मंगलवार, 22 अगस्त का दिन भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में ऐतिहासिक दिन के रूप में दर्ज हो गया। इस दिन माननीय सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए “ट्रिपल तलाक” पर रोक लगा दी। इसके साथ ही सदियों से चली आ रही यह “कुप्रथा” भी समाप्त हो गई।
सुप्रीम कोर्ट में 5 जजों की बेंच ने 3-2 से “ट्रिपल तलाक” को “असंवैधानिक” करार दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने 6 महीने के अंदर केंद्र सरकार से “ट्रिपल तलाक” के खिलाफ कानून बनाने को भी कहा था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने ट्विटर हैंडल पर लिखा था कि “माननीय सुप्रीम कोर्ट के द्वारा तीन तलाक पर दिया गया फैसला ऐतिहासिक है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से मुस्लिम महिलाओं को बराबरी का हक़ मिलेगा और महिला सशक्तिकरण की ओर यह एक बड़ा कदम है।”
माननीय सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला मुस्लिम महिलाओं के हक़ में है और इसने उन्हें सदियों से चली आ रही इस “कुप्रथा” की बेड़ियों से आजाद कर दिया है। यह तो बस शुरुआत है और अभी अपने अधिकारों को लेकर उन्हें आगे लम्बी लड़ाई लड़नी है। माननीय सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद से सबके मन में यह बात उठने लगी थी कि क्या अब “निकाह हलाला” और “बहुविवाह” के सन्दर्भ में भी कोई ऐसा फैसला आ सकता है? ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि वह “ट्रिपल तलाक” के मसले पर कोई दखल ना दे। यह उनका आपसी मसला है और वह इसे सुलझा लेंगे। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे दरकिनार करते हुए इस मसले पर अपना फैसला सुनाया है और उसने मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को भी बैकफुट पर धकेल दिया है।
क्या है बहुविवाह
इस्लाम धर्म में प्रचलित “बहुविवाह” एक ही वक़्त में किसी मुस्लिम पति को एक से अधिक पत्नी रखने की इजाजत देता है। इस्लामी कानून के हिसाब से यह उचित है। कोई भी मुस्लिम बहुपत्नीक नियमों के तहत एक वक़्त में 4 पत्नियां रख सकता है। हालाँकि मुस्लिम महिलाओं को बहुपतित्व के तहत एक वक़्त में एक से अधिक पति रखने का कोई अधिकार नहीं होता है। यह नियम सदियों पुराने हैं और पुराने समय से चले आ रहे नवाबी शौक की बानगी पेश करते हैं। इस्लामी कानून में कहीं भी यह नहीं बताया गया है कि क्यों मुस्लिम महिलाएं इस तरह के नवाबी शौक नहीं पाल सकती।
पवित्र क़ुरान में कहा गया है, “यदि आपको डर है कि आप अनाथों के साथ न्यायपूर्ण व्यवहार करने में समर्थ नहीं होंगे, तो अपनी पसंद की दो, तीन या चार महिलाओं से शादी करो। लेकिन अगर आपको डर है कि आप उनके साथ सही तरीके से पेश आने में सक्षम नहीं होंगे, तो केवल एक या दो से शादी करो। यह ज्यादा उपयुक्त होगा और आपको गुनाह करने से बचाएगा।” लेकिन इसमें कहीं भी यह नहीं कहा गया है कि ये शादियां आपको एक वक़्त में करनी हैं या अपने पूरे जीवन काल में। और संविधान ये कहता है कि किसी नियम की व्याख्या के आधार पर आप कोई नियम नहीं बना सकते।
सुप्रीम कोर्ट में पहुँचा बहुविवाह का मामला
