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    सरदार सरोवर बाँध और नरेंद्र मोदी

    भारत एक संस्कृति और सभ्यता सम्पन्न देश है। भारत का इतिहास गौरवशाली रहा है और आज भी पूरा विश्व इसकी परम्पराओं और पौराणिकताओं का गुणगान करता है। पुराणों में देश की नदियों को देवी का दर्जा दिया गया है और उनके इस दैवीय रूप को आज हम मानव जीवन के लिए इनकी उपयोगिता से जोड़कर देखते हैं। आज भी देश की एक पीढ़ी ऐसी है जो गंगा, यमुना, घाघरा, नर्मदा, कावेरी जैसी नदियों को माँ मानती है और उन्हें पूजती है। पर धीरे-धीरे समय के साथ-साथ सबकुछ बदल गया और नदियों के राजनीतिकरण का दौर शुरू हो गया। आज भारत की राजनीति में नदियों की भूमिका बढ़ती जा रही है। 2014 के लोकसभा चुनावों के दौरान भाजपा ने गंगा की सफाई को प्रमुख चुनावी मुद्दों में से एक बनाया था और इसकी वजह से उसे अपार जनसमर्थन भी मिला था।

    गुजरात में नर्मदा नदी पर स्थित सरदार सरोवर बाँध एक बार फिर सुर्खियां बटोर रहा हैं। देश का सबसे ऊँचा बाँध होने के साथ-साथ यह देश का सबसे विवादास्पद बाँध भी है। देश के प्रथम प्रधानमंत्री पण्डित जवाहर लाल नेहरू ने 5 अप्रैल, 1961 को इस बाँध की आधारशिला रखी थी और इसके 56 वर्षों बाद देश के 15वें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 17 सितम्बर, 2017 को यह बाँध देश को समर्पित किया। बाँध के उद्घाटन कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सरदार पटेल, भीमराव अम्बेडकर को तो याद किया पर इस बाँध की आधारशिला रखने वाले पण्डित जवाहर लाल नेहरू का उन्होंने पूरे सम्बोधन के दौरान कहीं भी जिक्र नहीं किया। इसके बाद एक बार फिर से इस बात को लेकर बहस छिड़ गई कि क्या भाजपा सरदार सरोवर बाँध का इस्तेमाल अपने राजनीतिक फायदे के लिए कर रही है?

    दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा ग्रैविटी डैम है सरदार सरोवर बाँध

    नर्मदा नदी पर बना सरदार सरोवर बाँध कई मायनों में खास है। यह देश का सबसे ऊँचा बाँध है और आयतनिक भण्डारण क्षमता के आधार पर कंक्रीट से निर्मित यह दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा ग्रैविटी डैम है। सरदार सरोवर बाँध की आधार ऊँचाई 163 मीटर है और इसकी वास्तविक कार्यकारी ऊँचाई 138.68 मीटर है। इस बाँध की लम्बाई 1210 मीटर है और इसके स्पिलवे की प्रवाह क्षमता 84,949 घन मीटर/सेकण्ड है। यह बाँध 88,000 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। बाँध के रिजर्वायर की भण्डारण क्षमता 9,500,000,000 घन मीटर है और इसकी चालू भण्डारण क्षमता 5,800,000,000 घन मीटर है। बाँध की अधिकतम गहराई 140 मीटर है और औसतन यह 138 मीटर है। इस बाँध द्वारा कुल 1,450 मेगा वाट की बिजली का उत्पादन किया जाता है जो गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र को सप्लाई की जाती है।

    तीन राज्यों में फैला है सरदार सरोवर बाँध का जलग्रहण क्षेत्र

    नर्मदा पर बने सरदार सरोवर बाँध का जलग्रहण क्षेत्र काफी बड़ा है। यह मध्य और पश्चिमी भारत के 3 राज्यों में फैला हुआ है। सरदार सरोवर बाँध का जलग्रहण क्षेत्र दक्षिण पश्चिम में मध्य प्रदेश के अलीराजपुर जिले से शुरू होकर महाराष्ट्र के नंदुरबार होते हुए गुजरात के नर्मदा जिले तक फैला हुआ है। सरदार सरोवर बाँध का कुल जलग्रहण क्षेत्र 88,000 वर्ग किलोमीटर है और यह इजराइल, हांगकांग, मॉरीशस सरीखे विश्व के कई देशों से क्षेत्रफल में बड़ा है। क्षेत्रफल के लिहाज से यह भारत के सबसे बड़े जिले लद्दाख से भी बड़ा है। इस बाँध को बनाने का मुख्य उद्देश्य देश की बढ़ती ऊर्जा जरूरतों को पूरा करना और अक्सर सूखे की मार सहने वाले क्षेत्रों तक नहरों के मध्यम से सिंचाई की सुविधा उपलब्ध कराना था।

