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    गुजरात विधानसभा चुनाव

    गुजरात विधानसभा चुनाव के मद्देनजर सभी सियासी दल अपनी-अपनी कमर कस चुके हैं। सत्ताधारी दल भाजपा और प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस के बीच गुजरात की सत्ता को लेकर मुख्य लड़ाई है। भाजपा और कांग्रेस की गुजरात के मतदाता वर्ग में अच्छी पकड़ है। इसके बावजूद कई राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पार्टियां गुजरात विधानसभा चुनाव के सियासी मैदान में कूद पड़ी हैं। हालाँकि अगर आंकड़ों पर गौर करें तो 1995 के बाद से गुजरात में सत्ता की लड़ाई भाजपा और कांग्रेस के बीच ही रही है और अन्य दल अपनी छाप छोड़ने में असफल रहे हैं। हालाँकि इसके बावजूद भी नियमित तौर अन्य पार्टियां अपनी किस्मत आजमाती रही हैं। गुजरात में 2017 विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के अतिरिक्त 50 से अधिक अन्य पार्टियां भी चुनावी मैदान में हैं। ये सभी पार्टियां गुजरात में वोटकटवा की भूमिका में हैं। एक नजर गुजरात के सियासी समीकरण पर :

    मैदान में हैं 6 राष्ट्रीय दल

    गुजरात में हो रहे 14वें विधानसभा चुनावों के लिए सियासी मैदान में 6 राष्ट्रीय दल दावेदारी कर रहे हैं। भाजपा, कांग्रेस, एनसीपी, सीपीएम, सीपीआई और बसपा गुजरात विधानसभा चुनावों में उतरी हैं। भाजपा और कांग्रेस गुजरात की प्रमुख पार्टियों में से एक हैं वहीं एनसीपी के गुजरात में 2 विधायक हैं। गुजरात की जनता हमेशा से ही भाजपा, कांग्रेस के अलावा राज्य में तीसरे विकल्प को नकारती रही है इसके बावजूद 4 अन्य राष्ट्रीय पार्टियों की दावेदारी ने भाजपा और कांग्रेस दोनों की राह मुश्किल कर दी है। हालाँकि इन सभी पार्टियों का वोट प्रतिशत तो कम रहा है पर किसी भी सीट पर ये भाजपा-कांग्रेस सियासी गणित बिगाड़ने की कुव्वत रखती हैं। ऐसे में इन वोटकटवा पार्टियों के मैदान में होने से भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए सियासी राह मुश्किल हो गई है।

    क्षेत्रीय दल भी हैं मैदान में

    6 राष्ट्रीय दलों के अतिरिक्त गुजरात विधानसभा चुनावों में 5 क्षेत्रीय दल भी चुनावी मैदान में हैं। इनमें समाजवादी पार्टी, जेडीयू, जेडीएस, शिवसेना और आम आदमी पार्टी के नाम शामिल हैं। इसके अतिरिक्त 48 बिना मान्यता प्राप्त दल भी गुजरात के सियासी दंगल में जूझ रहे हैं। इनमें सरदार वल्लभभाई पार्टी, रियल डेमोक्रेसी पार्टी, नवीन भारत निर्माण मंच, इंडियन न्यू कांग्रेस, इंसानियत पार्टी, जनसत्य पथ, आम जनता पार्टी, इंकलाब विकास दल, राष्ट्र मंगल मिशन पार्टी, मानवाधिकार नेशनल पार्टी, प्रजाशक्ति, गुजरात जनचेतना, आपणी सरकार, युवा सरकार, भारतीय ट्राइबल पार्टी, भारतीय जनसंपर्क पार्टी, लोकशाही सत्ता पार्टी, राष्ट्रीय क्रांतिकारी समाजवादी पार्टी, सुहेलदेव व्यवस्था परिवर्तन पार्टी जैसे दलों के नाम शामिल हैं।

    केशुभाई जैसा न हो जाए वाघेला का अंजाम

    इस बार गुजरात विधानसभा चुनाव इसलिए भी खास है क्योंकि भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दल आधी ताकत के साथ मैदान में उतरे है। भाजपा का परंपरागत वोटबैंक रहा पाटीदार समाज उससे खिसक चुका है वहीं दिग्गज नेता शंकर सिंह वाघेला कांग्रेस से बगावत कर चुके हैं। शंकर सिंह वाघेला ने अपने 69 उम्मीदवारों के चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है। शंकर सिंह वाघेला खुद चुनाव नहीं लड़ रहे हैं और उन्होंने मुख्यमंत्री विजय रुपानी, कार्यकारी कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष परेश धनाणी और वरिष्ठ कांग्रेसी नेता शक्ति सिंह गोहिल सहित 5 बड़े चेहरों के खिलाफ उम्मीदवार नहीं उतारे हैं। शंकर सिंह वाघेला का जनविकल्प मोर्चा ऑल इंडिया हिंदुस्तान कांग्रेस पार्टी के चुनाव चिन्ह ट्रैक्टर के बैनर तले चुनाव लड़ रहा है।

