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    अल्पेश ठाकुर

    देश के सियासी पटल पर गुजरात विधानसभा चुनाव छाए हुए हैं। वर्ष के अंत तक प्रस्तावित गुजरात विधानसभा चुनावों की तारीखों को लेकर चुनाव आयोग ने अभी तक कोई घोषणा नहीं की है लेकिन चुनावी बिगुल कभी भी बज सकता है। सभी सियासी दल मतदाताओं को लुभाने के लिए हरसंभव कोशिश कर रहे हैं। इस बार गुजरात की सत्ता तक जाने वाली राह का अहम पड़ाव बन चुका है जातीय आन्दोलन। गुजराती समाज के 3 प्रमुख समुदाय सत्ताधारी भाजपा सरकार के खिलाफ आन्दोलनरत हैं। इस जातीय आन्दोलन की कमान 3 युवाओं के हाथों में हैं। हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकुर और जिग्नेश मेवानी अपनी-अपनी मांगों से लगातार भाजपा की मुश्किलें बढ़ा रहे हैं और उसे बैकफुट पर धकेल रहे हैं। कांग्रेस इसका सियासी फायदा उठाने के लिए प्रयासरत है और इन आंदोलनकारियों को अपनी ओर मिलाने की जुगत में लगी है।

    गुजरात में जारी इस जातीय आन्दोलन में ओबीसी समुदाय का नेतृत्व कर रहे अल्पेश ठाकुर भाजपा के लिए लगातार मुश्किलें पैदा कर रहे हैं। ओबीसी एकता मंच के संयोजक अल्पेश ठाकुर ने 23 अक्टूबर को अहमदाबाद में ‘जनादेश सम्मलेन’ के नाम से रैली आयोजित की है। गुजरात राज्य की 54 फीसदी आबादी ओबीसी वर्ग की है और ओबीसी वर्ग राज्य में किंगमेकर की भूमिका निभा सकता है। अल्पेश ठाकुर इस बात को बखूबी समझते हैं और इसी वजह से ओबीसी एकता का दम्भ भरकर सत्ताधारी भाजपा सरकार को झुकाने में लगे हैं। अल्पेश ठाकुर ने अभी तक अपना हर दांव बेहद चतुराई से चला है और अपना रुख स्पष्ट नहीं किया है। कभी वह भाजपा को सत्ता से उखाड़ फेंकने की बात करते हैं तो कई मौकों पर भाजपा के साथ समझौता करने की बात करते हैं। अहमदाबाद की रैली में अल्पेश ठाकुर के रुख स्पष्ट करने की सम्भावना है।

    पाटीदार और दलितों को मिलाकर चलने की कोशिश

    ओबीसी वर्ग का नेतृत्व कर रहे अल्पेश ठाकुर को ओबीसी वर्ग की 146 जातियों का समर्थन हासिल है। वह इसका भरपूर राजनीतिक लाभ भी उठा रहे हैं। गुजरात की 182 विधानसभा सीटों में से तकरीबन 70 सीटों पर ओबीसी वर्ग की दमदार उपस्थिति है। अल्पेश ठाकुर पाटीदार और दलित आन्दोलन का नेतृत्व कर रहे हार्दिक पटेल और जिग्नेश मेवानी को साथ लेकर चलने की भी राह तलाश रहे हैं। गुजरात में मतदाता वर्ग में 54 फीसदी आबादी ओबीसी वर्ग की है वहीं संयुक्त रूप से दलित और पाटीदार वोटरों की संख्या 25 फीसदी है। अल्पेश ठाकुर और हार्दिक पटेल दोनों ही अहमदाबाद के वीरमगांव के रहने वाले है। दोनों की आपस में अच्छी जान-पहचान है। ऐसे में मुमकिन है कि भाजपा को सत्ता से हटाने के लिए युवा आंदोलनकारियों की यह तिकड़ी साथ आ जाए।

    पाटीदार आरक्षण के मुद्दे पर हैं मतभेद

    एक ओर ओबीसी, पाटीदार और दलित आन्दोलन के अगुआ नेता सत्ताधारी भाजपा सरकार के खिलाफ साथ आने की बात करते हैं वहीं तीनों की विचारधाराओं में जमीन-आसमान का फर्क है। अगर अल्पेश ठाकुर, हार्दिक पटेल और जिग्नेश मेवानी साथ आ जाएं तो गुजरात की 120 विधानसभा सीटों पर वो किसी के पक्ष में भी पलड़ा झुका सकते हैं। हार्दिक पटेल का कहना है कि किसी भी सूरत में वह पाटीदार आरक्षण की अपनी मांग से नहीं हटेंगे, अब सरकार चाहे वह अलग से दे या ओबीसी कोटे से। हार्दिक पटेल के पटेल आरक्षण के मांग पर अल्पेश ठाकुर का रुख स्पष्ट नहीं है। उनका कहना है कि पाटीदारों को आर्थिक आधार पर आरक्षण मिलना चाहिए लेकिन इसका असर ओबीसी आरक्षण पर नहीं पड़ना चाहिए। दलित आन्दोलन के अगुआ जिग्नेश मेवानी भी अल्पेश ठाकुर की इस बात पर अपनी सहमति जताते हैं।

