व धरोहरों की सूची एक साथ “होयसल के पवित्र सामूहिक धरोहर (Sacred Ensembles of Hoysalas)” ने नाम से शामिल किया गया है।

    होयसल शासक (Hoysalas Rulers) द्वारा बनवाये गए इन ऐतिहासिक मंदिरों की खूबसूरती अद्वितीय है। इनके दीवारों पर बनाये गए कलाकारी की सफाई और खूबसूरती को बयां करने के लिए अक्सर कहा जाता है कि “ऐसी कला तो कोई शिल्पकार अपनी मूर्तियों पर या कोई सुनार आभूषणों पर करता है।

    साथ ही, दीवारों पर बनी ये कलाकृतियां न सिर्फ बनाने वाले कलाकारों की दक्षता को दिखाता है बल्कि उस काल की राजनीति की कहानियां भी बताती हैं। इन्ही वजहों से होयसलों द्वारा बनवाये गए इन ऐतिहासिक धराहरों यूनेस्को के विश्व धरोहरों की सूची में शामिल किया गया।

    3 मंदिर (Hoysala Temples) जिन्हें UNESCO सूची में शामिल किया गया

    UNESCO की विश्व धरोहर सूची में 18 सितंबर को होयसल काल के जिन 3 मंदिरों को शामिल किया गया –

    1. चेन्नाकेशव मंदिर, बेलूर (Chennakeshva Temple, Belur)

    1117 ईस्वी में होयसल राजा विष्णुवर्धन द्वारा निर्मित यह मंदिर कर्नाटक के बेलूर में स्थित है। यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है। विष्णुवर्धन ने इस मंदिर को तत्कालीन चोला साम्राज्य पर अपने विजय के उपलक्ष्य में बनवाया था। इसलिए इसे विजय-नारायण मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।

    2. होयसलेश्वर मंदिर, हलेबीड़ू (Hoysaleshwar Temple, Halebidu or Dwarsamundra)

    12वीं सदी में निर्मित यह मंदिर होयसल शासकों द्वारा बनवाया गया सबसे बड़ा शिव-मंदिर माना जाता है। 14वीं सदी के शुरुआत में आक्रांता मलिक कफूर (Malik Kafoor) ने इस मंदिर पर हमला कर के तोड़-फोड़ किया था।

    3. केशव मंदिर, सोमनाथपुरा (Keshwa Temple, Somnathapura)

    1268 ईस्वी में निर्मित यह मंदिर होयसल राजा नरसिम्हा III के सेनापति सोमनाथ द्वारा बनवाया गया था। यह मंदिर भी भगवान विष्णु को समर्पित माना जाता है।

    16-बिंदुओं वाले तारानुमा आधार पर स्थित यह मंदिर परिसर में भगवान केशव, जनार्दन और वेणुगोपाल के मंदिर बनवाया गया है। वर्तमान में भगवान केशव की मूर्ति गायब है।

    कौन थे होयसल शासक (Hoysala Kings)?

    वर्तमान के कर्नाटक क्षेत्र में 10वीं से 14वीं सदी में होयसल राजाओं ने शासन किया था। इस राजवंश की शुरुआत पश्चिमी चालुक्य राजाओं के अंदर प्रांत-प्रमुख (Provincial Governors under Western Chalukyas) के तौर पर हुई थी। लेकिन बाद में दक्षिण भारत के दो प्रमुख राजवंश पश्चिमी चालुक्यों और चोला राजवंश के कमजोर पड़ने पर उन्होंने स्वयं को शासक के तौर पर स्थापित कर लिया।

    यूनेस्को (UNESCO) के विश्व-धरोहरों की सूची में शामिल 3 होयसल मंदिरों शहरों में से दो- क्रमशः बेलूर और हलेबीड़ू (Halebidu) या द्वार-समुन्द्र (Dwar samundra)- होयसल राजाओं की राजधानी रही है।

    होयसल-काल की वास्तुकला: क्यों है विशेष?

    Chennakesava Temple, Belur- Built by Hoysala Ruler Vishnuwardhana.
    होयसल राजा विष्णुवर्धन द्वारा 12वीं शताब्दी में निर्मित बेलूर में चेन्नाकेशव मंदिर, अपनी जटिल वास्तुकला और शिल्प कौशल के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध है। (Image Source: X / @SleepyClasses)

    होयसल काल के वास्तुकला वैसे तो कई विशेषताओं से भरी हुई हैं, लेकिन सबसे बड़ी विशेषता मानी जाती है- सेलखड़ी या गोरा पत्थर (Soapstone) का इस्तेमाल। गोरा-पत्थर (Soapstone) अलग तरह का पत्थर होता है जिस पर आसानी से नक्काशी की जा सकती है। यही वजह है कि होयसल काल (Hoysala Era) की वास्तुकला में बेहद महीन और खूबसूरत नक्काशी देखने को मिलता है।

    इन नक्काशियों में खूबसूरत कलाकृतियां देखने को मिलती हैं। इनमें जानवरों की तस्वीरें, रोजमर्रा के जीवन की तस्वीरों के साथ साथ महाकाव्यों और पुराणों के कहानियों का चित्रीकरण देखने को मिलता है।

    होयसल काल (Hoysala Era) के वास्तुकला में उस समयकाल के कई अन्य वास्तुकला शैली- द्रविड़ शैली (Dravidian Style of architecture) , वेसारा शैली (Vesara Style of architecture) और नागर शैली (Nagar Style of architecture) आदि- का मिश्रण देखने को मिलता है।

    होयसल काल (Hoysala Era) के मंदिरों की एक खास विशेषता यह भी है कि ज्यादातर मंदिर तारों के आकार के आधार (Stallate Platform) पर बने होते हैं। इस  काल के मंदिरों में एक और खासियत  ध्यान आकर्षित करती है कि कलाकृतियों को उकेरने वाले कलाकारों का और राजमिस्त्रियों का हस्ताक्षर या उनसे जुड़ी कई अन्य सूचनाएं  भी मिलती हैं।

    UNESCO की सूची में शामिल करने से संरक्षित होगी विरासत

    होयसल काल (Hoysalas Era) के इन मंदिरों में कई गई खूबसूरत कलाकारी और तमाम विशेषताएं ही वह वजह हैं जिसके कारण इन 3 मंदिरों को यूनेस्को ने अपने विश्व धरोहरों की सूची में शामिल किया है।

    साथ ही, इतिहास के धरोहरों को बचाकर रखने की आवश्यकता है। हलेबीड़ू (Halebidu) के मंदिर पर 14वीं सदी के शुरुआत में आक्रांता मलिक कफूर ने हमला कर के पहले ही वास्तुकला के अप्रतिम धरोहर को नुकसान पहुंचाने का काम किया था।

    उसके बाद इन विरासतों का स्वतः क्षरण भी हुआ। इसलिए इन मंदिरों को विशेष संरक्षण की आवश्यकता है। यूनेस्को की इस सूची में शामिल होने से इस दिशा में निश्चित ही सकारात्मक परिणाम मिलेंगे।

    By Saurav Sangam

    | For me, Writing is a Passion more than the Profession! | | Crazy Traveler; It Gives me a chance to interact New People, New Ideas, New Culture, New Experience and New Memories! ||सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहाँ; | ||ज़िंदगी गर कुछ रही तो ये जवानी फिर कहाँ !||

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *