आज देश के सियासी फलक के सबसे बड़े मुद्दे हैं हिमाचल प्रदेश और गुजरात में प्रस्तावित विधानसभा चुनाव। गुजरात में सत्ताधारी दल भाजपा मुश्किलों में फंसती नजर आ रही हैं वहीं हिमाचल प्रदेश में सत्ताधारी दल कांग्रेस के लिए सत्ता बचाना टेढ़ी खीर साबित हो रहा है। हिमाचल प्रदेश में सत्ता वापसी की कोशिशों में जुटी भाजपा ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है वहीं कांग्रेस ‘राजा साहब’ वीरभद्र सिंह के भरोसे चुनावी मैदान में है। राजनीति में हार-जीत लगी रहती है और हिमाचल की राजनीति हमेशा पूर्वानुमानों को गलत साबित करती आयी है। पर इस बार वीरभद्र सिंह अपने आखिरी सियासी रण में अकेले पड़ गए हैं और अभिमन्यु की तरह भाजपा का सियासी चक्रव्यूह भेदने की हर मुमकिन कोशिश कर रहे हैं। कांग्रेस आलाकमान से उन्हें कोई खास सहयोग नहीं मिल रहा है।
कांग्रेस आलाकमान से हैं वीरभद्र सिंह के मतभेद
हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह मौजूदा समय में कांग्रेस के सबसे वरिष्ठम नेताओं में से एक हैं। विधानसभा चुनाव की अधिसूचना जारी होने से एक महीने पूर्व हिमाचल प्रदेश कांग्रेस इकाई और पार्टी संगठन में मतभेद उभर कर सामने आए थे। हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह और कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष सुखविंदर सिंह के बीच सीटों के बँटवारे को लेकर खींचतान मची हुई थी। वीरभद्र सिंह ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी को इस बाबत चिट्ठी भी लिखी थी। हिमाचल कांग्रेस के 27 विधायकों ने उनके समर्थन में पीछे से अपनी हस्ताक्षर युक्त चिट्ठी लिखी थी। हिमाचल प्रदेश के कई वरिष्ठ कांग्रेसी नेता भी वीरभद्र सिंह के समर्थन में उतर आए थे। मामले की गंभीरता को देखते को देखते हुए कांग्रेस आलाकमान ने वीरभद्र सिंह को दिल्ली बुलाया और उन्हें प्रत्याशी चुनने का अधिकार दिया।
वीरभद्र सिंह कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष सुखविंदर सिंह को हटाने की मांग कर रहे थे जिसे ठुकरा दिया गया था। सुखविंदर सिंह कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी की पसंद थे। राहुल गाँधी ने वीरभद्र सिंह को आश्वस्त किया था कि टिकट बँटवारे में सुखविंदर सिंह का कोई हस्तक्षेप नहीं होगा लेकिन वह पार्टी प्रदेशाध्यक्ष पद पर बने रहेंगे। वीरभद्र सिंह और राहुल गाँधी के बीच वैचारिक मतभेद हैं और चुनाव प्रचारों के दौरान यह स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है। मण्डी की रैली से कांग्रेस के चुनावी अभियान का श्री गणेश करने के बाद राहुल गाँधी हिमाचल प्रदेश नहीं गए हैं और चुनाव पूर्व उनका एकमात्र दौरा 6 नवंबर को प्रस्तावित है। वीरभद्र सिंह राहुल गाँधी की सियासी समझ को ज्यादा तवज्जो नहीं देते हैं और सीधे सोनिया गाँधी से बात करते हैं। अब यह देखना है कि वीरभद्र सिंह अकेले दम पर कांग्रेस की नैया पार लगा पाते हैं या नहीं।
नहीं मिल रहा कोई सहयोगी
हिमाचल प्रदेश में चुनाव प्रचार अभियान के लिए मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह को अन्य किसी बड़े चेहरे का साथ नहीं मिल पा रहा है। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी इस समय अपना पूरा ध्यान गुजरात पर लगाए हुए हैं। वैसे भी वीरभद्र सिंह राहुल गाँधी को नेता नहीं मानते हैं और उनकी राजनीतिक समझ को खास तवज्जो नहीं देते हैं। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी लम्बे समय से अस्वस्थ चल रही हैं और इस वजह से वह प्रचार अभियान में शामिल नहीं हो पा रही हैं। हिमाचल प्रदेश कांग्रेस प्रभारी सुशील कुमार शिंदे वीरभद्र सिंह के इर्द-गिर्द ही सियासी चालें चल रहे हैं। राज्यसभा सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री आनंद शर्मा को हिमाचल प्रदेश की राजनीति से कोई खास लगाव नहीं है और उनका राज्य में बड़ा जनाधार भी नहीं है। दिग्गज कांग्रेसी नेता अम्बिका सोनी ने भी हिमाचल चुनाव प्रचारों में कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखाई है।
नदारद रहे हैं कांग्रेस के स्टार प्रचारक
हिमाचल प्रदेश चुनावों के मद्देनजर अपने प्रचार अभियान के लिए कांग्रेस आलाकमान ने 40 स्टार प्रचारकों की सूची जारी की थी। इनमें सोनिया गाँधी, राहुल गाँधी, कैप्टन अमरिंदर सिंह, सचिन पायलट, ज्योतिरादित्य सिंधिया, रणदीप सुरजेवाला, आनंद शर्मा, अम्बिका सोनी और नवजोत सिंह सिद्धू जैसे बड़े नाम शामिल थे। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी स्वास्थ्य कारणों से चुनाव प्रचार में शामिल नहीं हो पा रही हैं वहीं कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी गुजरात से फुर्सत नहीं निकाल पा रहे हैं। अन्य नेताओं में सचिन पायलट, रणदीप सुरजेवाला, ज्योतिरादित्य सिंधिया न्यूज चैनलों पर कांग्रेस सरकार का पक्ष रखते नजर आ जा रहे हैं। वहीं शेष स्टार प्रचारक शिमला स्थित पार्टी प्रदेश मुख्यालय में बैठकर रणनीति बना रहे हैं और लौट रहे हैं। कांग्रेस नेताओं की चुनावी मेहनत सतह पर नजर नहीं आ रही है जो घातक साबित हो सकती है।
कांग्रेस के पास नहीं है कोई ब्राह्मण चेहरा
हिमाचल प्रदेश के जातीय समीकरणों पर गौर करें तो राजपूत समाज राज्य में किंग मेकर की भूमिका में है। मुखयमंत्री वीरभद्र सिंह राजपूत समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं जिसकी मतदाता वर्ग में भागीदारी 37 फीसदी है। इसी को मद्देनजर रखते हुए भाजपा ने ऐन वक्त पर प्रेम कुमार धूमल को अपना चेहरा बनाते हुए मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया था। हिमाचल प्रदेश के मतदाता वर्ग में दूसरी सबसे बड़ी भागीदारी ब्राह्मण समाज की है। भाजपा ने राज्य में ब्राह्मण समाज के मतदाताओं को साधने के लिए मोदी सरकार के मंत्री जे पी नड्डा को आगे किया है और उसे इसका फायदा मिलता भी दिख रहा है। धूमल-नड्डा की राजपूत-ब्राह्मण की जोड़ी भाजपा के लिए सवर्णों को साधने का काम कर रही थी और योगी आदित्यनाथ के दौरे ने इसमें ‘सोने पर सुहागा’ का काम किया।
इस बिंदु पर कांग्रेस भाजपा से पिछड़ती नजर आ रही है। हिमाचल कांग्रेस या कांग्रेस केंद्रीय नेतृत्व के पास ब्राह्मण समाज के मतदाताओं को साधने के लिए कोई लोकप्रिय चेहरा नहीं हैं। देशभर में कांग्रेस की छवि हिंदुत्व विरोधी दल की बनी हुई है और भाजपा इसका फायदा उठा रही है। हिमाचल कांग्रेस के एक बड़े ब्राह्मण चेहरे और पूर्व केंद्रीय मंत्री सुखराम बेटे अनिल शर्मा संग भाजपा में शामिल हो चुके हैं वहीं पूर्व केंद्रीय मंत्री और राज्यसभा सांसद आनंद शर्मा को हिमाचल प्रदेश की राजनीति में कोई खास दिलचस्पी नहीं है। ऐसे में प्रचारकों की कमी से जूझ रही हिमाचल कांग्रेस के समक्ष भाजपा के इस जातीय समीकरण का काट निकालने की समस्या खड़ी हो गई है।
वीरभद्र सिंह के बूढ़े कन्धों पर दारोमदार
हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की नैया पूरी तरह से वीरभद्र सिंह के भरोसे हैं। हिमाचल प्रदेश में ‘राजा साहब’ के नाम से जाने जाने वाले वीरभद्र सिंह पूरी तन्मयता के साथ चुनाव प्रचार में जुटे हुए हैं। अपने राजनीतिक जीवन में अजेय रहने वाले वीरभद्र सिंह इससे पहले कभी भी इतने मुश्किल हालातों में नहीं फंसे थे। हिमाचल प्रदेश के पड़ोसी राज्य पंजाब के मुख्यमंत्री और साफ-सुथरी छवि वाले नेता कैप्टन अमरिंदर सिंह भी अभी तक कांग्रेस के लिए चुनाव प्रचार में नहीं उतरे हैं। हिमाचल प्रदेश के सीमावर्ती जिलों के युवा रोजगार के लिए पंजाब का रुख करते हैं। ऐसे में अमरिंदर सिंह का प्रचार अभियान में शामिल होना इन क्षेत्रों में कांग्रेस का प्रभाव बढ़ा सकता है। इन सभी मुश्किलों के बावजूद कांग्रेस आलाकमान को इस बात का यकीन है कि वीरभद्र सिंह अपने सियासी अनुभव, राजनीतिक सूझबूझ और लोकप्रियता से कांग्रेस की नैया पार लगा देंगे।
हिमाचल कांग्रेस के हो चुके हैं 2 फाड़
हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की राज्य इकाई विधानसभा चुनावों की घोषणा से ठीक पहले 2 धड़ों में बँट गई थी। एक धड़े का नेतृत्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह कर रहे थे वहीं दूसरे धड़े की कमान प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और राहुल गाँधी के करीबी माने जाने वाले सुखविंदर सिंह सुक्खू के हाथों में थी। प्रदेश सरकार और कांग्रेस संगठन की आतंरिक लड़ाई खुलकर सामने आ गई थी। हिमाचल कांग्रेस के वरिष्ठतम नेता और मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुखविंदर सिंह से मतभेद थे और वह कांग्रेस आलाकमान पर खुलकर हमला बोल रहे थे। पार्टी आलाकमान से अपनी नाराजगी व्यक्त करते हुए मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने कहा था कि कांग्रेस पार्टी अपनी पूर्ववर्ती नीतियों से “अलग दिशा में” आगे बढ़ रही है। उन्होंने पार्टी को चेताया था कि मनमाफिक तरीके से चयन करने का यह तरीका पार्टी का खात्मा कर देगा।
कुल्लू जिले के निरमंड में एक जनसभा को सम्बोधित करते हुए उन्होंने कहा था कि पार्टी नेतृत्व को सोचने और कामकाज करने के तरीकों में बदलाव लाने की जरुरत है। कांग्रेस कारोबारियों की पार्टी नहीं है। कांग्रेस का आधार देश की आजादी के लिए अपना जीवन कुर्बान करने वाले लोगों से जुड़ा है। वीरभद्र सिंह कांग्रेस के सबसे वरिष्ठतम सदस्यों में से एक हैं और वह जवाहर लाल नेहरू के समय से ही कांग्रेस से जुड़े हैं। बता दें कि हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुखविंदर सिंह से मतभेद चल रहे थे और इस बाबत उन्होंने कांग्रेस सुप्रीमो सोनिया गाँधी को चिट्ठी भी लिखी थी। उनके पीछे 27 विधायकों ने उनके समर्थन में कांग्रेस सुप्रीमो को चिट्ठी लिखी थी और वीरभद्र सिंह के नेतृत्व में चुनाव लड़ने की बात कही थी।
वीरभद्र सिंह पर जमी सबकी निगाहें
हिमाचल प्रदेश की जनता ने हमेशा ही वीरभद्र सिंह को पलकों पर बिठाया है और इस बार भी हालात कुछ खास बदले नहीं हैं। लेकिन इस बार वीरभद्र सिंह को पार्टी संगठन और आलाकमान से कुछ खास सहयोग नहीं मिल पा रहा है। वीरभद्र सिंह पहले ही यह बात जाहिर कर चुके हैं कि यह चुनाव उनके राजनीतिक जीवन के आखिरी चुनाव हैं। इसके बावजूद भी कांग्रेस संगठन और आलाकमान में एकजुटता कहीं दिखाई नहीं दे रही है। वीरभद्र सिंह प्रचार के लिए कांग्रेस प्रत्याशियों की पहली पसंद हैं। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी सोमवार, 6 नवंबर को हिमाचल प्रदेश में होंगे और 3 चुनावी रैलियों को सम्बोधित करेंगे। सबकी निगाहें इसी ओर टिकी हैं कि वीरभद्र सिंह अपने राजनीतिक जीवन की आखिरी पारी में कैसा प्रदर्शन करते हैं।