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    मायावती योगी

    बसपा सुप्रीमो मायावती ने आज बसपा के गढ़ माने जाने वाले पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरठ में विशाल रैली का आयोजन किया है। पिछले कुछ वक्त से यह अटकलें लगाई जा रही थी कि उत्तर प्रदेश में बसपा का जनाधार घटता जा रहा है। माना जा रहा है कि इस रैली के माध्यम से मायावती विपक्षी दलों को बसपा की ताकत का एहसास कराएंगी। मायावती की इस रैली पर सिर्फ विपक्षी दलों की ही नहीं बल्कि सत्ताधारी भाजपा की भी निगाहें टिकी हुई हैं। पिछले कुछ वक्त से बसपा का प्रदर्शन चुनावों में अच्छा नहीं रहा है और मायावती ने मोदी सरकार के खिलाफ किसी भी बैठक या रैली में भी हिस्सा नहीं लिया है। हालाँकि वह भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़ने की बात कर चुकी हैं पर उन्होंने स्पष्ट कहा है कि सीटों के बँटवारे के बाद ही वह किसी भी गठबंधन में शामिल होंगी।

    संसद के मानसून सत्र के दौरान मायावती ने दलित अत्याचार के मुद्दे को आधार बनाकर राज्यसभा सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था। उनके इस कदम को विपक्षी दलों का पूरा समर्थन मिला था और आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने तो उन्हें अपनी पार्टी के टिकट पर राज्यसभा भेजने की पेशकश भी की थी पर मायावती ने इसे स्वीकार नहीं किया। इतना ही नहीं वह लालू प्रसाद यादव के बुलावे पर उनकी रैली में शामिल होने के पटना भी नहीं गई। हालाँकि उन्होंने साफ तौर पर कहा कि जब तक सीटों का बँटवारा नहीं हो जाता वह मंच साझा नहीं करेंगी। मायावती इसके बाद से उत्तर प्रदेश में पार्टी की जड़ें मजबूत करने में जुटी हुई थी। मेरठ की रैली में मेरठ, सहारनपुर और मुरादाबाद मंडल के 40 विधानसभा क्षेत्रों से बसपा कार्यकर्ता और समर्थक जुटेंगे और माना जा रहा है कि रैली में तकरीबन 5 लाख की भीड़ एकत्रित हो सकती है।

    बसपा के लिए अच्छे नहीं गुजरे हैं बीते साल

    राजनीतिक दृष्टिकोण से पिछले कुछ वर्ष बसपा के लिए बिल्कुल भी अच्छे नहीं गुजरे हैं। समाजवाद की लहर में 2012 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में पार्टी के हाथ से सत्ता छिन गई और वह विधानसभा में प्रमुख विपक्षी दल की भूमिका में रह गई। 2014 के लोकसभा चुनावों में बसपा ने अकेले दम पर चुनाव लड़ा और निराशाजनक रूप से उसे कहीं भी सफलता हाथ नहीं लगी। हालाँकि मतों के प्रतिशत के लिहाज से वह देश की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी रही पर उसे कोई भी सीट नहीं मिली। उम्मीद की जा रही थी कि 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों से बसपा वापसी करेगी और उभरकर सियासी पटल पर आएगी। मगर अफसोस, भाजपा की आँधी बसपा को अपने लक्ष्य से कहीं दूर उड़ा ले गई। उत्तर प्रदेश विधानसभा में बसपा विधायकों की संख्या 80 से घटकर 19 पर जा पहुँची। कभी मायावती के विश्वासपात्र रहे बसपा के कई बड़े नेता भाजपा में शामिल हो गए।

    केंद्र की सत्ताधारी भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए ने दलित कार्ड खेलते हुए उत्तर प्रदेश के कानपुर से ताल्लुक रखने वाले रामनाथ कोविंद को देश का राष्ट्रपति बनाकर बसपा के सबसे बड़े सियासी जनाधार में सेंधमारी कर ली और सूबे में पहले से ही मृतप्राय पड़े बसपा को और हाशिए की तरफ धकेल दिया। सहारनपुर में दलितों पर हो रहे अत्याचारों का मुद्दा बनाकर बसपा सुप्रीमो मायावती ने राज्यसभा सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। इस वजह से वह कुछ दिनों तक चर्चा में रही और उन्हें सभी विपक्षी दलों का समर्थन भी मिला। हालाँकि उनके इस्तीफे के बाद देश की सक्रिय राजनीति में बसपा की भूमिका ना के बराबर रह गई है और अब शायद उन्हें भी यह कदम खुद अपनी कब्र खोदने वाला लग रहा होगा।

    जनसमर्थन तय करेगा बसपा के सियासी दिशा

    मेरठ रैली को लेकर बसपा कार्यकर्ता काफी सक्रिय थे और पिछले महीने से ही व्यापक स्तर पर इस रैली की तैयारियां शुरू कर दी गई थी। गाँव-गाँव जाकर पार्टी कार्यकर्ता रैली के लिए समर्थन जुटा रहे थे और समाज के सभी वर्गों के प्रतिनिधियों से मिल रहे थे। बसपा सुप्रीमो मायावती का ननिहाल भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हापुड़ में हैं और उत्तर प्रदेश में बसपा को सत्तासीन बनाने में हमेशा ही पश्चिमी उत्तर प्रदेश ने अहम भूमिका अदा की है। इसी वजह से मायावती ने रैली के लिए बसपा के गढ़ कहे जाने वाले पश्चिमी उत्तर प्रदेश को चुना है। इस रैली को मिलने वाला जनसमर्थन ही यह निर्धारित करेगा कि बसपा का जनाधार अब भी उसके साथ है या नहीं। रैली को सकारात्मक प्रतिक्रिया मिलने के बाद यह मुमकिन है कि बसपा सुप्रीमो मायावती इसी मंच से बसपा के आगामी लोकसभा उपचुनावों में उतरने का ऐलान कर दें।

    By हिमांशु पांडेय

    हिमांशु पाण्डेय दा इंडियन वायर के हिंदी संस्करण पर राजनीति संपादक की भूमिका में कार्यरत है। भारत की राजनीति के केंद्र बिंदु माने जाने वाले उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले हिमांशु भारत की राजनीतिक उठापटक से पूर्णतया वाकिफ है।मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक करने के बाद, राजनीति और लेखन में उनके रुझान ने उन्हें पत्रकारिता की तरफ आकर्षित किया। हिमांशु दा इंडियन वायर के माध्यम से ताजातरीन राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर अपने विचारों को आम जन तक पहुंचाते हैं।