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    पलाश वृक्ष

    लखनऊ, 22 जून (आईएएनएस)| पलाश वृक्षों को बचाने को लेकर पूरे देश में एक अनोखी पदयात्रा निकाली जा रही है। इस पदयात्रा का आयोजन करने वाले कमलेश कुमार सिंह पेशे से झारखंड में सरकारी मुलाजिम हैं, लेकिन संपूर्ण देश को पलाश के औषधीय गुणों और पलाश से पर्यावरण संरक्षण के बारे में जागरूक करने के उद्देश्य से मार्च निकाल रहे हैं।

    इस पदयात्रा के बारे में जिज्ञासा करने पर कमलेश कुमार सिंह ने बताया, “हमारा यह अभियान युवाओं को प्रेरित करने लिए चलाया जा रहा है। पलाश वृक्षों को बचाकर हम ग्लोबल वार्मिग से भी अपना बचाव कर सकते हैं।”

    उन्होंने कहा, “पलाश वृक्ष झारखंड में ग्रामीणों की आजीविका का सहारा है। हमारी टीम झारखंड के पलामू से चली और पदयात्रा करते हुए भारत के विभिन्न क्षेत्रों से होकर गुजर रही है। पदयात्रा का उद्देश्य पर्यावरण संरक्षण को स्वरोजगार से जोड़ते हुए लोगों को जागरूक करना है। हम पलाश वृक्षों के रोजगारपरक औषधीय महत्व का प्रसार भी कर रहे हैं।”

    कमलेश ने कहा, “पलाश वृक्ष उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, झारखंड सहित कई प्रदेशों में बहुतायत में हैं। अगर हम इसके संरक्षण और संवर्धन से ग्रामीणों को जोड़ेंगे तो रोजगार के लिए बड़ी संख्या में पलायन की समस्या से निजात मिल सकेगी। आज के समय में इन वृक्षों पर लाह की खेती नहीं होती है। यही हमारा विषय है।”

    उन्होंने कहा, “हम क्षेत्रीय ग्रामीणों को इसी विषय में जागरूक कर रहे हैं। हाल ही में प्रयागराज में इससे संबंधित एक बड़ा कार्यक्रम किया था। सरकार को इस विषय मे गंभीर होने की जरूरत है।”

    कमलेश ने बताया कि उनकी टीम ने झारखंड के डाल्टनगंज, गढ़वा, उड़नार से लेकर उत्तर प्रदेश के कानपुर तक का सफर तय किया है। ‘एक कदम हरियाली की ओर’ अभियान के तहत उनकी पदयात्रा दिल्ली तक जाएगी। इस बीच मिलने वाले किसानों का ध्यान इस ओर आकृष्ट कराने के साथ इस काम के लिए उन्हें प्रेरित भी किया जा रहा है।

    उन्होंने कहा, “अब हम कानपुर से आगरा की ओर रुख करेंगे। हमारी पदयात्रा के 45 स्टॉपेज हैं। हम रात में 25 से 30 किलोमीटर चलते हैं। जहां रुकना होता है, वहां मंदिर, स्कूल या पेड़ की छांव में रुकते हैं। एक गाड़ी में हम स्टोव, खाना बनाने के बर्तन और खाद्य सामग्री वगैरह रखे रहते हैं।”

    कमलेश ने कहा, “कुल पांच लोग पदयात्रा में चले थे, जिनमें से तीन लोगों की तबीयत गर्मी के कारण खराब हो गई। अब दो लोग मिलकर इसे आगे बढ़ा रहे हैं। इस समय मेरे सहयोगी राजेश पाल हैं।”

    उन्होंने बताया कि पलाश संरक्षण को लेकर वह वर्षो से सक्रिय हैं। कुंदरी में इसका सबसे बड़ा फार्म है। पलाश की खेती में कोई खास लागत नहीं आती है। किसान को केवल उसमें बिहन लगवाना पड़ता है, जो सरकार खुद उपलब्ध करा रही है। सरकार इसके लिए अरबों का बजट रखती है, लेकिन उत्पादन नहीं करवा पा रही है। पैसों का बंदरबांट इसका मुख्य कारण है।

