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    निकाह हलाला

    इस्लाम विश्व के सबसे प्राचीन और प्रमुख धर्मो में से एक है। सम्पूर्ण विश्व में इस धर्म के अनुयायी रहते है। इस्लाम धर्म के अनुयायी, एक ईश्वर जिसे वो “अल्लाह” कहते हैं, के अस्तित्व को मानते हैं। उनका माना है कि “अल्लाह” सबसे ऊपर है और वह दयाभाव से भरा सर्वशक्तिमान है जो उन्हें सच्चाई की राह पर चलने को प्रेरित करता है। पैगम्बर मोहम्मद “अल्लाह” के भेजे हुए दूत हैं जो उन्हें “अल्लाह” के उपदेशों से वाक़िफ़ कराते हैं। इस्लाम धर्म के अनुयायिओं को मुस्लिम कहा जाता है। वे मूर्तिपूजा के विरोधी होते हैं। मुस्लिम समुदाय का धर्मग्रन्थ पवित्र क़ुरान है और मुसलमान शरीयत कानूनों को मानते हैं। ट्रिपल तलाक, निकाह हलाला और खतना (सुन्नाह) इन्ही कानूनों का हिस्सा है। निकाह हलाला के विषय में मुस्लिमों के धर्मग्रन्थ पवित्र कुरान और हदीसों में लिखा है –

    यदि किसी ने पत्नी को तलाक दे दिया , तो उस स्त्री को रखना जायज नहीं होगा। जब तक वह स्त्री किसी दूसरे व्यक्ति से सहवास न कर ले। फिर वह व्यक्ति भी उसे तलाक दे दे तो फिर उन दोनों के लिए एक दूसरे की तरफ पलट आने में कोई दोष नहीं होगा।” सूरा – बकरा 2 :230

    भारत में भी प्रचलित है निकाह हलाला प्रथा

    देश को आजाद हुए 70 साल बीत चुके हैं। शिक्षा, प्रौद्योगिकी, तकनीकी, रक्षा, अर्थव्यवस्था और स्वास्थ्य जैसे हर क्षेत्रों में भारत ने अभूतपूर्व तरक्की की है और इसी वजह से आज देश का नाम विश्व की उभरती महाशक्ति के तौर पर लिया जाता है। लेकिन आज भी देश के कई हिस्सों में सामाजिक कुरीतियां व्याप्त हैं और धर्म की आड़ में यह फल-फूल रही हैं। इन कुरीतियों में से एक हैं मुस्लिम समाज में प्रचलित निकाह हलाला की प्रथा। निकाह हलाला मुस्लिम समुदाय में सदियों से प्रचलित एक कुप्रथा है। निकाह हलाला के अनुसार अगर कोई मुस्लिम महिला तीसरी बार तलाक के बाद अपने पूर्व पति के पास वापस जाना चाहती है तो उसे पहले किसी अन्य व्यक्ति से शादी कर उसके साथ रात गुजारनी पड़ती है और फिर उस व्यक्ति के तलाक देने के बाद वह वापस अपने पति से निकाह कर सकती है।

    इस्लामी नियमों के अनुसार, “यदि एक पति शादी के बाद अपनी पत्नी को तलाक दे देता है, तो वह तब तक उससे शादी नहीं कर सकता जब तक कि वह दूसरे आदमी से शादी नहीं कर लेती। अपने पहले पति के पास वापस जाने के लिए पत्नी को अपने नए पति के साथ हमबिस्तर होना पड़ता है। इसके बाद यदि उसका दूसरा पति यदि उसे तलाक दे दे या उसकी मौत हो जाए वह अपने पहले पति के पास वापस जा सकती है। इस तरह अल्लाह की सीमाएं हैं जो वह उन लोगों के लिए बनाता है जो उसमें मानते हैं और उसमें यकीन रखते हैं।”

     

