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    हिमाचल प्रदेश चुनाव

    बीते एक महीने से चल रहे धुआँधार प्रचार अभियान के बाद गुरूवार, 9 नवंबर को हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव के लिए मतदान हुआ। हिमाचल विधानसभा की 68 सीटों के लिए हुए मतदान में शाम 5 बजे तक कुल 74.45 फीसदी मतदान दर्ज किया गया था। हिमाचल प्रदेश में सत्ताधारी दल कांग्रेस और प्रमुख विपक्षी दल भाजपा के बीच सीधी लड़ाई है। चुनाव नतीजों की घोषणा 18 दिसंबर को होनी है मगर भाजपा अपनी जीत को लेकर अभी से आश्वस्त नजर आ रही है। चुनावों के बाद भाजपा मीडिया सेल के प्रभारी अनिल बलूनी ने कहा कि हिमाचल प्रदेश में भाजपा को 60 सीटें मिलेंगी और अन्य दलों को 8 सीटों में बँटवारा करना होगा। भाजपा ने हिमाचल प्रदेश में अपने चुनावी अभियान में सबकुछ झोंक दिया था और प्रेम कुमार धूमल की दावेदारी ने भाजपा को और मजबूती दी थी। आइये जानते हैं ‘भाजपा 60 में, बाकी सब 8 में’ के दावों का सच :

    बलूनी का दावा, इकाई अंक में सिमटेगी कांग्रेस

    कल हिमाचल प्रदेश में हुए विधानसभा चुनावों में 74.45 फीसदी मतदान हुआ था। 2012 के विधानसभा चुनावों की अपेक्षा यह तकरीबन 1 फीसदी अधिक था। वहीं 2014 लोकसभा चुनावों की अपेक्षा यह 10 फीसदी अधिक था। मतदान समाप्त होने के बाद भाजपा मीडिया सेल के प्रभारी अनिल बलूनी ने कहा, “हिमाचल प्रदेश की जनता ने अपना जनादेश दे दिया है। 18 दिसंबर को घोषित होने वाले चुनाव नतीजों में भाजपा को 60 सीटें मिलने वाली है। बची हुई 8 सीटों में से सभी दलों को बँटवारा करना होगा। सत्ताधारी दल कांग्रेस इकाई अंक में सिमट जाएगी। बतौर मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के 5 वर्षों के भ्रष्ट कार्यकाल का समापन होने वाला है।” उन्होंने यह बातें समाचार एजेंसी एएनआई से बातचीत में कही।

    हिमाचल में सत्ता वापसी को बेताब भाजपा

    भाजपा को हिमाचल प्रदेश में सत्ता से कम कुछ भी मंजूर नहीं है। भाजपा हिमाचल की सत्ता पाने के लिए कितनी आतुर है इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उसने सत्ता की चाह में ‘रूल 75’ को ताक पर रख दिया है। अमित शाह ने मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर प्रेम कुमार धूमल के नाम का ऐलान कर यह स्पष्ट कर दिया है कि भाजपा सत्ता वापसी के लिए एक बार अपने सिद्धांतों से समझौता कर सकती है। प्रेम कुमार धूमल की आयु 73 वर्ष, 6 महीने है। चुनाव परिणाम की घोषणा के वक्त तक उनकी आयु 73 वर्ष, 8 महीने हो जाएगी। अगर भाजपा के ‘रूल 75’ के लिहाज से देखें तो बतौर मुख्यमंत्री उनके पास 16 महीने का कार्यकाल होगा। भाजपा ने पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल की लोकप्रियता को हिमाचल में सत्ता वापसी का आधार बनाने का दांव खेला।

    वीरभद्र सिंह के सामने उतारा राजपूत चेहरा

    हिमाचल प्रदेश की सत्ता में आने के लिए भाजपा ने हर मुमकिन दांव आजमाया है। प्रेम कुमार धूमल को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाना भाजपा की सत्ता वापसी की रणनीति का हिस्सा है। कोई भी सियासी दल चाहे विकास को कितनी भी तवज्जो दे पर आज भी देश में राजनीति का मुख्य आधार जातिवाद ही है। हिमाचल प्रदेश में राजपूत समाज ‘किंग मेकर’ है और उसके समर्थन बिना हिमाचल की सत्ता तक पहुँचना नामुमकिन है। भाजपा ने कांग्रेस के चेहरे वीरभद्र सिंह के खिलाफ प्रेम कुमार धूमल को आगे कर हिमाचल के जातीय और सियासी समीकरणों को साधने का प्रयास किया है। हिमाचल प्रदेश में धूमल की अच्छी-खासी लोकप्रियता है और उनके पूर्ववर्ती कार्यकालों के दौरान राज्य में सड़क निर्माण, पेयजल सुविधा जैसी बुनियादी सुविधाओं का विकास हुआ था। इस वजह से उन्हें ‘सड़क वाला चीफ मिनिस्टर’ भी कहा जाता है।

