नीतीश कुमार के महागठबंधन से किनारा कर भाजपा के साथ जाने के बाद उनके डेढ़ दशक पुराने साथी और वरिष्ठ सहयोगी शरद यादव ने बागी सुर अपना लिए थे। बीते कुछ दिनों के घटनाक्रम में शरद यादव और नीतीश कुमार के बीच की प्रतिद्वंदिता खुलकर सामने आ गई है और कभी सच्चे यार रहे ये दोनों नेता आज एक-दूसरे के सामने खड़े हैं। शरद यादव ने 17 अगस्त को दिल्ली स्थित अपने आवास पर ‘सामान विचार’ के नेताओं की बैठक बुलाई थी जिसे उन्होंने ‘सांझी विरासत सम्मलेन’ का नाम दिया। इस बैठक में सभी प्रमुख विपक्षी दल शामिल हुए थे और मोदी सरकार और आरएसएस पर जमकर बयानबाजी हुई थी। हालाँकि इसमें केंद्रीय महागठबंधन की घोषणा तो नहीं हुई पर शरद यादव इस ‘सांझी विरासत सम्मलेन’ को मिले समर्थन से अभिभूत नजर आये।
अब खबर आ रही है कि शरद यादव जेडीयू पर अपना दावा पेश करने की सोच रहे हैं। इसके लिए वह जल्द ही चुनाव आयोग जा सकते हैं। शरद यादव अब इस बात का इंतजार कर रहे हैं कि कब नीतीश कुमार उन्हें बगावत के आरोप में पार्टी से निकालें और वो अपना दावा पेश करें। हालाँकि जेडीयू नेता केसी त्यागी ने कहा है कि नीतीश कुमार को जेडीयू की सभी 15 राज्य इकाइयों का समर्थन प्राप्त है। अगर शरद यादव चुनाव आयोग जाना चाहते हैं तो जाए, पूरी पार्टी नीतीश कुमार के साथ है। उन्होंने कांग्रेस और आरजेडी पर आरोप लगाए कि वो शरद यादव को गुमराह कर रही है और अपना पक्ष मजबूत करने के लिए शरद यादव के नाम का सहारा ले रही है।
शरद यादव चुनाव आयोग में जेडीयू के उत्तराधिकारी होने का दावा ठीक उसी प्रकार पेश करेंगे जैसा दावा मुलायम सिंह यादव ने सपा में अपने वर्चस्व को लेकर चुनाव आयोग में पेश किया था। संयोग की बात है कि कांग्रेस उस समय भी इस वर्चस्व की लड़ाई में सहायक की भूमिका में थी और आज भी वह सहायक की भूमिका में खड़ी है। सपा में हुई फूट के वक़्त कांग्रेस अखिलेश यादव के गुट के साथ खड़ी थी जो उस समय सत्ता में थे। अखिलेश यादव को चुनाव आयोग ने सपा का उत्तराधिकारी माना था। आज कांग्रेस सत्तासीन नीतीश कुमार के खिलाफ शरद यादव के साथ खड़ी है। आने वाले दिनों में कांग्रेस शरद यादव के कंधे पर बन्दूक रखकर नीतीश कुमार पर निशाना साधेगी और भाजपा के खिलाफ माहौल बनाने की कोशिश करेगी।
जेडीयू में मची इस वर्चस्व की लड़ाई को परोक्ष रूप भाजपा-कांग्रेस टकराव के तौर पर भी देखा जा रहा है। कांग्रेस इससे पहले महागठबंधन में साझेदार थी और बिहार सरकार में उसकी भी भागीदारी थी। पर नीतीश कुमार के महागठबंधन तोड़कर भाजपा के साथ सरकार बनाने के बाद कांग्रेस को बड़ा झटका लगा है। ना सिर्फ बिहार वरन केंद्र की राजनीति में भी कांग्रेस की भूमिका कमजोर हो गई है। इस लड़ाई में दोनों तरफ से ही बयानबाजी देखने को मिलेगी और आरोप-प्रत्यारोप का लम्बा दौर चलने की उम्मीद है।
गुजरात में अपने विधायकों के इस्तीफे और क्रॉस वोटिंग से परेशान कांग्रेस के लिए बिहार में भी हालात अनुकूल नहीं है। अभी कुछ वक़्त पहले तक खबर आ रही थी कि बिहार में कांग्रेस के 7 विधायक पार्टी से नाराज चल रहे हैं। ये सभी विधायक महागठबंधन टूटने से नाराज बताये जा रहे थे। इन विधायकों का मानना था कि पार्टी को नीतीश कुमार का साथ देना चाहिए था पर वह लालू प्रसाद यादव की आरजेडी के पक्ष में खड़ी रही। अगर सच में ये विधायक नीतीश कुमार से जा मिलते हैं और भाजपा या जेडीयू में शामिल हो जाते हैं तो यह बिहार कांग्रेस को करारा झटका मिलेगा। दशकों बाद कांग्रेस साझेदार के रूप में ही सही बिहार में सत्ता में आई थी। महागठबंधन ने बिहार में हाशिए पर चल रही पार्टी के लिए संजीवनी का काम किया था। ऐसे में इस तरह की विदाई निश्चित रूप से कांग्रेस के लिए असोचनीय होगी।
