Sat. Nov 23rd, 2024
    गुजरात राहुल गाँधी

    पिछले कुछ दिनों से देश के सियासी महकमों में इस बात की जोरों से चर्चा हो रही है कि कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी जल्द ही पार्टी की कमान अपने हाथों में ले सकते हैं। इस सम्बन्ध में कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता बयान दे चुके हैं और यह आसार नजर आ रहे हैं कि राहुल गाँधी दीवाली के बाद कांग्रेस का अध्यक्ष पद संभाल सकते हैं। राहुल गाँधी के नेतृत्व संभालने से पहले कई शुभ संकेत देखने को मिल रहे हैं। अमेरिका दौरे से लौटने के बाद राहुल गाँधी का मिजाज बदला-बदला सा नजर आ रहा है। गुजरात में उनकी रैलियों में काफी भीड़ उमड़ रही है। हालिया संपन्न उपचुनावों और निकाय चुनावों में कांग्रेस का प्रदर्शन शानदार रहा है। कांग्रेस को मिली इन जीतों को राहुल गाँधी के नेतृत्व सँभालने के लिए शुभ संकेत माना जा रहा है।

    बता दें कि हालिया घोषित उपचुनावों के नतीजों में कांग्रेस भाजपा पर भारी पड़ी थी। एक ओर जहाँ कांग्रेस ने पंजाब में भाजपा के गढ़ माने जाने वाले गुरदासपुर लोकसभा उपचुनावों में 1,93,219 मतों के बड़े अंतर से जीत दर्ज की वहीं  केरल के वेंगार में कांग्रेस समर्थित वाम मोर्चे की आईयूएमल ने जीत दर्ज की। भाजपा लाख प्रयासों के बावजूद भी केरल में प्रभाव छोड़ने में असफल रहा और चौथे स्थान पर रहा। भाजपा शासित महाराष्ट्र में हुए निकाय चुनावों में कांग्रेस ने नांदेड़ की 65 फीसदी  सीटों पर अपना कब्जा जमाया वहीं भाजपा अप्रत्याशित रूप से चौथे स्थान पर रही। इसका बड़ा कारण यह था कि नांदेड़ महाराष्ट्र कांग्रेस का गढ़ है। पर पंजाब के गुरदासपुर में भाजपा को मिली हार बहुत ही अप्रत्याशित थी और यह उसके गढ़ की दरकती दीवारों की और इशारा कर रही थी।

    छात्र राजनीति पर कमजोर हो रही है भाजपा की पकड़

    हालिया समय में देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों में हुए छात्रसंघ चुनावों में भाजपा की संगठन इकाई आरएसएस से सम्बन्ध रखने वाले अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) को मुँह की खानी पड़ी है। देश की राजनीति का केंद्र कहे जाने वाले उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद विश्वविद्यालय में हुए छात्रसंघ चुनावों में समाजवादी पार्टी के की छात्र इकाई समाजवादी छात्र संघ ने 5 में से 4 सीटों पर प्रभावशाली जीत दर्ज की। यह जीत इसलिए मायने रखती है क्योंकि उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार है। प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य, स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह और स्टाम्प पंजीयन और नागरिक उड्डयन मंत्री नन्द गोपाल गुप्ता ‘नंदी’ इलाहाबाद से ही ताल्लुक रखते हैं। इसके बावजूद एबीवीपी की करारी शिकस्त भाजपा के प्रति लोगों में बढ़ रही नाराजगी की ओर इशारा करती है।

    एबीवीपी कई सालों बाद डीयू का छात्रसंघ चुनाव भी हार गई। वहीं वामपंथियों के गढ़ जेएनयू में भी एबीवीपी अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज कराने में विफल रही। रोहित वेमुला केस की वजह से चर्चा में रहे हैदराबाद विश्वविद्यालय में भी एबीवीपी की हार हुई और रोहित वेमुला की पार्टी ने जीत हासिल की। भाजपा शासित राजस्थान की राजधानी जयपुर में स्थित राजस्थान विश्वविद्यालय के छात्रसंघ चुनावों में भी कांग्रेस की छात्र इकाई एनएसयूआई ने एबीवीपी को शिकस्त दी। आम आदमी पार्टी की छात्र इकाई छात्र युवा संघर्ष समिति (सीवाईएसएस) ने अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज कराई। आप राजस्थान विधानसभा चुनावों में भी हिंसा ले रही है और उसकी कमान युवा ह्रदय सम्राट डॉ. कुमार विश्वास के हाथों में हैं। चुनावी नतीजे देशभर के युवाओं में भाजपा की घटती लोकप्रियता का सन्देश दे रहे हैं और राहुल गाँधी को नई उम्मीद दे रहे हैं।

