Fri. Apr 26th, 2024
    एग्जिट पोल

    गुजरात विधानसभा चुनाव में दूसरे चरण का मतदान आज शुरू हो चुका है। दूसरे चरण में उत्तर और मध्य गुजरात के 14 जिलों की 93 विधानसभा सीटों पर मतदान हो रहा है। इन 93 विधानसभा सीटों से कुल 851 उम्मीदवार चुनावी मैदान में हैं जिनमें 782 पुरुष और 69 महिलाएं शामिल हैं। उत्तर गुजरात के जिन जिलों में चुनाव हो रहा है उनमें गाँधीनगर, बनासकांठा, साबरकांठा, छोटा उदयपुर, पाटण और महिसागर के नाम शामिल हैं। वहीं मध्य गुजरात के जिन जिलों में चुनाव हो रहे हैं उनमें अहमदाबाद, वड़ोदरा, मेहसाणा, दाहोद, खेड़ा, पंचमहल, आणंद और नर्मदा जिले शामिल हैं। मध्य गुजरात को भाजपा का गढ़ माना जाता है वहीं उत्तर गुजरात को कांग्रेस का गढ़ माना जाता है। मध्य गुजरात में ओबीसी मतदाताओं की बड़ी आबादी है और ओबीसी आन्दोलन के मुख्य चेहरे अल्पेश ठाकोर कांग्रेस का दामन थाम चुके हैं। ऐसे में दूसरे चरण में मुकाबला बराबरी का नजर आ रहा है।

    एक नजर मुख्य सीटों पर

    गुजरात विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण में कई सियासी दिग्गजों की किस्मत दांव पर लगी है। इनमें दिग्गज भाजपाई और राज्य के उपमुख्यमंत्री नितिन पटेल से लेकर कांग्रेसी दिग्गज सिद्धार्थ पटेल तक के नाम शामिल हैं। पीएम मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के करीबी माने जाने वाले गुजरात के उपमुख्यमंत्री नितिन पटेल मेहसाणा से चुनावी मैदान में हैं। 2012 विधानसभा चुनावों में वह मेहसाणा से विधायक निर्वाचित हुए थे और इस बार भी मेहसाणा से दावेदारी पेश कर रहे हैं।

    गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री और दिग्गज पाटीदार नेता चिमनभाई पटेल के पुत्र सिद्धार्थ पटेल दबोई से दावेदारी पेश कर रहे हैं। सिद्धार्थ पूर्व में गुजरात कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष रह चुके हैं। दलित आन्दोलन से सुर्खियों में आने वाले जिग्नेश मेवानी बनासकांठा जिले की वडगाम विधानसभा सीट से बतौर निर्दलीय प्रत्याशी चुनावी मैदान में हैं। उन्हें कांग्रेस का समर्थन प्राप्त है। वहीं ओबीसी नेता अल्पेश ठाकोर पाटण जिले की राधनपुर विधानसभा सीट से बतौर कांग्रेस प्रत्याशी चुनावी मैदान में है।

    भाजपा का गढ़ है मध्य गुजरात

    गुजरात की सत्ता तक पहुँचने की सीढ़ी का पहला और सबसे अहम पायदान है मध्य गुजरात। गुजरात विधानसभा की कुल 182 सीटों में 63 सीटें मध्य गुजरात से आती हैं। मध्य गुजरात का अहमदाबाद-बड़ोदरा क्षेत्र भाजपा का गढ़ माना जाता है। गुजरात में भाजपा के 2 दशकों से सत्तासीन रहने का मुख्य कारण मध्य गुजरात में उसकी बादशाहत है। क्षेत्र की शहरी आबादी भाजपा का कोर वोटबैंक बन चुकी है और पिछले चुनावों तक पाटीदारों का भी समर्थन भाजपा को मिलता था। यही वजह थी कि भाजपा क्षेत्र की दो-तिहाई सीटों पर विजयी रही थी। वर्ष 2012 के विधानसभा चुनावों में भाजपा ने मध्य गुजरात की 63 विधानसभा सीटों में से 40 सीटों पर जीत दर्ज की थी वहीं कांग्रेस के हाथ 21 सीटें लगी थी। एनसीपी को एक सीट मिली थी वहीं एक अन्य सीट निर्दलीय प्रत्याशी के खाते में गई थी।

