Sat. Nov 23rd, 2024
    हाशिये पर जीवन गुजारने को मजबूर करता संवैधानिक धोखा

    पिछले कुछ दिनों से धारा 35 ए सुर्ख़ियों में है। जम्मू-कश्मीर विधानसभा को विशेषाधिकार देने वाली यह धारा भारतीय संविधान में वर्णित नहीं है। इसे हटाने की मांग को लेकर दायर याचिका मात्र से बवाल मचा हुआ है। जम्मू-कश्मीर के प्रमुख राजनीतिक दल धारा हटाने की मांग को लेकर अपना विरोध जता चुके हैं। मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती ने कहा था कि अगर जम्मू-कश्मीर से धारा 35 ए हटाई गई तो यहाँ तिरंगा थामने वाला कोई भी नहीं बचेगा। इसी क्रम में आज नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष और लोकसभा सांसद फारुख अब्दुल्ला ने कहा कि धारा 35 ए को हटाने से जम्मू-कश्मीर में ‘जनविद्रोह’ की स्थिति पैदा हो जाएगी। जम्मू-कश्मीर अध्ययन केंद्र ने धारा 35 ए को जम्मू-कश्मीर के लोगों के साथ किया गया एक ‘संवैधानिक धोखा’ करार दिया है। 14 मई, 1954 को देश के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने एक आदेश पारित किया था। इसी आदेश को आधार बनाकर देश के संविधान में एक नया अनुच्छेद 35 ए जोड़ दिया गया था।

    धारा 35 ए जम्मू-कश्मीर की विधानसभा को यह अधिकार देती है कि वह स्थायी निवासी की परिभाषा निर्धारित करे। इसके अनुसार राज्य सरकार को यह अधिकार है कि वह विभाजन के वक़्त दूसरी जगहों से आये शरणार्थियों और भारत के अन्य राज्यों के लोगों को कौन सी सहूलियतें दें और कौन सी नहीं। यह धारा 370 का ही हिस्सा है। इसके अनुसार जम्मू-कश्मीर में देश के अन्य राज्यों के लोग जमीन नहीं खरीद सकते। इस धारा की वजह से आजादी के 70 सालों बाद भी लाखों लोगों को जम्मू-कश्मीर में स्थायी नागरिकता नहीं मिल सकी है। इन्हें कश्मीर में अल्पसंख्यक कहा जाता है पर इन्हें अल्पसंख़्यकों के हिस्से का 16 फ़ीसदी आरक्षण नहीं मिलता। इन लोगों में 80 फ़ीसदी दलित हिन्दू है जो विभाजन के वक़्त पकिस्तान से भारत आये थे। आज भी वह मूलभूत सुविधाओं से दूर हैं और हाशिए पर जीवन गुजारने को मजबूर हैं। इन तबकों के बच्चों को जम्मू-कश्मीर के राजकीय संस्थानों में दाखिला नहीं मिलता और ये लोग विधानसभा चुनावों में भी मतदान नहीं कर सकते। इन सब अल्पसंख्यकों में सबसे बुरी स्थिति वाल्मीकि समाज के लोगों की है जिन्हें आज भी राज्य में केवल सफाईकर्मी की नौकरी मिलती है और इनका वेतन भी बहुत कम होता है।

    By हिमांशु पांडेय

    हिमांशु पाण्डेय दा इंडियन वायर के हिंदी संस्करण पर राजनीति संपादक की भूमिका में कार्यरत है। भारत की राजनीति के केंद्र बिंदु माने जाने वाले उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले हिमांशु भारत की राजनीतिक उठापटक से पूर्णतया वाकिफ है।मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक करने के बाद, राजनीति और लेखन में उनके रुझान ने उन्हें पत्रकारिता की तरफ आकर्षित किया। हिमांशु दा इंडियन वायर के माध्यम से ताजातरीन राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर अपने विचारों को आम जन तक पहुंचाते हैं।