सदियों से विवादित रहे राम जन्मभूमि स्थल का आज पूरी तरह राजनीतिकरण हो चुका है। सनातन धर्म के द्योतक और मर्यादा पुरुषोत्तम कहे जाने वाले राम आज सियासत की बेड़ियों में जकड़ कर रह गए हैं। भारतवर्ष की अमूल्य सांस्कृतिक धरोहर की नींव माना जाने वाला हिंदुत्व एक सियासी दांव बन चुका है। कोई हिंदुत्व हितैषी बना बैठा है है तो कोई हिंदुत्व विरोधी। मजहबी रंजिश की बुनियाद पर सत्ता का सुख भोगने वाले ये सियासी हुक्मरान आज देश के आका बन बैठे हैं। पराक्रम और शौर्य की मिसाल रहा भारत का स्वर्णिम इतिहास आज तमाम सियासी दलों के लिए महज एक उपहास का विषय बनकर रह गया है। अल्पसंख्यक आबादी के मतों के तुष्टीकरण के लिए कई सियासी दल तो राम के अस्तित्व को भी नकार रहे हैं।
राम मंदिर विवाद अब धार्मिक मान्यताओं से ना जुड़कर राजनीतिक प्रतिष्ठा से भी जुड़ गया है। केंद्र में हिंदुत्व हितैषी दल भाजपा सत्ता में हैं वहीं उत्तर प्रदेश में भी लम्बे अरसे बाद भाजपा की सत्ता वापसी हुई है। केंद्र में नरेंद्र मोदी सत्ताधीश हैं वहीं उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के हाथों में सत्ता की बागडोर है। अगर भाजपा के सियासी इतिहास और इन दोनों नेताओं के अतीत और जनमानस में व्याप्त इनकी छवि का स्मरण करें तो आँखों के सामने अयोध्या के राम मंदिर में विराजे साक्षात राम के दर्शन होते हैं। राम मंदिर निर्माण का मुद्दा पिछले 25 सालों से देश की राजनीति का केंद्र बिंदु रहा है और सभी दलों ने इसकी आंच पर अपनी सियासी रोटी सेंकी है। इस विवाद ने भाजपा और शिवसेना की छवि ‘मुस्लिम विरोधी’ दल की बना दी वहीं कांग्रेस और सपा ‘मुस्लिम हितैषी’ पार्टियां बन बैठी।
फिर टली राम मंदिर की सुनवाई
बाबरी मस्जिद विध्वंस की 25वीं वर्षगांठ से ठीक एक दिन पहले आज सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई हुई। सितम्बर महीने में मामले की सुनवाई को दस्तावेजों के अनुवाद के लिए 10 हफ्तों के लिए टाल दिया गया था। राम मंदिर-बाबरी मस्जिद से जुड़े 9,000 पन्नों के दस्तावेज और 90,000 पन्नों में दर्ज गवाहियां पाली, फारसी, संस्कृत, अरबी सहित विभिन्न भाषाओं में दर्ज हैं, जिस पर ऐतराज जताते हुए सुन्नी वक्फ बोर्ड ने कोर्ट से इन दस्तावेजों का अनुवाद कराने की मांग की थी। सुप्रीम कोर्ट ने दस्तावेजों के अनुवाद के लिए 5 दिसंबर तक का समय दिया था। आज सुनवाई के दौरान सुन्नी वक्फ बोर्ड का पक्ष रख रहे वरिष्ठ अधिवक्ता और कांग्रेसी नेता कपिल सिब्बल ने कोर्ट से मामले की सुनवाई जुलाई, 2019 तक टालने का अनुरोध किया।
बता दें कि मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली खण्डपीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है। सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि राम मंदिर निर्माण एनडीए के एजेण्डे में शामिल है और यह एनडीए के घोषणा पत्र का भी हिस्सा है। उन्होंने कहा कि एनडीए इस मामले की आड़ में अपना राजनीतिक हित साध रही है। मुस्लिमों का पक्ष रख रहे एक अन्य वकील राजीव धवन ने कहा कि अगर कोर्ट सोमवार से शुक्रवार तक लगातार सुनवाई भी करेगा तो मामले की सुनवाई पूरा होने में एक साल लगेगा। कपिल सिब्बल और राजीव धवन ने दस्तावेजों के अधूरे होने की बात भी कही और कहा कि अगर कोर्ट मामले की सुनवाई जारी रखती है तो वे इसका बहिष्कार करेंगे। सबकी दलीलें सुनने के बाद खण्डपीठ ने मामले की सुनवाई 8 फरवरी, 2018 तक के लिए टाल दी है।