    80 के दशक में शुरू हुआ था विरोध

    नर्मदा पर बने सरदार सरोवर बाँध के निर्माण के दौरान जितने विरोध-प्रदर्शन हुए है उतने शायद ही कभी हुए हो। सरदार सरोवर बाँध का निर्माण पहले सिर्फ सिंचाई सुविधाएं उपलब्ध कराने के उद्देश्य से किया गया था। इस बाँध की सिंचाई क्षमता को बढ़ाने और इसे पनबिजली परियोजना के तौर पर विकसित करने की शुरुआत वर्ष 1979 में हुई थी। इस परियोजना को मूर्त रूप देने के लिए बाँध की ऊँचाई बढ़ाने की बात हुई जिसकी वजह से इलाकाई लोगों को जगह खाली करने को कहा गया। जलग्रहण क्षेत्र का दायरा बढ़ने के कारण हजारों इलाकाई लोगों को विस्थापित होने के लिए मजबूर होना पड़ा और उन्होंने इस परियोजना के खिलाफ देशव्यापी आन्दोलन छेड़ दिया। यही बाँध के विरोध की मुख्य वजह बना और 80 के दशक के अंत तक इस आन्दोलन ने वृहद रूप ले लिया था।

    नर्मदा बचाओ आन्दोलन

    सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटेकर और बाबा आमटे के नेतृत्व में 80 के दशक के अंत में नर्मदा बचाओ आन्दोलन की शुरुआत हुई थी। यह एक सामजिक आन्दोलन था जिसमें आदिवासियों, किसानों, पर्यावरणविदों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने हिस्सा लिया था। इस आन्दोलन का मुख्य उद्देश्य था गुजरात, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र राज्यों में नर्मदा नदी पर बन रहे बाँधों को रोकना। आजादी के बाद देश में जब विकास की बयार चली और ऊर्जा जरूरतों की कमी महसूस की गई तो देशभर में नदियों पर बाँध बनाने की परियोजना पर काम शुरू हुआ। इसी क्रम में नर्मदा नदी पर छोटे-बड़े 20 बाँधों के निर्माण को मंजूरी दी गई थी जिससे इन राज्यों के लोगों की सिंचाई और ऊर्जा जरूरतों को पूरा किया जा सके। नर्मदा बचाओ आन्दोलन को देश के हर वर्ग से व्यापक समर्थन मिला था।

    नर्मदा बचाओ आन्दोलन

    नर्मदा बचाओ आन्दोलन के लिए मेधा पाटेकर को वर्ष 1991 में राइट लाइवलीहुड अवार्ड से सम्मानित किया गया था। नर्मदा बचाओ आन्दोलन के मुख्य समर्थकों में बुकर पुरस्कार विजेता लेखिका अरुंधति रॉय, अभिनेता आमिर खान और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जैसी हस्तियां शामिल हैं। नर्मदा बचाओ आन्दोलन पर कई डॉक्यूमेंट्री फिल्में भी बनी है और 1995 में बनी “अ नर्मदा डायरी” नामक डॉक्यूमेंट्री फिल्म को सर्वश्रेष्ठ डॉक्यूमेंट्री फिल्म का अवार्ड भी मिल चुका है। लेखिका अरुंधति रॉय ने अपनी किताब कॉस्ट ऑफ लिविंग में नर्मदा बचाओ आन्दोलन का उल्लेख किया है। दिल्ली में राजघाट पर आयोजित नर्मदा बचाओ आन्दोलन की रैली में नीतीश कुमार ने हिस्सा लिया था और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अपील की थी कि वह बाँध के गेट बंद होने से विस्थापित हुए 2.5 लाख लोगों को आर्थिक सहायता देने की बजाय उनके पुनर्वास और जीवन-यापन का इंतजाम करें।

    गुजरात विधानसभा चुनावों से पहले भाजपा को मिला नर्मदा का आशीर्वाद

    नर्मदा नदी यूँ तो मध्य प्रदेश के अमरकंटक की पहाड़ियों से निकल कर महाराष्ट्र और गुजरात से बहते हुए अरब सागर में गिरती है पर यह राजस्थान के सीमावर्ती जिलों के लोगों और खेतों की भी प्यास बुझाती है। सरदार सरोवर बाँध से पैदा होने वाली पनबिजली मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र और राजस्थान में सप्लाई की जाएगी। सिंचाई के लिए सरदार सरोवर बाँध से मिलने वाले नर्मदा के पानी का इस्तेमाल नर्मदा नहर के मध्यम से गुजरात राज्य के 12 जिलों, 62 तालुकों और 3,393 गाँवों में किया जाएगा। गुजरात के 17,920 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल को नर्मदा के पानी से सींचा जाएगा जिसका 75 फीसदी क्षेत्र सूखा प्रभावित क्षेत्र में आता है। वहीं नर्मदा नहर के पानी से राजस्थान के 2 जिलों बाड़मेर और जालौर के 730 वर्ग किलोमीटर के भूमि की सिंचाई जरूरतें पूरी करेगा।

    महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश अपनी सिंचाई जरूरतों के लिए सरदार सरोवर बाँध पर निर्भर नहीं हैं पर यह बाँध दोनों राज्यों की ऊर्जा जरूरतें पूरी करेगा। वर्तमान में सरदार सरोवर बाँध पर पनबिजली परियोजना के माध्यम से 1,450 मेगा वाट की बिजली उत्पन्न की जा रही है। आगे इसे बढ़ाने का लक्ष्य रखा गया है। इलाकाई गाँवों की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए नर्मदा नहर पर सौर ऊर्जा प्लांट बनाए जा रहे है जो प्रति वर्ग किलोमीटर 1 मेगा वाट बिजली उत्पन्न करेंगे। गुजरात में विधानसभा चुनाव करीब है और सत्ताधारी भाजपा सरकार चुनावों के ठीक पहले सरदार सरोवर बाँध का उद्घाटन कर सौराष्ट्र और कच्छ के मतदाताओं को साधने का काम किया है। सरदार सरोवर बाँध को गुजरात की लाइफलाइन भी कहा जाता है और माना जा रहा है कि नर्मदा का आशीर्वाद पाकर राज्य में भाजपा का शासनकाल भी बढ़ जाएगा।

    मध्य प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों पर भी होगा असर

    सरदार सरोवर बाँध का असर ना केवल गुजरात की राजनीति पर होगा बल्कि इसका प्रत्यक्ष असर मध्य प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र की राजनीति पर भी देखने को मिलेगा। आगामी वर्ष राजस्थान और मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव है और 2019 में महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव होंगे। इन सभी चुनावों में सीमावर्ती जिलों की विधानसभा सीटों पर इस बाँध के शुरू होने का प्रत्यक्ष असर देखा जा सकेगा। यह भी संयोग की ही बात है कि इन चारों राज्यों में भाजपा सत्ताधारी दल है और केंद्र में भी भाजपा की ही सरकार है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर विपक्षी दल पहले से ही आरोप लगा रहे है कि वह सरदार सरोवर बाँध का इस्तेमाल भाजपा के राजनीतिक फायदे के लिए कर रहे हैं। सरदार सरोवर बाँध इन राज्यों के आगामी विधानसभा चुनावों पर बड़ा असर डालने वाला है और इसके सकारात्मक रहने के आसार नजर आ रहे हैं।

    अभी भी 30 फीसदी अधूरा है नर्मदा नहर का काम

    सरदार सरोवर बाँध का उद्घाटन समारोह विवादों की वजह से चर्चाओं में रहा। कांग्रेस पार्टी सरदार सरोवर बाँध का श्रेय लेना चाहती थी क्योंकि इस बाँध की आधारशिला पण्डित जवाहर लाल नेहरू ने रखी थी। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उद्घाटन समारोह के दौरान अपने सम्बोधन में कहीं भी पण्डित नेहरू का जिक्र नहीं किया। उन्होंने देश में जल क्रांति लाने का श्रेय बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर को दिया और सरदार पटेल की सोच को दूरदर्शी बताया। अपने सम्बोधन से नरेंद्र मोदी ने चिर परिचित अंदाज में जनता को लुभाया मगर बाँध की जमीनी हकीकत कुछ और ही है। ऊँचाई बढ़ाने से बाँध की जल भण्डारण क्षमता 1,565 मिलियन घन मीटर से बढ़कर 5,740 मिलियन घन मीटर हो गई है और आंकड़ों के हिसाब से अब बिजली उत्पादन के साथ-साथ सिंचाई क्षमता भी बढ़ेगी। लेकिन आंकड़ों की जमीनी हकीकत कुछ और ही कहानी बयाँ करती है।

    कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला का कहना है कि भाजपा के पिछले 22 सालों के शासनकाल में केवल 18,803 किलोमीटर की लम्बाई तक नहरों का निर्माण हुआ जबकि उनकी प्रस्तावित लम्बाई 90,389 किलोमीटर थी। आधिकारिक कागजात इस बात की पुष्टि भी करते हैं। नहरों के लिए सत्यापित किए गए 71,748 किलोमीटर की लम्बाई की जगह अभी तक सिर्फ 49,313 किलोमीटर की लम्बाई की नहरों का ही निर्माण हो सका है। आंकड़ों के लिहाज से नहर निर्माण काम का 30 फीसदी हिस्सा अभी अधूरा है। नहरों के माध्यम से 36,00,000 हेक्टेयर भूमि को सींचने का लक्ष्य था पर अभी तक 25,00,000 हेक्टेयर भूमि तक ही नहरें पहुँच पाई है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि चुनावी फायदे के लिए उठाए गया यह कदम क्या सरदार सरोवर बाँध को उसके निर्धारित सिंचाई लक्ष्यों तक पहुँचाने से रोक देगा?