    शहरी मतदाताओं की पहली पसंद है भाजपा

    मध्य गुजरात के अंतर्गत आने वाले शहरी विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा की पकड़ मजबूत है। मध्य गुजरात की अधिकतर शहरी आबादी वाली सीटें भाजपा के पास हैं। 2012 में हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा ने अहमदाबाद के अंतर्गत आने वाली 21 विधानसभा सीटों में से 17 पर अपना कब्जा जमाया था वहीं कांग्रेस को महज 4 सीटों पर सफलता मिली थी। वड़ोदरा के अंतर्गत आने वाली 13 विधानसभा सीटों में से 10 सीटें भाजपा ने जीती थी और कांग्रेस के खाते में 2 सीटें गईं थी। एक सीट पर अन्य दलों के हाथ जीत लगी थी। इन शहरी क्षेत्रों की आबादी मुख्यतः व्यापारी वर्ग से सम्बन्ध रखने वाली है और यही क्षेत्र में भाजपा के वर्चस्व का आधार बना था। जीएसटी और नोटबंदी की वजह से इस बार भाजपा का सियासी गणित बिगड़ता नजर आ रहा था पर ऐन वक्त पर किए गए जीएसटी सुधारों ने काफी हद तक नुकसान की भरपाई कर दी है।

    ग्रामीण सीटों पर कांग्रेस की जड़ें मजबूत

    मध्य गुजरात के ग्रामीण इलाकों में आज भी कांग्रेस की लोकप्रियता बरकरार है। मध्य गुजरात में ग्रामीण क्षेत्र के अंतर्गत 5 जिले आते हैं जिनमें पंचमहल, खेड़ा, दाहोद, आणंद और नर्मदा के नाम शामिल हैं। 2012 में हुए विधानसभा चुनावों के दौरान इन जिलों में कांग्रेस का प्रदर्शन अच्छा रहा था और कहीं वह भाजपा के बराबर में रही थी तो कहीं एक कदम आगे दिखी थी। मध्य गुजरात के इन 5 ग्रामीण जिलों की 29 विधानसभा सीटों में से 15 सीटों पर कांग्रेस विजयी रही थी वहीं भाजपा के हाथ 13 सीटें लगी थी। अन्य दलों के खाते में एक सीट गई थी। नर्मदा जिले की दोनों सीटें भाजपा ने जीती थी। पंचमहल की 7 सीटों में से भाजपा के हाथ 4 सीटें लगी थी वहीं कांग्रेस ने 3 सीटों पर जीत दर्ज की थी। आणंद की 7 सीटों में से कांग्रेस ने 4 वहीं भाजपा ने 2 सीटें जीती थी और अन्य दलों को एक सीट मिली थी।

    खेड़ा जिले की 7 विधानसभा सीटों में से 5 सीटों पर कांग्रेस को जीत मिली थी वहीं भाजपा के हाथ 2 सीटें आई थी। दाहोद की 6 विधानसभा सीटों में से 3 सीटें भाजपा ने जीती थी वहीं 3 सीटें कांग्रेस के हाथ लगी थी। मध्य गुजरात के ग्रामीण क्षेत्रों में कांग्रेस भाजपा से एक कदम आगे रही थी। भाजपा को अभी तक के चुनावों में गुजरात में पाटीदार समाज का साथ मिलता था जो अब कांग्रेस की तरफ खिसकता दिख रहा है। कांग्रेस के नवनिर्वाचित अध्यक्ष राहुल गाँधी ने ग्रामीण इलाकों में रहने वाले दलित और आदिवासी तबके को अपनी ओर मिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। दलित नेता जिग्नेश मेवानी और ओबीसी नेता अल्पेश ठाकोर का समर्थन भी मध्य गुजरात में कांग्रेस को मजबूती दे रहा है। उम्मीद है कि ग्रामीण क्षेत्रों में कांग्रेस अपनी पकड़ बनाए रखेगी और पहले से मजबूत होकर उभरेगी।

