Fri. Nov 22nd, 2024
    राहुल गाँधी मोदी

    गुजरात विधानसभा चुनाव में जिस शख्स पर सबकी नजर टिकी है वह है कांग्रेस के नवनिर्वाचित अध्यक्ष राहुल गाँधीअमेरिका के बर्कले से लौटने के बाद राहुल गाँधी के तेवरों में अप्रत्याशित बदलाव देखने को मिला और इससे भाजपा के साथ-साथ कांग्रेस के नेता भी आश्चर्य में पड़ गए। राहुल गाँधी ने कांग्रेस शासित हिमाचल प्रदेश की जगह भाजपा की बादशाहत वाले गुजरात को चुनाव प्रचार के लिए चुना और समय पूर्व चुनाव प्रचारों से काफी हद तक कांग्रेस को गुजरात के सियासी मैदान में लड़ाई में ला दिया। राहुल गाँधी के धुआँधार चुनाव प्रचारों और कांग्रेस को मिले जातीय समीकरण के समर्थन से भाजपा अपने मजबूत दुर्ग गुजरात में बैकफुट पर आ गई। अब गुजरात में विधानसभा चुनाव संपन्न हो चुके हैं और प्रत्याशियों की किस्मत ईवीएम में कैद हो चुकी है। हर किसी को 18 दिसंबर का इंतजार है जब गुजरात विधानसभा चुनाव के परिणाम घोषित होंगे।

    सियासी पण्डितों और राजनीतिक दलों के साथ-साथ जिसे गुजरात विधानसभा चुनाव के परिणामों का बेसब्री से इंतजार है वह हैं कांग्रेस के नवनिर्वाचित अध्यक्ष राहुल गाँधी। राहुल गाँधी ने हाल ही में कांग्रेस की कमान सँभाली है और बतौर कांग्रेस अध्यक्ष गुजरात विधानसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन करना उनके लिए बेहद जरुरी है। गुजरात के चुनाव प्रचार में राहुल गाँधी ने बहुत मेहनत की है और उसी का परिणाम है कि आज दशकों बाद कांग्रेस भाजपा के मुकाबले खड़ी नजर आ रही है। गुजरात और हिमाचल विधानसभा चुनाव के परिणाम राहुल गाँधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के हफ्ते भर बाद ही आ रहे हैं। हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस पूरी तरह मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह पर आश्रित थी और राहुल गाँधी आखिरी दिनों में चुनाव प्रचार के लिए पहुँचे थे। गुजरात के चुनाव परिणाम राहुल गाँधी के सियासी भविष्य की रुपरेखा तय करेंगे और कांग्रेस में उनकी स्वीकार्यता तय करेंगे।

    राहुल गाँधी को आज भी आलोचक और कई दिग्गज कांग्रेसी नेता कुशल राजनेता नहीं मानते हैं। सत्ताधारी दल भाजपा और देश की जनता के लिए भी राहुल गाँधी की छवि एक गंभीर नेता की नहीं है। गुजरात विधानसभा चुनाव में राहुल गाँधी के सामने खुद को साबित करना का अच्छा मौका है। अब यह देखना है कि राहुल खुद को साबित कर पाते हैं या नहीं। गुजरात के चुनाव परिणाम यह तय करेंगे कि राहुल को वाहवाही मिले या उनके सामने तीखे सवाल परोसे जाएं। एक नजर उन बिंदुओं पर जिनकी वजह से गुजरात में कांग्रेस का बेहतर प्रदर्शन राहुल के लिए इतना जरुरी बन गया है :

    छवि में सुधार

    देश के सियासी महकमों में राहुल गाँधी की छवि आज भी एक गम्भीर राजनेता की नहीं है। राहुल गाँधी के बारे में यह कहा जाता है कि वह जहाँ भी जाते हैं वहाँ कांग्रेस हार जाती है। 2014 के लोकसभा चुनाव, उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव, महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव, हरियाणा विधानसभा चुनाव समेत तमाम ऐसे उदाहरण हैं जो राहुल गाँधी की इस छवि को और भी आधार देते हैं। इसके बावजूद कभी राहुल गाँधी पर इसकी आंच नहीं आई क्योंकि कांग्रेस अध्यक्ष का पड़ उनकी माँ सोनिया गाँधी के पास था। पर अब राहुल गाँधी कांग्रेस अध्यक्ष बन चुके हैं और वह चुनावों में कांग्रेस के प्रदर्शन के सीधे तौर पर जिम्मेदार माने जाएंगे। गुजरात की हार के बाद राहुल की आलोचना के स्वर और तीखे हो जाएंगे। ऐसे में गुजरात चुनाव में कांग्रेस के बेहतर प्रदर्शन से राहुल गाँधी की छवि में सुधार आएगा।

