बीते 18 दिसंबर को हिमाचल प्रदेश और गुजरात में हालिया संपन्न विधानसभा चुनावों के नतीजे घोषित हुए। गुजरात में 22 सालों बाद भी कांग्रेस का सियासी वनवास खत्म नहीं हुआ और भाजपा लगातार 6वीं बार सरकार बनाने में सफल रही। भाजपा के विधायक दल की बैठक में विजय रुपाणी को निर्विरोध मुख्यमंत्री चुन लिया गया है। वहीं पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश में भाजपा ने 5 सालों बाद सत्ता वापसी की। हिमाचल प्रदेश में भाजपा लगभग दो तिहाई सीटें जीतने में सफल रही पर उसके मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार प्रेम कुमार धूमल अपने गृह जनपद हमीरपुर की सुजानपुर विधानसभा सीट से चुनाव हार गए। धूमल की हार के बाद अब भाजपा नेतृत्व के सामने यह यक्ष प्रश्न खड़ा है कि आखिर हिमाचल प्रदेश की बागडोर किसके हाथों में सौंपी जाए।
भाजपा को पहली बार ऐसी स्थिति का सामना करना पड़ रहा है। 2014 लोकसभा चुनावों के बाद होने वाले हर विधानसभा चुनाव में भाजपा पीएम नरेन्द्र मोदी को अपना चेहरा बनाकर उतरती आई थी। इस परंपरा को तोड़ते हुए भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव से 9 दिन पहले वरिष्ठ भाजपाई प्रेम कुमार धूमल को हिमाचल प्रदेश में पार्टी का चेहरा घोषित कर दिया। धूमल को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने के पीछे भाजपा का लक्ष्य राज्य के राजपूतों को साधना था। हिमाचल प्रदेश में राजपूत मतदाताओं की बड़ी आबादी है और राज्य के मतदाता वर्ग में इनकी 37 फीसदी भागेदारी है। कांग्रेस वीरभद्र सिंह को अपना मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट कर चुकी थी इसलिए भाजपा ने धूमल को आगे कर राजपूत कार्ड खेला था। धूमल के चुनाव हारने से भाजपा पसोपेश की स्थिति में नजर आ रही है।
भाजपा को था बड़ी जीत का भरोसा
हिमाचल प्रदेश में हुए विधानसभा चुनावों में 74.45 फीसदी मतदान हुआ था। 2012 के विधानसभा चुनावों की अपेक्षा यह तकरीबन 1 फीसदी अधिक था। वहीं 2014 लोकसभा चुनावों की अपेक्षा यह 10 फीसदी अधिक था। मतदान समाप्त होने के बाद भाजपा मीडिया सेल के प्रभारी अनिल बलूनी ने कहा था, “हिमाचल प्रदेश की जनता ने अपना जनादेश दे दिया है। 18 दिसंबर को घोषित होने वाले चुनाव नतीजों में भाजपा को 60 सीटें मिलने वाली है। बची हुई 8 सीटों में से सभी दलों को बँटवारा करना होगा। सत्ताधारी दल कांग्रेस इकाई अंक में सिमट जाएगी। बतौर मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के 5 वर्षों के भ्रष्ट कार्यकाल का समापन होने वाला है।” उनकी यह बातें पूर्णतया सत्य तो साबित नहीं हुई पर भाजपा दो तिहाई बहुमत से सत्ता वापसी करने में सफल जरूर रही।
सत्ता वापसी को बेताब थी भाजपा
भाजपा को हिमाचल प्रदेश में सत्ता से कम कुछ भी मंजूर नहीं था। भाजपा हिमाचल की सत्ता पाने के लिए कितनी आतुर थी इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उसने सत्ता की चाह में ‘रूल 75’ को ताक पर रख दिया था। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर प्रेम कुमार धूमल के नाम का ऐलान कर यह स्पष्ट कर दिया था कि भाजपा सत्ता वापसी के लिए एक बार अपने सिद्धांतों से समझौता कर सकती है। प्रेम कुमार धूमल की मौजूदा आयु 73 वर्ष, 6 महीने है। अगर भाजपा के ‘रूल 75’ के लिहाज से देखें तो बतौर मुख्यमंत्री उनके पास 16 महीने का कार्यकाल होता। भाजपा ने पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल की लोकप्रियता को हिमाचल में सत्ता वापसी का आधार बनाने का दांव खेला था जो काफी हद तक सफल रहा।
भाजपा का सियासी दांव था धूमल को आगे करना
हिमाचल प्रदेश की सत्ता में आने के लिए भाजपा ने अपने तरकश से सारे तीर निकाल लिए थे। प्रेम कुमार धूमल को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाना भाजपा की सत्ता वापसी की रणनीति का ही हिस्सा था। कोई भी सियासी दल चाहे विकास को कितनी भी तवज्जो दे पर आज भी देश में राजनीति का मुख्य आधार जातिवाद ही है। हिमाचल प्रदेश में राजपूत समाज ‘किंग मेकर’ है और उसके समर्थन बिना हिमाचल की सत्ता तक पहुँचना नामुमकिन था। भाजपा ने वीरभद्र सिंह के खिलाफ प्रेम कुमार धूमल को आगे कर हिमाचल के जातीय और सियासी समीकरणों को साधा था। प्रेम कुमार धूमल राजपूत समाज से आते हैं और राजपूत मतदाताओं की हिमाचल प्रदेश में बड़ी तादात है। इस वजह से उन्हें आगे करना एक तरह से भाजपा की मजबूरी भी थी।
