Fri. Mar 29th, 2024
    विधानसभा चुनाव

    देश के कई राज्यों में विधानसभा चुनाव प्रस्तावित हैं। चुनाव आयोग अक्टूबर मध्य तक चुनाव तिथियों की घोषणा कर सकता है। माना जा रहा है कि हिमाचल प्रदेश में नवंबर और गुजरात में दिसंबर में विधानसभा चुनाव होंगे। उम्मीद है कि देश की 4 लोकसभा सीटों पर प्रस्तावित उपचुनाव भी इनके साथ ही निपटाए जायेंगे। हालाँकि इस बारे में कुछ भी स्पष्ट तभी कहा जा सकेगा जब चुनाव आयोग कोई अधिसूचना जारी करे। सूत्रों के अनुसार हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव एक चरण में कराए जाएंगे वहीं गुजरात में चुनाव दो चरण में होंगे। गुजरात विधानसभा चुनावों में वीवीपीएटी मशीनों का इस्तेमाल होगा। गोवा के बाद गुजरात देश का दूसरा ऐसा राज्य होगा जहां चुनावों में वीवीपीएटी मशीनों का इस्तेमाल होगा।

    जागरूकता अभियान चलाएगा चुनाव आयोग

    गुजरात के मुख्य निर्वाचन अधिकारी बी बी स्वाइन ने कहा कि राज्य के सभी 50,128 मतदान केंद्रों पर वीवीपीएटी मशीनों का इस्तेमाल होगा। उन्होंने कहा कि गुजरात के मतदाता वीवीपीएटी के इस्तेमाल के तौर-तरीके से अनभिज्ञ हैं इसलिए चुनाव आयोग जागरूकता अभियान चलाएगा। उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग सभी जिला मुख्यालयों पर जागरूकता अभियान चलाएगा और राजनीतिक दलों और मीडियकर्मियों को मशीन के इस्तेमाल की प्रस्तुति देगा। बी बी स्वाइन ने कहा कि सार्वजनिक स्थानों और शैक्षणिक संस्थानों में मतदाताओं के लिए हम एक वाहन में मतदान केंद्र लगाकर उनके समक्ष प्रस्तुति देंगे। गुजरात गोवा के बाद देश का दूसरा ऐसा राज्य बनेगा जहाँ विधानसभा चुनाव पूर्णतः वीवीपीएटी मशीनों से होंगे। बीते दिनों तेलंगाना में हुए विधानसभा उपचुनावों में भी वीवीपीएटी मशीनों का उपयोग हुआ था।

    4 सीटों पर होंगे लोकसभा उपचुनाव

    विधानसभा चुनावों के साथ चुनाव आयोग देश की 4 लोकसभा सीटों पर उपचुनाव की अधिसूचना जारी कर सकता है। इनमे से दो सीटें उत्तर प्रदेश की हैं वहीं दो सीटें राजस्थान की हैं। इन सभी लोकसभा सीटों पर भाजपा का कब्जा था। उत्तर प्रदेश की गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा सीटें भाजपा सांसदों योगी आदित्यनाथ और केशव प्रसाद मौर्य के इस्तीफे के कारण खाली हुई हैं वहीं राजस्थान की दोनों सीटें भाजपा नेताओं के निधन से खाली हुई हैं। राजस्थान की खाली हुई सीटों में अजमेर और अलवर शामिल है। उम्मीद है कि राजस्थान कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट अजमेर की सीट से दावेदारी पेश करेंगे। वहीं बसपा सुप्रीमो मायावती फूलपुर लोकसभा सीट से चुनावी दंगल में उतर सकती है। गोरखपुर की सीट पर भाजपा किसी ब्राह्मण चेहरे को उतार सकती है वहीं अलवर से उम्मीदवारी को लेकर अभी स्थिति स्पष्ट नहीं है।

