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    बिजली संकट : Power Crisis in India

    Power Crisis In India: देश भर के ज्यादातर राज्य इन दिनों एक तरफ़ जहाँ भीषण गर्मी और लू के थपेड़ों से जूझ रहे हैं वहीं दूसरी तरफ़ इन राज्यों के ताप बिजली संयत्रों ( Thermal Power Plants) में कोयले की किल्लत के कारण बिजली संकट (Power Crisis) भी गहराता जा रहा है।

    कई राज्यों में समस्या अतिगंभीर है जहाँ 8-10 घंटे तक की कटौती की जा रही है। समस्या सिर्फ घरों तक सीमित नहीं है, उद्योगों और किसानों को भी बिजली संकट का सामना कर रहे हैं।

    कोयले की कमी के कारण तमाम राज्यो के बिजलीघरों ने अपने हाँथ खड़े कर दिए हैं। अंग्रेजी अखबार Live Mint के 29 अप्रैल की ख़बर के मुताबिक़, कोयले के भंडार पूर्व-ग्रीष्म स्तर (Pre Summer Level) के लिहाज़ से पिछले 9 साल के न्यूनतम स्तर पर है।

    आज उर्जा मंत्रालय ने ट्वीट कर के यह जानकारी दी कि आज 14:50 बजे बिजली की मांग इतिहास में सर्वाधिक ( All time High) रही। आपको बता दें यह रिकॉर्ड डिमांड हर दिन एक नया कीर्तिमान गढ़ता जा रहा है। मंत्रालय हर दिन ट्वीट कर के इसकी जानकारी भी देता है।

    कहानी का दूसरा पक्ष भी है। जिसे प्रतिष्ठित न्यूज़ एजेंसी रायटर्स के मुताबिक इस महीने के पहले 27 दिनों में बिजली की मांग के तुलना में आपूर्ति 1.6% कम रही जिसे जम्मू कश्मीर से लेकर आंध्र प्रदेश व तमिलनाडु तक देश विद्युत संकट से गुजर रहे हैं।

    बिजली संकट: अचानक उत्पन्न स्थिति या व्यवस्था की विफलता?

    ऐसा नहीं है कि बिजली की किल्लत पहली बार इस देश मे है बल्कि सालों से यह देखा जा रहा है कि गर्मी के दिनों में बिजली की समस्या (Power crisis) होती ही है। जैसे ही गर्मी का प्रकोप बढ़ता है, हर साल बिजली की मांग बढ़ती ही है और उसके बाद बिजलीघरों में कोयले की कमी वाली बात खबरों में आने लगती है… मानो एक निश्चित परिपाटी हो इन सबका।

    अब सवाल उठता है कि अगर यह एक ऐसी समस्या जो सबको पता है कि हर साल यही होना है तो इसका कोई स्थायी इलाज क्यों नहीं होता?

    आपको यह जानकर हैरानी होगी कि भारत अपनी जरूरतों से ज्यादा बिजली उत्पादन की ताक़त रखता है। यह दावा हम नहीं बल्कि 15 मार्च 2022 को भारत के ऊर्जा मंत्री श्री आर के सिंह ने संसद में दिए बयान में कहा है।

    एक रोचक बात यह भी है कि भारत मे कोयले की भी कोई कमी नहीं है। साथ ही भारत अपनी जरूरतों के लिए विदेशों से भी कोयला आयात करता है।

    फिर दिक्कत कहाँ है आखिर?