“ट्रिपल तलाक” के बाद “बहुविवाह” का मामला अब सुप्रीम कोर्ट में पहुँच गया है। “निकाह हलाला” और “बहुविवाह” के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई जारी है। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने “ट्रिपल तलाक” पर सुनवाई के वक़्त सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि वह उसके निजी मामलों में दखल ना दे। सुप्रीम कोर्ट ने ना केवल इसे दरकिनार किया बल्कि “ट्रिपल तलाक” को प्रतिबंधित कर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को बैकफुट पर धकेल दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि वह भारतीय संविधान को सर्वोपरि मानती है और उसके लिए धर्म, जाति बाद में आते है। हालाँकि “ट्रिपल तलाक” मुद्दे पर बहस के दौरान मुस्लिम महिलाओं के विरोध में केस लड़ रहे कपिल सिब्बल ने तर्क दिया था कि जब राम और मंदिर हिन्दुओं की आस्था का केंद्र हो सकते हैं तो इन मसलों को भी मुस्लिमों की आस्था से जोड़कर देखा जाना चाहिए।
ट्रिपल तलाक पर साथ खड़ी थी मोदी सरकार
केंद्र की सत्ताधारी मोदी सरकार की “ट्रिपल तलाक” पर रोक लगाने में अहम भूमिका रही। भाजपा हमेशा से ही “ट्रिपल तलाक” के खिलाफ खड़ी थी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कई बार इस “कुप्रथा” को ख़त्म करने की बात कर चुके थे। भले ही लोग इसे चुनावी पैंतरा कहे पर नरेंद्र मोदी ने हमेशा ही सार्वजनिक मंचों से इस मसले पर मुस्लिम महिलाओं के हक़ में बात की थी। शायद यही वजह थी कि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के दौरान भाजपा को बड़ी संख्या में मुस्लिम महिलाओं ने समर्थन भी दिया था और कोई मुस्लिम उम्मीदवार खड़ा ना करने के बावजूद सारे सियासी समीकरण भाजपा के पक्ष में हो गए थे।
यूनिफार्म सिविल कोड की पक्षधर है सरकार
“यूनिफार्म सिविल कोड” देश में सभी धर्मों के लिए एक कानून की बात करता है। इसके लागू होने के बाद भारत में सभी धार्मिक कानून समाप्त हो जायेंगे और इसका सबसे ज्यादा असर मुस्लिम समाज पर होगा। “ट्रिपल तलाक” के ख़त्म होने के बाद अब पूरे देश की निगाहें मोदी सरकार पर टिकी हैं कि क्या वह “यूनिफार्म सिविल कोड’”की तरफ कदम बढ़ाएगी। “ट्रिपल तलाक” पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला भाजपा के हित में आया है और यह मुस्लिम समाज में भाजपा की छवि को सुधारने का काम करेगा। भाजपा भी इस मौके को भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहेगी। हालाँकि “ट्रिपल तलाक” पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से प्रत्यक्ष रूप से मोदी सरकार को “यूनिफार्म सिविल कोड” लागू करने में कोई मदद नहीं मिलेगी पर परोक्ष रूप से यह सरकार के पक्ष में माहौल बनाने में कारगर होगा।
2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान जारी मैनिफेस्टो में भाजपा ने “यूनिफार्म सिविल कोड” का वादा किया था। मैनिफेस्टो के पृष्ठ संख्या 41 पर इस सन्दर्भ में कहा गया था कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 44 नागरिकों को सामान अधिकार का हक़ देता है। “यूनिफार्म सिविल कोड” लागू होने की दशा में देश में सभी धर्मों के नियम एक समान होंगे। सुप्रीम कोर्ट द्वारा “ट्रिपल तलाक” पर सुनाये गए फैसले के बाद मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड भी बैकफुट पर है। सुप्रीम कोर्ट में फिलहाल निकाह हलाला और बहुविवाह प्रथा को लेकर सुनवाई चल रही है। ऐसे में मोदी सरकार “यूनिफार्म सिविल कोड” का दांव खेलकर मुस्लिम महिलाओं के वोटों को अपने पक्ष में करने की पुरजोर कोशिश करेगी।