    हिमाचल प्रदेश चुनाव
    वीरभद्र सिंह के सामने उतारा राजपूत चेहरा

    हिमाचल प्रदेश के लिए भाजपा आलाकमान की पहली पसंद मोदी सरकार के स्वास्थ्य मंत्री जे पी नड्डा थे। प्रेम कुमार धूमल को ऐन वक्त पर मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर भाजपा आलाकमान ने कांग्रेस के राजपूत दांव का काट खोज लिया। हिमाचल प्रदेश के मतदाता वर्ग पर नजर डालें तो राज्य की तकरीबन 37 फीसदी आबादी राजपूत समाज की है। ब्राह्मण मतदाताओं की आबादी 18 फीसदी है। सवर्ण वर्ग को हमेशा से भाजपा का कोर वोटबैंक माना जाता है। मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार घोषित किए गए प्रेम कुमार धूमल राजपूत समाज से आते हैं वहीं मोदी सरकार में मंत्री जे पी नड्डा ब्राह्मण समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं। अगर जातिगत समीकरणों के आधार पर देखें तो धूमल का पलड़ा भारी दिखाई देता है। भाजपा आलाकमान ने इसी आधार पर जे पी नड्डा की जगह प्रेम कुमार धूमल को तरजीह दी है।

    ब्राह्मण-राजपूत समीकरण पर ध्यान

    हिमाचल प्रदेश में भाजपा के पक्ष में एक बिंदु यह है कि उसके पास राजपूती ताकत और ब्राह्मण का आशीर्वाद दोनों है। अगर मतों के लिहाज से देखें तो राजपूत समाज हिमाचल प्रदेश में ‘किंग मेकर’ की भूमिका में है। राज्य के मतदाता वर्ग में राजपूत वोटरों की सहभागिता 37 फीसदी है। राजपूत समाज के बाद हिमाचल प्रदेश में ब्राह्मण समाज का दबदबा है। ब्राह्मण समाज के वोटरों की सहभागिता 18 फीसदी है। मतों के लिहाज से यह हिमाचल प्रदेश में दूसरा सबसे बड़ा तबका है। अगर राजपूत और ब्राह्मण वोटरों को साथ मिला दें तो कुल 55 फीसदी मत हो जाते हैं। किसी भी पार्टी को बहुमत दिलाने या सत्ता तक पहुँचाने के लिए हिमाचल प्रदेश में राजपूत-ब्राह्मण समीकरण को साधना बहुत जरुरी है। इसी वजह से कहा जाता है कि हिमाचल प्रदेश में राजपूतों की ताकत और ब्राह्मणों के आशीर्वाद के बिना सियासी दंगल जीतना संभव नहीं है। प्रेम कुमार धूमल और जे पी नड्डा की जोड़ी हिमाचल भाजपा के लिए राजपूत-ब्राह्मण समीकरण साधने का काम किया है।

    हिमाचल प्रदेश चुनाव
    ब्राह्मण-राजपूत समीकरण पर ध्यान

    हिन्दू वोटरों को साधने उतरे योगी

    भाजपा के सर्वेसर्वा बने पीएम नरेंद्र मोदी भाजपा को विकास की राजनीति करने वाली पार्टी बताते हैं और यह काफी हद तक सही भी है। पर मतदाता वर्ग आज भी भाजपा को हिंदुत्ववादी राजनीति करने वाला दल मानता है। इसका नजारा अक्सर चुनावी रैलियों में दिख जाता है और भाजपा का सियासी मंच भगवा नजर आता है। भाजपा ने उसके कोर वोटबैंक कहे जाने वाले सवर्ण वर्ग को साधने के लिए हिमाचल प्रदेश में भी हिंदुत्व कार्ड खेला है। एक ओर जहाँ धूमल-नड्डा की जोड़ी राजपूत-ब्राह्मण एकता की बानगी पेश करती नजर आ रही है वही दूसरी ओर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और देश में हिंदुत्व के सबसे बड़े चेहरे माने जाने वाले योगी आदित्यनाथ हिन्दू मतदाताओं को लुभाते नजर आए। 95 फीसदी हिन्दू आबादी वाले हिमाचल प्रदेश में कट्टर हिंदूवादी छवि वाले योगी आदित्यनाथ को चुनाव प्रचार में उतारना क्या असर लाता है ये तो चुनाव परिणाम आने के बाद ही पता चलेगा।

