Fri. Apr 26th, 2024
    योगी आदित्यनाथ

    उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में बहुमत से जीत दर्ज करने के बाद भाजपा ने योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में सरकार का गठन किया। लखनऊ के मेयर दिनेश शर्मा और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य ने बतौर उपमुख्यमंत्री शपथ ली थी। लेकिन इन तीनो में से किसी के भी पास उत्तर प्रदेश विधान मंडल की सदस्यता नहीं थी। इसके अतिरिक्त योगी मन्त्रिमण्डल के 2 अन्य सदस्यों बुन्देलखण्ड का नेतृत्व करने वाले सरकार के दलित चेहरे स्वतंत्र देव और योगी मन्त्रिमण्डल के एकमात्र मुस्लिम चेहरे मोहसिन रजा के पास भी किसी सदन की सदस्यता नहीं थी। आज भाजपा ने इस सम्बन्ध में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समेत सभी 5 मंत्रियों के नाम की सूची जारी कर दी और कहा है कि ये सभी आगामी 15 सितम्बर को होने वाले विधान परिषद चुनावों में अपनी ताल ठोकेंगे।

    उत्तर प्रदेश की राजनीति में यह लगातार तीसरा मौका है जब सूबे का मुख्यमंत्री उच्च सदन का सदस्य होगा। इससे पूर्व अखिलेश यादव (सपा) और मायावती (बसपा) भी उच्च सदन के ही सदस्य थे। विधान परिषद की यह पाँचों सीटें 4 सपा और 1 बसपा सदस्यों के इस्तीफे के बाद खाली हुई हैं। पहले चुनाव आयोग ने जारी अभिसूचना में 4 सीटों पर चुनाव कराने को कहा था जिसके बाद माना जा रहा था कि योगी मन्त्रिमण्डल से किसी एक मंत्री की विदाई हो सकती है। केशव प्रसाद मौर्य को केंद्रीय मन्त्रिमण्डल में भेजे जाने की बातें भी हो रही थी। लेकिन मंगलवार, 29 अगस्त को चुनाव आयोग द्वारा जारी दूसरी अभिसूचना में पाँचों सीटों पर चुनाव कराने की बात कही गई। इसके तुरंत बाद भाजपा ने मुख्यमंत्री योगी समेत अपने पाँचों मंत्रियों की सूची जारी कर दी।

    तय थी किसी एक मंत्री की विदाई

    चुनाव आयोग द्वारा जारी पहली अधिसूचना में विधान परिषद की 4 सीटों पर चुनाव कराने की बात कही गई थी। ऐसे में यह माना जा रहा था कि योगी मन्त्रिमण्डल से एक मंत्री की विदाई तय है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और दोनों उपमुख़्यमंत्रियों को सदन में रहना ही था। ऐसे में खतरे की सुई स्वतंत्र देव और मोहसिन रजा पर आकर अटक रही थी। स्वतंत्र देव बुन्देलखण्ड से आते हैं और दलित समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं। ऐसे में भाजपा रामनाथ कोविंद के राष्ट्रपति बनने के बाद दलितों में भाजपा के पक्ष में बने माहौल को ख़राब नहीं करना चाहती थी। योगी मन्त्रिमण्डल के एकमात्र मुस्लिम चेहरे मोहसिन रजा के बारे में कहा जा रहा था कि मन्त्रिमण्डल से इनकी विदाई हो सकती है। लेकिन सूची जारी होने के बाद अब यह स्पष्ट हो गया है कि सभी मंत्री अपने पदों पर बने रहेंगे।

    इस्तीफ़ा देने वाले पाँचों एमएलसी अब भाजपा में

    जिन 5 एमएलसी के इस्तीफे के बाद ये सीटें खाली हुई थी उनमें से 4 एमएलसी सपा के और 1 एमएलसी बसपा का था। विधान परिषद सदस्यता से इस्तीफ़ा देने वालों में सपा से बुक्कल नवाब, यशवंत सिंह, अशोक बाजपेयी और सरोजिनी अग्रवाल थे वहीं बसपा से जयवीर सिंह ने अपना इस्तीफ़ा सौंपा था। ये पाँचों नेता फिलहाल भाजपा के सदस्य बन चुके हैं और भविष्य में भाजपा इन्हें बड़ी भूमिका दे सकती है। इनके इस्तीफे के बाद सपा और बसपा ने भाजपा पर जोड़-तोड़ की राजनीति करने का आरोप लगाया था।