    फूलपुर से दावेदारी ठोंक सकती है मायावती

    बसपा सुप्रीमो मायावती आजकल सूबे में बसपा का खोया जनाधार तलाशने में जुटी हुई हैं। 18 सितम्बर को बसपा सुप्रीमो मायावती ने बसपा के गढ़ कहे जाने वाले पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरठ में शक्ति प्रदर्शन के लिए विशाल रैली का आयोजन किया था। इस रैली में भारी-भरकम भीड़ जुटाकर बसपा सुप्रीमो ने विरोधियों को यह दिखा दिया कि बसपा का जनाधार अभी खिसका नहीं है। बसपा की यह रैली सफल रही थी और अनुमानतः 5 लाख लोगों के इसमें शामिल होने की बात कही जा रही है। बसपा सुप्रीमो मायावती ने इस रैली के माध्यम से विपक्षी पार्टियों को भी बसपा की ताकत का सन्देश दिया और मंच से लोकसभा उपचुनावों में अपनी उम्मीदवारी का संकेत भी दिया था। मायावती के राज्यसभा इस्तीफे को शुरुआत से ही लोकसभा उपचुनावों से जोड़कर देखा जा रहा था।

    मायावती और केशव प्रसाद मौर्य
    फूलपुर उपचुनावों में उतर सकती है मायावती

    फूलपुर की लोकसभा सीट पर दलित, अल्पसंख्यक और पिछड़े तबके का बड़ा जनाधार है और वर्तमान हालातों में बसपा सुप्रीमो मायावती एक मजबूत दावेदार बन सकती हैं। यह सीट बसपा के लिए काफी मायने रखती है और यहाँ से बसपा संस्थापक कांशीराम ने 1996 में चुनाव भी लड़ा था। हालाँकि उन्हें सपा के जंग बहादुर पटेल हाथों 16 हजार से अधिक मतों से शिकस्त खानी पड़ी थी। राज्यसभा सदस्यता से इस्तीफा देने के बाद बसपा सुप्रीमो मायावती सूबे में संगठन मजबूत करने में जुटी हुई थी और ऐसे में फूलपुर के संभावित उपचुनाव बसपा के लिए संजीवनी का काम कर सकते हैं। वर्तमान परिदृश्य और जातीय वोटों के गणित के हिसाब से मायावती फूलपुर लोकसभा सीट से भाजपा के खिलाफ सबसे मजबूत उम्मीदवार हैं और उनकी उम्मीदवारी की दशा में विपक्ष के लिए जीत के हालात बन सकते हैं।

    गोरखपुर में हिन्दू कार्ड खेलेगी भाजपा

    योगी आदित्यनाथ के उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने के साथ ही यह स्पष्ट हो गया था कि तकरीबन दो दशकों बाद गोरखपुर को एक नया जन प्रतिनिधि मिलेगा। इस सीट पर कई दशकों से भाजपा का कब्जा है और इसे पूर्वांचल में भाजपा का गढ़ माना जाता है। इस सीट पर सवर्ण मतदाताओं का बड़ा जनाधार है और ऐसे में यहाँ के उपचुनावों के एकतरफा रहने की उम्मीद है। दशकों से भाजपा इस सीट पर बड़ी जीत हासिल करती आई है और विपक्षी दलों के पास इस वक्त ऐसा कोई चेहरा नहीं है जो भाजपा को टक्कर दे सके। यह बात तो तय है कि इस सीट पर भाजपा के उम्मीदवार चयन करने में योगी आदित्यनाथ का प्रत्यक्ष हस्तक्षेप होगा और इसका असर चुनाव परिणाम पर भी देखने को मिलेगा।

    योगी आदित्यनाथ
    गोरखपुर में हिन्दू कार्ड खेलेगी भाजपा

    सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ 1998 में गोरखपुर संसदीय सीट से लोकसभा सांसद बने थे। वह तब से 5 बार गोरखपुर सीट का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। उनकी लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनके प्रतिद्वंदी कभी उनके आधे मतों तक नहीं पहुँच सके हैं। उन्होंने बतौर सांसद अपने कार्यकाल के दौरान इस क्षेत्र के विकास के लिए बहुत से कार्य किए हैं। वह देश में हिंदुत्व राजनीति के सबसे बड़े चेहरों में से एक हैं। गोरखपुर और पूर्वांचल के कई जिलों में उनकी संस्था सामजिक कल्याण के कई कार्यक्रम चलाती है। भाजपा जातिगत समीकरणों को साधने के लिए गोरखपुर से कोई ब्राह्मण उम्मीदवार मैदान में उतर कर हिंदुत्व कार्ड खेल सकती है। ऐसे में दशकों से भगवा रंग में रंगे गोरखपुर लोकसभा सीट के किसी अन्य रंग में रंगने की अपेक्षा करना सरासर बेमानी होगी।

