आज कल देश में गजब का धार्मिक कार्ड खेला जा रहा है। गुजरात विधान सभा चुनाव के बाद कर्नाटक विधानसभा चुनाव में भी राजनेताओं में हिन्दू होने का भूत सवार हो गया है। चुनाव में धार्मिक कार्डों का महत्व क्या है और कितना है यह बताने या लिखने की जरूरत नहीं है। नेतागण मंदिरों, भगवानों, और पूजा स्थलों के दर्शन कर रहे है।
गुजरात में राहुल खुद को जनेऊधारी हिन्दू बता रहे है तो कर्नाटक में सिद्धारमैया खुद को योगी से बड़ा हिन्दू बता चुके है। सिद्धारमैया यह भी बता चुके है कि वो सबसे बड़े हिन्दू इसलिए है क्यूंकि उनके नाम में ‘सिद्ध’ भी है और ‘राम’ भी है। राहुल और सिद्धारमैया के बाद अब हिन्दू होने की रेस में बंगाल की सीएम ममता बनर्जी भी कूद चुकी है।
एंटी हिन्दू का इल्जाम सहने वाली ममता अब देश को बताने जा रही है कि वो हिन्दू विरोधी नहीं है। हनुमान जयंती के मौके पर बीरभूमि में लाठीचार्ज की वजह से ममता की जो छवि समाज में बनी अब उसे बदलने का प्रयास बंगाल सीएम कर रही है। ममता ने बीरभूमि में अगले महीने ब्राह्मण सम्मलेन को संबोधित करने का फैसला किया है।
इस फैसले को राजनैतिक रूप से धार्मिक कार्ड के रूप में देखा जा रहा है। अगले महीने से शुरू होने वाला बंगाल में ब्राह्मण सम्मलेन खास है जिसमे करीब 15,000 ब्राह्मण हिस्सा लेंगे, और पूजा-पाठ करेंगे। कार्यक्रम में हर ब्राह्मण को गीता की एक कॉपी, शॉल और रामकृष्ण परमहंस-शारदा मां की तस्वीर दी जाएगी।
बीरभूमि विवाद पर ममता है हिन्दू संगठनों के निशाने पर
अप्रैल महीने में बीरभूमि में हिंदू जागरण मंच के द्वारा हनुमान जयंती के जुलुस के मौके पर विवाद हो गया था। मामला इतना बढ़ गया था कि पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा था। इस लाठीचार्ज पर ममता प्रमुख हिन्दू संगठनों के निशाने पर आ गयी थी। सभी ने ममता पर तानाशाही और सांप्रदायिक सौहार्द को बिगाड़ने का आरोप लगाया था।