    फायदा उठाते हैं मुस्लिम धर्मगुरु

    निकाह हलाला के नाम पर मुस्लिम धर्मगुरु लोगों की मजबूरी का फायदा उठाते हैं। पवित्र क़ुरान और शरीयत का हवाला देकर वह लोगों में “अल्लाह” का डर बनाते हैं। निकाह हलाला में महिला को किसी अन्य व्यक्ति से शादी कर उसके साथ रात गुजारनी होती है। फिर वह व्यक्ति उसे तलाक देता है जिसके बाद वह दुबारा अपने पति के पास लौट सकती है। इस कुप्रथा को बढ़ावा देने का काम खुद मुस्लिम धर्मगुरु कर रहे हैं और मीडिया चैनलों द्वारा चलाए गए स्टिंग ऑपरेशन में वे खुद यह बात कबूल चुके हैं। निकाह हलाला के नाम पर महिला के साथ एक रात गुजारने और फिर तलाक देने का सौदा होता है और भारत में इस सौदे की कीमत 15,000 रूपये से लेकर 5,00,000 रूपये तक की होती है। इमाम और मौलवी लोग इसमें लिप्त रहते हैं और अपने फायदा के लिए इस कुप्रथा को प्रचारित कर रहे हैं।

    निकाह हलाला
    क्या देश के संविधान से बड़ा है इस्लामी कानून?

    धर्म की आड़ में मेल एस्कॉर्ट सर्विस चला रहे हैं मौलवी

    निकाह हलाला का फायदा सबसे ज्यादा मौलवी और मुस्लिम धर्मगुरुओं को होता है। पवित्र कुरान में इस्लामिक हलाला का जिक्र किया गया है जिसमें कहा गया है कि इत्तेफाकन दूसरी शादी टूटने के बाद पत्नी अपने पहले पति के पास वापस जा सकती है। इसे जायज ठहराया गया है। लेकिन अगर ऐसा इरादतन किया गया है तो यह हराम है। मौलवी और मुस्लिम धर्मगुरु यह कतई नहीं चाहते कि निकाह हलाला पर रोक लगे। मुस्लिम धर्मगुरुओं ने धर्म की आड़ में निकाह हलाला को धंधा बना लिया है और बाकायदा “हलाला सर्विस” चला रहे हैं। इसके तहत वह तलाकशुदा महिलाओं को एक रात के लिए पति देते हैं जो अगली सुबह उन्हें तलाक दे देता है। इस सर्विस का चार्ज देश के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग है। स्टिंग ऑपरेशन में हुए खुलासों के तहत, दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में निकाह हलाला का चार्ज 2,00,000 से 4,50,000 रूपये है वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में यह 15,000 से 1,50,000 रूपये तक है।

    मुस्लिम धर्मगुरुओं ने इस काम के लिए युवा लड़कों को काम पर लगा रखा है जिसके तहत उन्हें मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में जाकर ग्राहक ढूंढने होते हैं। उनके झाँसे में आए दम्पतियों को धर्म और अल्लाह के नाम पर डराया जाता है और उन्हें हलाला के लिए मजबूर किया जाता है। कई बार धर्मगुरु हलाला का काम खुद भी करते हैं और अपनी हवस की प्यास मिटाते हैं। निकाह हलाला के नाम पर मुस्लिम समाज में महिलाओं की आबरू से खिलवाड़ किया जाता है और उनका शारीरिक और सामाजिक उत्पीड़न होता है। हलाला के नाम पर अपने फायदे के लिए मुस्लिम धर्मगुरु धर्म की आड़ में मेल एस्कॉर्ट सर्विस चला रहे हैं और मुस्लिम महिलाओं का जीवन नरक बना रहे हैं।