राम मंदिर निर्माण के पक्षधर हैं अयोध्या के मुस्लिम
योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद उत्तर प्रदेश में कई जगहों पर राम मंदिर निर्माण के समर्थन में लगी होल्डिंग्स नजर आईं। राजधानी लखनऊ और फैजाबाद में तो कई मुस्लिम नेताओं और धर्मगुरुओं ने विवादित जमीन पर राम मंदिर निर्माण के समर्थन में बैनर और होल्डिंग्स लगाए। हालाँकि विपक्षी दलों ने इसे भी भाजपा की चाल बताया और कहा कि मंदिर निर्माण का समर्थन करने वाले सभी लोग संघी हैं। अयोध्या के मुसलमान जो मुस्लिम समुदाय की तरफ से इस मामले में वादी हैं वह भी राम जन्मभूमि की विवादित जगह पर राम मंदिर निर्माण की बात कहते हैं। उनका मानना है कि इस विवाद का निपटारा अदालत के बाहर हो जाना चाहिए। वह ये भी कहते हैं कि कुछ राजनीतिक दल अपने फायदे के लिए इस विवाद का निपटारा करना नहीं चाहते।
उत्तर प्रदेश के फैजाबाद जिले में स्थित अयोध्या में विवादित राम जन्मभूमि के पास में ही मुस्लिम बाहुल्य बस्ती है। वहाँ के बुजुर्ग कहते हैं, “विवाद देखते-देखते हमारी कई पीढ़ियां गुजर गईं। अब आने वाली पीढ़ी के लिए हम कोई भी विवाद नहीं छोड़ना चाहते। अब तो इसका निपटारा हो ही जाना चाहिए। राम हिन्दुओं के पूज्य हैं और हिन्दू धर्म में वह भगवान के अवतार माने जाते हैं। सभी धार्मिक साक्ष्य इस बात की पुष्टि भी करते हैं कि राम यहीं जन्मे थे और उनकी राजधानी अयोध्या थी। जब राम यहीं जन्मे थे तो उनका मंदिर भी यहीं बनना चाहिए। जो जमीन मस्जिद की है उसे खाली छोड़ दिया जाए और मस्जिद का निर्माण कहीं और कराया जाना चाहिए।”
अयोध्या में मंदिर, लखनऊ में मस्जिद : शिया वक्फ बोर्ड
बीते दिनों में शिया वक्फ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी और कहा था कि अयोध्या में विवादित जमीन पर राम मंदिर का ही निर्माण कराया जाए। मस्जिद के निर्माण के लिए पास की मुस्लिम बाहुल्य बस्ती में सरकार जमीन उपलब्ध कराए। बता दें कि शिया वक्फ बोर्ड के पास 1946 तक इस जमीन का मालिकाना हक था जिसे ब्रिटिश सरकार ने छीनकर सुन्नी वक्फ बोर्ड को ट्रांसफर कर दिया था। इस मामले में शिया वक्फ बोर्ड भी पक्षकार था पर इलाहाबाद हाईकोर्ट में विस्तृत बहस के दौरान कोई उपस्थित नहीं हुआ। बाबरी मस्जिद को बनाने वाला मीर बाकी भी शिया था और शिया वक्फ बोर्ड ने इसे भी अपनी याचिका में आधार बनाया है। शिया वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष वसीम रिजवी हमेशा से ही राम मंदिर निर्माण की वकालत करते आए हैं।
शिया वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष वसीम रिजवी का मत है कि राम हिन्दुओं के आराध्य देव हैं और उनके जन्मस्थान पर मंदिर निर्माण कराने के लिए दोनों धर्म के लोगों आगे आना चाहिए। इस पहल में एक कदम आगे बढ़ाते हुए वसीम रिजवी ने एक मसौदा तैयार किया है। वसीम रिजवी ने कहा है, “विवादित स्थल पर भव्य राम मंदिर का निर्माण होना चाहिए जिससे देश में अमन कायम हो सके। शिया वक्फ बोर्ड का कहना है कि अयोध्या में मस्जिद का निर्माण नहीं होना चाहिए। अयोध्या की जगह लखनऊ लखनऊ के हुसैनाबाद में घण्टाघर के सामने स्थित शिया वक्फ बोर्ड की जमीन पर मस्जिद बनाई जाए। इस मस्जिद का नाम किसी मुस्लिम शासक या राजा के नाम पर ना रखकर ‘मस्जिद-ए-अमन’ रखा जाए।” वसीम रिजवी के इस मसौदे को राम विलास वेदांती, भास्कर दास, नृत्य गोपालदास, नरेंद्र गिरी, सुरेश दास, धर्म दास ने अपना समर्थन दिया है।
शिया वक्फ बोर्ड ने दायर किया था हलफनामा
राम जन्मभूमि मामले को लेकर शिया वक्फ बोर्ड सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर चुका है। दायर हलफनामे में शिया वक्फ बोर्ड ने कहा था कि अयोध्या में विवादित जगह पर राम मंदिर का ही निर्माण होना चाहिए। बोर्ड ने मस्जिद का निर्माण राम जन्मभूमि के पास स्थित मुस्लिम बाहुल्य इलाके में कराए जाने की मांग की थी। लेकिन शिया वक्फ बोर्ड की इस राय पर सुन्नी वक्फ बोर्ड की सहमति नहीं थी। अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण की बात शिया वक्फ बोर्ड शुरू से खुले तौर पर कहता रहा है। लेकिन अगर शिया वक्फ बोर्ड की बात पर कोर्ट अमल करे तो कांग्रेस और सपा जैसी मुस्लिम ‘हितैषी’ पार्टियों का जनाधार खत्म हो जायेगा। अब तक यह दोनों पार्टियां इस मुद्दे को बार-बार ‘राम’ और ‘हिंदुत्व’ से जोड़कर अपना उल्लू सीधा करती रही हैं और साम्प्रदायिकता की आग में अपनी सियासी रोटी सेंकती रही है।
शिया वक्फ बोर्ड की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दायर किये गए हलफनामे में बोर्ड अध्यक्ष वसीम रिजवी ने कहा था, “अगर विवादित जगह पर मंदिर और मस्जिद दोनों का निर्माण कराया जाता है तो दोनों समुदायों में संघर्ष की आशंका बनी रहेगी। हमें ऐसी स्थिति से बचना चाहिए। यह माकूल रहेगा कि विवादित जगह पर राम मंदिर का निर्माण कराया जाए और विवादित जगह से थोड़ी दूर स्थित मुस्लिम बाहुल्य इलाके में मस्जिद का निर्माण हो।” रिजवी ने हलफनामे में स्पष्ट किया था कि 1946 तक इस जमीन पर शिया वक्फ बोर्ड का कब्जा था लेकिन ब्रिटिश सरकार ने इस जमीन को सुन्नी वक्फ बोर्ड को ट्रांसफर कर दिया था। शिया वक्फ बोर्ड ने दलील दी थी कि इस मस्जिद को बनवाने वाला मीर बाकी भी शिया ही था। इसलिए जमीन पर पहला हक शिया वक्फ बोर्ड का ही बनता है।
सुन्नी वक्फ बोर्ड को है ऐतराज
अयोध्या में विवादित स्थल पर राम मंदिर निर्माण को लेकर मामले के पक्षकार सुन्नी वक्फ बोर्ड को ऐतराज है। सुन्नी वक्फ बोर्ड की तरफ से यह केस वरिष्ठ कांग्रेसी नेता और वकील कपिल सिब्बल लड़ रहे हैं। सुन्नी वक्फ बोर्ड हमेशा ही शिया वक्फ बोर्ड की दलीलों से पल्ला झाड़ लेता है। हालाँकि शिया वक्फ बोर्ड राम जन्मभूमि मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट में पक्षकार था। वहाँ पर शुरूआती दौर में उसने जमीन पर अपना दावा ठोंका था। पर बाद में विस्तृत दलील के दौरान उसकी तरफ से कोई पेश नहीं हुआ था। सुन्नी वक्फ बोर्ड का झुकाव कांग्रेस की तरह अधिक है और कई मौकों पर यह देखने को भी मिला है। सुन्नी वक्फ बोर्ड का कहना है कि इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट का निर्णय उसे स्वीकार होगा चाहे वह उसके पक्ष में आए या नहीं।
मंदिर निर्माण को लेकर जारी है बयानबाजी का दौर
