Sun. Nov 17th, 2024
    अखिलेश यादव और तेजस्वी यादव

    इन दिनों देश के राजनीतिक पटल पर दो नाम छाए हुए हैं, अखिलेश यादव और तेजस्वी यादव। यह दोनों युवा अपनी पार्टी के ‘युवराज’ हैं। अखिलेश यादव को तो पहले से ही ‘टीपू सुल्तान’ की उपाधि दी जा चुकी है। इन दोनों ने ही सत्ता का स्वाद चखा हुआ है और आने वाले समय में अपने पिता की विरासत संभालने के लिए सियासी जमीन तैयार करने में जुटे हुए हैं। तेजस्वी यादव महागठबंधन सरकार में बिहार के उपमुख्यमंत्री रह चुके हैं वहीं अखिलेश यादव सपा की पूर्ण बहुमत की सरकार में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। अखिलेश यादव देश के राजनीति की धूरी कहे जाने वाले उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखते हैं वहीं तेजस्वी यादव जातीय राजनीति के गढ़ बिहार से। फिलहाल दोनों के सामने एक ही चुनौती है और वह है भाजपा। यूँ तो भाजपा पूरे विपक्ष के लिए चुनौती है पर इन दोनों को हाशिए पर भेजने में भाजपा का अहम योगदान रहा है।

    उत्तर प्रदेश में भाजपा ने हालिया विधानसभा चुनावों में बहुमत हासिल कर अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली सपा को धूल चटाई थी। वहीं बिहार में भाजपा ने नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा देने के बाद उनका समर्थन किया था और नीतीश ने महागठबंधन से अलग हो भाजपा के साथ गठबंधन कर पुनः सरकार बना ली थी। इन दोनों युवराजों को सत्ता से दूर करने में भाजपा की मुख्य भूमिका रही है इसलिए मुमकिन है दोनों साथ आकर भाजपा के खिलाफ एक हो जाए। वैसे भी पुरानी कहावत है ‘दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है’ और ‘चोर-चोर मौसेरे भाई’ होते है। यह दोनों मौसेरे भाई तो नहीं पर बिरादरी से ‘भाई’ जरूर हैं। इन दोनों राज्यों में इनकी बिरादरी के वोटों का बड़ा आधार है। ऐसे में इन ‘यदुवंशियों’ का यह ‘याराना’ रंग ला सकता है। उन्हें जेडीयू के बागी और धाकड़ नेता शरद यादव का भी साथ मिलने की उम्मीद है। शरद यादव मूलतः मध्य प्रदेश के जबलपुर के निवासी हैं। ऐसे में इन तीन बड़े राज्यों में बिरादरी के सबसे बड़े नेताओं के बीच होने वाला ‘जातीय गठबंधन’ मोदी-शाह के ‘विजय रथ’ का पहिया थाम सकता है।

    अखिलेश का ‘देश बचाओ-देश बनाओ’ अभियान

    सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने केंद्र की ‘मोदी सरकार’ और प्रदेश की ‘योगी सरकार’ के खिलाफ बुधवार को ‘देश बचाओ-देश बनाओ’ अभियान शुरू किया। अभियान की शुरुआत उन्होंने फैजाबाद जिले से की जिसके अंतर्गत राम जन्मभूमि अयोध्या आती है। शायद अखिलेश को भी यह एहसास हो गया है कि ‘राम’ नाम बिना उनकी नैया पार होने वाली नहीं है। उन्होंने यह अभियान पार्टी का खोया जनाधार वापस पाने के लिए शुरू किया है। अखिलेश पहले ही कह चुके हैं कि उन्हें भाजपा को रोकने के लिए बसपा के साथ जाने में भी कोई दिक्कत नहीं है। यह सही भी है क्योंकि अब भाजपा को रोकना किसी पार्टी के अकेले बूते की बात नहीं।

    तेजस्वी की जनादेश अपमान यात्रा

    तेजस्वी यादव ने बिहार में मोतिहारी से जनादेश अपमान यात्रा शुरू की है। उन्होंने नीतीश कुमार पर बिहार की 12 करोड़ की जनता के जनादेश के अपमान का आरोप लगाया था। जेडीयू के बागी नेता शरद यादव भी नीतीश के इस फैसले को ‘गलत’ बता चुके हैं। शरद यादव भी आगामी तीन दिवसीय यात्रा पर बिहार में हैं। आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव ने तो शरद यादव की तरफ दोस्ती का हाथ भी बढ़ाया है और कहा है कि उनकी पार्टी का ‘शरद यादव की जेडीयू’ से गठबंधन जारी रहेगा। भाजपा के सहयोगी और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी भी भाजपा से नाराज चल रहे हैं। ऐसे में तेजस्वी की यह यात्रा विपक्ष को एकजुट करने के लिहाज से सार्थक साबित हो सकती है।

    By हिमांशु पांडेय

    हिमांशु पाण्डेय दा इंडियन वायर के हिंदी संस्करण पर राजनीति संपादक की भूमिका में कार्यरत है। भारत की राजनीति के केंद्र बिंदु माने जाने वाले उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले हिमांशु भारत की राजनीतिक उठापटक से पूर्णतया वाकिफ है।मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक करने के बाद, राजनीति और लेखन में उनके रुझान ने उन्हें पत्रकारिता की तरफ आकर्षित किया। हिमांशु दा इंडियन वायर के माध्यम से ताजातरीन राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर अपने विचारों को आम जन तक पहुंचाते हैं।