Sat. Oct 12th, 2024
    Assam Crackdown on Child Marriage

    Assam में बाल-विवाह (Child Marriage) के खिलाफ बीते कुछ हफ्तों में हजारों की संख्या में (लगभग 3 हज़ार) लोगों की गिरफ्तारी हुई है। इन मामलों में ज्यादातर आरोपी घर के मुखिया या अकेले कमाने वाले सदस्य हैं। ये गिरफ्तारियां बेहद कठोर POSCO Act, 2012 तथा बाल-विवाह निषेध व रोकथाम कानून 2006 (PCMA 2006) के तहत हुई हैं।

    गर्भवती टीन-एजर्स (Teen-Agers) महिलाएं खौफ़ में चिकित्सा-सुविधाओं से दूरियां बना रही हैं और गर्भपात के तरीकों की तलाश कर रहे हैं। साथ ही ऐसे महिलाओं के पति तथा परिवार के अन्य सदस्य भी घर से फरार हैं या चोरी छिपे पलायन करने पर मजबूर है।

    दूसरी तरफ़ असम के मुख्यमंत्री श्री हेमंता विस्वा शर्मा (Hemant Biswa Sharma, CM, Assam)  ने लगातार एक्शन की बात की है। उन्होंने कहा कि राज्य की पुलिस पिछले 7 सालों में हुए तमाम बाल-विवाह से संबंधित मामलों में पूर्वव्यापी (Retrospectively) तरीके से कार्रवाई करेगी और विशेष तौर पर “मुल्ला, काज़ी, और पुजारियों” पर इन विवाहों को संपन्न करवाने के कारण कार्रवाई की जाएगी।

    सरकार का कहना है कि कम उम्र में शादी कई अन्य तरह के अनावश्यक समस्याएं जीवन मे लाती हैं। इसके कुप्रभाव में खासकर महिलाओं को तमाम तरह की शारीरिक व सामाजिक समस्याओं से जूझना पड़ता है। लिहाज़ा कानूनी दायरों में लोगों की गिरफ्तारी ही एकमात्र उपाय है जो इस समस्या को कारगर रूप से रोक सकती है।

    असम सरकार (Govt of Assam) की ये पहल या कवायद या कार्रवाई बाल-विवाह और उसके कुप्रभावों को कम करने में कितना कारगर साबित होगी, यह तो भविष्य के गर्भ में है। यह जरूर है कि जिस तरह से यह सब हो रहा है, उससे निश्चित ही समाज के एक तबके मे गैरजरूरी भय और स्थानीय लोगों में एक नाराज़गी स्पष्ट तौर पर देखी जा सकती है।

    यह सच है कि बाल-विवाह में या कानूनी रूप से मान्य शादी के लिए न्यूनतम उम्र से नीचे होने वाली शादियां आज भी समाज मे हो रही हैं। सरकारों ने लागातार वर्षों से व्यापक प्रचार और जागरूकता अभियान छेड़ रखीं हैं। तमाम तरह के कानूनी प्रावधान भी किये गए हैं। बावजूद इसके कम उम्र में बच्चों की शादियों का चलन पूर्णतया नहीं थमा है।

    स्वास्थ के पैमाने पर असम (Assam): NFHS-5

    असम (Assam) भारत मे सबसे खराब मातृत्व मृत्यु दर (Maternal Mortality Rate) वाला राज्य है। अगर बात कम उम्र में शादी की हो तो इस मामले में भी भारत के तमाम राज्यों की सूची में -बिहार, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, और आंध्र प्रदेश के बाद नीचे से पाँचवें स्थान पर है।

    राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे 5(NFHS 5) के ताजे आंकड़ों के मुताबिक़, राज्य (Assam) में 32% लडकियां विवाह के लिए कानूनी रूप से तय न्यूनतम उम्र यानि 18 साल से पहले ही शादी कर लेती हैं। जबकि देश भर में यह आंकड़ा औसतन 25% है।

    अगर NFHS 3 और 4 कि तुलना में NFHS 5 के आँकड़ें सुधार की तरफ इशारा कर रहे हैं। 15-19 साल की महिलाओं के बीच प्रेग्नेंसी के आंकड़ा लगातार घट रहा है। 2005-06 के आंकड़ों के अनुसार ऐसे महिलाओं का प्रतिशत 16.4% से घटकर 2019-20 में 11.6% पर आ गया है।

    साथ ही, राज्य में प्रजनन दर (Fertility Rate) तेजी से घटकर 2015-16 के 2.2 से 2019-20 में प्रतिस्थापन प्रजनन क्षमता (Replacement Fertility Rate) से भी नीचे 1.9 पर आ गया है।

    देश भर में होने वाले 18 से कम उम्र में होने वाली शादियों की संख्या में असम का योगदान मात्र 3% है। यहाँ तक कि अग्रणी और विकसित राज्य कहे जाने वाले गुजरात का योगदान इस आंकड़े में 4.4% है। जाहिर है कि असम में ऐसी शादियों की संख्या में लगातार कमी आ रही है।

    फिर Assam Govt. ने क्यों लिया ऐसा फैसला?

