भाजपा को रोकने के लिए देश के सभी राजनीतिक दल विपक्षी दलों को साथ लाने की हर संभव कोशिश करते नजर आ रहे हैं। पहले शरद यादव द्वारा बुलाई गई सांझी विरासत सम्मलेन में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी ने 2019 में ‘मोदी लहर’ को रोकने के लिए सभी विपक्षी दलों को एक साथ आने के लिए कहा था और अब आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने भाजपा के विरुद्ध सभी दलों को एकजुट करने के लिए आगामी 27 अगस्त को पटना में ‘भाजपा हटाओ, देश बचाओ’ रैली का आयोजन किया है। इस रैली में विपक्ष की एकजुटता दिखाने के लिए उन्होंने सभी विपक्षी दलों के नेताओं को आमंत्रित किया था। लेकिन अब खबर आ रही है कि बसपा सुप्रीमो मायावती ने लालू प्रसाद यादव की रैली में जाने से इंकार कर दिया है। भाजपा के खिलाफ एकजुट हो रहे विपक्ष को इससे बड़ा झटका लगा है।
इस रैली में गैर-एनडीए दलों के नेताओं को आमंत्रित किया गया है। इस रैली को 2019 में होने वाले लोकसभा चुनावों के मद्देनजर विपक्षी दलों के महागठबंधन का आधार माना जा रहा था। हाल ही में बिहार के सत्ताधारी दल जेडीयू के बागी नेता शरद यादव ने पटना में ही जन अदालत सम्मलेन का आयोजन किया था जिसमें नीतीश कुमार के भाजपा के साथ जाने के फैसले से नाराज जेडीयू के सभी नेता पहुँचे थे। लालू प्रसाद यादव ने खुले तौर पर शरद यादव का समर्थन किया है और कहा है कि शरद यादव के नेतृत्व वाली जेडीयू से उनकी पार्टी का गठबंधन जारी रहेगा। ऐसे में यह रैली बिहार की राजनीति के लिहाज से भी काफी महत्वपूर्ण मानी जा रही थी।
लालू प्रसाद यादव के 12 ठिकानों पर सीबीआई द्वारा की गई छापेमारी और उसके बाद रेलवे टेंडर घोटालों में उनके पूरे परिवार की संलिप्तता ने बिहार की राजनीति में बवंडर ला दिया था। नीतीश कुमार में मोदी का विकल्प तलाश रहे विपक्ष को उस वक़्त बड़ा झटका लगा था जब नीतीश कुमार ने महागठबंधन छोड़कर भाजपा का हाथ थाम लिया था और बिहार के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा दे दिया था। अगले ही दिन उन्होंने भाजपा के समर्थन से सरकार बना ली थी और तभी से उनकी पार्टी जेडीयू में भी उनके खिलाफ सुर उठने लगे थे। डेढ़ दशक से उनके साथी रहे शरद यादव भी नीतीश कुमार के इस फैसले के खिलाफ हो गए थे और उन्होंने इसे गलत करार दिया था। वहीं जेडीयू के राज्यसभा सांसद अली अनवर ने कहा था कि उनकी अंतरात्मा भाजपा के साथ जाने को गवाही नहीं देती।
सबसे पहले लालू ने लिया था मायावती का पक्ष
मानसून सत्र की शुरुआत में ही बसपा सुप्रीमो मायावती ने दलित हिंसा को आधार बनाकर अपनी बात ना रखने देने का आरोप लगाकर राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफ़ा दे दिया था। उनके इस्तीफे के बाद सबसे पहली प्रतिक्रिया आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने दी थी। उन्होंने बसपा सुप्रीमो के निर्णय को सही ठहराया था और कहा था कि भाजपा दबे-कुचलों की आवाज को दबाना चाहती है। उन्होंने मायावती को अपनी पार्टी आरजेडी के कोटे से बिहार से राज्यसभा भेजने की पेशकश भी की थी। लालू प्रसाद यादव ने उस वक़्त मायावती को देश की सबसे सशक्त दलित नेता कहा था। हालांकि उनके प्रस्ताव पर मायावती ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी थी पर माना जा रहा था कि वह केंद्र में लालू प्रसाद यादव की आरजेडी के साथ गठबंधन कर महागठबंधन का हिस्सा बनेंगी।
