आने वाले 8 नवंबर को नोटेबंदी को पुरे एक साल होने जा रहा है। ऐसे में एक बार फिर तमाम मीडिया चैनेलो में इस अभियान के सफलता और असफलता पर बहस तेज़ हो गयी है। केंद्र की बीजेपी सरकार इसे एक प्रभावी और शानदार फैसला बता रही है। और इस अभियान का समर्थन करते हुए इसे देश के विकास में मददगार बता रही है।
वहीं विपक्ष इसे सरकार की बड़ी असफलता के रूप में देख रही है। इसी बिच इस मुद्दे पर केंद्रीय मंत्री सुरेश प्रभु ने सरकार का समर्थन किया है। एक निजी चैनल में प्रभु ने बताया कि ये फैसला देश से काला धन हटाने के मकसद से किया गया था। जो सफल रहा उन्होंने बताया कि जब तक पैसा कैश के रूप में था उसक कोई अता पता नहीं था।
लेकिन जैसे ही पैसा बैंको में जमा हुआ हमे उसका पूरा हिसाब मिल गया है।अब सरकार को पता है कि कितना पैसा किसके पास है। अगर आपका पैसा लीगल है तो आपको डरने कि जरूरत नहीं। लेकिन अगर आपका पैसा काली कमाई का है तो आपको जवाब देना पड़ेगा कि ये पैसा आखिर कहा से आया? उन्होंने आगे कहा कि काले धन को अभी ख़त्म होने में समय लगेगा।
लेकिन इस अभियान से हमारी सरकार काले धन के खिलाफ एक बड़ी शुरुआत किया है। डिजिटल इकॉनमी को भारत के लिए जरूरी बताते हुए उन्होंने कहा कि दुनिया में काफी पहले समय से डिजिटल इकॉनमी चल रही है। और अब भारत को भी डिजिटल होना चाहिए। वहीं कांग्रेस नेता सचिन पायलट ने इस मुद्दे पर सरकार का विरोध किया है।
उन्होंने सरकार पर मनमानी का आरोप लगाते हुए इस फैसले को गलत तथा देश के नागरिको के लिए कष्टदायक बताया है। साथ ही इस नोटेबंदी के कारण हुए कई लोगो के मोत का जवाब भी उन्होंने सरकार से मांगा है।
कांग्रेस नेता सचिन पायलट ने कहा कि आज तक ये नहीं समझ आया कि नोटेबंदी का निर्णय सरकार का था या आरबीआई का? उन्होंने कहा कि जब 500-1000 का नोट बंद करना था तो 2000 का नोट क्यों लाए।