शरद यादव के समर्थकों का कहना है कि नीतीश कुमार और जॉर्ज फर्नांडिस ने अपने राजनीतिक फायदे और बिहार में सत्ता हासिल करने के लिए समता पार्टी का 1999 में शरद यादव की जेडीयू में विलय किया था। शरद यादव जेडीयू के संस्थापक अध्यक्ष हैं और इस लिहाज से शरद यादव को ही जेडीयू के उत्तराधिकारी का पद मिलना चाहिए। अगर जेडीयू से किसी को बाहर निकाला जाना चाहिए तो वह नीतीश कुमार और उनके समर्थक हैं। शरद यादव फिलहाल पटना में है पर वह जेडीयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में हिस्सा नहीं लेंगे। शरद यादव और पार्टी विरोधी गतिविधियों में संलिप्तता के आरोप में जेडीयू से निष्कासित राज्यसभा सांसद अली अनवर ने आज पटना के ‘श्रीकृष्ण मेमोरियल हॉल’ में एनडीए सरकार के खिलाफ ‘जन अदालत सम्मलेन’ का आयोजन किया है। उनका दावा है कि इस सम्मलेन में नीतीश कुमार के महागठबंधन तोड़कर भाजपा के साथ सरकार बनाने से नाराज जेडीयू के कई वरिष्ठ नेता शामिल होंगे। शरद यादव और अली अनवर इस सम्मलेन को सम्बोधित करेंगे।
एक नजर शुरूआती घटनाक्रमों पर
बिहार के मुख्यमंत्री और 2019 में नरेंद्र मोदी का विकल्प माने जा रहे नीतीश कुमार ने भाजपा का हाथ क्या थामा, विपक्ष पर मानो मुसीबत का पहाड़ ही टूट पड़ा। नरेंद्र मोदी के खिलाफ विपक्ष का सबसे विश्वसनीय, लोकप्रिय और राष्ट्रीय पहचान वाला चेहरा ही अब नरेंद्र मोदी के साथ खड़ा हो गया था। ऐसे में पहले से कमजोर विपक्ष की हालत अब और खस्ताहाल हो गई थी। नीतीश कुमार के महागठबंधन से अलग होकर भाजपा के साथ सरकार बनाने के निर्णय से ना केवल विपक्ष के सभी दल खफा थे वरन उनकी अपनी पार्टी जेडीयू भी दो गुटों में बँट गई थी। एक गुट का नेतृत्व खुद नीतीश कुमार कर रहे थे वहीं बागी गुट के नेतृत्व की बागडोर पिछले डेढ़ दशक से नीतीश कुमार के साथी रहे जेडीयू के संस्थापक अध्यक्ष शरद यादव ने संभाली। दोनों ओर से आरोप-प्रत्यारोप का दौर चलता रहा और दोनों गुटों के नेताओं ने एक-दूसरे के खिलाफ जमकर बयानबाजी की।
हालांकि इसके बाद भी नीतीश कुमार से शरद यादव की नाराजगी कम नहीं हुई और दोनों पक्षों से आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी रहा। शरद यादव पहले से ही जेडीयू में हाशिए पर थे और वह अब खुलकर नीतीश कुमार के खिलाफ बोल रहे थे। इससे नाराज होकर नीतीश कुमार ने एक-एक कर जेडीयू से शरद यादव के साथियों और अपने विरोधियों को किनारे करना शुरू किया। शुरुआत उन्होंने पार्टी महासचिव अरुण श्रीवास्तव की बर्खास्तगी से की और उनपर पार्टी व्हिप का उल्लंघन करने का आरोप लगाया। जेडीयू ने अरुण श्रीवास्तव को यह जिम्मेदारी सौंपी थी कि वह गुजरात में पार्टी के एक मात्र विधायक छोटुभाई वासवा को भाजपा उम्मीदवार बलवंत सिंह राजपूत के पक्ष में मतदान करने को कहे। जेडीयू विधायक का वोट कांग्रेस उम्मीदवार अहमद पटेल को गया था और यही वोट उनकी जीत का आधार बना था।