आज बसपा सुप्रीमो मायावती के रैली में शामिल होने से इंकार करने के बाद विपक्षी एकता और कमजोर होती नजर आ रही है। बसपा पहले उत्तर प्रदेश में भाजपा के साथ गठबंधन कर सत्ता में रह चुकी है और ऐसे में मुमकिन है वह फिर से परोक्ष रूप से भाजपा का साथ दे। हो सकता है बसपा चुनाव अकेले दम पर लड़े और चुनाव परिणामों के बाद आगे की रणनीति तय करे, लेकिन उसके रैली में शामिल ना होने से विपक्ष को झटका लगा है। भले ही बसपा आज हाशिए पर जा चुकी हो पर मायावती आज भी देश में दलित राजनीति का सबसे बड़ा चेहरा है। उनकी पार्टी का जनधार घटा जरूर है पर वह पूर्णतयः समाप्त नहीं हुआ। मुमकिन है मायावती पार्टी संगठन पर ध्यान दें और अपने वोट बैंक में अपनी पकड़ मजबूत करें। हालांकि रामनाथ कोविंद की उम्मीदवारी का सबसे ज्यादा नुकसान तो बसपा को ही हुआ है पर मुमकिन है वह फिर से अपनी जड़ें तलाशने में सफल रहे।
सपा इस समय आंतरिक कलह के दौर से गुजर रही है और हाल के कुछ समय में पार्टी हर अहम मुद्दों पर दो धड़ों में विभाजित नजर आई है। हालांकि अखिलेश यादव आरजेडी के साथ आने की बात कह चुके हैं। वामपंथी दल पहले ही ममता बनर्जी के रैली में शामिल होने की वजह से रैली से अपना पल्ला झाड़ चुके है। उनका कहना है कि वह ऐसे किसी भी मंच का हिस्सा नहीं बन सकते जिसपर कोई भ्रष्ट आरोपों वाला नेता उनका साथी हो। हालांकि यह बात तो रैली के आयोजक लालू प्रसाद यादव पर भी लागू होती है। कांग्रेस का लालू यादव की आरजेडी से गठबंधन है और ऐसे में उसका समर्थन मिलना लाजिमी है। इस रैली पर शरद यादव का रुख भी बहुत महत्वपूर्ण है। अभी तक शरद यादव के हर कदम पर लालू यादव ने उनका समर्थन किया है और अब यह देखना दिलचस्प होगा कि लालू यादव की इस मुहिम को शरद यादव का समर्थन मिलता है या नहीं।
एक बात स्पष्ट है कि लालू यादव इस रैली में बड़ी संख्या में विपक्षी दलों को जुटाकर अपना पक्ष मजबूत करना चाहेंगे क्योंकि बिहार की सत्ता हाथ से जाने और रेलवे टेंडर घोटाले में नाम आने के बाद बिहार के सबसे शक्तिशाली यादव परिवार के सितारे गर्दिश में ही चल रहे हैं। आज तमिलनाडु के सत्ताधारी दल एआईएडीएमके के दोनों धड़ों का विलय हो गया और अब उनके एनडीए में शामिल होने के रास्ते भी खुल गए। देश की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी का साथ मिलने के बाद एनडीए अब और सशक्त हो गई है और उसके लिए 2019 की राह और आसान नजर आ रही है। विपक्ष के पास दलित नेता के रूप में सबसे बड़ा चेहरा मायावती का ही था और बसपा सुप्रीमो मायावती का इस तरह से रैली में आने से इंकार करना भाजपा के खिलाफ विपक्ष की लामबंदी को और कमजोर करेगा।