मालदीव में राष्ट्रपति चुनावों के बाद घिरे राजनीतिक संकट के काले बादल अब छंटते जा रहे हैं।
मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल गयूम ने भारत की सराहना करते हुए कहा कि सत्तासीन सरकार पर दबाव बनाकर मालदीव में लोकतंत्र की रक्षा भारत ने की है। अब्दुल गयूम ने कहा कि मालदीव की नवनिर्वाचित सरकार का रुख भारत के प्रति नरम है।
पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल गयूम तीन दशक 2008 तक सत्ता पर काबिज थे और एक माह पूर्व ही उन्हें कैद से रिहा कर दिया था। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन के कार्यकाल में लोकतंत्र को बहुत नुकसान हुआ है। हालांकि लोकतान्त्रिक ताकतों ने दुश्मनों को धुल चटा दी थी।
मालदीव में 23 सितम्बर को हुए राष्ट्रपति चुनावों में विपक्षी दल के साझा उम्मीदवार इब्राहीम सोलिह को जीत मिली थी। मालदीव में राजनीतिक संकट का दौर फ़रवरी में शुरू हुआ था। राष्ट्रपति यामीन ने अब्दुल सहित अन्य विपक्षी नेताओं को जेल में डाल दिया था।
हाल ही में अब्दुल्ला यामीन ने चुनावों के नतीजों को चुनौती दी थी। उन्होंने आरोप लगाए कि चुनावी प्रक्रिया में हेराफेरी हुई थी लेकिन शीर्ष अदालत ने उनकी याचिका को खारिज कर दिया था। राष्ट्रपति यामीन 17 नवम्बर को विजेता दल को सत्ता की कमान सौंप देंगे।
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अब्दुल गयूम ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में मालदीव की संवेधानिक संस्थाओं और राज्यों से मालदीव की जनता का विश्वास डगमगाया है। बहरहाल जनता ने चुनाव में अपना सही फैसला सुनाया था।
उन्होंने यकीन दिलाया कि नवनिर्वाचित गठबंधन की सरकार में संविधान, संवैधानिक संस्था, और संविधान में दिये नागरिकों के अधिकार को मज़बूत और सुरक्षित बनाया जायेगा।
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चीन के अब्दुल्ला यामीन को समर्थन के बाबत अब्दुल गयूम ने उम्मीद जताई कि चीन मालदीव की जनता की इच्छा का सम्मान करेगा। उन्होंने कहा कि मालदीव में आपातकाल के दौरान भारत ने एक सकारात्मक किरदार निभाया है। साथ ही अन्य देशों ने लोकतंत्र की साख को बचाए रखने के लिए विरोधी दलों पर दबाव बनाकर रखा था।
अब्दुल गयूम ने कहा कि बीते कुछ वर्षों में भारत और मालदीव के मध्य द्विपक्षीय समझौतों में कोई तल्खी नहीं देखी है और मुझे नहीं लगता कि दशकों की हमारी इंडिया फर्स्ट पालिसी पर इस राजनीतिक संकट का कोई प्रभाव पड़ेगा। उन्होंने कहा कि भारत मालदीव का सबसे नजदीकी और विश्वसनीय साझेदार है।
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