    विदेशों में मौजूद है ऑनलाइन समाधान

    निकाह हलाला सिर्फ भारत ही नहीं वरन विश्व के कई अन्य देशों में भी प्रचलित है। जहाँ ग्रामीण परिवेश वाले क्षेत्रों में इस कुप्रथा से मुस्लिम धर्मगुरुओं की चाँदी हो रही है वहीं शहरी परिवेश के क्षेत्रों में इसके लिए बक़ायदा कंसल्टेंसी फर्म्स हैं। इंग्लैंड में कई ऐसी फर्म्स हैं जो निकाह हलाला के समाधान के लिए मुस्लिम महिलाओं को लड़के उपलब्ध कराती हैं। एक रात गुजारने के बाद इनका तलाक हो जाता है और इसके लिए उन्हें मोटी रकम चुकानी पड़ती है। यह तो खुल्लमखुल्ला “मेल एस्कॉर्ट सर्विस” वाली ही बात हो गई। अब सवाल यह उठता है कि धार्मिक कानूनों की दुहाई देकर इस तरह महिलाओं का यौन शोषण और सामाजिक उत्पीड़न किस हद तक सही है।

    सारी बंदिशें और अत्याचार महिलाओं पर

    निकाह हलाला इकलौती ऐसी प्रथा नहीं है जिसकी आग में मुस्लिम महिलाएं झुलस रही है। शरीयत के सभी कानून और धर्मगुरुओं द्वारा जारी सभी फतवे अमूमन मुस्लिम महिलाओं के खिलाफ ही होते हैं। ट्रिपल तलाक, बहुविवाह, निकाह हलाला, पर्दा प्रथा जैसे तमाम कानून मुस्लिम महिलाओं के खिलाफ लागू होते हैं और उन्हें पिंजड़े में कैद किसी पंक्षी की तरह रखा जाता है। जब भी उनमे आसमान में उड़ने का हौसला जागता है तो धर्म के नाम पर फतवे जारी कर, पाबंदियां लगा उनके परों को क़तर दिया जाता है। जब वास्तविक दुनिया की जमीनी हकीकत ऐसी है फिर किस आधार पर लिंग समानता का दम्भ भरा जाता है।

    निकाह हलाला
    सुप्रीम कोर्ट में निकाह हलाला पर सुनवाई

    हाल ही में माननीय सर्वोच्च न्यायलय ने मुस्लिम महिलाओं के हक़ में फैसला सुनाते हुए ट्रिपल तलाक को असंवैधानिक करार देते हुए उसपर रोक लगा दी थी। यह मुस्लिम महिलाओं के हौसलों और अधिकारों की जीत थी। विश्व की जनसंख्या में मुस्लिमों की भागेदारी 24 .1 फ़ीसदी है और भारत में यह तकरीबन 14.5 फीसदी है। मुस्लिमों की कुल आबादी का तकरीबन 45 फ़ीसदी हिस्सा महिलाओं का है। ऐसे में इतनी बड़ी आबादी की आकांक्षाओं और अधिकारों को दबाकर किसी समाज की तरक्की के विषय में सोचना पूर्णतः गलत है और उन्हें रोकने वाली हर धार्मिक कुरीतियों को जड़ से उखाड़ फेंकने की जरुरत है। फिलहाल देश के सुप्रीम कोर्ट में निकाह हलाला के सन्दर्भ में सुनवाई चल रही है और उम्मीद है कि न्याय के मंदिर में मुस्लिम महिलाओं के हक़ की आवाज सुनी जाएगी।

    By हिमांशु पांडेय

    हिमांशु पाण्डेय दा इंडियन वायर के हिंदी संस्करण पर राजनीति संपादक की भूमिका में कार्यरत है। भारत की राजनीति के केंद्र बिंदु माने जाने वाले उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले हिमांशु भारत की राजनीतिक उठापटक से पूर्णतया वाकिफ है।मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक करने के बाद, राजनीति और लेखन में उनके रुझान ने उन्हें पत्रकारिता की तरफ आकर्षित किया। हिमांशु दा इंडियन वायर के माध्यम से ताजातरीन राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर अपने विचारों को आम जन तक पहुंचाते हैं।