    गुरदासपुर में कांग्रेस ने फतह किया भाजपा का गढ़

    पंजाब की गुरदासपुर लोकसभा सीट पर भाजपा का रिकॉर्ड बहुत अच्छा रहा है। इस वजह से इसे सूबे में भाजपा का गढ़ भी माना जाता है। यह सीट प्रसिद्द फिल्म अभिनेता और राजनीतिज्ञ विनोद खन्ना के निधन से खाली हुई थी। विनोद खन्ना अब तक 4 बार गुरदासपुर संसदीय सीट का प्रतिनिधित्व कर चुके थे। विनोद खन्ना के निधन से खाली हुई गुरदासपुर सीट पर 11 अक्टूबर को मतदान कराया गया था। कांग्रेस उम्मीदवार सुनील जाखड़ ने भाजपा के सवर्ण सलारिया को 1,93,219 मतों से हराया था। गुरदासपुर की सीट पर कांग्रेस के हाथ लगी यह जीत सियासी लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है। कुछ महीनों बाद ही हिमाचल प्रदेश और गुजरात में विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में गुरदासपुर की जीत से कांग्रेस को भाजपा के ऊपर मनोवैज्ञानिक बढ़त मिलेगी।

    भाजपा पर हासिल हुई इस बड़ी जीत से कांग्रेस नेता और कार्यकर्ता बहुत खुश नजर आए थे। गुरदासपुर से नवनिर्वाचित सांसद सुनील जाखड़ ने चुनावी नतीजों पर प्रसन्नता जताते हुए कहा था, “गुरदासपुर के लोगों ने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार की नीतियों को लेकर अपनी नाराजगी का सख्त संदेश दिया है।” पंजाब के मुख्यमंत्री और दिग्गज कांग्रेसी नेता कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अपने ट्विटर हैंडल पर लिखा था, “गुरदासपुर के लोगों को भरोसा दिलाता हूँ कि सुनील जाखड़ के किए प्रत्येक वादे पूरे किए जाएंगे और सभी विकास कार्यों को फास्ट ट्रैक पर किया जाएगा।” पंजाब विधानसभा चुनावों के वक्त भाजपा छोड़ कांग्रेस का दामन थामने वाले पूर्व क्रिकेटर और राजनेता नवजोत सिंह सिद्धू ने कहा था, “यह जीत हमारे भावी पार्टी अध्यक्ष राहुल गाँधी के लिए लाल फीते में लिपटा खूबसूरत दिवाली गिफ्ट है।”

    केरल पर नहीं चढ़ रहा भगवा रंग

    भाजपा पिछले कुछ समय से वामपंथियों के गढ़ केरल में अपनी जड़ें तलाश रही है। सीपीएम के सत्ता में आने के बाद केरल में लगातार हो रही भाजपा और आरएसएस कार्यकर्ताओं की हत्या के विरोध में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने 3 अक्टूबर को मुख्यमंत्री पी विजयन के गढ़ कन्नूर से जनरक्षा यात्रा की शुरुआत की थी। इस यात्रा को केरल में भाजपा सियासी जमीन बनाने वाले कदम के तौर पर देखा जा रहा था। भाजपा ने इस यात्रा में अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी। गृह मंत्री राजनाथ सिंह, कपड़ा मंत्री स्मृति ईरानी ने भी जनरक्षा यात्रा में हिस्सा लिया। देश में हिंदुत्व के सबसे बड़े चेहरे और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी जनरक्षा यात्रा में हिस्सा लिया। भाजपा की जनरक्षा यात्रा को अच्छा-खासा जनसमर्थन मिला था पर उपचुनावों में इसका असर नहीं दिखा।

