पाकिस्तान की मीडिया की ख़बरों के मुताबिक पाकिस्तान की एक वरिष्ठ अदालत ने मुंबई हमले के मास्टरमाइंड हफीज सईद के आतंकी संघठन जमात-उद-दावा और फलाह-इ-इंसानियत संस्थान को आतंकी सूची में से हटाने के लिए कहा था।
पाकिस्तान ने अंतर्राष्ट्रीय दबाव और अमेरिका के सैन्य सहायता राशि पर रोक लगाने के कारण आतंकी गुटों पर कार्रवाई शुरू की थी।
पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति ममनून हुसैन फ़रवरी 2018 में आतंक रोधी मसौदे पर हस्ताक्षर किये थे। संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद् ने पाकिस्तान के जमा-उद-दावा, फलाह-इ-इंसानियत, लश्कर-ए-तैयबा, तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान और लश्कर-ए-जांगवी पर प्रतिबन्ध लगाया था।
इस मुद्दे की सुनवाई के दौरान रजा रिजवान अब्बासी और सोहेल वार्रैच ने इस्लामाबाद अदालत को इत्तालाह किया कि पूर्व राष्ट्रपति का मसौदा बेजा था और इसे एक्ट में परिवर्तित करने के लिए कभी संसद में पेश नहीं किया गया था।
पाकिस्तान में प्रतिबंधित लश्कर-ए-तैयबा के सहसंस्थापक हाफिज सईद को साल 2009 से 2017 तक घर में नज़रबंद रखा गया था। अतंराष्ट्रीय विरोध के बावजूद हाफिज सईद को पाकिस्तान की एक अदालत ने रिहा कर दिया था।
मुंबई हमले के मास्टरमाइंड ने अदालत में याचिका दायर कर दावा किया कि वह एलईटी से सारे नाते तोड़ चुका है। उसने कहा कि भारत पुरानी गलतियों के दाग जमात-उद-दावा पर लगा रहा है।
5 सितम्बर को पाकिस्तान में राष्ट्रीय आतंक रोधी विभाग द्वारा जारी आतंकी संगठनों की सूची में 66 संगठनों पर प्रतिबन्ध लगाया गया है। अलबत्ता हफीज सईद की जमात-उद-दावा और फलाह-इ-इंसानियत का नाम उस फेरहिस्त में मौजूद नहीं है।
हफीज सईद के इन दो आतंकी संगठनों पर पाकिस्तान की धारा 11-डी-(1) के तहत नज़र रखी जाती है। भारत में हुए मुंबई आतंकी हमले में हफीज सईद का ही समर्थन था।
पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति नवाज़ शरीफ ने बयान दिया था कि मुंबई हमले के तार पाकिस्तान की सरजमीं से जुड़े हैं। इस बयान को देशद्रोही करार देते हुए याचिकाकर्ता अमीना मालिक ने अदालत में याचिका दायर की है। नवाज़ शरीफ पर इस बयान को लेकर मुकदमा चलाया जा रहा है।