हिंदी को लेकर बॉलीवुड स्टार अजय देवगन और दक्षिण स्टार किच्चा सुदीप के बीच ट्विटर वॉर के बाद भाषा को लेकर बहस फिर से छिड़ गई है।
दरअसल, अभिनेता सुदीप ने फ़िल्म KGF2 की अपार सफलता के बाद एक कार्यक्रम में बयान दिया, “……किसी ने कहा कि एक पैन इंडिया फ़िल्म KGF2 कन्नड़ में बनी थी। मैं इसमें छोटा सा सुधार चाहता हूं। हिंदी अब राष्ट्रभाषा नहीं रही।”
उन्होंने आगे कहा, “बॉलीवुड आज पैन इंडिया फ़िल्म करते हैं। वे तेलगु या तमिल में डबिंग के लिए संघर्ष कर रहे हैं, लेकिन यह हो नहीं पा रहा है। आज हम ऐसी फिल्में बना रहे हैं जो हर जगह जा रही है।”
इसी बयान को आधार बनाकर बॉलीवुड अजय देवगन ने ट्विटर पर उन्हें टैग करते हुए लिखा, “मेरे भाई आपके अनुसार अगर हिंदी हमारी राष्ट्रीय भाषा नहीं है तो आप अपनी मातृभाषा की फिल्मों को हिंदी में डब कर के क्यो रिलीज़ करते हैं? हिंदी हमारी मातृभाषा थी, है और रहेगी। जन गण मन!”
.@KicchaSudeep मेरे भाई,
आपके अनुसार अगर हिंदी हमारी राष्ट्रीय भाषा नहीं है तो आप अपनी मातृभाषा की फ़िल्मों को हिंदी में डब करके क्यूँ रिलीज़ करते हैं?
हिंदी हमारी मातृभाषा और राष्ट्रीय भाषा थी, है और हमेशा रहेगी।
जन गण मन ।— Ajay Devgn (@ajaydevgn) April 27, 2022
इसके बाद दोनों तरफ़ से ट्विटर पर बयानबाजी चलती रही और फिर खत्म भी हो गई। लेकिन ट्विटर पर “हिंदी बनाम अन्य भाषा” की लड़ाई फिर शुरू हो गयी।
Translation & interpretations are perspectives sir. Tats the reason not reacting wothout knowing the complete matter,,,matters.:)
I don’t blame you @ajaydevgn sir. Perhaps it would have been a happy moment if i had received a tweet from u for a creative reason.
Luv&Regards❤️ https://t.co/lRWfTYfFQi— Kichcha Sudeepa (@KicchaSudeep) April 27, 2022
हिंदी VS अन्य : एक पुरानी बहस
“हिंदी बनाम अन्य भाषा” को लेकर बहस आजादी के बाद से ही उठते रही है। सरकार भी समय-समय पर इसे हवा देती रही है।
प्रतिष्ठित अंग्रेजी अख़बार “The Indian Express” में 09 अप्रैल 2022 के अंक में छपे एक खबर के अनुसार अभी हाल ही में गृह मंत्री अमित शाह ने ऑफिसियल भाषा की संसदीय कमिटी की मीटिंग में कहा था कि “वे सभी राज्य जो किसी भाषा मे बात करते हैं, उन्हें एक दूसरे से अंग्रेजी के बजाय हिंदी में बात-व्यवहार करना चाहिए।”
हालांकि, श्री शाह ने बाद में यह साफ़ किया कि हिंदी को अंग्रेजी के विकल्प के तौर पर देखा जाए ना कि क्षेत्रीय भाषाओं के विकल्प के तौर पर। उन्होंने यह भी कहा, हिंदी भाषा को अन्य क्षेत्रीय भाषा के शब्दों को शामिल कर के और लचीला बनाना चाहिए।
आपको बता दें, गृह मंत्री श्री शाह ने 2019 में भी ऐसा ही कुछ व्यक्तव्य दिया था जिसे लेकर राजनीतिक हलके में खूब चर्चा हुई थी।
हिंदी को लेकर यह बहस पिछले कई वर्षों में होती रही है कि क्या हिन्दी को “एक देश, एक भाषा” के तर्ज पर अन्य भारतीय भाषाओं पर थोपा जा रहा है??