    केरल के वेंगारा में हुए उपचुनावों में भाजपा चौथे स्थान पर रही। वेंगारा में कांग्रेस समर्थित वाम मोर्चे के सदस्य दल आईयूएमल के उम्मीदवार ने आसान जीत दर्ज की। केरल की 55 फीसदी आबादी हिन्दू है पर भाजपा का हिंदुत्व कार्ड खेलकर यहाँ के मतदाताओं को रिझाने का दांव असफल रहा। भाजपा की तमाम कोशिशों के बावजूद लाल रंग में रेंज केरल पर भगवा रंग चढ़ता नहीं दिख रहा है। इस हार से केरल में भाजपा के प्रसार अभियान को झटका लगा है वहीं कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों के लिए अच्छी खबर है। केरल का सत्ताधारी दल सीपीएम केंद्र में कांग्रेस से गठबंधन करने की कोशिशों में जुटा है। राहुल गाँधी की ताजपोशी से पहले एक राष्ट्रीय आधार वाली पार्टी के साथ गठबंधन कांग्रेस को मजबूती देगा।

    आर्थिक नीतियों से बढ़ रही नाराजगी

    पिछले वर्ष दीवाली के बाद हुई नोटबंदी से देशवासियों को बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ा था। मोदी सरकार द्वारा उठाया गया नोटबंदी का कदम तो सराहनीय था पर आपसी तालमेल की कमी की वजह से यह सुचारु रूप से लागू नहीं हो पाया था। कैश की कमी की वजह से बैंकों के बाहर लम्बी कतारें देखी गईं। अव्यवस्था की वजह से कई लोगों को अपनी जान भी गंवानी पड़ी थी। सबसे ज्यादा दिक्कत ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को हुई जिन्हें नोट बदलने और धन निकासी के लिए आस-पास के क्षेत्रों के बैंकों के चक्कर काटने पड़े। मोदी सरकार पर पेटीएम को बढ़ावा देने का भी आरोप लगा जिसमें चीनी कंपनी अलीबाबा की सहभागिता है। नोटबंदी के बाद अर्थव्यवस्था को वापस पटरी पर लौटने में 6 महीने का वक्त लग गया और कई जगहों पर अभी भी नोटबंदी के असर देखे जा सकते हैं।

    इस वर्ष 1 जुलाई से लागू हुई जीएसटी की वजह से भी छोटे व्यवसायियों और व्यापारियों को बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ा था। हालाँकि बाद में मोदी सरकार ने जीएसटी में सुधार किया और कई क्षेत्रों में दरें घटाई। भाजपा आम जनता को आर्थिक सुधारों की जमीनी हकीकत से वाकिफ कराने में विफल रही है। आर्थिक सुधारों के फैसले निश्चित तौर पर आने वाले समय में देश की जनता के लिए लाभकारी सिद्ध होंगे पर भाजपा लोगों को इसका विश्वास दिलाने में असफल रही है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एस जयपाल रेड्डी भी कहते हैं, “नांदेड़, केरल और पंजाब के चुनाव परिणाम बताते हैं कांग्रेस के पुराने दिन लौट रहे हैं। यह चुनाव परिणाम एनडीए की गिरावट की ओर भी संकेत कर रहे हैं।” यह सभी तथ्य राहुल गाँधी के लिए शुभ संकेत हैं और कांग्रेस किए अच्छे दिनों की शुरुआत हो सकती है।

    By हिमांशु पांडेय

    हिमांशु पाण्डेय दा इंडियन वायर के हिंदी संस्करण पर राजनीति संपादक की भूमिका में कार्यरत है। भारत की राजनीति के केंद्र बिंदु माने जाने वाले उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले हिमांशु भारत की राजनीतिक उठापटक से पूर्णतया वाकिफ है।मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक करने के बाद, राजनीति और लेखन में उनके रुझान ने उन्हें पत्रकारिता की तरफ आकर्षित किया। हिमांशु दा इंडियन वायर के माध्यम से ताजातरीन राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर अपने विचारों को आम जन तक पहुंचाते हैं।