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    मोदी लहर

    बीते कुछ महीने केंद्र की सत्ताधारी भाजपा सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए अच्छे नहीं गुजरे। गुजरात राज्यसभा चुनावों में साम, दाम, दण्ड और भेद के इस्तेमाल के बावजूद भी भाजपा कांग्रेस के चाणक्य अहमद पटेल को मात देने में असफल रही वहीं आर्थिक मोर्चे पर मोदी सरकार की विफलता ने विपक्षी दलों को भाजपा के खिलाफ एकजुट कर दिया। जीएसटी और नोटबंदी के खिलाफ विपक्षी दल भाजपा की घेराबंदी करने लगे और उनकी इस मुहिम में कई भाजपाई दिग्गज भी शामिल हो गए। यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी और शत्रुघ्न सिन्हा खुलकर मोदी सरकार के खिलाफ बोले जिसकी वजह से भाजपा की काफी किरकिरी भी हुई। भाजपा इस अन्तर्कलह और रोष से निपट ही रही थी कि गुजरात और हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनावों की घोषणा हो गई।

    2014 में केंद्र की सत्ता में आने के बाद भाजपा नरेंद्र मोदी और अमित शाह के इर्द-गिर्द सिमट कर रह गई थी। 2014 लोकसभा चुनावों के बाद से हुआ हर विधानसभा चुनाव भाजपा ने नरेंद्र मोदी के चेहरे पर लड़ा और मोदी लहर के प्रभाव के चलते उसे हर जगह सफलता भी हाथ लगी। हालाँकि बिहार में जेडीयू-आरजेडी-कांग्रेस का महागठबंधन भाजपा पर भारी पड़ा था। पर अंततः बाजी भाजपा के हाथ ही लगी और इस्तीफा देकर महागठबंधन से अलग होकर नीतीश कुमार ने जेडीयू-भाजपा गठबंधन की सरकार बना ली। भाजपा ने उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखण्ड, उत्तराखण्ड, गोवा, असम, अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर में नरेंद्र मोदी के चेहरे के दम पर चुनाव जीता और देश भगवामय नजर आने लगा।

    अगर हालिया चुनावों पर नजर डालें तो भाजपा के रुख में बदलाव होता नजर आ रहा है। भाजपा अब विधानसभा चुनावों में मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित कर उतर रही है। बीते 9 नवंबर को हुए हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनावों में भाजपा ने अपने दिग्गज नेता और 2 बार हिमाचल की सत्ता संभाल चुके वीरभद्र सिंह को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया था। गुजरात में भी भाजपा भले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चुनाव प्रचार में आगे रख रही हो पर मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार विजय रुपाणी ही है। अगले वर्ष होने वाले कर्नाटक विधानसभा चुनावों के लिए भाजपा ने अभी से वीएस येदयुरप्पा को अपना चेहरा घोषित कर दिया है। पिछले कुछ समय से आर्थिक मोर्चे पर हो रही आलोचना के बाद मोदी सरकार बैकफुट पर है और हर कदम सोच-समझ कर रख रही है। मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित करना भाजपा की चुनावी रणनीति का हिस्सा है।

    हिमाचल में धूमल बने चेहरा

    हिमाचल प्रदेश में बीते 9 नवंबर को विधानसभा चुनाव संपन्न हुए। भाजपा ने सत्ताधारी दल कांग्रेस को हिमाचल प्रदेश की सत्ता से बेदखल करने के लिए हर मुमकिन दांव खेला और पार्टी के शीर्ष नेताओं के साथ भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और पीएम नरेंद्र मोदी स्वयं हिमाचल के चुनावी रण में उतरे थे। हिमाचल प्रदेश चुनाव के 9 दिन पहले भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने 2 बार राज्य की सत्ता सँभाल चुके प्रेम कुमार धूमल को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर सबको हैरत में डाल दिया। इस घोषणा को भाजपा का ट्रम्प कार्ड भी कहा गया क्योंकि आलाकमान की पहली पसंद रहे जे पी नड्डा के नाम पर हिमाचल का सियासी माहौल भाजपा के पक्ष में बनता नहीं दिख रहा था। धूमल को चेहरा बनाकर भाजपा ने हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस उम्मीदवार वीरभद्र सिंह के खिलाफ राजपूत बनाम राजपूत का दांव खेला।

    हिमाचल प्रदेश के लिए भाजपा आलाकमान की पहली पसंद मोदी सरकार के स्वास्थ्य मंत्री जे पी नड्डा थे। प्रेम कुमार धूमल को ऐन वक्त पर मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर भाजपा आलाकमान ने कांग्रेस के राजपूत दांव का काट खोज लिया। हिमाचल प्रदेश के मतदाता वर्ग पर नजर डालें तो राज्य की तकरीबन 37 फीसदी आबादी राजपूत समाज की है। ब्राह्मण मतदाताओं की आबादी 18 फीसदी है। सवर्ण वर्ग को हमेशा से भाजपा का कोर वोटबैंक माना जाता है। मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार घोषित किए गए प्रेम कुमार धूमल राजपूत समाज से आते हैं वहीं मोदी सरकार में मंत्री जे पी नड्डा ब्राह्मण समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं। हिमाचल के किंग मेकर कहे जाने वाले राजपूत समाज के नेता धूमल को उम्मीदवार बनाकर भाजपा ने अपने इरादे स्पष्ट कर दिए थे। धूमल-नड्डा की जोड़ी के बूते भाजपा हिमाचल प्रदेश में सत्ता वापसी की राह खोजने में जुटी है।