संविधान क्या कहता है?
किच्चा सुदीप और अजय देवगन वाली ट्विटरबाज़ी में अजय देवगन ने हिंदी को भारत को राष्ट्रीय भाषा बता दिया, जबकि सच तो यही है कि भारत का संविधान किसी भी भाषा को “राष्ट्रभाषा” का दर्जा नहीं देता।
अब यह गलती अजय देवगन की नहीं है। दरअसल हम में से ज्यादातर लोग यही समझते हैं। बचपन में स्कूलों में कई दफ़ा यह पढ़ाया जाता है कि हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है। खासकर हिंदी-बाहुल्य इलाके में तो यह कॉमन बात है।
भारत का कोई राष्ट्रभाषा नहीं है बल्कि भारतीय संविधान के आठवीं अनुसूची के तहत 22 भाषाओं को मान्यता दी गई है. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 351 में यह जरूर कहा गया है कि भारत के संघ का यह कर्तव्य होगा कि वह हिंदी भाषा का प्रचार एवं उत्थान करें ताकि वह भारत की मिश्रित संस्कृति के सभी अंगों के लिए अभिव्यक्ति का माध्यम बन सके।”
क्या हिंदी से अन्य क्षेत्रीय भाषाओं को खतरा है?
भारत दुनिया का इकलौता ऐसा देश होगा जहाँ इस तरह की भाषाई-विविधता इस तरह से उपलब्ध है। जो भाषाएं हमे एक दूसरे से जोड़ती भी है तो एक दूसरे से अलग पहचान भी देती हैं।
हक़ीक़त यह है कि क्षेत्रीय भाषाओं को बिना नुकसान पहुँचाये हिंदी सीखी जा सकती है क्योंकि अंग्रेजी दुनियाभर में “लिंक भाषा” जरूर है; लेकिन यह भी सच्चाई है कि भारत में अंग्रेजी बोलने और समझने वालों की संख्या हिंदी-भाषी लोगों की तुलना में बहुत कम है। इसलिए तमिल, तेलगु, मलयालम आदि के भाषाई व्यापकता और उनके वजूद से समझौता किये बगैर हिंदी को सीखा जा सकता है।
यही बात उत्तर भारतीयों को भी सीखनी चाहिए। कन्नड़ बोलने वाला एक व्यक्ति इंग्लिश, हिंदी के साथ तमिल, तेलगु, मलयालम और कई बार तो मराठी भी जानता है। बहुभाषी होना हमेशा ही एक विशिष्ट गुण होता है और यह बात उत्तर भारतीयों को सीखनी चाहिए।
भारत इसी विभिन्नता में एकता का परिचायक रहा है, इसलिए किसी भी भाषा पर किसी अन्य भाषा को थोपा नहीं जा सकता। भारत एक लोकतांत्रिक देश है और ऐसे में कोई एक भाषा क्या कुछ भी थोपना अनुचित है।
महान अमेरिकी भाषाविद और अलास्का मूल भाषा के प्रस्तावक प्रोफेसर माइकल क्रॉस ने कहा था, ” जब आप एक भाषा को खो देते हैं और एक भाषा विलुप्त हो जाती है तो यह संग्रहालय जो बम से उड़ाने जैसा होता है।”
यह सच है एक भाषा का विलुप्त होना एक संस्कृति के विलुप्त होने जैसा होता है। ऐसे में तमिल, तेलगू, कन्नड़, मलयालम, बंगाली, उड़िया या कोई भी क्षेत्रीय भाषा को हिंदी के थोपे जाने से गुरेज़ या परहेज़ है।
अब यह अलग बहस हो सकती है कि यह हिंदी कैसी होगी.. बोलचाल या व्यावहारिक वाली या फिर किताबों और ग्रंथों वाली शुद्ध वर्तनी और व्याकरण से सुसज्जित हिंदी?