Sat. Apr 27th, 2024
    राहुल गाँधी

    गुजरात में 2017 के अंत तक विधानसभा चुनाव होने है। भाजपा पिछले 2 दशकों से गुजरात की सत्ता पर काबिज है और इस वजह से गुजरात को भाजपा का गढ़ भी कहा जाता है। पिछले 2 दशकों से भाजपा के गुजरात जीतने की 3 मुख्य वजहें रही हैं। पहली और सबसे प्रमुख वजह हैं नरेंद्र मोदी जिन्होंने प्रधानमंत्री का पद सँभालने से पहले 3 विधानसभा चुनावों में गुजरात भाजपा का नेतृत्व किया और लगातार 4 बार गुजरात के मुख्यमंत्री भी रहे। दूसरी वजह रही है पाटीदार वोटरों का भाजपा को समर्थन और तीसरी वजह रही है भाजपा की हिंदुत्ववादी छवि। मौजूदा समय में शुरूआती दोनों बिंदु भाजपा के पक्ष में नहीं हैं। नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बन चुके हैं और गुजरात में उनके कद-काठी का कोई भी व्यक्तित्व अब भाजपा के पास नहीं है। ऐसे में भाजपा के लिए गुजरात बचाना मुश्किल नजर आ रहा है।

    गुजरात में दशकों से भाजपा का कोर वोटबैंक रहा पाटीदार समाज भाजपा से नाराज चल रहा है। भाजपा आरक्षण की मांग कर रहे पाटीदारों को मनाने में जुटी है पर पिछले 26 महीनों में उसे कोई खास कामयाबी नहीं मिल सकी है। गुजरात में पाटीदार समाज आर्थिक और राजनीतिक रूप से काफी प्रभावशाली माना जाता है। राज्य में करीब 20 फीसदी वोट पाटीदार समाज के पास हैं। इस वजह से पाटीदारों को गुजरात का “किंग मेकर” भी कहा जाता है। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी लगतार गुजरात का दौरा कर रहे हैं और पाटीदारों को मनाने में जुटे हैं। पाटीदार आन्दोलन के अगुआ हार्दिक पटेल ने राहुल गाँधी के सौराष्ट्र दौरे पर उनका स्वागत किया था और उन्हें समर्थन देने की बात भी कही थी। पाटीदार समाज का रुख गुजरात में सभी सियासी समीकरणों को गलत साबित कर सकता है।

    मँझधार में अटकी है भाजपा की नैया

    2012 में हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा और कांग्रेस के मतों का अंतर 9 फीसदी था। भाजपा को 47 फीसदी मत मिले थे वहीं कांग्रेस को 38 फीसदी मत मिले थे। 2012 विधानसभा चुनाव में भाजपा की जीत का बड़ा आधार पाटीदारों का समर्थन था। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने लगातार चौथी बार गुजरात के सियासी दंगल में फतह हासिल की थी। पर मौजूदा परिस्थितियां बिल्कुल बदल चुकी हैं। आज गुजरात भाजपा के पास नरेंद्र मोदी जैसा लोकप्रिय चेहरा नहीं है। पाटीदारों के कटने से भाजपा का परंपरागत वोटबैंक भी उससे खिसक चुका है। ऐसे में गुजरात विधानसभा चुनावों में भाजपा की नैया मँझधार में अटकी नजर आ रही है। पाटीदारों को मनाने की भाजपा की हर कोशिश नाकाम होती नजर आ रही है।