    गंभीरता से लेगा विपक्ष

    कांग्रेस का संगठन भले ही राहुल गाँधी को अपना नेता मानता हो पर सत्ताधारी दल भाजपा आज भी उन्हें गंभीरता से नहीं लेती। राहुल गाँधी को लेकर बने तमाम चुटकुले और जुमले सोशल मीडिया से लेकर भाजपा नेताओं के मुँह से सुने जा सकते हैं। विपक्ष राहुल गाँधी को राजनीति का ‘पप्पू’ मानता है। हालाँकि गुजरात में चुनाव प्रचार के लिए चुनाव आयोग ने ‘पप्पू’ शब्द के इस्तेमाल को प्रतिबंधित कर दिया था। बीते कुछ महीनों में राहुल गाँधी की सियासी समझ, हाजिरजवाबी, लोकप्रियता और स्वीकार्यता में अभूतपूर्व बदलाव देखने को मिले हैं जो कांग्रेस के सियासी भविष्य के लिए अच्छे संकेत हैं। राहुल गाँधी में आए यह बदलाव तभी कारगर होंगे जब वह चुनाव परिणाम कांग्रेस के पक्ष में कर सकें। गुजरात में कांग्रेस की हार राहुल गाँधी का सियासी कद और छोटा करेगी और वह एक बार फिर हास-उपहास के केंद्र बन जाएंगे।

    सियासी स्वीकार्यता

    राहुल गाँधी के अध्यक्ष बनने के बाद एक बात तो तय है कि वह सियासत के पुराने दिग्गजों की जगह नए मोहरों संग आगे की बाजी खेलेंगे। उन्होंने 2014 लोकसभा चुनावों के पहले सचिन पायलट को अशोक गहलोत पर तरजीह देकर राजस्थान कांग्रेस अध्यक्ष बनाकर इसके संकेत दे दिए थे। आगामी वर्ष मध्य प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनावों में भी कांग्रेस दिग्विजय सिंह को दरकिनार कर ज्योतिरादित्य सिंधिया के नेतृत्व में चुनाव लड़ने की घोषणा कर चुकी है। दिल्ली में भी कांग्रेसी दिग्गज शीला दीक्षित और अजय माकन के बीच के रिश्ते जगजाहिर हैं। राजस्थान और मध्य प्रदेश जैसे बड़े राज्यों में अगले वर्ष विधानसभा चुनाव प्रस्तावित हैं। राहुल के सामने चुनौती है की वह गुजरात जीतकर इन युवाओं को नै राह दिखाएं जिससे कांग्रेस जीत की राह पर लौट सके।

    आन्तरिक बगावत का खतरा

    कांग्रेस की प्रदेश इकाईयों में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है और कई बार इसकी बानगी देखने को मिली है। कांग्रेस पार्टी में ऐसे कितने ही नेता है जिनके काम करने का तरीका राहुल गाँधी को पसंद नहीं है। राहुल के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के साथ ही यह तय हो गया है कि इन नेताओं का सियासी दायरा अब सिमटता जाएगा। ऐसे में अगर गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को शिकस्त हाथ लगती है तो राहुल गाँधी की सियासी राह मुश्किल हो सकती है। राहुल गाँधी को इन नेताओं के शर्तिया विरोध का सामना करना पड़ सकता है। ऐसे में कांग्रेस संगठन में गुटबाजी की संभावना बढ़ जाएगी और सोनिया गाँधी को वापस कांग्रेस अध्यक्ष बनाने की मांग उठ सकती है। इस लिहाजन राहुल गाँधी के लिए गुजरात चुनाव में अच्छा प्रदर्शन करना जरुरी हो गया है।