    उत्तर गुजरात में कांग्रेस मजबूत

    अगर मध्य गुजरात भाजपा का गढ़ है तो कांग्रेस का पलड़ा उत्तर गुजरात में भारी नजर आता है। उत्तर गुजरात में बड़ी संख्या में ग्रामीण आबादी निवास करती है। उत्तर गुजरात के मतदाता वर्ग में दलित और ओबीसी वर्ग का बड़ा जनाधार है। गुजरात में चल रहे जातीय आन्दोलन के बड़े चेहरे और ओबीसी आन्दोलन के अगुआ अल्पेश ठाकोर बाकायदा कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं। कांग्रेस के टिकट पर वह पाटण जिले की राधनपुर विधानसभा सीट से चुनावी मैदान में हैं। इसके अलावा वह कांग्रेस के स्टार प्रचारक की भूमिका में भी हैं। वहीं दलित आन्दोलन से सुर्खियां बटोरने वाले जिग्नेश मेवानी ने भी लोगों से कांग्रेस को वोट देने की अपील की है। जिग्नेश बनासकांठा जिले की वडगाम विधानसभा सीट से बतौर निर्दलीय प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं। कांग्रेस ने जिग्नेश की उम्मीदवारी का समर्थन किया है और वडगाम से कोई उम्मीदवार खड़ा नहीं किया है। वडगाम के मौजूदा विधायक कांग्रेस से सम्बन्ध रखते है। जिग्नेश और अल्पेश का यह दलित-ओबीसी गठजोड़ उत्तर गुजरात में कांग्रेस की स्थिति और मजबूत कर रहा है।

    उत्तर गुजरात में कांग्रेस को मजबूती देने वाला एक और अहम व्यक्ति है। वह है गुजरात में कांग्रेस के ने सियासी चाणक्य बनकर उभरे गुजरात कांग्रेस प्रभारी अशोक गहलोत। आन्दोलनरत पाटीदार, ओबीसी और दलित नेताओं को साधने से लेकर राहुल गाँधी के चुनाव प्रचार कार्यक्रम तक की जिम्मेदारी सँभालने वाले अशोक गहलोत के पास दशकों का सियासी अनुभव है और वह दो बार राजस्थान के मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं। उत्तर गुजरात के 5 जिलों की सीमाएं राजस्थान से लगती हैं। ऐसे में अशोक गहलोत की राजनीतिक पकड़ इन जिलों का सियासी माहौल कांग्रेस के पक्ष में कर सकती है। गुजरात के दलित और आदिवासी वर्ग में सत्ताधारी भाजपा सरकार के खिलाफ खासी नाराजगी है और यह उत्तर गुजरात में कांग्रेस के धमाकेदार प्रदर्शन का आधार बन सकता है।

    असर डाल सकते हैं वाघेला

    गुजरात विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण में मध्य और उत्तर गुजरात के जिन 14 जिलों में मतदान हो रहे हैं, वह पूर्व कांग्रेसी दिग्गज शंकर सिंह वाघेला का गढ़ माना जाता है। शंकर सिंह वाघेला ने राष्ट्रपति चुनावों में पार्टी आलाकमान द्वारा क्रॉस वोटिंग के लिए जिम्मेदार ठहराए जाने के बाद कांग्रेस से बगावत कर दी थी। उनके पीछे-पीछे गुजरात कांग्रेस के कई विधायकों ने विधानसभा सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। वाघेला की बगावत की वजह से राज्यसभा चुनावों में कांग्रेस के उम्मीदवार अहमद पटेल की उम्मीदवारी खतरे में आ गई थी। वाघेला कांग्रेस से अलग हो चुके हैं और ऑल इंडिया हिंदुस्तान पार्टी के चुनाव चिन्ह पर 69 उम्मीदवारों के साथ ताल ठोंक रहे हैं। माना जा रहा है कि वाघेला के प्रत्याशी कांग्रेस के वोटों में सेंध लगाएंगे जिससे क्षेत्र में भाजपा की दावेदारी मजबूत होगी।

