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    डाटा लिंक लेयर data link layer in hindi

    विषय-सूचि

    डाटा लिंक लेयर क्या है? (what is data link layer in hindi)

    डाटा लिंक लेयर को ओपन सिस्टम इंटरकनेक्शन या OSI का दूसरा परत कहा गया है। इसकी जिम्मेदारी एक फिजिकल नेटवर्क लिंक के अंदर डाटा को ट्रांसमिट करने की होती है।

    इसे एक नोड से दूसरे नोड तक डाटा को पहुंचाने वाला सबसे भरोसेमंद सिस्टम माना जाता है। सारे लेयर में ये सबसे ज्यादा complicated और complex भी है।

    ये अपने अंदर के हार्डवेयर सिस्टम को छुपा कर उपरी परतों को केवल एक संचार के माध्यम कि तरह दिखता है।

    डाटा लिंक लेयर दो ऐसे होस्ट के बीच काम करता है जो आपस में किसी ना किसी तरह से सीधे जुड़े हुए होते हैं। ये डायरेक्ट कनेक्शन या तो पॉइंट टू पॉइंट हो सकता है या फिर ब्रॉडकास्ट।

    ब्रॉडकास्ट नेटवर्क में सारे सिस्टम समान लिंक में होते हैं। इस लेयर का काम तब और भी कठिन हो जाता है जब ये एक ही collision डोमेन में बहुत सारे होस्ट को डील कर रहा होता है।

    ये बिट बाई बाई बिट डाटा स्ट्रीम को सिग्नल में बदलता है और उसे अपने अंदर के हार्डवेयर में भेज देता है।

    फिर डाटा लिंक लेयर हार्डवेयर में उस डाटा को इलेक्ट्रिक सिग्नल के रूप में प्राप्त करने के बाद उसे फ्रेम वाले फॉर्मल में बदलता है और उपर वाले परतों को पहुंचाने का काम करता है। अब आगे हम डाटा लिंक लेयर के functionalities और characteristics को समझेंगे।

    डाटा लिंक लेयर की विशेषताएं (Characteristics of data link layer in hindi)

    डाटा लिंक लेयर के characteristics को एक-एक कर के नीचे समझाया गया है:

    फिजिकल एड्रेसिंग (physical addressing in hindi)

    फिजिकल एड्रेसिंग इस मामले में नेटवर्क एड्रेसिंग से काफी अलग है।

    नेटवर्क एड्रेसिंग किसी नेटवर्क में नोड और देवीचे के बीच का अंतर समझता है जिसके कारण ट्रैफिक को नेटवर्क में स्विच या rout करने में आसानी होती है।

    वहीं फिजिकल एड्रेसिंग लिंक-लेयर वाले लेवल पर devices कि पहचान करता है और समान फिजिकल माध्यम में सभी डिवाइस के बीच के अंतर को समझने में सक्षम होता है।

    इसका प्राइमरी फॉर्म है- मीडिया एक्सेस कण्ट्रोल जिसे हम MAC के नाम से जानते हैं।

    नेटवर्क टोपोलॉजी (network topology in hindi)

    नेटवर्क टोपोलॉजी के स्पेसिफिकेशन ये तय करते हैं कि एक नेटवर्क के अंदर सारे डिवाइस किस तरह से लिंक किये जाएँगे।

    कुछ मीडिया devices को बीएस टोपोलॉजी द्वारा जुड़ने कि इजाजत देते हैं जबकि कुछ रिंग टोपोलॉजी द्वारा। ईथरनेट तकनीक बस टोपोलॉजी का प्रयोग करता है जो juniper नेटवर्क के डिवाइस पर काम करते हैं।

    एरर नोटीफीकेशन (error notification in hindi)

    ये डाटा लिंक लेयर का एक उत्तम फीचर है जो उपरी परतों को पहले ही इस बात के लिए आगाह कर देता है अगर फिजिकल लिंक के अंदर कोई एरर आ जाए।

    जैसे उदाहरण के तौर पर सिग्नल का खो जाना, सीरियल कनेक्शन के बीच clocking सिग्नल का खो जाना और T1 या T3 लिंक के सबसे अंतिम छोर का खो जाना।

    फ्रेम सिक्वेंसिंग (frame sequencing in hindi)

    डाटा लिंक लेयर फ्रेम सिक्वेंसिंग कि क्षमता रखता है जिसका मतलब ये हुआ कि अगर जो डाटा सीक्वेंस के बाहर ट्रांसमिट हो गयी हैं या सही क्रम में नही प्राप्त हुए हैं उन्हें ट्रांसमिशन के अंतिम छोर पर रिकॉर्ड किया जा सकता है।

    इसके बाद लेयर दो हेडर के अंदर डाटा payload के साथ ट्रांसमिट हुए पैकेज की इंटीग्रिटी की जांच कि जाती है (by means of Bit)।

    फ्लो कण्ट्रोल (flow control in hindi)

    फ्लो कण्ट्रोल डाटा लिंक लेयर में डाटा को प्राप्त करने वाले डिवाइस को डाटा के अंदर congestion (जमाव) को पकड़ने में मदद करता है।

    फिर वो सतरं में उपर या नीचे सभी पड़ोसियों को इस बात से पहले ही आगाह कर देता है।

    इसके बाद ये devices इस congestion कि सूचना को उपरी परत के प्रोटोकॉल को पहुंचा देते हैं ताकि डाटा का ट्रांसमिशन फिर से बहाल किया जा सके। 