    सरकार के एकमात्र मुस्लिम चेहरे थे मोहसिन रजा

    उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में भाजपा ने एक भी मुस्लिम प्रत्याशी खड़े नहीं किए थे और इसके बावजूद भी उसे बहुमत से जीत मिली थी। पार्टी संगठन के इस निर्णय की सभी विपक्षी दलों ने आलोचना की थी और भाजपा को साम्प्रदायिक दल कहा था। उत्तर प्रदेश में टिकट बँटवारे को भाजपा की साम्प्रदायिक सोच से प्रभावित कदम कहा गया था। हालाँकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मोहसिन रजा को विधान मंडल के किसी भी सदन का सदस्य ना होने के बावजूद अपने मन्त्रिमण्डल में शामिल किया। योगी की छवि भी मुस्लिम विरोधी नेता की रही है। मोहसिन रजा मौजूदा सरकार के एकमात्र मुस्लिम चेहरे हैं। ऐसे में योगी कैबिनेट से मोहसिन रजा की विदाई योगी आदित्यनाथ को फिर से सवालों के घेरे में खड़ा कर सकती थी।

    मोहसिन रजा
    मोहसिन रजा

    बसपा को आधार देती स्वतंत्र देव की विदाई

    बसपा सुप्रीमो मायावती ने जुलाई की शुरुआत में मानसून सत्र के दूसरे ही दिन राज्यसभा सदस्यता से इस्तीफ़ा दे दिया था। उन्होंने दलितों पर हो रहे अत्याचार को अपने इस्तीफे का आधार बनाया था। बसपा पूर्णतः जातीय राजनीति करने वाला दल है और पिछड़े, दबे-कुचले और दलित मतदाताओं का बड़ा जनाधार अब तक उसके साथ रहा है। हालिया विधानसभा चुनावों में हालाँकि पार्टी का प्रदर्शन निराशाजनक रहा था और वह 80 से 19 सीटों पर सिमट गई थी। बसपा सुप्रीमो मायावती फिलहाल पार्टी संगठन को मजबूत करने का काम कर रही हैं और वापस अपने जनाधार से जुड़ने का प्रयास कर रही हैं। उनकी कोशिशों को रामनाथ कोविंद की उम्मीदवारी ने बड़ा झटका दिया था पर स्वतंत्र देव की योगी मन्त्रिमण्डल से विदाई उनके लिए संजीवनी का काम कर सकती थी।

    स्वतंत्र देव
    स्वतंत्र देव

    उपमुख्यमंत्रियों को लेकर फँसा था पेंच

    मुख्यमंत्री चुने जाने पर योगी आदित्यनाथ ने भाजपा आलाकमान से 2 उपमुख़्यमंत्रियों की मांग की थी। दिनेश शर्मा और केशव प्रसाद मौर्य को उपमुख्यमंत्री बनाकर भाजपा आलाकमान ने उनकी मांग भी पूरी कर दी थी और सरकार में सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व भी तय कर दिया था। दिनेश शर्मा सवर्णों का प्रतिनिधित्व करते हैं वहीं केशव प्रसाद मौर्य ओबीसी वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं। भाजपा की बहुमत से जीत का मुख्य आधार ओबीसी वर्ग का भाजपा की तरफ झुकाव भी था। नीतीश कुमार की जेडीयू एनडीए में शामिल हो चुकी है और भाजपा को राष्ट्रीय पहचान का ओबीसी नेता मिल चुका है। रामनाथ कोविंद के राष्ट्रपति बनने के बाद दलितों में अपने पक्ष में बन रहे माहौल को भुनाने के लिए भाजपा स्वतंत्र देव को पार्टी प्रदेशाध्यक्ष का पद दे सकती है।

    केशव प्रसाद मौर्य और दिनेश शर्मा
    उपमुख्यमंत्रियों को लेकर फँसा था पेंच

    वर्तमान भाजपा प्रदेशाध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य को प्रमोट कर मोदी कैबिनेट में भेजा जा सकता था। ऐसा करने से फूलपुर की महत्वपूर्ण सीट भाजपा के कब्जे में रहती और बसपा सुप्रीमो मायावती की प्रदेश की राजनीति में वापसी की संभावनाएं धूमिल हो जाती। स्वतंत्र देव के माध्यम से भाजपा प्रदेश के कुर्मी वोटरों को भी अपनी तरफ लुभाने में सफल रहती। इस वर्ग का प्रदेश में बड़ा जनाधार है और अभी तक भाजपा इन वोटरों को लुभाने के लिए अपने सहयोगी अपना दल का सहारा लेती रही है। वैसे अमूमन ये कम ही देखा गया है कि किसी राज्य में 2 उपमुख्यमंत्री हो।

    होंगे लोकसभा उपचुनाव

    विधान परिषद का सदस्य बनने के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य को अपनी लोकसभा सीट छोड़नी पड़ेगी। पहले यह माना जा रहा था कि भाजपा प्रदेशाध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य को केंद्र में प्रमोट किया जा सकता है। लेकिन भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने स्पष्ट कर दिया है कि केशव प्रसाद मौर्य को उत्तर प्रदेश की राजनीति में बड़ी भूमिका निभानी है। उनका स्पष्ट संकेत 2019 के लोकसभा चुनावों की तरफ है जिसमें भाजपा का लक्ष्य सूबे में क्लीन स्वीप करना है। मौर्य फूलपुर सीट से लोकसभा सांसद हैं वहीं मुख्यमंत्री योगी गोरखपुर से लोकसभा सांसद हैं। इन दोनों के सीट छोड़ने के बाद होने वाले उपचुनाव 2019 के लोकसभा चुनावों के लिए रिहर्सल का काम करेंगे।

    मायावती और केशव प्रसाद मौर्य
    फूलपुर की सीट छोड़ेंगे मौर्य

    उपचुनावों से वापसी कर सकती है बसपा

    उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य की राज्य में भूमिका तय कर भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह फूलपुर में लोकसभा उपचुनावों कराने को लेकर तैयार है। पहले यह माना जा रहा था की भाजपा फूलपुर में उपचुनाव का खतरा नहीं उठाएगी पर अब इस पर स्थिति स्पष्ट हो गई है। राज्यसभा सदस्यता से इस्तीफ़ा देने के बाद बसपा सुप्रीमो मायावती सूबे में संगठन मजबूत करने में जुटी हुई हैं और फूलपुर के संभावित उपचुनाव बसपा के लिए संजीवनी का काम कर सकते हैं। यह सीट बसपा के लिए काफी मायने रखती है और यहाँ से बसपा संस्थापक कांशीराम ने 1996 में चुनाव लड़ा था। हालांकि उन्हें सपा के जंग बहादुर पटेल हाथों 16 हजार से अधिक मतों से शिकस्त खानी पड़ी थी। इस सीट पर दलित, अल्पसंख्यक और पिछड़े तबके का जनाधार है और वर्तमान हालातों में वो एक मजबूत दावेदार बन सकती हैं।

    मायावती
    उपचुनावों से वापसी कर सकती हैं मायावती

    हाल ही में आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव द्वारा पटना में आयोजित कि गई “भाजपा हटाओ, देश बचाओ” रैली में बसपा सुप्रीमो मायावती नहीं शामिल हुई थी। उनकी गैरमौजूदगी से विपक्षी एकता को झटका लगा था। हालाँकि वो पहले ही स्पष्ट कर चुकी हैं कि वह भाजपा के खिलाफ हैं। वो किसी भी गठबंधन में तभी शामिल होंगी जब सीटों का बँटवारा तय हो जाए। फूलपुर उपचुनावों में उनकी दावेदारी पर सपा और कांग्रेस उनके साथ आ सकते हैं। वर्तमान परिदृश्य में विपक्ष के लिए उनसे बेहतर किसी और उम्मीदवार का विकल्प नजर नहीं आता है। जातीय वोटों का समीकरण और विपक्षी पार्टियों का साथ उनके इस कदम को और मजबूत बनाते हैं और ये प्रदेश की राजनीति में हाशिये पर जा चुकी बसपा के वापसी की शुरुआत हो सकती है।

    By हिमांशु पांडेय

    हिमांशु पाण्डेय दा इंडियन वायर के हिंदी संस्करण पर राजनीति संपादक की भूमिका में कार्यरत है। भारत की राजनीति के केंद्र बिंदु माने जाने वाले उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले हिमांशु भारत की राजनीतिक उठापटक से पूर्णतया वाकिफ है।मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक करने के बाद, राजनीति और लेखन में उनके रुझान ने उन्हें पत्रकारिता की तरफ आकर्षित किया। हिमांशु दा इंडियन वायर के माध्यम से ताजातरीन राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर अपने विचारों को आम जन तक पहुंचाते हैं।