    आज होगी युवा तिकड़ी की असली परीक्षा

    आज दूसरे चरण के चुनाव में गुजरात की सत्ताधारी भाजपा सरकार के खिलाफ आन्दोलनरत युवा तिकड़ी की असली परीक्षा होगी। पहले चरण में दक्षिण गुजरात, सौराष्ट्र और कच्छ में मतदान हुआ था जहाँ पाटीदारों की बड़ी आबादी निवास करती है। उस क्षेत्र में लेउवा पटेलों की तादात ज्यादा थी। पाटीदार आन्दोलन के अगुआ हार्दिक पटेल कड़वा पटेल हैं। पाटीदार समाज में कड़वा पटेलों की भागीदारी 40 फीसदी है और यह मुख्यतः मध्य और उत्तरी गुजरात में रहते हैं। इस लिहाजन दूसरे चरण के चुनाव में हार्दिक पटेल कांग्रेस के लिए तुरुप का इक्का साबित हो सकते हैं। हार्दिक पटेल अहमदाबाद के रहने वाले हैं। इस कारण अहमदाबाद जैसे शहरी इलाकों में भी पाटीदारों की नाराजगी से भाजपा का सियासी समीकरण बिगड़ता नजर आ रहा है। जिन 93 विधानसभा सीटों पर आज चुनाव हो रहे हैं उनमें से 15 सीटों पर पाटीदारों का बोलबाला है। भाजपा की तरफ से उपमुख्यमंत्री नितिन पटेल ने पाटीदारों को मनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। अब यह देखना है कि पाटीदार समाज का रुख किस ओर रहता है।

    मध्य गुजरात में ओबीसी वर्ग का भी बड़ा जनाधार है। ओबीसी नेता अल्पेश ठाकोर भी अहमबदाबाद से आते हैं और वह शहरी कलशेटरों में भाजपा की मुश्किलें बढ़ा सकते हैं। मध्य गुजरात के ग्रामीण क्षेत्रों में भी अल्पेश की अच्छी पकड़ है और वह वर्षों से स्थानीय जनता से जुड़े हुए हैं। आज जिन 93 विधानसभा सीटों पर मतदान हो रहा है उनमें से 33 सीटों पर ओबीसी मतदाताओं का बोलबाला है और वहाँ हार-जीत का फैसला उनके रुख पर निर्भर करता है। कांग्रेस का दामन थामने वाले अल्पेश ठाकोर अपने 7 समर्थकों के साथ चुनाव मैदान में हैं। चुनाव प्रचारों में वह कांग्रेस के स्टार प्रचारक की भूमिका निभा चुके हैं। अल्पेश के कन्धों पर खुद को साबित करने के साथ-साथ ओबीसी मतदाताओं को साधने की भी जिम्मेदारी है। अब देखना है अल्पेश इसमें कितना सफल हो पाते हैं।

    युवा तिकड़ी के आखिरी स्तम्भ और दलित आन्दोलन के अगुआ जिग्नेश मेवानी ने बहुत कम समय में अपनी पहचान बनाई है। सौराष्ट्र के ऊना में कथित गौरक्षकों द्वारा दलितों को पिटाई के बाद उन्होंने राज्यभर में सत्ताधारी भाजपा सरकार के खिलाफ आन्दोलन छेड़ दिया। दलितों के हक की आवाज उठाने वाले जिग्नेश एक सामाजिक कार्यकर्ता और पेशेवर वकील हैं। जिग्नेश बनासकांठा जिले की वडगाम विधानसभा सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनावी मैदान में हैं। कांग्रेस ने जिग्नेश की उम्मीदवारी का समर्थन किया है और वडगाम से अपना प्रत्याशी खड़ा किया है। जिग्नेश 11 अन्य दलों के समर्थन की बात भी कहते हैं। वडगाम में जिग्नेश को हारने के लिए भाजपा ने तगड़ी घेराबंदी कर रखी थी जिसकी वजह से जिग्नेश का चुनाव प्रचार उनकी सीट तक ही सिमट कर रह गया है। ऐसे में जिस समर्थन की आस में कांग्रेस ने जिग्नेश का साथ दिया था वह मिलता नहीं दिख रहा है। जिग्नेश पर अपनी साख बचने के साथ-साथ दलित मतदाताओं को कांग्रेस के पक्ष में करने की भी जिम्मेदारी है।

    By हिमांशु पांडेय

    हिमांशु पाण्डेय दा इंडियन वायर के हिंदी संस्करण पर राजनीति संपादक की भूमिका में कार्यरत है। भारत की राजनीति के केंद्र बिंदु माने जाने वाले उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले हिमांशु भारत की राजनीतिक उठापटक से पूर्णतया वाकिफ है।मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक करने के बाद, राजनीति और लेखन में उनके रुझान ने उन्हें पत्रकारिता की तरफ आकर्षित किया। हिमांशु दा इंडियन वायर के माध्यम से ताजातरीन राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर अपने विचारों को आम जन तक पहुंचाते हैं।