    नर्मदा विस्थापितों की जगह स्मारक को प्राथमिकता

    जब कहीं भी विकास की बयार बहती है तो उसके अच्छे और बुरे दोनों स्वरुप होते हैं। पिछले 56 वर्षों से विवादों में रहे सरदार सरोवर बाँध के बनने के बाद आज देश को अपनी ऊर्जा जरूरतों और सिंचाई सुविधाओं के लिहाज से तो फायदा हुआ है पर इसकी कीमत लाखों लोगों ने बेघर होकर चुकाई है। सरकार नर्मदा विस्थापितों के लिए मुआवजे की बात करती है पर विस्थापितों के सामने मुख्य समस्या यह है कि वह मुआवजे की रकम से क्या-क्या करे? चाहे एक फूस की झोपड़ी हो या कोई आलीशान महल, घर की असली कीमत वही जानता है जिसने कभी अपना घर गंवाया हो। आज केंद्र सरकार नर्मदा विस्थापितों के कल्याण के लिए नहीं सोच रही है बल्कि एक समाज विशेष के समर्थन पाने और एक दल को नीचे दिखने के लिए हजारों करोड़ों रुपए किसी स्मारक बनाने में खर्च कर रही है।

    सत्ता में आने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सरदार पटेल की अहमियत को बढ़ाना शुरू किया। निश्चित तौर पर सरदार पटेल ने स्वतंत्रता संग्राम से लेकर आजादी के बाद रियासतों के विलय तक में अहम भूमिका निभाई थी और इसी वजह से उन्हें लौह पुरुष कहा गया। उनके व्यक्तित्व की हर बात काबिलेतारीफ थी पर अब उस पर आधारित राजनीति करना सही नहीं है। 31 अक्टूबर, 2014 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सरदार पटेल के जन्मदिवस पर वड़ोदरा में नर्मदा बाँध के निकट उनकी विशाल प्रतिमा और स्मारक के कार्य की शुरुआत की। सरदार पटेल की यह प्रतिमा 182 मीटर ऊँची होगी और यह विश्व की सबसे ऊँची प्रतिमा होगी। यह पूरा स्मारक 20,000 वर्ग मीटर क्षेत्र में फैला होगा और इसके लिए 12 वर्ग किलोमीटर में फैली एक कृत्रिम झील बनाई जाएगी।

    स्टैच्यू ऑफ यूनिटी सरदार पटेल

    इस पूरी परियोजना की लागत 3,000 करोड़ रुपए अनुमानित है। यह बहुत बड़ी राशि होती है और अगर यह राशि नर्मदा विस्थापितों के ऊपर खर्च की जाती तो उन्हें पुनः बसाकर उनके जीविकोपार्जन के लिए उद्योग-धंधे स्थापित करने के लिए पर्याप्त होती। सरदार पटेल ने देश को एकता के सूत्र में बाँधा था और उनकी मूर्ति को “स्टैच्यू ऑफ यूनिटी” का नाम दिया गया है। मोदी सरकार को सरदार पटेल के व्यक्तित्व का गुणगान ना करके उसका अनुसरण भी करना चाहिए था और इस राशि का उपयोग नर्मदा विस्थापितों को बसाने में करना चाहिए था। एक विश्व रिकॉर्ड अपने नाम कराने की चाहत में अपने लाखों लोगों को हाशिए पर धकेल देना किसी भी लिहाज से सही नहीं है। अगर अब भी मोदी सरकार अपने इस ड्रीम प्रोजेक्ट के साथ-साथ नर्मदा विस्थापितों को बसाने का काम भी शुरू कर दे तो यह सबके हित में होगा। लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल को यह राष्ट्र की तरफ से सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

    By हिमांशु पांडेय

    हिमांशु पाण्डेय दा इंडियन वायर के हिंदी संस्करण पर राजनीति संपादक की भूमिका में कार्यरत है। भारत की राजनीति के केंद्र बिंदु माने जाने वाले उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले हिमांशु भारत की राजनीतिक उठापटक से पूर्णतया वाकिफ है।मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक करने के बाद, राजनीति और लेखन में उनके रुझान ने उन्हें पत्रकारिता की तरफ आकर्षित किया। हिमांशु दा इंडियन वायर के माध्यम से ताजातरीन राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर अपने विचारों को आम जन तक पहुंचाते हैं।