    अगर 2012 के विधानसभा चुनावों पर नजर डालें तो कड़वा बिरादरी के 82 फीसदी वोट भाजपा को मिले थे। लेउवा बिरादरी के 63 फीसदी वोटरों ने भाजपा को चुना था। 80 के दशक से ही पाटीदार समाज के 80 फीसदी वोटर भाजपा के पक्ष में मतदान करते आए हैं। इसी वजह से पाटीदार समाज को भाजपा का पारम्परिक वोटबैंक कहा जाता रहा है। पिछले विधानसभा चुनावों में भाजपा को 50 फीसदी मत मिले थे वहीं कांग्रेस को तकरीबन 40 फीसदी मत मिले थे। पाटीदार समाज के वोटरों के मत प्रतिशत 20 है। इस लिहाजन अगर 80 फीसदी पाटीदार भी कांग्रेस के साथ हो जाए और मुस्लिम दलित एक होकर कांग्रेस का साथ दे दें तो भाजपा के लिए गुजरात बचाना बहुत मुश्किल हो जाएगा।

    भाजपा से नाराज है पाटीदार समाज

    25 अगस्त, 2015 का दिन गुजरात ही नहीं वरन देश के इतिहास में दर्ज हो गया। हार्दिक पटेल के आह्वान पर अहमदाबाद के जेएमडीसी मैदान में भारी भीड़ एकत्रित हुई थी और गुजरात का पाटीदार समाज आरक्षण की मांग को लेकर सड़कों पर उतर गया। तकरीबन 5 लाख लोगों की भीड़ सडकों पर उतर गई और कई दिनों तक गुजरात बिलकुल थम सा गया। आरक्षण की मांग को लेकर हुए इस पाटीदार आन्दोलन ने गुजरात की दशा को ही बदल कर रख दिया और विपक्षी दलों को भाजपा के खिलाफ उम्मीद की एक रोशनी दिखाई। अभी बीते दिनों ही पाटीदार आन्दोलन के अगुआ हार्दिक पटेल ने भाजपा के खिलाफ संकल्प यात्रा निकाली थी जिसमें बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए थे। राहुल गाँधी की सौराष्ट्र यात्रा के दौरान हार्दिक पटेल ने उनका स्वागत भी किया और समर्थन देने की बात कह सियासी सरगर्मियां और बढ़ा दी।

    हार्दिक पटेल
    पाटीदार आन्दोलन के मुखिया हार्दिक पटेल

    पाटीदार समाज भाजपा का परंपरागत वोटबैंक रहा है और उसके खिसकने का नुकसान निश्चित तौर पर भाजपा को होगा। भाजपा इस कमी की भरपाई करने के लिए अन्य जातीय समीकरणों को साधने में जुटी थी जो इतने आसान नजर नहीं आ रहे हैं। गुजरात विधानसभा की कुल 182 सीटों में से 70 सीटों पर पाटीदार समाज का प्रभुत्व है। गुजरात में कुल मतदाताओं की संख्या का पाँचवा हिस्सा पाटीदार समाज के वोटरों का है। पाटीदार समाज की नाराजगी का असर वर्ष 2015 में सौराष्ट्र में हुए जिला पंचायत चुनावों में भी देखने को मिला था जब भाजपा क्षेत्र की 11 में से 8 सीटों पर हार गई थी। गुजरात विधानसभा चुनावों से पूर्व भाजपा को पाटीदार समाज को अपनी तरफ मिलाना होगा नहीं तो कांग्रेस-पाटीदार समाज का गठजोड़ चुनावों में भाजपा की मुश्किलें और बढ़ा देगा।

    उना में हुई पिटाई के बाद बढ़ा है दलितों में आक्रोश

    बीते दिनों उना में कथित गौरक्षकों द्वारा दलितों की पिटाई का मामला सामने आया था। इस मामले ने काफी सुर्खियां बटोरी थी और गुजरात के दलित समाज को भाजपा के खिलाफ कर दिया। पेशे से वकील और सामाजिक कार्यकर्ता जिग्नेश मेवानी ने गुजरात में दलितों के इस आन्दोलन का नेतृत्व किया। उना में गौरक्षा के नाम पर हुई दलितों की पिटाई का जिग्नेश मेवानी ने विरोध किया था और इसके खिलाफ आन्दोलन भी छेड़ा था। “आजादी कूच आन्दोलन” के माध्यम से जिग्नेश मेवानी ने एक साथ 20,000 दलितों को मरे जानवर ना उठाने और मैला ना ढ़ोने की शपथ दिलाई। इस दलित आन्दोलन ने बहुत ही शांतिपूर्ण ढंग से गुजरात की भाजपा सरकार को करारा झटका दिया था। राज्य की 13 सीटों पर दलित मतदाताओं का प्रभाव है और उनकी नाराजगी भाजपा को भारी पड़ सकती है।

