Sat. Nov 23rd, 2024
    शरद यादव और लालू यादव गठबंधन

    बिहार के मुख्यमंत्री और 2019 में नरेंद्र मोदी का विकल्प माने जा रहे नीतीश कुमार ने भाजपा का हाथ क्या थामा, विपक्ष पर मानो मुसीबत का पहाड़ ही टूट पड़ा। नरेंद्र मोदी के खिलाफ विपक्ष का सबसे विश्वसनीय, लोकप्रिय और राष्ट्रीय पहचान वाला चेहरा ही अब नरेंद्र मोदी के साथ खड़ा हो गया था। ऐसे में पहले से कमजोर विपक्ष की हालत अब और खस्ताहाल हो गई थी। नीतीश कुमार के महागठबंधन से अलग होकर भाजपा के साथ सरकार बनाने के निर्णय से ना केवल विपक्ष के सभी दल खफा थे वरन उनकी अपनी पार्टी जेडीयू भी दो गुटों में बँट गई थी। एक गुट का नेतृत्व खुद नीतीश कुमार कर रहे थे वहीं बागी गुट के नेतृत्व की बागडोर पिछले डेढ़ दशक से नीतीश कुमार के साथी रहे जेडीयू के संस्थापक अध्यक्ष शरद यादव ने संभाली। दोनों ओर से आरोप-प्रत्यारोप का दौर चलता रहा और दोनों गुटों के नेताओं ने एक-दूसरे के खिलाफ जमकर बयानबाजी की।

    नीतीश कुमार और शरद यादव
    चरम पर पहुँचा टकराव

     

    हालांकि इसके बाद भी नीतीश कुमार से शरद यादव की नाराजगी कम नहीं हुई और दोनों पक्षों से आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी रहा। शरद यादव पहले से ही जेडीयू में हाशिए पर थे और वह अब खुलकर नीतीश कुमार के खिलाफ बोल रहे थे। इससे नाराज होकर नीतीश कुमार ने एक-एक कर जेडीयू से शरद यादव के साथियों और अपने विरोधियों को किनारे करना शुरू किया। शुरुआत उन्होंने पार्टी महासचिव अरुण श्रीवास्तव की बर्खास्तगी से की और उनपर पार्टी व्हिप का उल्लंघन करने का आरोप लगाया। जेडीयू ने अरुण श्रीवास्तव को यह जिम्मेदारी सौंपी थी कि वह गुजरात में पार्टी के एक मात्र विधायक छोटुभाई वासवा को भाजपा उम्मीदवार बलवंत सिंह राजपूत के पक्ष में मतदान करने को कहे। जेडीयू विधायक का वोट कांग्रेस उम्मीदवार अहमद पटेल को गया था और यही वोट उनकी जीत का आधार बना था।

    नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी
    राम-भारत मिलाप

    नीतीश कुमार की अगली गाज पार्टी के राज्यसभा सांसद और शरद यादव के वरिष्ठ सहयोगी अली अनवर पर गिरी। अली अनवर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी द्वारा बुलाई गई विपक्ष के नेताओं की बैठक में शामिल हुए थे। जेडीयू ने उनपर पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप लगाया और संसदीय दल से बर्खास्त कर दिया। नीतीश कुमार के भाजपा के साथ जाने पर अली अनवर ने कहा था कि उनकी अंतरात्मा उन्हें भाजपा के साथ जाने की गवाही नहीं देती। पार्टी के वरिष्ठ नेता केसी त्यागी ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी पर जेडीयू को तोड़ने का भी आरोप लगाया था। अगला हमला शरद यादव पर हुआ और पार्टी ने उन्हें राज्यसभा में संसदीय दल के नेता के पद से हटाकर उनकी जगह आरसीपी सिंह को राज्यसभा में अपना नेता नियुक्त किया। इसी क्रम में आगे पार्टी ने शरद यादव की बिहार यात्रा के दौरान उनका समर्थन करने वाले 21 पार्टी नेताओं को बर्खास्त कर दिया। इन नेताओं में पूर्व सांसद अर्जुन राय और पूर्व मंत्री रमई राम के नाम भी शामिल थे। नीतीश कुमार ने दिल्ली जाकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से मुलाक़ात की। अमित शाह ने उन्हें एनडीए में शामिल होने का न्यौता भी दिया।