    भाजपा के हाथ से निकल सकता है अजमेर

    2014 के लोकसभा चुनावों के दौरान भाजपा ने राजस्थान में मिशन-25 पर अपना ध्यान लगाया था। मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के कुशल नेतृत्व और मोदी लहार का फायदा उठाकर भाजपा राजस्थान में क्लीन स्वीप करने में सफल रही थी। अजमेर से युवा कांग्रेस नेता सचिन पायलट पिछले चुनावों से अधिक मत पाने के बावजूद भाजपा के सांवर लाल जाट से हार गए थे। देश की आजादी के बाद से राजस्थान में यह कांग्रेस का सबसे लचर प्रदर्शन था। हालाँकि उसके बाद सचिन पायलट ने बतौर राजस्थान कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष अपनी जिम्मेदारी बखूबी संभाली और हर छोटे-बड़े मुद्दों पर भाजपा सरकार को निशाने पर लिए रखा। प्रदेश के युवाओं में उनकी अच्छी-खासी लोकप्रियता है और निःसंदेह रूप से वह गुर्जर समाज के सबसे बड़े नेता हैं। वसुंधरा सरकार की घटती लोकप्रियता और जनता के बीच मजबूत होती पकड़ सचिन पायलट को पुनः अजमेर के प्रतिनिधित्व का मौका दे सकती है।

    सचिन पायलट
    भाजपा के हाथ से निकल सकता है अजमेर

    गुजरात में आसान नहीं है भाजपा के लिए इतिहास दोहराना

    भाजपा पिछले 19 सालों से गुजरात की सत्ता पर काबिज है। इन 19 सालों में से 13 साल नरेंद्र मोदी ने बतौर मुख्यमंत्री गुजरात का कार्यभार सँभाला है। उनके नेतृत्व में गुजरात में भाजपा की लोकप्रियता बढ़ती गई थी और धीरे-धीरे गुजरात भाजपा का गढ़ बन गया। कांग्रेस भाजपा के अभेद्द्य दुर्ग बन चुके गुजरात में सेंधमारी करने की फिराक में है और वह इसके लिए हर संभव कोशिश कर रही है। कभी भाजपा का परंपरागत वोटबैंक रहा पाटीदार समाज आजकल भाजपा से नाराज चल रहा है और कांग्रेस इसका फायदा उठाना चाहती है। पाटीदार समाज गुजरात के 70 विधानसभा सीटों पर अपना प्रभाव रखता है और इसी वजह से कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी ने अपने गुजरात दौरे के दौरान पाटीदार आन्दोलन के अगुआ रहे हार्दिक पटेल से मुलाकात की थी। नवरात्रि के दौरान यात्रा कर राहुल गाँधी ने सॉफ्ट हिंदुत्व कार्ड भी खेला है। अब यह देखना है कि वह वोटरों को लुभाने में कितना सफल रहते हैं।

    गुजरात विधानसभा चुनाव
    भाजपा का सियासी गणित बिगाड़ सकता है जातीय आन्दोलन

    नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद गुजरात में हालात बदल गए। नरेंद्र मोदी ने आनंदीबेन पटेल को गुजरात का मुख्यमंत्री बनाकर महिला सशक्तिकरण का नारा बुलंद किया पर वह लोकप्रियता हासिल करने में नाकाम रही। 75 वर्ष की उम्र पार करने के बाद आनंदीबेन पटेल ने मुख्यमंत्री पद त्याग दिया और भाजपा आलाकमान ने विजय रुपाणी को गुजरात का मुख्यमंत्री बना दिया। आंनदीबेन पटेल की तरह विजय रुपाणी भी बतौर मुख्यमंत्री गुजरात में लोकप्रिय नहीं हैं। दरअसल प्रत्यक्ष रूप से इसमें इनकी गलती भी नहीं है। नरेंद्र मोदी के शासनकाल के दौरान गुजरात में उनके अलावा अगर कोई भाजपा का सशक्त चेहरा था तो वह थे उनके दाहिने हाथ कहे जाने वाले अमित शाह। अमित शाह भी इसी वर्ष राज्यसभा सांसद निर्वाचित होकर दिल्ली जा चुके हैं। इन दोनों दिग्गजों के पीछे भाजपा का अभेद्द्य दुर्ग बन चुके गुजरात में कांग्रेस सेंधमारी करने की फिराक में है। इसके लिए वह हर मुमकिन कोशिश कर रही है और हर ओर हाथ-पाँव मार रही है।