    गुजरात में विजय रुपाणी पर दांव

    गुजरात में भाजपा को सत्ता में लाने का श्रेय केशुभाई पटेल को जाता है पर लोकप्रिय बनाने का श्रेय नरेंद्र मोदी को जाता है। अपने 13 वर्षों के कार्यकाल के दौरान नरेंद्र मोदी ने गुजरात की दशा पलट कर रख दी और कई ऐसे कार्य किए जो आज भी देश के बाकी राज्यों के लिए मिसाल हैं। नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में गुजरात में भाजपा की लोकप्रियता चरम पर थी और मोदी-शाह की जोड़ी गुजरात की सर्वेसर्वा बन चुकी थी। पिछले 3 सालों में गुजरात को 3 मुख्यमंत्री मिले हैं। नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद आंनदीबेन पटेल ने मुख्यमंत्री की कुर्सी सँभाली थी और उनके बाद विजय रुपाणी गुजरात के मुख्यमंत्री बने। नरेंद्र मोदी के बाद अमित शाह ही ऐसे नेता थे जो गुजरात भाजपा में दमखम रखते थे। राजनाथ सिंह ने गृह मंत्री बनने पर नरेंद्र मोदी के विश्वासपात्र अमित शाह भाजपा के अध्यक्ष चुने गए।

    नरेंद्र मोदी और अमित शाह के दिल्ली जाने के बाद गुजरात पर भाजपा की पकड़ थोड़ी ढ़ीली हो गई। आनंदीबेन पटेल बतौर मुख्यमंत्री अपने कार्यकाल में सफल नहीं रही और विजय रुपाणी भी जनता का विश्वास जीतने में असफल रहे। नरेंद्र मोदी और अमित शाह के बाद गुजरात भाजपा के पास कोई ऐसा चेहरा नहीं था जो पार्टी को अपने कन्धों पर आगे ले जा सके। नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में किसी भी अन्य भाजपा नेता को इतनी लोकप्रियता ही नहीं मिली कि वह पुरे सूबे का प्रतिनिधित्व कर सके। गुजरात के नाम पर लोगों के जेहन में सिर्फ नरेंद्र मोदी का ही नाम आता था। अमित शाह के राज्यसभा जाने के बाद अब गुजरात भाजपा की स्थिति भी गुजरात कांग्रेस जैसी हो गई है। परंपरागत वोटबैंक रहे पाटीदारों के कटने के बाद भी भाजपा विजय रुपाणी को आगे कर गुजरात के चुनावी दंगल में उतरी है।

    कर्नाटक में येदयुरप्पा को कमान

    कर्नाटक में अगले वर्ष अप्रैल-मई में चुनाव होने हैं और भाजपा ने इसी वर्ष मई में अपने भरोसेमंद सियासी दिग्गज वी एस येदयुरप्पा को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित कर दिया है। येदयुरप्पा दक्षिण भारत के किसी राज्य में अकेले दम पर कमल खिलाने वाले पहले व्यक्ति है। इस लिहाजन पार्टी आलाकमान की उनपर इतनी मेहरबानी बनती है। येदयुरप्पा की उम्मीदवारी का एक और कारण यह है कि 2013 में जब येदयुरप्पा भाजपा से अलग हुए थे तब कर्नाटक भाजपा की आन्तरिक फूट सतह पर आ गई थी और पार्टी चुनावों में धराशायी हो गई थी। भाजपा आलाकमान को खबर है कि कर्नाटक में मोदी की राष्ट्रीय छवि से ज्यादा कारगर येदयुरप्पा की क्षेत्रीय छवि होगी। आज सत्ता भाजपा की प्राथमिकता बन चुकी है और इसी वजह से कर्नाटक में भाजपा ने भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे येदयुरप्पा को कमान सौंपी है।

    क्या सचमुच असरहीन हो रही है मोदी लहर?

    मोदी सरकार के साढ़े तीन वर्षों के कार्यकाल पर देशभर के लोगों कि मिश्रित प्रतिक्रियाएं हैं पर निःसंदेह रूप से नरेंद्र मोदी लोगों की अपेक्षाओं पर पूरी तरह खरे नहीं उतर सके हैं। मोदी सरकार महँगाई पर लगाम लगाने में असफल रही है और समाज का एक बड़ा तबका मोदी सरकार को आर्थिक मोर्चे पर विफल मानता है। मोदी सरकार के कार्यकाल में उठाए गए सभी बड़े कदम दूरगामी परिणाम वाले हैं और निकट भविष्य में इसका असर देश की अर्थव्यवस्था पर देखने को मिलेगा। पर सरकार लोगों को इस बात का यकीन दिलाने में विफल साबित हुई है। साढ़े तीन सालों में देश में भाजपा की लोकप्रियता में कमी जरूर आई है पर अभी यह कहना कि मोदी लहर पूरी तरह असरहीन हो गई है, उचित नहीं होगा। उम्मीद है आने वाले दिनों में मोदी सरकार अपने वादों पर अमल करेगी और देशवासियों के लिए अच्छे दिन आएंगे।

    By हिमांशु पांडेय

    हिमांशु पाण्डेय दा इंडियन वायर के हिंदी संस्करण पर राजनीति संपादक की भूमिका में कार्यरत है। भारत की राजनीति के केंद्र बिंदु माने जाने वाले उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले हिमांशु भारत की राजनीतिक उठापटक से पूर्णतया वाकिफ है।मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक करने के बाद, राजनीति और लेखन में उनके रुझान ने उन्हें पत्रकारिता की तरफ आकर्षित किया। हिमांशु दा इंडियन वायर के माध्यम से ताजातरीन राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर अपने विचारों को आम जन तक पहुंचाते हैं।