    कमलेश ने कहा कि पलाश के लिए अनुकूल मौसम जून-जुलाई से लेकर अक्टूबर-नवंबर तक रहता है। इसी मौसम में पलाश का बिहन चढ़ाया और उतारा जाता है। आयुर्वेद में इस पेड़ का बहुत महत्व है।

    उन्होंने कहा कि पलाश एक ऐसा पेड़ है जो पूरे साल अपनी जड़ में कम से कम दो लीटर पानी संजोकर रखता है। इसलिए यह पर्यावरण के लिहाज से बेहद उपयोगी पेड़ है।

    कमलेश ने बताया कि पलाश के माध्यम से लाह की खेती होती है। यह पलाश के वृक्षों पर खेती की जाती है। पलाश की काट छांट करने के बाद उसमें लाह के कीड़े निकलते है। उसके लार्वा से यह खेती होती है। इससे कई प्रकार के प्रोडक्ट बनते हैं। बूट पालिस से लेकर ग्रेनाइड तक इससे बनते हैं। यह यह खेती पलाश के अलावा पाकड़ के वृक्षों पर भी किया जाता है। इसकी खेती करने में ज्यादा कोई खर्च नहीं है। इससे पर्यावरण का संरक्षण भी होता है। पलाश के वृक्ष में दो लीटर पानी हमेशा रहता है।

    उन्होंने बताया कि लाह के कीट से साल भर में दो फसलें उगाई जाती हैं, जिसे बैसाखी (ग्रीष्मकालीन) और केतकी (वर्शाकालीन) फसलें कहते हैं। बैसाखी फसल के लिए लाह कीट को वृक्षों पर अक्टूबर या नवंबर में तथा केतकी के लिए जून या जुलाई माह में चढ़ाया जाता है। बीज चढ़ाने के बाद बैसाखी फसल आठ माह में, जबकि केतकी चार माह में तैयार हो जाती हैं।

    कमलेश की मानें तो पलाश के पत्ते, डंगाल, फल्ली तथा जड़ तक का बहुत ज्यादा महत्व है। पलाश के पत्तों का उपयोग ग्रामीण दोने-पत्तल बनाने के लिए करते हैं, जबकि इसके फूलों से होली के रंग बनाए जाते हैं। हालांकि इसके फूलों को पीसकर चेहरे में लगाने से चमक बढ़ती है। पलाश की फलियां मिनाशक का काम करती हैं। इसके उपयोग से बुढ़ापा भी दूर रहता है। इसके फूल के उपयोग से लू को भगाया जा सकता है, साथ ही त्वचा संबधी रोग, पेट के विकार और महिलाओं के रोगों में भी यह लाभदायक सिद्ध हुआ है।

    कमलेश ने बताया कि रोजगार से जोड़ने के लिए पलाश के वृक्षों में लाह की खेती करनी पड़ेगी, तभी इसमें रोजगार उत्पन्न होंगे। इसको एग्रीकल्चर का दर्जा नहीं है। वह भी इसे दिलाने की जरूरत है।

    उन्होंने कहा, “लाह को लघुवन उपज से हटाकर इसे कृषि का दर्जा देने पर किसानों की आय चार गुनी बढ़ जाएगी। हम लोग पलाश के माध्यम से लाह की खेती करने का गुर लोगों को बता रहे हैं। इसमें रोजगार के काफी संभवानाएं हैं।”

    पदयात्रा मुहिम चला रहे कमलेश की सरकार से मांग है कि लाख खेती को लघुवन पदार्थ से हटाकर कृषि वन उपज घोषित करे। क्षेत्रीय ग्रामीणों की आर्थिक स्थित मजबूत करने व आत्मनिर्भर बनाने के लिए वनों के संरक्षण संवर्धन और प्रबंधन के अधिकार दिए जाएं। सरकारी विद्यालयों और जनप्रतिनिधियों के बच्चों का शिक्षण अनिवार्य किया जाए। ‘सेव ग्रेंस’ अभियान को गति दी जाए, किसानों को खाद, बीज समय पर मुहैया कराया जाए और सिंचाई की व्यवस्था की जाए।

    By पंकज सिंह चौहान

    पंकज दा इंडियन वायर के मुख्य संपादक हैं। वे राजनीति, व्यापार समेत कई क्षेत्रों के बारे में लिखते हैं।

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