    डाटा लिंक लेयर के सब-लेयर (sub-layers of data link layer in hindi)

    अब हम डाटा लिंक के अंदर सब-लेयर्स के बारे में जानेंगे। डाटा लिंक लेयर कुल दो सब-लेयर में विभाजित होता हैं:

    1. लॉजिक लिंक कण्ट्रोल (LLC), और
    2. मीडिया एक्सेस कण्ट्रोल (MAC)

    अब हम इन दोनों सब-लेयर्स को समझते हैं कि ये हैं क्या। एलएलसी सब-लेयर सिंगल लिंक नेटवर्क के अंदर के सारे डिवाइस के बीच के संचार को मैनेज करता है।

    ये लिंक लेयर फ्रेम्स के अंदर ऐसे फ़ील्ड्स को सपोर्ट करता है जो मल्टीप्ल हायर लेवल प्रोटोकॉल्स को एक सिंगल फिजिकल लिंक को साझा करने में सक्षम बनाते हैं।

    वहीं मैक सब-लेयर फिजिकल नेटवर्क माध्यम को दिए  गये प्रोटोकॉल्स एक्सेस कि देख-रेख करता है।

    डिवाइस के सभी पोर्ट को मैक एड्रेस दिया जाता है जिसके कारण समान फिजिकल लिंक के सभी डिवाइस एक दूसरे को डाटा लिंक लेयर पर पहचान कर सकें।

    डाटा लिंक लेयर का कार्य (Functions of data link layer in hindi)

    डाटा लिंक लेयर के निम्नलिखित फंक्शन हैं जिन्हें ये परफॉर्म करता है

    फ्रेमिंग (framing in data link layer in hindi)

    डाटा लिंक लेयर नेटवर्क लेयर से पैकेज लेता है और उन्हें कुछ फ्रेम्स में बाँट देता है।

    फिर ये एक-एक बिट कर के ये सारे फ्रेम को हार्डवेयर में भेजता है। फिर वहां पर डाटा लिंक लेयर हार्डवेयर से सिग्नल लेता है और उन्हें फ्रेम में बदल देता है।

    एड्रेसिंग (addressing in data link layer in hindi)

    डाटा लिंक लेयर “लेयर-2 हार्डवेयर एड्रेसिंग मैकेनिज्म” पर काम करता है। इसमें लिंक के अंदर हार्डवेयर एड्रेस यूनिक होता है। ये एड्रेस इन हार्डवेयर को बनाते समय ही दे दिया जाता है।

    सिंक्रोनाइजेशन (synchronisation in data link layer in hindi)

    जब डाटा फ्रेम्स को लिंक के अंदर भेजा जाता है तब दोनों मशीन आपस में synchronize होने चाहिए नही तो डाटा का ट्रान्सफर सम्भव नही हो पाता।

    एरर कण्ट्रोल (error control in data link layer in hindi)

    कभी-कभी सिग्नल के ट्रांजीशन में समस्या आ जाती है क्योंकि बिट में ख्राभी आ सकती है।

    इस स्थिति में इस गलती को पकड़ कर असली डाटा बिट्स को रिकवर करने कि कोशिश कि जाती है। इसके साथ ही डाटा भेजने वाले संदर को भी इस एरर कि सूचना दी जाती है।

    मल्टी-एक्सेस (multi access in data link layer in hindi)

    सब शेयर्ड लिंक के अंदर होस्ट डाटा को ट्रान्सफर करने कि कोशिश करता है तब इसके आपस में टकराने (Collision) कि काफी सम्भावना रहती है।

    डाटा लिंक लेयर CSMA/CD का मैकेनिज्म देता है जो मल्टीप्ल सिस्टम में शेयर किये गये डाटा को एक्सेस करने में सक्षम बनाता है और collision को भी रोकता है।

    डाटा लिंक लेयर की समस्याएँ (challenges of data link layer in hindi)

    इतना सबकुछ होने के बाद भी डाटा लिंक लेयर की अपनी कुछ समस्याएं हैं जिन्हें हम डिजाईन इश्यूज कह सकते हैं। इसकी चर्चा हम नीचे करेंगे।

    • इसकी सबसे बड़ी समस्या ये है कि धीमे रिसीवर के होने के बावजूद डाटा के ट्रांसमिशन को कैसे तेज गति से बनाये रखा जाए। इसमें एक ट्रैफिक को रेगुलेट करने वाले मैकेनिज्म की भी जरूरत है जो ये बता सके कि अभी रिसीवर के पास कितना बफर स्पेस है।
    • डाटा लिंक लेयर में ब्रॉडकास्ट नेटवर्क कि भी अतिरिक्त समस्याएं हैं। इसमें शेयर्ड चैनल के एक्सेस को कण्ट्रोल कैसे करें ये भी एक समस्या है। वैसे MAC जो कि इसका एक सब-लेयर है वो इस समस्या का समाधान करता है।

    इस लेख से सम्बंधित यदि आपका कोई भी सवाल या सुझाव है, तो आप उसे नीचे कमेंट में लिख सकते हैं।

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    By अनुपम कुमार सिंह

    बीआईटी मेसरा, रांची से कंप्यूटर साइंस और टेक्लॉनजी में स्नातक। गाँधी कि कर्मभूमि चम्पारण से हूँ। समसामयिकी पर कड़ी नजर और इतिहास से ख़ास लगाव। भारत के राजनितिक, सांस्कृतिक और भौगोलिक इतिहास में दिलचस्पी ।

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