नीतीश कुमार की अगली गाज पार्टी के राज्यसभा सांसद और शरद यादव के वरिष्ठ सहयोगी अली अनवर पर गिरी। अली अनवर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी द्वारा बुलाई गई विपक्ष के नेताओं की बैठक में शामिल हुए थे। जेडीयू ने उनपर पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप लगाया और संसदीय दल से बर्खास्त कर दिया। नीतीश कुमार के भाजपा के साथ जाने पर अली अनवर ने कहा था कि उनकी अंतरात्मा उन्हें भाजपा के साथ जाने की गवाही नहीं देती। पार्टी के वरिष्ठ नेता केसी त्यागी ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी पर जेडीयू को तोड़ने का भी आरोप लगाया था। अगला हमला शरद यादव पर हुआ और पार्टी ने उन्हें राज्यसभा में संसदीय दल के नेता के पद से हटाकर उनकी जगह आरसीपी सिंह को राज्यसभा में अपना नेता नियुक्त किया। इसी क्रम में आगे पार्टी ने शरद यादव की बिहार यात्रा के दौरान उनका समर्थन करने वाले 21 पार्टी नेताओं को बर्खास्त कर दिया। इन नेताओं में पूर्व सांसद अर्जुन राय और पूर्व मंत्री रमई राम के नाम भी शामिल थे। नीतीश कुमार ने दिल्ली जाकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से मुलाक़ात की। अमित शाह ने उन्हें एनडीए में शामिल होने का न्यौता भी दिया।
बता दें कि शरद यादव 10 से 12 अगस्त तक बिहार के तीन दिवसीय दौरे पर थे। इस दौरान उन्होंने 7 जिलों की यात्रा की और जनता के बीच जाकर बात की। विभिन्न मुद्दों पर उन्होंने जनता का मन टटोलने की भी कोशिश की। उन्होंने लोगों से कहा कि नीतीश कुमार के साथ वो लोग खड़े हैं जो अपना स्वार्थ साधने में लगे हैं। नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली जनता दल यूनाइटेड सरकारी है। अपने गुट के बारे में उन्होंने कहा कि मेरे साथ वो लोग खड़े हैं जो जनता से जुड़े हैं और जनता की सेवा को लेकर फिक्रमंद है। मेरी जनता दल यूनाइटेड जनता की है और जनता के लिए है। आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने स्पष्ट कहा था कि शरद यादव के नेतृत्व वाली जेडीयू के साथ उनका गठबंधन जारी रहेगा। ऐसे में अब तक यह माना जा रहा था कि शरद यादव नीतीश कुमार से अलग होकर अपने समर्थकों के साथ अपनी नई पार्टी का निर्माण करेंगे और लालू प्रसाद यादव की आरजेडी और कांग्रेस के गठबंधन में साझेदार बने रहेंगे। पर अपने हालिया रुख से शरद यादव ने स्पष्ट कर दिया है कि उनकी नजर सिर्फ बिहार पर नहीं वरन राष्ट्रीय राजनीति के पटल पर छाने की है।
शरद यादव को भी यह बात पता है कि जेडीयू से उनका पत्ता काट चुका है और नीतीश कुमार जल्द ही उन्हें भी किनारे लगा देंगे। इस लिहाज से शरद यादव के लिए भी यह जरुरी हो गया है कि वह राष्ट्रीय राजनीतिक में अपनी नई पारी का आगाज करें और अपने लिए नई भूमिका तलाश कर विपक्ष के लिए नई सियासी जमीन तैयार करें। शरद यादव एक वक़्त पर भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए में संयोजक की भूमिका निभाते थे और उन्हें गठबंधन और संगठन का अच्छा-ख़ासा अनुभव भी है। ऐसे में मुमकिन है कि विपक्षी दलों के इस ‘केंद्रीय महागठबंधन’ में भी वह संयोजक की भूमिका में रहे और विपक्षी एकता के केंद्र बिंदु बने रहें।