World Press Freedom Index 2022: पेरिस स्थित अंतर्राष्ट्रीय NGO Reporters Without Borders द्वारा जारी विश्व प्रेस आज़ादी सूचकांक (World Press Freedom Index 2022) में भारत 8 स्थान फ़िसलकर 142वें (2021) से 150वें स्थान पर जा पहुंचा है।
वैश्विक मीडिया निगरानी कर्ता NGO “रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (RSF) ” द्वारा जारी इस रिपोर्ट में नेपाल को छोड़कर भारत के अन्य सभी पड़ोसी देशों की रैंक में गिरावट आई है।
पाकिस्तान 157वें, श्रीलंका 146वें, बांग्लादेश 162वें और म्यांमार 176वें स्थान पर हैं जबकि नेपाल 2021 के 106वें स्थान के मुकाबले इस साल काफ़ी सुधार करते हुए 76वें स्थान पर है। चीन दो स्थानों के सुधार करते हुए 177वें से अब 175वें स्थान पर आ गया है। वहीं युद्ध मे लगे रूस को 155वां स्थान मिला है।
#RSFIndex: RSF unveils its 2022 World #PressFreedom Index
1: Norway🇳🇴
2: Denmark🇩🇰
3: Sweden🇸🇪16: Germany🇩🇪
24: UK🇬🇧
26: France🇫🇷
42: USA🇺🇸
58: Italy🇮🇹
71: Japan🇯🇵
110: Brazil🇧🇷
134: Algeria🇩🇿
150: India🇮🇳178: Iran🇮🇷
179: Eritrea🇪🇷
180: North Korea🇰🇵https://t.co/fdZ3RWSFjN pic.twitter.com/rV2i3sPmwW— RSF (@RSF_inter) May 3, 2022
इन 5 देशों के Press को है सबसे ज्यादा Freedom
गैर-लाभकारी व गैर सरकारी संगठन रिपोर्टर विदाउट बॉर्डर ने अपने इस सूचकांक (World Press Freedom Index 2022) में नॉर्वे को प्रथम, डेन्मार्क को दूसरे, स्वीडन तीसरे, एस्टोनिया चौथे और फिनलैंड को 5वां स्थान दिया है। जबकि उत्तर कोरिया को इस लिस्ट में सबसे नीचे 180वें स्थान पर रखा गया है।
भारत जैसे लोकतंत्र के लिए 150वां स्थान पर होना चिंताजनक
इस सूचकांक को जारी करने वाली संस्था RSF ने अपने वेबसाइट पर लिखा है, “ विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस (03 मई) पर, रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स व 9 अन्य मानवाधिकार संगठन भारतीय अधिकारियों से पत्रकारों और ऑनलाइन आलोचकों को उनके काम के लिए निशाना बनाना बंद करने का आग्रह करते हैं।”
इस बयान में आगे कहा गया है, –
“विशेष रूप से, आतंकवाद और देशद्रोह कानूनों के तहत उन पर मुक़दमा चलाना बंद कर देना चाहिए। भारतीय अधिकारियों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का सम्मान करना चाहिए और आलोचनात्मक रिपोर्टिंग के लिए राजनीति से प्रेरित आरोपो में हिरासत में लिए गए किसी भी पत्रकार को रिहा कर देना चाहिए तथा उन्हें उन्हें निशाना बनाना व स्वतंत्र मीडिया का गला घोटना बंद कर देना चाहिए।”
RSF के बयान को अगर दरकिनार भी कर दिया जाए तो भी दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत के लिए प्रेस की मौजूदा स्थिति पानी का नाक से ऊपर चले जाने वाली है।
भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बारे में यह प्रसिद्ध है कि वह प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं करते हैं। अभी जब रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स यह रिपोर्ट तैयार कर रहा था, उस वक़्त प्रधानमंत्री मोदी डेनमार्क सहित 3 यूरोपियन राष्ट्र के दौरे पर हैं। बताया जा रहा है कि उस दौरे पर भी भारत के आग्रह पर मीडिया को प्रधानमंत्री से सीधे सवाल न करने को कहा गया है।
प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया ने बयान जारी कर चिंता जाहिर किया
इस सूचकांक के आने के बाद भारत के तीन पत्रकार संगठन इंडियन वुमंस प्रेस क्लब, प्रेस क्लब ऑफ इंडिया और प्रेस एसोसिएशन ने संयुक्त बयान जारी कर कहा की, “पत्रकारों को मामूली कारणों से कठोर कानूनों के तहत कैद किया जाता है और कुछ मौकों पर सोशल मीडिया पर मौजूद स्वयंभू संरक्षकों से उन्हें जान के खतरे का सामना करना पड़ता है।”
इस बयान में आगे कहा गया है कि “नौकरी की असुरक्षा बढ़ी है, वहीं प्रेस की स्वतंत्रता पर हमलों में तेजी से वृद्धि देखी गई है। भारत ने इस संबंध में रैंकिंग में बहुत अच्छा प्रदर्शन नहीं किया है।
हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक जताई है चिंता
भारतीय मिडिया को लेकर देश के हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक ने कई मौकों पर चिंता जताई है। पिछले साल सितंबर में एक मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमन्ना ने कहा था कि भारतीय मीडिया का एक भाग हर खबर में धार्मिक कोण (Communal Angle) देने की कोशिश करता है।
अब भारत के प्रेस (Press) की आज़ादी और इसे लेकर भारत की स्थिति का अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं है। भारत एक राष्ट्र के तौर पर इस समय महँगाई, बेरोजगारी, प्रदूषण इत्यादि जैसी कई गंभीर समस्याओं से जूझ रहा है लेकिन ज्यादातर TV पत्रकार प्राइम टाइम में धर्म के खतरे को लेकर तो मीट खाना या न खाना इत्यादि जैसे उलूल-जुलूल विषयों पर डिबेट कर रहे होते हैं।
कोरोना महामारी के लहर के दौरान तब्लीगी जमात को लेकर की गई रिपोर्टिंग इसका एक उदाहरण है कि कैसे महामारी फैलाने के लिए 21वीं सदी का पढ़ा लिखा-मीडिया (Press) एक विशेष धर्म को वजह बताने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। किसान आंदोलन के दौरान भी मीडिया का यह सेक्शन खालिस्तान से लेकर न जाने क्या क्या दृष्टिकोण खोज लाया था।
लोकतंत्र के चौथे खंभे के रूप में जानी जानेवाली मीडिया की जो आजकल हालात है उसे देखकर मशहूर हिंदी कवि व व्यंग्यकार श्री संपत सरल जी कहते हैं,
“जिस मीडिया को ग़रीबी की रेखा पर बहस करनी होती है वह पता नहीं कब रेखा (मशहूर बॉलीवुड अदाकारा) की ग़रीबी पर बहस करने लगती है….. लोकतंत्र का चौथा खंभा आजकल खुद ही चारपाई पर है।”