    यह जरूर है कि असम में यह समस्या जड़ से खत्म है, तो ऐसा नहीं है। समाज के एक हिस्से में यह आज भी विद्यमान है, इस से कोई इनकार नही कर सकता। परंतु भारी संख्या में गिरफ्तार करने या दोषियों को जेल भजने से- वह भी पूर्वव्यापी तरीके (In Retrospective Manner) से- यह समस्या थम जाएगी, तो ऐसा नहीं है।

    इस से यह जरूर होगा कि इन सब से  कुछ राजनैतिक सुर्खियां बटोरने में जरूर मदद मिलेगी। साथ ही कुछ दिन के लिए इस समस्या का दीर्घ-कालीन उपाय देने से सरकार बच जाएगी। दरअसल इस समस्या का एक राजनैतिक दृष्टिकोण भी है जो हेमंता बिस्वा शर्मा और उनकी पार्टी के राजनीतिक समीकरणों को भाता भी है।

    शादी की न्यूनतम उम्र का अलग अलग मज़हब में अलग अलग मापदंड हैं। देश का कानून के मुताबिक महिलाओं के शादी के लिए न्यूनतम उम्र 18 साल है। हिन्दू समाज के ज्यादातर लोग इसी उम्र को विवाह के लिए आवश्यक न्यूनतम आयु मानते हैं।

    वहीं मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार कोई लड़की अगर यौवन-काल (Puberty) में प्रवेश कर जाए तो उसकी शादी जायज़ है। सामान्यतः इसे (Puberty) 15 साल की आयु को माना जाता है।

    दूसरा, कानूनी रूप से तय शादी के न्यूनतम उम्र से पहले होने वाली शादियों की बात करें तो हिंदुओं में यह आंकड़ा असम में 23.5% है जो राष्ट्रीय औसत 23.2% के आस पास है। जबकि मुस्लिमों में यह आंकड़ा 45.8% तथा क्रिश्चियन में 23.8% है जो राष्ट्रीय औसत से कहीं ज्यादा हैं। जाहिर है, गिरफ्तारियां भी इन्ही धर्म के लोगों में ज्यादा होने वाली है।

    यही वे तथ्य हैं जहाँ से राज्य की राजनीति में  हिन्दू-मुस्लिम कार्ड का विकल्प खुल जाता है। हिंदुत्व की राजनीति करने वाली भारतीय जनता पार्टी की सरकार राज्य में सत्ता में है। जाहिर है यह मुद्दा उन्हें अच्छी सुर्खियां दिलवा सकती है। परंतु क्या यह कम उम्र में शादी जैसे सामाजिक बुराइयों का समाधान है, यह एक यक्ष प्रश्न है।

    फिर क्या है समाधान?

    असम (Assam) की सरकार अगर वाकई में नाबालिगों की शादी को लेकर गंभीर है तो उसे पहले इस समस्या के जड़ में जाना होगा। तमाम अध्ययन और शोध यह बताते हैं कि कम उम्र में शादी करने की वजह मुख्यतः ग़रीबी, अशिक्षा, महिला-सशक्तिकरण की कमी, सामाजिक सुरक्षा का अभाव तथा स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी है।

    NFHS -5 के अनुसार, असम (Assam) मे 15-49 आयु वर्ग की महिलाओं में तकरीबन 20 प्रतिशत महिलाओं ने कभी स्कूल का मुँह नही देखा। इन महिलाओं में लगभग 30% ही महिलाएं अपने जीवन मे 10 साल की शिक्षा को पूरा कर पाती हैं।

    अच्छी शिक्षा की कमी का नतीजा यह कि राज्य के श्रम-बल में भी महिलाओं का योगदान बहुत कम है। गैर-कृषि रोजगारों में राज्य के 53% पुरुष जुड़े हैं वहीं महिलाएं मात्र 17% ही योगदान देती हैं। इस सर्वे (NFHS-5) के ठीक 12 महीने पहले राज्य के 80% महिलाओं के पास किसी भी तरह का कोई रोजगार उपलब्ध नहीं था।

    यह सर्वविदित है कि, महिलाओं की शिक्षा और उनका सशक्तिकरण उनके स्वास्थ संबंधी फैसलों को निर्धारित करती हैं। इन फैसलों से ही महिलाओं के शादी का फैसला भी जुड़ा होता है।

    दूसरा, रोजगार के अभाव व गरीबी के कारण लड़कियों के माता-पिता भी जल्दी शादी कर देना चाहते हैं क्योंकि अगर शादी नही किया तो लड़की को पढ़ाने लिखाने का खर्च वहन करना पड़ेगा ही। उपर से समाज मे दहेज जैसे सामाजिक राक्षस का बोलबाला है, वह अलग।

    अगर बात महिलाओं के कम उम्र में शादी फिर कम उम्र में बच्चे पैदा करने के कारण उत्पन्न होने वाले खतरों की तो इसमें स्वास्थ्य सुविधाओं को व्यापक सुधार और जागरूकता फैलाने के उपाय ही ही सबसे समाधान हैं।

    कुल मिलाकर समस्या (Child Marriage and related issues) गम्भीर है और इसका समाधान गिरफ्तारी कर के और जेल भेजने जैसे उपायों से नहीं निकला जा सकता है। इसका समाधान तभी निकल सकता है जब इस समस्या की जड़ को मिटाया जाए। इसके लिए एक दीर्घ-कालिक सर्व-समावेशी समाधान की आवश्यकता है।

    असम की सरकार (Assam Govt) जो कर रही है वह वैसे ही है जैसे किसी गाँव मे बिना डिग्री वाला झोलाछाप चिकित्सक किसी वायरल बुखार का इलाज करे। वह बुखार उतरने, सर दर्द, वदन दर्द आदि हर लक्षण के लिए अलग अलग दवाएं तो लिख देता है लेकिन बुखार की असली समस्या यानी वायरस से निपटने के लिये “एंटी-बायोटिक” नहीं देता।

    By Saurav Sangam

    | For me, Writing is a Passion more than the Profession! | | Crazy Traveler; It Gives me a chance to interact New People, New Ideas, New Culture, New Experience and New Memories! ||सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहाँ; | ||ज़िंदगी गर कुछ रही तो ये जवानी फिर कहाँ !||

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