Sat. Apr 27th, 2024
    नरेन्द्र मोदी चीन दौरा

    पिछले दिनों शंघाई सहयोग संघटन की विदेश मंत्री स्तरीय बैठक में हिस्सा लेने पंहुंची विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच अनौपचारिक शिखर वार्ता होने की पुष्टि की थी।

    प्रधानमंत्री मोदी इस अनौपचारिक शिखर वार्ता में हिस्सा लेने चीन के वुहान शहर गए थें। डोकलाम विवाद के बाद हुए इस चीन दौरे को महत्त्वपूर्ण बताया जा रहा था। और कई लोग भारत की कुटनीतिक जीत भी इसे मानते हैं, लेकिन इस दौरे का महत्व जानने के लिए इसे चीनी दृष्टिकोन से देखना भी जरुरी हैं।

    कूटनीति(डिप्लोमेसी) एक ऐसा क्षेत्र है, जहा देश के हितों का अध्ययन किया जाता हैं। देशों के असलियत में मित्र नहीं होते, उनके हित होते है जिन्हें वे पूरा करना चाहते है। यह बात भारत चीन सम्बन्ध में भी लागू पड़ती हैं।

    चीन का रुख़

    • डोकलाम विवाद के दौरान जब कोई भी पीछे हटने से राजी नहीं था, उसके बाद दोनों पड़ोसियों और उभरती शक्तियों में तनाव बढ़ गया था। इसे कम करने में भारतीय विदेश मंत्री और उसके बाद प्रधानमंत्री का दौरा कारगर रहा ऐसा कई लोग मानते हैं।
    • भारत ने चीन के महत्वकांक्षी प्रकल्प वन बेल्ट वन रोड में हिस्सा लेने से मन कर दिया था,  एशिया में इस प्रकल्प का विरोध करने वाला भारत एकमात्र देश था। चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे का पाक अधिकृत कश्मीर से गुजरना, भारतीय विरोध का कारण बताया जा रहा था।
    • भारत और चीन का अफगानिस्तान के बुनियादी ढांचे के विकास में मिलकर काम करने के लिए राजी होना, चीन के लिए कूटनीतिक जीत मानी जा रही हैं, क्योंकि जिस देश ने ओबीओआर से जुड़ने के इन्कार किया था, अब वही देश साथ काम करने पर राजी हैं।
    • दोनों देशों का सैन्य मतभेद युद्ध में बदलना इसके गंभीर परिणाम दोनों देशों के भूगतने पड़ सकते हैं। भारत अब नेहरु के समय वाला भारत नहीं रहा, भारत की सैन्य शक्ति काफी बढ़ चुकी हैं और जरुरत होने पर कड़ी टक्कर दे सकती है, यह चीन और चीनी सरकार बखूबी जानती हैं।
    • युद्ध जैसी परिस्थियों में, परमाणु हतियारों का भी उपयोग होने की आशंका हैं। अगर दुर्भाग्यवश ऐसी परिस्थियां आती है तो चीन का महाशक्ति बनने का सपना टूट जाएगा।
    • भारत विश्व की सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था है। इसके अलावा भारत विश्व की दूसरी सबसे बड़ी लोकसंख्या है, यानि भारत तेजी से बढता बाजार हैं, जिसकी जरूरते आने वाले समय में बढेंगी और चीन इस बाजार को आसानी से नहीं गवाना चाहता हैं।

    भारतीय विदेश नीति में चीन का स्थान

    • भारत चीन को एक आक्रमक पड़ोसी के रूप में देखता हैं। भारतीय विदेश नीति में में चीन के बारे में काफी असमंजस दिखाई पड़ता हैं।
    • भारत ने चीन के आक्रामक रुख के विरोध में जो सक्त रुख को आपनाया यह अच्छी बात हैं, लेकिन भारत डोकलाम विवाद से बाहर चीन का कड़ा विरोध करने में असफल हुआ हैं। मसूद अजहर को अन्तराष्ट्रीय आंतंकवादी घोषित होने से रोकना, भारत की एनइसजी सदस्यता का विरोध करना, भारत के संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा समिति में स्थायी सदस्यता का विरोध करना और इन जैसे कई मुद्दे हैं, जिनपर भारत सिर्फ उनके उठाये गए कदम की निंदा करता रहा हैं।
    • डोकलाम विवाद के दौरान भारत ने जो सक्त रुख आपनाया था अगर अब तक कायम होता तो, संबंध सुधारने के लिए चीनी राष्ट्रपति खुद भारत का दौरा करते।

    भारत में विदेश नीति, प्रधानमंत्री कार्यालय में तयार की जाती हैं। विदेश नीति अनेक पहलु वाला और राष्ट्रीय सुरक्षा के जुड़ा हुआ विषय हैं। हर देश के लिए अलग विदेश नीति होती हैं, उम्मीद हैं भारतीय विदेश नीति खास तौर से चीन से संबंधित अधिक दृड़ होगी।

    प्रधानमंत्री के अनौपचारिक दौरे से भारत-चीन के संबंध पूरी तरह से मीठे हो जाएँगे, ऐसा मानना अभी के लिए अनुचित होगा। भारत को चीन के विषय में सावधानी बरतनी जरुरी हैं, लेकिन असंजस नहीं।

    By प्रशांत पंद्री

    प्रशांत, पुणे विश्वविद्यालय में बीबीए(कंप्यूटर एप्लीकेशन्स) के तृतीय वर्ष के छात्र हैं। वे अन्तर्राष्ट्रीय राजनीती, रक्षा और प्रोग्रामिंग लैंग्वेजेज में रूचि रखते हैं।

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *