पिछले कुछ वक्त से हिमाचल प्रदेश कांग्रेस में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा था। हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह कांग्रेस आलाकमान से नाराज चल रहे थे और इस सम्बन्ध में उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी को पत्र भी लिखा था। कांग्रेस आलाकमान इस विषयय पर गंभीर होता दिख रहा है। आलाकमान के बुलावे पर हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने शुक्रवार को कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी से मुलाकात की। सूत्रों की माने तो वीरभद्र सिंह ने कांग्रेस आलाकमान के फॉर्मूले को स्वीकार कर लिया है। ऐसे में यह उम्मीद बँध गई है कि आगामी विधानसभा चुनावों से पूर्व हिमाचल कांग्रेस एकजुट हो सकती है और वीरभद्र सिंह के नेतृत्व में सियासी दंगल में उतर सकती है। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी आगामी अक्टूबर महीने की 7 तारीख को मंडी में एक बड़ी रैली कर कांग्रेस के चुनावी अभियान का श्रीगणेश करेंगे।
बता दें कि हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुखविंदर सिंह में काफी समय से तानातानी चल रही थी। मौजूदा कांग्रेस सरकार के 27 विधायकों ने वीरभद्र सिंह को अपना नेता माना था और उनके समर्थन में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी को चिट्ठी लिखी थी। उन्होंने हिमाचल प्रदेश का विधानसभा चुनाव वीरभद्र सिंह के नेतृत्व में लड़ने की बात कही थी। वीरभद्र सिंह को कई अन्य वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं का भी साथ मिला था जिसके बाद हिमाचल कांग्रेस में फूट के आसार नजर आ रहे थे। राहुल गाँधी से मुलाकात के दौरान पार्टी महासचिव और हिमाचल कांग्रेस प्रभारी सुशील कुमार शिंदे और कांग्रेस की प्रभारी सचिव एवं सांसद रंजीता रंजन भी मौजूद थी। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी ने स्पष्ट किया कि टिकट बँटवारे वीरभद्र सिंह के अनुसार हो होगा पर सुखविंदर सिंह हिमाचल कांग्रेस के अध्यक्ष बने रहेंगे।
हिमाचल भवन में हुई गहन चर्चा
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी से मुलाकात के बाद हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह प्रदेश कांग्रेस प्रभारी सुशील कुमार शिंदे और सांसद रंजीता रंजन के साथ हिमाचल भवन पहुँचे। हिमाचल भवन में इन तीनों नेताओं ने आगामी विधानसभा चुनावों के लिए रणनीति पर गहन चर्चा की और टिकट बँटवारे को लेकर भी बात हुई। हिमाचल भवन में इन तीनों नेताओं की बैठक करीब दो घंटे तक चली। वहाँ से निकलते वक्त हिमाचल कांग्रेस प्रभारी सुशील कुमार शिंदे मीडिया से रूबरू हुए और उन्होंने बताया कि सभी मतभेदों को सुलझा लिया गया है। हिमाचल कांग्रेस मे अब किसी तरह का कोई मतभेद नहीं है। उन्होंने कहा कि वीरभद्र सिंह और सुखविंदर सिंह के बीच के सभी मतभेद दूर हो चुके हैं। टिकट वितरण वीरभद्र सिंह के अनुसार होगा। आगामी 7 अक्टूबर को राहुल गाँधी मंडी में एक रैली को सम्बोधित करेंगे और कांग्रेस का चुनावी खाका पेश करेंगे।
आलाकमान से नाराज चल रहे थे वीरभद्र सिंह
चुनाव आयोग के पूर्वानुमानों के हिसाब से नवंबर में हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं। एक के बाद एक कांग्रेस की राज्य इकाईयों में हो रही बगावत में अगला नाम हिमाचल प्रदेश का जुड़ा था। हिमाचल प्रदेश में प्रस्तावित विधानसभा चुनावों के ठीक पहले कांग्रेस पार्टी दो धड़ों में बँटती नजर आ रही थी। प्रदेश सरकार और कांग्रेस संगठन की आतंरिक लड़ाई खुलकर सामने आ गई थी। हिमाचल कांग्रेस के वरिष्ठतम नेता और मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुखविंदर सिंह से मतभेद थे और वह कांग्रेस आलाकमान पर खुलकर हमला बोल रहे थे। पार्टी आलाकमान से अपनी नाराजगी व्यक्त करते हुए मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने कहा था कि कांग्रेस पार्टी अपनी पूर्ववर्ती नीतियों से “अलग दिशा में” आगे बढ़ रही है। उन्होंने पार्टी को चेताया था कि मनमाफिक तरीके से चयन करने का यह तरीका पार्टी का खात्मा कर देगा।
कुल्लू जिले के निरमंड में एक जनसभा को सम्बोधित करते हुए उन्होंने कहा था कि पार्टी नेतृत्व को सोचने और कामकाज करने के तरीकों में बदलाव लाने की जरुरत है। कांग्रेस कारोबारियों की पार्टी नहीं है। कांग्रेस का आधार देश की आजादी के लिए अपना जीवन कुर्बान करने वाले लोगों से जुड़ा है। वीरभद्र सिंह कांग्रेस के सबसे वरिष्ठतम सदस्यों में से एक हैं और वह जवाहर लाल नेहरू के समय से ही कांग्रेस से जुड़े हैं। बता दें कि हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुखविंदर सिंह से मतभेद चल रहे थे और इस बाबत उन्होंने कांग्रेस सुप्रीमो सोनिया गाँधी को चिट्ठी भी लिखी थी। उनके पीछे 27 विधायकों ने उनके समर्थन में कांग्रेस सुप्रीमो को चिट्ठी लिखी थी और वीरभद्र सिंह के नेतृत्व में चुनाव लड़ने की बात कही थी।