    हिमाचल में बगावत से जूझ रही है कांग्रेस

    आलाकमान के खिलाफ खुलकर बोल रहे हैं वीरभद्र

    वीरभूमि के नाम से प्रसिद्द हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की सरकार है। चुनाव आयोग से मिले संकेतों के हिसाब से नवंबर में हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं और उसके ठीक पहले पार्टी दो धड़ों में बँटती नजर आ रही है। प्रदेश सरकार और कांग्रेस संगठन की आतंरिक लड़ाई अब खुलकर सामने आ गई है। हिमाचल कांग्रेस के वरिष्ठतम नेता और मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह कांग्रेस आलाकमान पर खुलकर हमला बोल रहे हैं। पार्टी आलाकमान से अपनी नाराजगी व्यक्त करते हुए मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने कहा था कि कांग्रेस पार्टी अपनी पूर्ववर्ती नीतियों से “अलग दिशा में” आगे बढ़ रही है। उन्होंने पार्टी को चेताया था कि मनमाफिक तरीके से चयन करने का यह तरीका पार्टी का खात्मा कर देगा।

    वीरभद्र सिंह
    मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह

    कुल्लू जिले के निरमंड में एक जनसभा को सम्बोधित करते हुए उन्होंने कहा था कि पार्टी नेतृत्व को सोचने और कामकाज करने के तरीकों में बदलाव लाने की जरुरत है। कांग्रेस कारोबारियों की पार्टी नहीं है। कांग्रेस का आधार देश की आजादी के लिए अपना जीवन कुर्बान करने वाले लोगों से जुड़ा है। बता दें कि हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुखविंदर सिंह से मतभेद हैं और इस बाबत उन्होंने कांग्रेस सुप्रीमो सोनिया गाँधी को चिट्ठी भी लिखी थी। उनके पीछे 27 विधायकों ने उनके समर्थन में कांग्रेस सुप्रीमो को चिट्ठी लिखी थी और वीरभद्र सिंह के नेतृत्व में चुनाव लड़ने की बात कही थी।

    27 विधायकों ने वीरभद्र सिंह को माना था नेता

    नाराजगी स्वरुप लिखी चिट्ठी में कांग्रेस के कद्दावर नेता और हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने राज्य के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुखविंदर सिंह के खिलाफ नाराजगी जताई थी। कांग्रेस के 27 विधायकों ने इसका समर्थन किया था। उन्होंने कहा था कि आगामी विधानसभा चुनाव वो वीरभद्र सिंह के नेतृत्व में ही लड़ेंगे। इस मसले पर शिमला में कांग्रेसी विधायकों की बैठक भी हुई थी। बैठक में यह तय किया गया था कि वीरभद्र सिंह जैसे कद और व्यक्तित्व वाला कोई भी नेता हिमाचल प्रदेश में नहीं है। ऐसे में उनके बिना विधानसभा चुनावों में जीत हासिल नहीं की जा सकती। विधायकों ने कहा था कि पार्टी आलाकमान को इस मसले को सुलझाना होगा और विधानसभा चुनावों में पार्टी की बागडोर वीरभद्र सिंह को सौंपनी होगी।