भाजपा आलाकमान की पहली पसंद थे नड्डा
हिमाचल प्रदेश के लिए भाजपा आलाकमान की पहली पसंद मोदी सरकार के स्वास्थ्य मंत्री जे पी नड्डा थे। भाजपा पिछले 2 सालों से जे पी नड्डा को हिमाचल प्रदेश में बतौर सीएम प्रोजेक्ट भी कर रही थी। बतौर स्वास्थ्य मंत्री जे पी नड्डा का कार्यकाल बहुत ही प्रभावी रहा है और वह पीएम मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के करीबी हैं। नड्डा एक मंझे हुए राजनीतिज्ञ हैं और भाजपा हिमाचल प्रदेश में अपना संगठन मजबूत करने के प्रयासों में जुटी थी। पंजाब के बाद हिमाचल अकेला ऐसा हिन्दीभाषी राज्य है जहाँ भाजपा सत्ता में नहीं थी। इस लिहाजन भाजपा हिमाचल की कमान अपने विश्वस्त और मजबूत नेता को सौंपना चाहती थी। प्रेम कुमार धूमल को ऐन वक्त पर मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर भाजपा आलाकमान ने कांग्रेस के राजपूत दांव का काट खोज निकाला था।
हिमाचल प्रदेश के मतदाता वर्ग पर नजर डालें तो राज्य की तकरीबन 37 फीसदी आबादी राजपूत समाज की है। ब्राह्मण मतदाताओं की आबादी 18 फीसदी है। सवर्ण वर्ग को हमेशा से भाजपा का कोर वोटबैंक माना जाता है। मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार घोषित किए गए प्रेम कुमार धूमल राजपूत समाज से आते हैं वहीं मोदी सरकार में मंत्री जे पी नड्डा ब्राह्मण समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं। अगर जातिगत समीकरणों के आधार पर देखें तो धूमल का पलड़ा भारी नजर आ रहा था। भाजपा आलाकमान ने इसी आधार पर जे पी नड्डा की जगह प्रेम कुमार धूमल को तरजीह दी थी।
जातीय समीकरण पर था भाजपा का ध्यान
हिमाचल प्रदेश में भाजपा के पक्ष में सबसे मजबूत बिंदु यह था कि उसे राजपूती ताकत और ब्राह्मणों का आशीर्वाद दोनों प्राप्त था। अगर मतों के लिहाज से देखा जाए तो राजपूत समाज हिमाचल प्रदेश में ‘किंग मेकर’ की भूमिका में था। राज्य के मतदाता वर्ग में राजपूत वोटरों की सहभागिता 37 फीसदी थी। राजपूत समाज के बाद हिमाचल प्रदेश में ब्राह्मण समाज का दबदबा है। ब्राह्मण समाज के वोटरों की सहभागिता 18 फीसदी थी। मतों के लिहाज से ब्राह्मण समाज हिमाचल प्रदेश में दूसरा सबसे बड़ा तबका था। अगर राजपूत और ब्राह्मण वोटरों को साथ मिला दें तो कुल 55 फीसदी मत हो जाते हैं। किसी भी पार्टी को बहुमत दिलाने या सत्ता तक पहुँचाने के लिए हिमाचल प्रदेश में राजपूत-ब्राह्मण समीकरण को साधना बहुत जरुरी था। प्रेम कुमार धूमल और जे पी नड्डा की जोड़ी ने हिमाचल भाजपा के लिए राजपूत-ब्राह्मण समीकरण साधने का काम किया था।
मुख्यमंत्री पद की दौड़ में आगे हैं जयराम ठाकुर
हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनावों में भाजपा भले ही दो तिहाई बहुमत हासिल करने में सफल रही हो पर उसके कई दिग्गज नेताओं को हार का सामना करना पड़ा है। इनमे मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार प्रेम कुमार धूमल, सतपाल सिंह सत्ती जैसे बड़े दिग्गजों का नाम शामिल था। इन सभी दिग्गजों की हार के बाद हिमाचल प्रदेश भाजपा के पूर्व अध्यक्ष जयराम ठाकुर का नाम मुख्यमंत्री पद की दौड़ में सबसे आगे हो गया। जयराम ठाकुर राजपूत समाज से आते हैं और प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार में मंत्री रह चुके हैं। ऐसे में उनकी काबिलियत शक योग्य नहीं है और मुख्यमंत्री पद के लिए वह सक्षम दावेदार साबित हो सकते है।
संघ प्रचारक अजय जमवाल भी दावेदार
हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की दौड़ में जो एक अन्य नाम सामने आ रहा था वह था संघ प्रचारक अजय जमवाल का। अजय जमवाल लम्बे समय से संघ प्रचारक की भूमिका में हैं और पार्टी संगठन में उनकी अच्छी पकड़ है। वह दशकों से भाजपा की संगठन इकाई के लिए काम कर रहे हैं। ऐसे में यह मुमकिन था कि भाजपा हरियाणा की तरह हिमाचल प्रदेश में भी किसी संगठन कार्यकर्ता को सूबे की कमान सौंप दे। हालाँकि इसके आसार कम ही नजर आ रहे थे पर भाजपा आलाकमान के बुलावे पर वह भी दिल्ली गए थे।