वीरभद्र सिंह को नेता चुन 27 विधायकों ने लिखी थी सोनिया गाँधी को चिट्ठी
नाराजगी स्वरुप लिखी चिट्ठी में कांग्रेस के कद्दावर नेता और हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने राज्य के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुखविंदर सिंह के खिलाफ नाराजगी जताई थी। हिमाचल कांग्रेस के 27 विधायकों ने इसका समर्थन किया था। उन्होंने कहा था कि आगामी विधानसभा चुनाव वो वीरभद्र सिंह के नेतृत्व में ही लड़ेंगे। इस मसले पर शिमला में कांग्रेसी विधायकों की बैठक भी हुई थी। बैठक में यह तय किया गया था कि वीरभद्र सिंह जैसे कद और व्यक्तित्व वाला कोई भी नेता हिमाचल प्रदेश में नहीं है। ऐसे में उनके बिना विधानसभा चुनावों में जीत हासिल नहीं की जा सकती। विधायकों ने कहा था कि पार्टी आलाकमान को इस मसले को सुलझाना होगा और विधानसभा चुनावों में पार्टी की बागडोर वीरभद्र सिंह को सौंपनी होगी।
कांग्रेसी दिग्गजों ने किया था वीरभद्र सिंह का समर्थन
हिमाचल कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओं ने मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह का समर्थन किया था। पार्टी विधायकों की बैठक में उन्होंने वीरभद्र सिंह को अपना नेता माना था और खुले तौर पर कहा था कि आगामी विधानसभा चुनाव वे वीरभद्र सिंह के नेतृत्व में ही लड़ेंगे। वीरभद्र सिंह ने चेतावनी देते हुए कहा था कि अगर कांग्रेस आलाकमान इस मसले पर उनका साथ नहीं देता है तो वह चुनाव नहीं लड़ेंगे और अपने समर्थकों को भी नहीं लड़ने देंगे। इससे हिमाचल कांग्रेस में बगावत के आसार नजर आने लगे थे। 24 अगस्त को मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह द्वारा कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी को लिखी गई चिठ्ठी के बाद अगले ही दिन कांग्रेस विधायकों ने बैठक की थी। उसके उपरान्त 27 विधायकों ने अपने हस्ताक्षर वाली चिट्ठी वीरभद्र सिंह की चिट्ठी के साथ कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी को भेजी थी। वीरभद्र सिंह का समर्थन करने वालों में हिमाचल कांग्रेस की वरिष्ठ नेता आशा कुमारी, विद्या स्टोक्स और जी एस बाली के नाम शामिल थे।
अनुराग ठाकुर पर दांव खेलने की तैयारी में थी भाजपा
भाजपा हिमाचल प्रदेश में भाजयुमो के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और हमीरपुर से सांसद अनुराग ठाकुर को आगे कर करने की फिराक में थी। अनुराग ठाकुर की अपनी अलग राष्ट्रीय पहचान है और वह बीसीसीआई के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। वह देशभर के युवाओं में लोकप्रिय हैं और हिमाचल में भी काफी लोकप्रिय हैं। उनकी पृष्ठभूमि भी राजनीतिक है और वह हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके प्रेम कुमार धूमल के बेटे हैं। ऐसे में अनुराग ठाकुर की उम्मीदवारी पर किसी को ऐतराज भी नहीं होता। भाजपा पिछले कुछ समय से युवाओं को राजनीति में आगे कर रही है। देवेंद्र फडणवीस, योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाए जाना इसका प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। अनुराग ठाकुर भी इसी आयुवर्ग से आते हैं। हिमाचल कांग्रेस में मची अन्तर्कलह कांग्रेस को कमजोर कर रही थी। मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे हुए हैं। ऐसे में भाजपा अनुराग ठाकुर को आगे कर हिमाचल प्रदेश में सत्ता पाने के लिए “यूथ कार्ड” खेलने की फिराक में थी।
भाजपा की उम्मीदों को लगेगा झटका
हिमाचल प्रदेश में सत्ताधारी दल कांग्रेस में मची अन्तर्कलह का फायदा भाजपा उठाना चाहती थी। इसके लिएर भाजपा बाकायदा रणनीति तैयार कर चुकी थी। हमीरपुर सांसद और हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के बेटे अनुराग ठाकुर के कन्धों को इसीलिए भाजयुमो के अध्यक्ष पद के भार से मुक्त किया गया था ताकि भाजपा हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनावों में उनकी लोकप्रियता को भुना सके। हिमाचल प्रदेश की मौजूदा कांग्रेस सरकार का कार्यकाल भी बहुत प्रभावी नहीं रहा है। कांग्रेस आलाकमान और हिमाचल सरकार में जारी मतभेद भी भाजपा का पक्ष मजबूत कर रहे थे। लेकिन मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी से मुलाकात के बाद कांग्रेस के लिए सियासी हालात सामान्य होते नजर आ रहे हैं पर भाजपा की मुश्किलें अब और बढ़ गई हैं। अब भाजपा को विधानसभा चुनावों से पूर्व पुनः एकजुट हो रहे हिमाचल कांग्रेस की मजबूत चुनौती का सामना करना पड़ेगा।