    जिग्नेश मेवानी का कहना है कि पाटीदारों को आरक्षण देने के लिए दलितों को मिले आरक्षण के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं होनी चाहिए। साथ आने की सम्भावना के बीच भाजपा के खिलाफ आन्दोलनरत इस युवा त्रिमूर्ति में फूट पड़ती दिख रही है। अभी तक अपने विकास का दम्भ भरने वाला गुजरात जातीय आधार पर बँटता दिख रहा है। जिस गुजरात के विकास मॉडल की देशभर में चर्चा थी आज उसपर जातीय समीकरण भारी पड़ने लगे हैं। भाजपा आलाकमान इस जातीय समीकरणों में उलझ कर रह गया है और इसे सुलझाने की हरसंभव कोशिश कर रहा है। परिणाम चाहे जो भी हो पर अल्पेश ठाकुर, हार्दिक पटेल और जिग्नेश मेवानी ने गुजरात के सियासी पटल पर जातीय राजनीति के रंग बिखेर दिए हैं। गुजरात की राजनीति में उनकी प्रभावी मौजूदगी का स्पष्ट प्रभाव देखने को मिल रहा है।

    10 फीसदी से भी कम है भाजपा-कांग्रेस का मतान्तर

    गुजरात भाजपा के सामने मुश्किलों का अम्बार लगा हुआ है। भाजपा के सत्ता तक पहुँचने की राह में कई मुश्किलें खड़ी नजर आ रही हैं। इनमें सबसे अहम है पाटीदारों का भाजपा के खिलाफ जाना। 2012 विधानसभा चुनाव में भाजपा की जीत का बड़ा कारण पाटीदारों का समर्थन था। 2012 में हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा और कांग्रेस के मतों का अंतर महज 9 फीसदी था। भाजपा को 47 फीसदी मत मिले थे वहीं कांग्रेस को 38 फीसदी मत मिले थे। पर मौजूदा परिस्थितियां बिल्कुल उलट हैं। पाटीदारों के कटने से भाजपा का परम्परागत वोटबैंक भी उससे खिसक चुका है। ऐसे में गुजरात विधानसभा चुनावों में भाजपा अधर में लटकी नजर आ रही है। गुजरात का ‘किंगमेकर’ होने का दावा करने वाले ओबीसी वर्ग ने पाटीदारों और दलितों के साथ आने की बात कर भाजपा नेतृत्व के माथे पर शिकन जरूर ला दी है।

    गुजरात का रुख बदल सकता है जातीय महागठबंधन

    हार्दिक पटेल का पाटीदार आन्दोलन सत्ता विरोधी है और पिछले 3 सालों से वह विभिन्न जमीनी मुद्दों को आधार बनाकर सत्ताधारी भाजपा सरकार के खिलाफ माहौल बना रहे हैं। इसमें युवाओं में बेरोजगारी, नशामुक्ति और किसानों की कर्जमाफी जैसी समस्याएं हैं। हार्दिक पटेल के आन्दोलन का सीधा लाभ कांग्रेस को मिल रहा है। वहीं अल्पेश ठाकुर ने अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं और कई मौकों पर वह भाजपा के साथ समझौते की बात करते नजर आए हैं। जिग्नेश मेवानी ने दलित आन्दोलन दलितों के उत्थान के लिए शुरू किया था और उन्होंने अल्पेश ठाकुर की तरह ही पाटीदार आरक्षण का विरोध किया है। अगर पाटीदार, ओबीसी और दलित एक हो जाए तो वह सत्ता की बाजी पलट सकते हैं। पर फिलहाल ऐसी कोई सम्भावना बनती नहीं दिख रही है।

    पाटीदार आन्दोलन से बैकफुट पर भाजपा

    2012 में हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा और कांग्रेस के मतों का अंतर 9 फीसदी था। भाजपा को 47 फीसदी मत मिले थे वहीं कांग्रेस को 38 फीसदी मत मिले थे। 2012 विधानसभा चुनाव में भाजपा की जीत का बड़ा आधार पाटीदारों का समर्थन था। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने लगातार चौथी बार गुजरात के सियासी दंगल में फतह हासिल की थी। पर मौजूदा परिस्थितियां बिल्कुल बदल चुकी हैं। आज गुजरात भाजपा के पास नरेंद्र मोदी जैसा लोकप्रिय चेहरा नहीं है। पाटीदारों के कटने से भाजपा का परंपरागत वोटबैंक भी उससे खिसक चुका है। ऐसे में गुजरात विधानसभा चुनावों में भाजपा की नैया मँझधार में अटकी नजर आ रही है। पाटीदारों को मनाने की भाजपा की हर कोशिश नाकाम होती नजर आ रही है।