    दरअसल समस्या कोयले की कमी नहीं, कोयले की आपूर्ति के कारण है। ऊर्जा मंत्रालय की वेबसाइट पर पड़े आंकड़ो के मुताबिक भारत मे कुल बिजली उत्पादन का लगभग 51% हिस्सा कोयले के द्वारा संचालित बिजली घरों से उत्पन्न होता है।

    उर्जा विशेषज्ञों की माने तो हर साल कोयले की आपूर्ति में मानसून के दौरान दिक्कत आती है। इस साल अचानक गर्मी का प्रकोप सामान्य समय से पहले आ जाने के कारण विद्युत की मांग बढ़ गयी और बिजलीघरों के सामने कोयले का संकट आ गया।

    रूस यूक्रेन युद्ध के कारण विदेशों से आने वाले कोयले की कीमतें बढ़ गई है। इसलिए आयात-आधारित कोयला आपूर्ति पर निर्भर विद्युतघरों के लिए यह घाटे का सौदा साबित होने लगा है जिस से विद्युत उत्पादन में कमी आयी है।

    दूसरा अचानक बढ़े मांग के कारण रेलवे खदानों से कोयला लेकर बिजलीघरों तक जरूरत के अनुसार कोयले की आपूर्ति नहीं कर पा रहा है। हालांकि शुक्रवार को देश भर में कई पैसेंजर ट्रेनों को रद्द कर दिया गया जिस से ट्रैक पर मालगाड़ी को निर्बाध तरीके से दौड़ाई जा सके और यथशीघ्र कोयले की आपूर्ति की जा सके।

    अतः यह साफ है कि हमें हर साल इस समस्या से दो-चार होना पड़ता है पर बावजूद इसके सरकार के पास कोई स्थायी समाधान नहीं होता।

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    राजनीति का भी हाँथ है इस समस्या में

    बिजली संकट
    पंजाब में 300 यूनिट फ्री बिजली की घोषणा करते आप नेता केजरीवाल (तस्वीर साभार : Moneycontrol Hindi)

    सत्ता का खेल इस समस्या  (Power Crisis) को और भी विकट बना देती है। राजनीतिक दल चुनावों में मुफ्त बिजली जैसी घोषणाएं करने के पहले एक बार नही सोचती कि बिजली बनाने से लेकर घर घर तक उसे पहुंचाने वाली कंपनियों की माली हालात क्या हैं?… और हम सब नागरिक के तौर पर इन लोक-लुभावनी घोषणाओं का खुशी खुशी हिस्सा बन जाते हैं।

    इन घोषणाओं को जब पूरा करने के चक्कर मे राज्यों की बिजली उत्पादन से लेकर उसके वितरण करने वाली कंपनियों का बैलेंस शीट गड़बड़ हो जाता है। फलस्वरूप विद्युत उत्पादन करने वाली कंपनियां वित्तीय दवाब के आगे सप्लाई ही बंद कर देती हैं।

    फिर बात आती है आम नागरिकों द्वारा की जाने वाली बिजली चोरी की…. मानो यह जन्मसिद्ध अधिकार है कि मौका मिलते ही इसमें हम सब शामिल हो जाते हैं। हम तब नहीं सोचते कि हमारे इस अपराध से वितरक या विद्युत उत्पादन करने वाली कंपनियों का वित्तीय नुकसान होता है।

    अंततः, दवाब में चल रही ये कंपनियां विद्युत के सप्लाई और उत्पादन ही कम कर देते हैं। मजे की बात है कि वही नागरिक फिर बिजली संकट की शिकायत भी करने लगते हैं।

    इसलिए बिजली संकट जो अभी सुर्खियों में है, से दो बातें साफ़ हैं। एक यह कोई अचानक आयी बाधा या संकट नहीं है बल्कि बढ़ते शहरीकरण और जलवायु परिवर्तन के कारण हर साल यह संकट गहराता जा रहा है।

    दूसरा, यह संकट सिर्फ कोयले की कमी के कारण या बेहतर कहें कि कोयले की आपूर्ति की कमी के कारण उत्पन्न है, तो ऐसा नहीं है। अपितु, यह एक समूचे “व्यवस्था की विफलता” है जिसमें केंद्र सरकार से लेकर हम आम जनता तक कहीं ना कहीं शामिल हैं।

    By Saurav Sangam

    | For me, Writing is a Passion more than the Profession! | | Crazy Traveler; It Gives me a chance to interact New People, New Ideas, New Culture, New Experience and New Memories! ||सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहाँ; | ||ज़िंदगी गर कुछ रही तो ये जवानी फिर कहाँ !||

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