मालदीव के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति इब्राहीम सोलिह हाल ही में तीन दिवसीय भारत यात्रा पर आये थे। राष्ट्रपति की कुर्सी पर विराजमान होने के बाद यह उनकी पहली विदेशी आधिकारिक यात्रा थी और इस दौरान वह राष्ट्रपति भवन में में ठहरे थे। इब्राहीम सोलिह ने भारत को मालदीव का करीबी मित्र और सबसे बड़ा व्यापार सहयोगी बताया था। उन्होंने कहा कि उनकी सरकार भारत पहले की नीति पर कार्य करने के उत्सुक है।
इब्राहीम सोलिह की भारत यात्रा
इसके जवाब में भारतीय प्रधानमन्त्री ने मालदीव की लोकतान्त्रिक प्रणाली पर यकीन जताया और कहा कि इस यात्रा से दोनों राष्ट्रों के सम्बन्ध मज़बूत हुए हैं।
इब्राहीम सोलिह ने इस यात्रा के दौरान राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद, उप राष्ट्रपति वेंकैया नायडू और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से मुलाकात की थी। नरेन्द्र मोदी ने बीते माह इब्राहीम सोलिह के शपथ ग्रहण समारोह में शिरकत की थी।
बनते-बिगड़ते रिश्ते
पीएम मोदी की साल 2015 के बाद यह पहली यात्रा थी, इससे पूर्व बैठक द्विपक्षीय रिश्तों में खटपट के कारण रद्द हो गयी थी। यह पहली बार है की नरेन्द्र मोदी किसी नेता के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हुए हो। दोनों नेताओं की दो माह में दो बार मुलाकात हुई है जो दोनों के रिश्ते की मजबूती को दिखाती है और सकारात्मक गति का प्रदर्शन करती है।
इब्राहीम सोलिह के राष्ट्रपति बनने के बाद भारत और मालदीव के रिश्ते को एक मुकाम मिला है और माले आर्थिक विकास के लिए भारत का सहयोग चाहता है।
मालदीव के वित्त मंत्री इब्राहीम आमिर ने भी भारत की यात्रा की थी। इस यात्रा के दौरान भारत ने माले को 70 करोड़ डॉलर की रकम वाणिज्य बंदरगाह के विकास के लिए दिए थे। मालदीव इस बंदरगाह के विकास के लिए विकल्प की तलाश कर रहा था लेकिन वह चीन को इस विकल्प के तौर पर नहीं देखता था।
आर्थिक सहायता
कर्ज के कारण मालदीव की आर्थिक सेहत अभी ख़राब है। रिपोर्ट के मुताबिक मालदीव पर चीन का 1.3 अरब डॉलर का कर्ज है। हालांकि राहत की बात है कि भारत ने मालदीव की सहायता पैकेज को 1.4 अरब डॉलर तक बढ़ाने का वादा किया है। इब्राहीम सोलिह की यात्रा के दौरान दोनों राष्ट्रों ने कई समझौतों पर हस्ताक्षर किये थे। भारत और मालदीव वीजा के इंतजाम, पर्यावरण सुधार, सूचना एवं संचार तकनीक में संयुक्त रूप से काम करना है।
भारत सरकार मालदीव के इंफ्रास्ट्रक्चर विकास में मदद करने के इच्छुक है और भारतीय प्राइवेट कंपनियों वहां निवेश करे, यह चाहती है। बहरहाल, दक्षिणी एशियाई क्षेत्र में चीन के प्रभुत्व को नज़रंदाज़ नहीं किया जा सकता है। नरेन्द्र मोदी ने बैठक के दौरान कहा था कि हम अपने देश को ऐसी गतिविधियों के लिए इस्तेमाल नहीं होने देंगे, जो दुसरे देश के हित के लिए खतरनाक हो।
संवेदनशील सुरक्षा मुद्दे
दोनों राष्ट्रों ने समुद्री सुरक्षा में सुधार के बाबत बातचीत की थी। मालदीव के विदेश मंत्री ने दोहराया था कि वह भारत की सुरक्षा और रणनीतिक चिंताओं के प्रति संवेदनशील हैं। भारत की कूटनीति का एकमात्र बाधक चीनियों की तुलना में धीमी गति है। अब मात्र वक्त ही बताएगा कि भारत अपने मित्र मालदीव का भरोसा जीतने कामयाब हो पता है या या माले दोबारा बीजिंग से अपनी निकटता को बढ़ा लेगा।
यदि इस बार भारत अपने कूटनीतिक लक्ष्य को अंजाम देने में असफल साबित होता है तो मालदीव ऐसा अवसर दोबारा नहीं देगा। भारत की विदेश नीति में काफी सुधार हुआ है।