    संगठन की मजबूती

    संगठन की मजबूती वह बिंदु है जिसपर भाजपा आज भी कांग्रेस से मीलों आगे चल रही है। कांग्रेस जमीनी हकीकत को जांचे-परखे बगैर अकेले दम पर भाजपा को सत्ता से उखाड़ फेंकने का दम्भ भरती है। अगर 2014 लोकसभा चुनावों के बाद देश में हुए विधानसभा चुनावों पर नजर डालें तो हकीकत खुलकर सामने आती है। कांग्रेस को तकरीबन हर चुनाव में शिकस्त ही हाथ लगी है। बिहार, गुजरात, हिमाचल प्रदेश समेत कांग्रेस की कई राज्य इकाईयों में बगावती सुर उठे थे जो किसी लिहाज से पार्टी हित में नहीं थे। राहुल गाँधी कांग्रेस संगठन की मजबूती के लिए काम कर रहे हैं और वह शुरूआती दौर में कार्यकर्ता स्तर के विरोध का भी सामना नहीं कर सकते हैं। ऐसे में संगठन मजबूती के लिए कांग्रेस का गुजरात जीतना बेहद जरुरी है।

    विपक्ष का चेहरा बनना

    कांग्रेस राहुल गाँधी को 2019 लोकसभा चुनावों में पीएम मोदी के मुकाबले खड़ा करना चाहती है। इसके लिए राहुल गाँधी की छवि चमकाने पर लगातार काम चल रहा है। राहुल गाँधी के तेवरों में भी जबरदस्त बदलाव आया है और उनको व्यापक जनसमर्थन भी मिल रहा है। केंद्र की सत्ताधारी मोदी सरकार द्वारा लागू की गई जीएसटी से छोटे व्यवसायियों और व्यापारियों की कमर टूट गई है। इससे पूर्व हुई नोटबंदी की वजह से व्यापारी वर्ग के साथ-साथ आम जनता को भी काफी परेशानियां उठानी पड़ी थी। भाजपा के कई नेताओं ने आर्थिक मोर्चे पर मोदी सरकार की विफलता को लेकर बयान दिए थे। भाजपा की संगठन इकाई आरएसएस से जुड़े कई संगठन भी मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों से खुश नहीं है। ऐसे में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी इस मौके को भुनाने में लगे हैं और लगातार इन मुद्दों पर लगातार मोदी सरकार पर हमलावर रहे हैं।

    राहुल गाँधी केंद्र की सत्ताधारी मोदी सरकार को घेरने के लिए ताजातरीन मुद्दों की सूची बना चुके हैं। उनके द्वारा चिन्हित प्रमुख मुद्दों में बेरोजगारी, किसानों की बदहाली, छोटे और मझोले उद्योगों की सुस्त पड़ती रफ्तार और कश्मीर में बेकाबू होते हालात हैं। अमेरिका दौरे के दौरान राहुल गाँधी ने इन सभी मुद्दों का जिक्र किया था। राहुल गाँधी और कांग्रेस वह मुद्दे पहचान चुके हैं जो उनको सत्ता तक पहुँचा सकते है और इसी वजह से वह लगातार मोदी सरकार को घेरने में सफल रहे हैं। राहुल गाँधी कांग्रेस को पीएम मोदी पर व्यक्तिगत हमलों से इतर मुद्दा आधारित राजनीति की राह पर लौटा रहे हैं। अब अन्य विपक्षी दलों का समर्थन प्राप्त करने के लिए राहुल गाँधी को एक अदद जीत की तलाश है। इससे बतौर नेता राहुल गाँधी में सहयोगी दलों का भरोसा बढ़ेगा और उन्हें पीएम मोदी के विकल्प के रूप में देशभर में स्वीकार्यता मिलेगी।

    By हिमांशु पांडेय

    हिमांशु पाण्डेय दा इंडियन वायर के हिंदी संस्करण पर राजनीति संपादक की भूमिका में कार्यरत है। भारत की राजनीति के केंद्र बिंदु माने जाने वाले उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले हिमांशु भारत की राजनीतिक उठापटक से पूर्णतया वाकिफ है।मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक करने के बाद, राजनीति और लेखन में उनके रुझान ने उन्हें पत्रकारिता की तरफ आकर्षित किया। हिमांशु दा इंडियन वायर के माध्यम से ताजातरीन राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर अपने विचारों को आम जन तक पहुंचाते हैं।