    शंकर सिंह वाघेला की बगावत से गुजरात कांग्रेस पूरी तरह से हिल गई थी। शंकर सिंह वाघेला के समर्थन में गुजरात कांग्रेस के विधायकों के इस्तीफे का दौर शुरू हो गया था और वाघेला ने सभी दलों को गुजरात में अपनी मजबूत पकड़ का एहसास करा दिया था। शंकर सिंह वाघेला खुद चुनाव नहीं लड़ रहे हैं। माना जा रहा है कि वाघेला नतीजों की घोषणा के बाद गठबंधन की राह तलाशेंगे। भाजपा के वरिष्ठ नेता और गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री केशूभाई पटेल ने 2012 में कुछ ऐसा ही किया था और भाजपा से अलग होकर गुजरात परिवर्तन पार्टी बनाई थी। 120 सीटों पर चुनाव लड़ने के बाद उन्हें महज 3 सीटों पर जीत मिली और अंततः पार्टी का भाजपा में विलय हो गया था। वाघेला को ऐसी किसी भी स्थिति का सामना करने के लिए तैयार रहना होगा वरना गुजरात की सियासत से उनको भी किनारे कर दिया जाएगा।

    तीसरे मोर्चे की सम्भावना तलाश रहे हैं वाघेला

    राष्ट्रपति चुनाव के दौरान गुजरात कांग्रेस के कई विधायकों के क्रॉस वोटिंग करने की बात सामने आई थी। कांग्रेस आलाकमान ने शंकर सिंह वाघेला को क्रॉस वोटिंग के लिए जिम्मेदार ठहराया था। आरोप लगने से नाराज शंकर सिंह वाघेला ने बगावत छेड़ दी थी और गुजरात कांग्रेस के कई विधायक उनके समर्थन में खड़े हो गए थे। इसके बाद गुजरात कांग्रेस के विधायकों के इस्तीफे का दौर शुरू हुआ जो राज्यसभा चुनावों तक चला। कांग्रेस उम्मीदवार अहमद पटेल बड़ी ही मुश्किल से राज्यसभा में अपनी सीट बचाने में सफल रहे थे। शंकर सिंह वाघेला के जाने के बाद गुजरात कांग्रेस नेतृत्वविहीन हो गई थी और आज भी उसके पास भावी मुख्यमंत्री के तौर पर पेश करने के लिए कोई लोकप्रिय चेहरा नहीं है।

    गुजरात विधानसभा चुनाव
    तीसरे मोर्चे की सम्भावना तलाश रहे हैं वाघेला

    शंकर सिंह वाघेला सियासत के दिग्गज खिलाडी हैं और इस वजह से ही उन्हें ‘गुजरात का बापू’ कहा जाता है। मुख्यमंत्री विजय रुपाणी और प्रमुख कांग्रेस नेताओं के खिलाफ उम्मीदवार ना उतारकर वाघेला ने सभी विकल्पों को खुला रखा है। पारम्परिक वोटबैंक पाटीदार समाज के कटने और जातीय समीकरणों के खिलाफ जाने से भाजपा गुजरात में बैकफुट पर नजर आ रही है। ऐसे में अगर चुनाव परिणाम भाजपा और कांग्रेस को मँझधार में छोड़ दें तो वाघेला ऐसी स्थिति में माँझी बनने को तैयार बैठे हैं। शंकर सिंह वाघेला ऐसी किसी भी स्थिति में कांग्रेस की ओर जाएंगे जो कि स्वाभाविक भी है। वाघेला के सियासी कद और अनुभव को देखते हुए अन्य छुटभैया दलों के विधायक भी उनके पीछे-पीछे हो लेंगे। भाजपा के पक्ष में परिणाम ना आने पर अगर गुजरात में कांग्रेस समर्थित तीसरे मोर्चे की सरकार बन जाए तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।

    भाजपा को मिल सकता है क्षेत्रीय दलों का फायदा

    गुजरात में पिछले 22 सालों से सत्ता पर काबिज भाजपा का परंपरागत वोटबैंक पाटीदार समाज उससे कट गया है। हार्दिक पटेल के नेतृत्व में आरक्षण को लेकर हुए पाटीदार आन्दोलन के चलते भाजपा का जनाधार घटा है। शंकर सिंह वाघेला की बगावत के बाद गुजरात कांग्रेस नेतृत्वविहीन हो गई है। गुजरात में एनसीपी के साथ कांग्रेस का गठबंधन टूट चुका है और एनसीपी अकेले दम पर चुनाव लड़ रही है। आम आदमी पार्टी भी गुजरात के चुनावी दंगल में उतरने की घोषणा कर चुकी है। गुजरात के विधानसभा चुनावों में बसपा भी अपनी किस्मत आजमा रही है और केंद्र में भाजपा की सहयोगी शिवसेना भी गुजरात के दंगल में उतर चुकी है। ऐसे में भाजपा को इन छोटे दलों का फायदा मिलना तय है क्योंकि भाजपा से नाराज चल रहे मतदाता इन पार्टियों में बँटकर रह जाएंगे।

    By हिमांशु पांडेय

    हिमांशु पाण्डेय दा इंडियन वायर के हिंदी संस्करण पर राजनीति संपादक की भूमिका में कार्यरत है। भारत की राजनीति के केंद्र बिंदु माने जाने वाले उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले हिमांशु भारत की राजनीतिक उठापटक से पूर्णतया वाकिफ है।मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक करने के बाद, राजनीति और लेखन में उनके रुझान ने उन्हें पत्रकारिता की तरफ आकर्षित किया। हिमांशु दा इंडियन वायर के माध्यम से ताजातरीन राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर अपने विचारों को आम जन तक पहुंचाते हैं।