    हिमाचल प्रदेश चुनाव
    हिन्दू वोटरों को साधने उतरे योगी

    68 सीटों पर 337 उम्मीदवार मैदान में

    हिमाचल प्रदेश में राज्य की 68 विधानसभा सीटों के लिए 9 नवंबर को चुनाव हुआ था। मतदान सुबह 8 बजे से शुरू हुआ और शाम 5 बजे तक चला। मतदान समाप्त होने के बाद नई दिल्ली में संवाददाता सम्मलेन में उप चुनाव आयुक्त संदीप सक्सेना ने बताया कि हिमाचल प्रदेश में 74.45 फीसदी मतदान हुआ है जो पिछले विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनावों की तुलना में अधिक है। मतदान शांतिपूर्ण तरीके से निपट गया और कहीं से किसी अप्रिय घटना की कोई सूचना नहीं है। हिमाचल प्रदेश की 68 विधानसभा सीटों पर 337 उम्मीदवार ताल ठोंक रहे हैं। इनमें से 19 महिला उम्मीदवार है। प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व में भाजपा सभी 68 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। कांग्रेस भी मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के नेतृत्व में सभी 68 सीटों पर चुनावी मैदान में है। बसपा 42, सीपीएम 14, स्वाभिमान पार्टी और लोक गठबंधन पार्टी 6-6, सीपीआई 3 व सपा-एनसीपी 2-2 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। इसके अतिरिक्त 112 निर्दलीय उम्मीदवार मैदान में हैं।

    (सम्बंधित खबरें पढ़ें : हिमाचल प्रदेश चुनाव : 6 प्रतिशत से भी कम है महिला उम्मीदवारों की भागीदारी)

    होगा 30 से अधिक दिग्गजों की किस्मत का फैसला

    हिमाचल प्रदेश के इस सियासी दंगल में 30 से अधिक वरिष्ठ सियासी दिग्गज मैदान में है। इनमें मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह, भाजपा के मुख्यमंत्री पद के चेहरे घोषित किए गए प्रेम कुमार धूमल समेत कई पूर्व मंत्री और कई वर्तमान मंत्री हैं। कांग्रेस की ओर से मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह समेत 10 मंत्री और विधानसभा उपाध्यक्ष जगत सिंह नेगी चुनावी मैदान में उतरे हैं वही भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार प्रेम कुमार धूमल समेत 10 पूर्व मंत्री चुनाव मैदान में हैं। इसके अतिरिक्त 8 मुख्य संसदीय सचिव भी चुनावी मैदान में दावेदारी पेश कर रहे हैं। धर्मशाला सीट से सबसे अधिक उम्मीदवार चुनावी मैदान में हैं। धर्मशाला से 12 उम्मीदवार चुनावी मैदान में ताल ठोंक रहे हैं। मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने शिमला ग्रामीण सीट अपने पुत्र विक्रमादित्य सिंह के लिए खाली कर दी है और अर्की से दावेदारी पेश की है वहीं प्रेम कुमार धूमल भी चुनाव क्षेत्र बदलकर सुजानपुर से चुनावी मैदान में उतरे हैं।

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    By हिमांशु पांडेय

    हिमांशु पाण्डेय दा इंडियन वायर के हिंदी संस्करण पर राजनीति संपादक की भूमिका में कार्यरत है। भारत की राजनीति के केंद्र बिंदु माने जाने वाले उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले हिमांशु भारत की राजनीतिक उठापटक से पूर्णतया वाकिफ है।मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक करने के बाद, राजनीति और लेखन में उनके रुझान ने उन्हें पत्रकारिता की तरफ आकर्षित किया। हिमांशु दा इंडियन वायर के माध्यम से ताजातरीन राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर अपने विचारों को आम जन तक पहुंचाते हैं।