    मिला था दिग्गजों का समर्थन

    हिमाचल कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओं ने मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह का समर्थन किया था। पार्टी विधायकों की बैठक में उन्होंने वीरभद्र सिंह को अपना नेता माना था और खुले तौर पर कहा था कि आगामी विधानसभा चुनाव वे वीरभद्र सिंह के नेतृत्व में ही लड़ेंगे। 24 अगस्त को मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह द्वारा कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी को लिखी गई चिठ्ठी के बाद अगले ही दिन कांग्रेस विधायकों ने बैठक की थी। उसके उपरान्त 27 विधायकों ने अपने हस्ताक्षर वाली चिट्ठी वीरभद्र सिंह की चिट्ठी के साथ कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी को भेजी थी। वीरभद्र सिंह का समर्थन करने वालों में हिमाचल कांग्रेस की वरिष्ठ नेता आशा कुमारी, विद्या स्टोक्स और जी एस बाली के नाम शामिल थे।

    हिमाचल में अनुराग ठाकुर पर दांव खेल सकती है भाजपा

    भाजपा हिमाचल प्रदेश में भाजयुमो के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और हमीरपुर से सांसद अनुराग ठाकुर को आगे कर सकती है। अनुराग ठाकुर की अपनी अलग राष्ट्रीय पहचान है और वह बीसीसीआई के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। वह देशभर के युवाओं में लोकप्रिय हैं और हिमाचल में भी काफी लोकप्रिय हैं। उनकी पृष्ठभूमि भी राजनीतिक है और वह हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके प्रेम कुमार धूमल के बेटे हैं। ऐसे में अनुराग ठाकुर की उम्मीदवारी पर किसी को ऐतराज भी नहीं होगा। भाजपा पिछले कुछ समय से युवाओं को राजनीति में आगे कर रही है। देवेंद्र फडणवीस, योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाए जाना इसका प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। अनुराग ठाकुर भी इसी आयुवर्ग से आते हैं। हिमाचल कांग्रेस में मची अन्तर्कलह कांग्रेस को कमजोर कर रही है। मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे हुए हैं। ऐसे में भाजपा अनुराग ठाकुर को आगे कर हिमाचल प्रदेश में सत्ता पाने के लिए “यूथ कार्ड” खेल सकती है।

    अनुराग ठाकुर
    हिमाचल में अनुराग ठाकुर पर दांव खेल सकती है भाजपा

    2019 के लोकसभा चुनावों से पहले होने वाले सभी चुनाव केंद्र की सत्ताधारी मोदी सरकार के साथ-साथ विपक्ष के लिए भी महत्वपूर्ण हैं। कहीं पलड़ा भाजपा के पक्ष में झुकता नजर आ रहा हैं तो कहीं बाजी विपक्ष की तरफ जाती दिख रही हैं। गुजरात में जातीय आन्दोलन के चलते भाजपा बैकफुट पर है वहीं हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस अन्तर्कलह से परेशान है। हाल ही में देशभर में शुरू हुए मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों के आलोचनाओं के दौर का असर भी आगामी चुनावों पर दिखेगा। उत्तर प्रदेश और राजस्थान में होने वाले लोकसभा उपचुनाव केंद्र की सत्ताधारी मोदी सरकार के साथ-साथ राज्य में सत्तासीन भाजपा सरकार के लोकप्रियता की बानगी भी पेश करेंगे। उत्तर प्रदेश में भाजपा के कार्यकाल का अभी 6 महीने का ही वक्त गुजरा हैं वहीं राजस्थान में वसुंधरा सरकार का कार्यकाल पूरा होने में 1 साल का वक्त बचा हैं। लोकसभा उपचुनावों के परिणाम ही यह तय करेंगे कि दोनों राज्यों में प्रचण्ड बहुमत से सत्ता में आई भाजपा सरकार लोगों की उम्मीदों पर खरा उतरने में किस हद तक सफल रही है।

    By हिमांशु पांडेय

    हिमांशु पाण्डेय दा इंडियन वायर के हिंदी संस्करण पर राजनीति संपादक की भूमिका में कार्यरत है। भारत की राजनीति के केंद्र बिंदु माने जाने वाले उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले हिमांशु भारत की राजनीतिक उठापटक से पूर्णतया वाकिफ है।मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक करने के बाद, राजनीति और लेखन में उनके रुझान ने उन्हें पत्रकारिता की तरफ आकर्षित किया। हिमांशु दा इंडियन वायर के माध्यम से ताजातरीन राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर अपने विचारों को आम जन तक पहुंचाते हैं।