    अगर 2012 के विधानसभा चुनावों पर नजर डालें तो कड़वा बिरादरी के 82 फीसदी वोट भाजपा को मिले थे। लेउवा बिरादरी के 63 फीसदी वोटरों ने भाजपा को चुना था। 80 के दशक से ही पाटीदार समाज के 80 फीसदी वोटर भाजपा के पक्ष में मतदान करते आए हैं। इसी वजह से पाटीदार समाज को भाजपा का पारम्परिक वोटबैंक कहा जाता रहा है। पिछले विधानसभा चुनावों में भाजपा को 50 फीसदी मत मिले थे वहीं कांग्रेस को तकरीबन 40 फीसदी मत मिले थे। पाटीदार समाज के वोटरों के मत प्रतिशत 20 है। इस लिहाजन अगर 80 फीसदी पाटीदार भी कांग्रेस के साथ हो जाए और मुस्लिम दलित एक होकर कांग्रेस का साथ दे दें तो भाजपा के लिए गुजरात बचाना बहुत मुश्किल हो जाएगा।

    नाराज जातियों को साधने में जुटी कांग्रेस

    एक ओर जहाँ भाजपा गुजरात में जातीय आन्दोलन से मुश्किल में पड़ती दिख रही है वहीं कांग्रेस के वारे-न्यारे हो रहे हैं। कांग्रेस जेडीयू (वासवा गुट), पाटीदार, ओबीसी, दलित और मुस्लिम समुदाय के साथ मिलकर महागठबंधन करने की फिराक में है। गुजरात विधानसभा की 182 में से 70 सीटों पर पाटीदारों का प्रभाव है। तकरीबन 70 सीटों पर ही ओबीसी समुदाय का प्रभाव है। मुस्लिम, दलित और आदिवासी समाज तकरीबन 30 सीटों पर अपना प्रभाव रखते हैं। ऐसे में यह सियासी गठजोड़ कांग्रेस के लिए फायदेमंद होगा और उसकी सत्ता तक पहुँचने की राह को आसान करेगा। पर इस महागठबंधन का होना इतना आसान नहीं दिख रहा। भाजपा लगातार पाटीदारों को मनाने में लगी हुई है और भाजपा नेता अल्पेश ठाकुर से भी बात कर रहे हैं। ओबीसी समुदाय और पाटीदार एक वक्त में एक खेमे में आ जाए यह असंभव सा लगता है।

    अहमद पटेल की जीत में अहम भूमिका निभाने के बाद छोटुभाई वासवा का कद गुजरात में बढ़ा है और वह सीटों के बँटवारे को लेकर कांग्रेस नेताओं से बातचीत में जुटे हुए हैं। गुजरात कांग्रेस प्रभारी अशोक गहलोत और पार्टी प्रदेशाध्यक्ष भरत सिंह सोलंकी महागठबंधन को अंतिम रूप देने में जुटे हुए हैं और उम्मीद है कि राहुल गाँधी के अगले दौरे के वक्त इसकी घोषणा की जाएगी। राहुल गाँधी नवंबर के पहले हफ्ते में दक्षिण गुजरात का दौरा करेंगे। पाटीदार या ओबीसी समुदाय में से किसी एक का भी समर्थन हासिल कर कांग्रेस गुजरात में लड़ाई में आ सकती है और भाजपा के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकती है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या कांग्रेस का यह महत्वाकांक्षी महागठबंधन भाजपा के अभेद्य दुर्ग गुजरात की दीवार गिराने के लिए पर्याप्त साबित होगा?

    कितना सच है किंगमेकर होने का दावा

    गुजरात विधानसभा की 182 में से 70 सीटों पर ओबीसी वर्ग का स्पष्ट प्रभाव है। ओबीसी आन्दोलन का नेतृत्व कर रहे अल्पेश ठाकुर ने ओबीसी वर्ग के अंतर्गत आने वाली गुजरात की 146 जातियों को एकजुट किया है। कभी शराबबंदी के लिए ‘जनता रेड’ डालने वाले अल्पेश ठाकुर आज सियासत के दांव-पेंच खेल रहे हैं। गुजरात की आबादी का 54 फीसदी हिस्सा ओबीसी वर्ग से आता है। अल्पेश ठाकुर को संगठन में काम करने का लम्बा अनुभव है और उनके पिता खोड़ाजी ठाकुर भाजपा संगठन के लिए दशकों काम कर चुके हैं। खोड़ाजी ठाकुर ने नरेंद्र मोदी, शंकर सिंह वाघेला, आंनदीबेन पटेल के साथ संगठन के दिनों में काम किया है। ऐसे में गुजरात का ‘किंगमेकर’ होने के उनके दावों में थोड़ी सच्चाई तो है पर यह जमीनी रूप से कितनी कारगर होगी, यह आने वाला वक्त ही बताएगा।

    By हिमांशु पांडेय

    हिमांशु पाण्डेय दा इंडियन वायर के हिंदी संस्करण पर राजनीति संपादक की भूमिका में कार्यरत है। भारत की राजनीति के केंद्र बिंदु माने जाने वाले उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले हिमांशु भारत की राजनीतिक उठापटक से पूर्णतया वाकिफ है।मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक करने के बाद, राजनीति और लेखन में उनके रुझान ने उन्हें पत्रकारिता की तरफ आकर्षित किया। हिमांशु दा इंडियन वायर के माध्यम से ताजातरीन राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर अपने विचारों को आम जन तक पहुंचाते हैं।