    कांग्रेस मध्य गुजरात के आदिवासियों को भी अपने साथ मिलाने के लिए प्रयासरत है। नर्मदा विस्थापितों के पुनर्वासन के लिए भाजपा सरकार अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठा पाई है। आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में कांग्रेस का प्रदर्शन पिछले चुनावों में भी अच्छा रहा था। अपने मध्य गुजरात दौरे के दौरान राहुल गाँधी ने ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में जाकर कांग्रेस की जमीन तैयार करने की कोशिश की। राहुल गाँधी की यात्राओं को अच्छा-खासा जनसमर्थन मिल रहा है और आने वाले चुनावों के वक्त उनकी लोकप्रियता कांग्रेस को फायदा पहुंचाएगी। गुजरात के दलित और आदिवासी वोटर भाजपा से कट चुके हैं और कांग्रेस की तरफ उनका बढ़ता झुकाव भाजपा के सभी सियासी समीकरणों को बिगाड़ सकता है।

    भरे नहीं हैं मुस्लिमों के जख्म

    पिछले दो दशकों में गुजरात ही नहीं वरन देश की सबसे चर्चित घटना थी गोधरा में हुए दंगे। इन दंगों के बाद देशभर में भाजपा की छवि हिंदुत्ववादी दल की बन गई थी और नरेंद्र मोदी को साम्प्रदायिक नेता का तगमा मिल गया था। पिछले डेढ़ दशकों में भाजपा और नरेंद्र मोदी ने अपनी छवि को सुधारने का बहुत किया है पर कुछ जख्मों के घाव ताउम्र रह जाते हैं। आज भी मुस्लिम वोटरों की पहली प्राथमिकता कांग्रेस ही होती है। गुजरात में मुस्लिम आबादी 9 फीसदी है और राज्य की 35 सीटों पर मुस्लिम मतदाता प्रभाव रखते हैं। ऐसे में मुस्लिम मतदाताओं का कांग्रेस के पक्ष में ध्रुवीकरण गुजरात की सत्ता तक पहुँचने की राह में भाजपा की मुश्किलें और बढ़ा देगा।

    गुजरात में पाटीदार, मुस्लिम और दलित वोटरों का साथ कांग्रेस को आसानी से बहुमत के आंकड़ें तक पहुँचा सकता है। मौजूदा समय में गुजरात की सत्ता तक पहुँचने के लिए जरूरी 4 स्तम्भों में से एक हिंदुत्व ही भाजपा के पक्ष में है। ऐसे में अगर कांग्रेस भाजपा सरकार के खिलाफ खड़े पाटीदार, दलित और मुस्लिम समाज को अपनी ओर मिला ले तो वह इन सीटों पर मजबूत हो सकती है और भाजपा के अभेद्द्य दुर्ग में सेंध लगाने की उसकी मंशा पूरी हो सकती है।

    By हिमांशु पांडेय

    हिमांशु पाण्डेय दा इंडियन वायर के हिंदी संस्करण पर राजनीति संपादक की भूमिका में कार्यरत है। भारत की राजनीति के केंद्र बिंदु माने जाने वाले उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले हिमांशु भारत की राजनीतिक उठापटक से पूर्णतया वाकिफ है।मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक करने के बाद, राजनीति और लेखन में उनके रुझान ने उन्हें पत्रकारिता की तरफ आकर्षित किया। हिमांशु दा इंडियन वायर के माध्यम से ताजातरीन राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर अपने विचारों को आम जन तक पहुंचाते हैं।