    नीतीश कुमार और अमित शाह
    भाजपा के चाणक्य से मिले नीतीश

    बता दें कि शरद यादव 10 से 12 अगस्त तक बिहार के तीन दिवसीय दौरे पर थे। इस दौरान उन्होंने 7 जिलों की यात्रा की और जनता के बीच जाकर बात की। विभिन्न मुद्दों पर उन्होंने जनता का मन टटोलने की भी कोशिश की। उन्होंने लोगों से कहा कि नीतीश कुमार के साथ वो लोग खड़े हैं जो अपना स्वार्थ साधने में लगे हैं। नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली जनता दल यूनाइटेड सरकारी है। अपने गुट के बारे में उन्होंने कहा कि मेरे साथ वो लोग खड़े हैं जो जनता से जुड़े हैं और जनता की सेवा को लेकर फिक्रमंद है। मेरी जनता दल यूनाइटेड जनता की है और जनता के लिए है। आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने स्पष्ट कहा था कि शरद यादव के नेतृत्व वाली जेडीयू के साथ उनका गठबंधन जारी रहेगा। ऐसे में अब तक यह माना जा रहा था कि शरद यादव नीतीश कुमार से अलग होकर अपने समर्थकों के साथ अपनी नई पार्टी का निर्माण करेंगे और लालू प्रसाद यादव की आरजेडी और कांग्रेस के गठबंधन में साझेदार बने रहेंगे। पर अपने हालिया रुख से शरद यादव ने स्पष्ट कर दिया है कि उनकी नजर सिर्फ बिहार पर नहीं वरन राष्ट्रीय राजनीति के पटल पर छाने की है।

    शरद यादव का ‘शक्ति प्रदर्शन’

    शरद यादव ने आज दिल्ली में अपने आवास पर सभी विपक्षी दलों की सम्मिलित बैठक बुलाई है। उन्होंने इसे ‘समान विचार’ वाले नेताओं की बैठक नाम दिया है। यह नाम काफी हद तक सही भी लगता है क्योंकि इस समय विपक्ष के सभी नेताओं के मन में एक ही विचार कौंध रहा है और वह है भाजपा का ‘विजय रथ’ रोकना और उससे सत्ता हथियाना। इसके लिए आज कभी एक-दूसरे के धुर विरोधी रहे राजनीतिक दल साथ खड़े हैं। वैसे ‘सम्मिलित विपक्ष-मजबूत विपक्ष’ की शुरुआत का श्रेय बिहार के विधानसभा चुनावों को दिया जाना चाहिए क्योंकि उन चुनावों में पहली बार कई विरोधी विचारधाराओं वाले दल एकसाथ आये थे। शरद यादव उस समय जेडीयू के अध्यक्ष थे और उन्होंने लालू प्रसाद यादव के नेतृत्व वाली आरजेडी और सोनिया गाँधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस के साथ गठबंधन कर ‘महागठबंधन’ की नींव रखी थी। उस वक़्त आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने कहा था कि भाजपा को रोकने के लिए वह विष पीने को भी तैयार हैं। उनका इशारा नीतीश कुमार के नेतृत्व में हुए महागठबंधन की तरफ था। शरद यादव इस महागठबंधन के मुख्य सूत्रधार थे और नीतीश कुमार के करिश्माई नेतृत्व में महागठबंधन ने भाजपा का’ विजय रथ’ थाम लिया था।

    लालू यादव,मुलायम सिंह यादव और शरद यादव
    रंग ला सकता है जातीय महागठबंधन

    आज शरद यादव द्वारा अपने आवास पर बुलाई गई बैठक को नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार के खिलाफ शरद यादव का शक्ति प्रदर्शन माना जा रहा है। नीतीश कुमार द्वारा अपने पर कतरे जाने और उनकी राय जाने बिना भाजपा के साथ जाने से शरद यादव खासे नाराज चल रहे हैं। मुमकिन है इस बैठक के बाद जेडीयू शरद यादव पर अनुशासनात्मक कार्रवाई करे और उन्हें पार्टी से बर्खास्त कर दे। पर शरद यादव पहले ही संकेत दे चुके हैं कि वह पार्टी के नाम और चुनाव चिन्ह के लिए चुनाव आयोग की चौखट पर जायेंगे। इस बैठक में पूर्व प्रधानमंत्री और वरिष्ठ कांग्रेसी नेता मनमोहन सिंह, कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी के अलावा विपक्ष के 17 दलों के शामिल होने की सम्भावना है। माना जा रहा है कि पूरे देश से शीर्ष क्षेत्रीय अल्पसंख्यक और दलित नेता भी इसमें शामिल हो सकते हैं। शरद यादव को केंद्रबिंदु बनाकर इस बैठक में केंद्रीय महागठबंधन के आगाज की घोषणा हो सकती है।

    शरद यादव के पास गठबंधन की राजनीति और संगठन में काम करने का लम्बा अनुभव है। आजादी के बाद देश में हुए सभी क्रांतिकारी बदलावों को उन्होंने बड़े ही करीब से देखा है और जिया है फिर चाहे वह जय प्रकाश नारायण का आंदोलन हो या वीपी सिंह का आरक्षण मॉडल। ऐसे हालातों में वह विपक्ष के लिए अहम भूमिका अदा कर सकते हैं। कांग्रेस के नेतृत्व वाली एनडीए को यह बात अच्छी तरह पता है कि अगर सभी विपक्षी दलों को भाजपा के खिलाफ एक करना है तो इसके लिए उन्हें किसी अनुभवी राजनीतिक धुरंधर की जरुरत होगी। फिलहाल कांग्रेस के पास नरेंद्र मोदी के खिलाफ कोई चेहरा भी नहीं जिसके दम पर वो विपक्षी दलों को अपनी तरफ खींच सके। ऐसे में शरद यादव विपक्ष को एक सूत्र में पिरोने के सूत्रधार बन सकते हैं। शरद यादव को भी यह बात पता है कि जेडीयू से उनका पत्ता काट चुका है और नीतीश कुमार जल्द ही उन्हें भी किनारे लगा देंगे। इस लिहाज से शरद यादव के लिए भी यह जरुरी हो गया है कि वह राष्ट्रीय राजनीतिक में अपनी नई पारी का आगाज करें और अपने लिए नई भूमिका तलाश कर विपक्ष के लिए नई सियासी जमीन तैयार करें। शरद यादव एक वक़्त पर भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए में संयोजक की भूमिका निभाते थे और उन्हें गठबंधन और संगठन का अच्छा-ख़ासा अनुभव भी है। ऐसे में मुमकिन है कि विपक्षी दलों के इस ‘केंद्रीय महागठबंधन’ में भी वह संयोजक की भूमिका में रहे और विपक्षी एकता के केंद्र बिंदु बने रहें।

    By हिमांशु पांडेय

    हिमांशु पाण्डेय दा इंडियन वायर के हिंदी संस्करण पर राजनीति संपादक की भूमिका में कार्यरत है। भारत की राजनीति के केंद्र बिंदु माने जाने वाले उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले हिमांशु भारत की राजनीतिक उठापटक से पूर्णतया वाकिफ है।मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक करने के बाद, राजनीति और लेखन में उनके रुझान ने उन्हें पत्रकारिता की तरफ आकर्षित किया। हिमांशु दा इंडियन वायर के माध्यम से ताजातरीन राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर अपने विचारों को आम जन तक पहुंचाते हैं।