अयोध्या में विवादित भूमि पर राम मंदिर निर्माण को लेकर हमेशा से ही सियासत गरमाई रहती है। मंदिर निर्माण को लेकर समय-समय पर भाजपा और कांग्रेस नेताओं के बयान सामने आते रहते हैं। बीते दिनों देश में हिंदुत्व के सबसे बड़े चेहरे और उत्तर प्रदेश के मुखिया योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि राम हिन्दुओं की आस्था के प्रतीक है। अयोध्या में राम मंदिर निर्माण देशवासियों का अरमान है। राम मंदिर आन्दोलन से जुड़े कई संत भी कह चुके हैं कि मंदिर निर्माण का समय नजदीक आ चुका है। मंदिर विवाद का मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है और इसपर अगली सुनवाई 5 दिसंबर को होनी तय हुई है। सुप्रीम कोर्ट स्पष्ट कर चुकी है कि वह इस मामले के जल्द समाधान के विषय में सोच रही है और इसके लिए यह इसपर रोज सुनवाई करेगी।
उत्तर प्रदेश में अयोध्या स्थित राम जन्मभूमि का मामला सदियों से विवादित रहा है। पिछले तीन दशकों से यह मामला देश की राजनीति का केंद्र बिंदु बनकर उभरा है और इसी की वजह से भाजपा की पहचान हिंदूवादी दल के रूप में हुई है। आज केंद्र में भाजपा की सरकार है और उत्तर प्रदेश में भी योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में भाजपा सत्ता पर काबिज है। ऐसे में देशभर के लोगों की निगाहें इस ओर टिकी हैं कि क्या अयोध्या में राम मंदिर निर्माण होगा? समय-समय पर इस बारे में भाजपा नेताओं और धर्मगुरुओं के बयान आते रहते हैं। बीते दिनों उत्तर प्रदेश की सत्ताधारी योगी सरकार के स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह ने कहा था, “मेरे विचार से राम मंदिर पहले से ही अयोध्या में उस जगह पर स्थित है। हमें वहाँ एक भव्य राम मंदिर का निर्माण कराना है।”
मंदिर निर्माण के पक्ष में बन रहा माहौल
बीते दिनों वरिष्ठ भाजपा नेता और सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा था कि 2018 में राम मंदिर निर्माण शुरू हो जाना चाहिए और 2019 से पूर्व मंदिर निर्माण पूरा हो जाना चाहिए। सुब्रमण्यम स्वामी इससे पूर्व भी सुप्रीम कोर्ट में राम जन्मभूमि पर पूजा की अनुमति के लिए याचिका दायर कर चुके हैं। उत्तर प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह ने कहा था कि जो लोग कभी राम मंदिर निर्माण का विरोध किया करते थे और इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले से सहमत नहीं थे, आज उनमें से 90 फीसदी लोग कह रहे हैं कि जमीन लेकर भव्य राम मंदिर का निर्माण कराया जाए। देश की परिस्थितियां बदल रही हैं और आज मुस्लिम भाई-बहन भी राम मंदिर निर्माण के समर्थन में हैं। दरअसल उनकी यह बात काफी हद तक सच भी है।
दशकों तक मंदिर-मस्जिद और मजहब की सियासत में पिसकर देश के मुसलमान भी तंग आ चुके हैं। केवल शिया वक्फ बोर्ड ही नहीं वरन इस मामले में वादी अयोध्या के मुस्लिम परिवार भी विवाद का निपटारा चाहते हैं। कुछ लोग समझौते की बात कर रहे हैं वहीं कुछ सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार कर रहे हैं। विवादित भूमि पर मंदिर बनाने के बात कहने वाले मुसलमानों को उनकी अपनी ही कौम शक भरी नजरों से देख रही है और उनके भाजपा या आरएसएस से तार जोड़ने में लगी है। विरोधी चाहे जो भी तर्क दें पर एक बात स्पष्ट है कि देश के मुसलमान राम जन्मभूमि विवाद और अपने धर्म के ऊपर हो रही राजनीति से ऊब चुके हैं। वह जल्द से जल्द इस मुद्दे का स्थायी, शांतिपूर्ण और न्यायपूर्ण निपटारा चाहते हैं।