भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण यानि ट्राई ने मंगलवार को मुक्त इंटरनेट के बुनियादी सिद्धांतों को बरकरार रखने की सिफारिश की। ट्राई ने आईएसपी (इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर्स) को कहा है कि इंटरनेट इस्तेमाल के साथ किसी भी तरह का भेदभाव नहीं होना चाहिए। यानि अब कोई भी आईएसपी इंटरनेट स्पीड ज्यादा, कम या फिर अवरूद्ध नहीं कर सकता है।
नेट निरपेक्षता के फैसले से यूजर्स पर पड़ने वाले प्रभाव को लेकर बहस जारी हो चुकी है। कुछ लोग ट्राई के इस सिफारिश को इंटरनेट प्रोवाइडर्स के लिए फायदेमंद बता रहे हैं। वहीं कुछ लोगों का मानना है कि इंटरनेट प्रोवाइडर्स को इस नेट निरपेक्षता के फैसले से फायदा तो जरूर होगा लेकिन इससे नेट यूजर्स को नुकसान हो सकता है।
लोगों का कहना है कि जियो और एयरटेल जैसी बड़ी कंपनियां कॉन्टेंट नेटवर्क डिलिवरी प्लेटफार्म के जरिए ना केवल अपने प्रतिद्वंदियों को क्षति पहुंचा सकती हैं, बल्कि अपने निजी वेब कॉन्टेंट जैसे वीडियो और म्यूजिक स्ट्रीमिंग सेवा के बदले यूजर्स से ज्यादा कीमतें वसूल सकती हैं। ऐसे में इंटनरेट यूजर्स के लिए नेट निरपेक्षता का फैसला महंगा साबित हो सकता है।
आप को बता दें कि यह निर्णय 30 मई 2016 और 4 जनवरी 2017 के बीच स्टॉकहोल्डर्स के साथ परामर्श के बाद लिया गया था। ट्राई पेपर भी नियामक निकाय के गठन की जानकारी देता है, ताकि नेट निरपेक्षता से जुड़ी ऐसी किसी भी अनियमितता का निपटारा किया जा सके।
नेट निरपेक्षता क्या है?
आइए हम यह जानने को कोशिश करते हैं कि आखिर नेट निरपेक्षता क्या है, और यह आईएसपी तथा यूजर्स को कैसे प्रभावित करेगा। दरअसल यूजर्स ब्रॉड बैंड स्पीड पर इंटरनेट सेवाओं के लिए कंपनियों को भुगतान करते हैं, जिसके तहत आॅनलाइन कॉन्टेट के रूप में वीडियो, गेम, न्यूज, सोशल मीडिया साइटें आदि शामिल हैं।
लेकिन इस बुनियादी सिद्धांत के ठीक विपरीत कंपनियां वेब सर्फिंग के जरिए ज्यादा कीमतें वसूलने का विचार बना रही थी। इस मामले में ट्राई ने आम लोगों से उनकी राय मांगी थी। अत: ट्राई ने नेट निरपेक्षता को लेकर जो सिफारिश की है, उसके अनुसार अब कोई आईएसपी विशेष, नेट सेवा को ना तो बाधित कर सकेगा और ना ही नेट स्पीड फास्ट-स्लो कर सकेगा। अब किसी नेट प्रोवाइडर्स के साथ भेदभाव नहीं होगा। बतौर उदाहरण कारों के मॉडल या फिर ब्रांड के आधार पर पेट्रोल की अलग-अलग कीमतें नहीं वसूली जा सकती हैं।
नेट निरपेक्षता का मुद्दा गरमाया
नेट निरपेक्षता का मुद्दा तब चर्चा में आया जब साल 2015 में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने इसे समर्थन देने का वादा किया, और एजेंसियों से इस मुद्दे पर एक मजबूत नियम बनाने का आग्रह किया। एफसीसी ने भी नेट निरपेक्षता के पक्ष में ही अपना फैसला सुनाया। एफसीसी ने कहा कि अब नेट सर्विस प्रोइवडर्स को इंटरनेट सेवा बाधित करने, फास्ट-स्लो स्पीड करने तथा दूसरों की तुलना ज्यादा कीमतें वसूलने से परहेज करना चाहिए।
आपको जानकारी के लिए बता दें कि नेट निरपेक्षता को लेकर अब एफसीसी की नीति बदल चुकी है। दरअसल 14 दिसंबर 2017 को ओबामा प्रशासन ने इसे पारित किया गया था, अब एफसीसी नेट निरपेक्षता नियमों को निरस्त करने की योजना बना रही है।
भारत में नेट निरपेक्षता पर बहस
भारत में नेट निरपेक्षता को लेकर होने वाली बहस ने तब जोर पकड़ लिया जब दिसंबर 2015 में फेसबुक ने बिना इंटरनेट के ही नि:शुल्क बेसिक प्रोग्राम लॉन्च किया, इससे पहले इस सेवा को इंटरनेट. ओरजी के नाम से जाना जाता था। अब इंटरनेट के जरिए यूजर्स को मुफ्त में फेसबुक सेवा प्रदान की जाती है। आप को बता दें कि ट्राई ने फरवरी 2016 में फ्री बेसिक्स और एयरटेल जीरो जैसी अन्य सेवाएं प्रतिबंधित कर दी थी।
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यूजर्स के लिए महंगी साबित हो सकती है ‘नेट निरपेक्षता’
इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर्स द्वारा निजी कॉन्टेंट नेटवर्क डिलिवरी प्लेटफार्म के जरिए नेट और कॉन्टेट उपलब्ध कराना यूजर्स के लिए महंगा साबित हो सकता है। क्योंकि देश में कुछ ऐसे बड़े इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर्स हैं, जिनके पास उनका अपना वीडियो और म्यूजिक स्ट्रीमिंग सेवा है। बतौर उदाहरण रिलायंस जियो के पास जियो टीवी, जियो सिनेमा, जियो मैजिक, जियो क्लाउड, जियो मैग्ज एवं विभिन्न न्यूज नेटवर्क्स का स्वामित्व है।
वहीं भारती एयरटेल के पास विंक मूवीज, विंक म्यूजिक तथा विंक गेम्स जैसे निजी कॉन्टेंट पहले से ही मौजूद हैं। इस प्रकार ये दोनों कंपनियां अपने निजी कॉन्टेंट प्लेटफॉर्म के जरिए यूजर्स से कम कीमत पर ज्यादा फायदा उठा सकती हैं। यहां तक कि नेट निरपेक्षता नियम का फायदा उठाकर कंपनियां अपने प्रतिद्वंद्वी की सेवाओं को नुकसान तक पहुंचा सकती हैं।
अमेरिकी कंपनी नेटफिलीक्स का आरोप
साल 2014 में अमेरिकी कंपनी नेटफिलीक्स ने आरोप लगाया था कि, कुछ लोग बफरिंग स्पीड और विजुअल क्वालिटी के जरिए उसके वीडियो स्ट्रीमिंग प्लेटफार्म को नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं। अंत में जब नेटफिलीक्स की ओर सीडीएन नेटवर्क के लिए भुगतान करने की सहमति दे दी, तब उसकी यह समस्याएं समाप्त कर दी गईं।
इन देशों में नेट निरपेक्षता को लेकर कोई नियम नहीं
दुनिया में कुछ ऐसे भी देश हैं, जहां नेट निरपेक्षता को लेकर कोई नियम नहीं हैं। यहां के सर्विस प्रोवाइडर्स ऐप्स और वेबसाइट सर्विसेज के लिए अपने यूजर्स से पैसा वसूलते हैं। बतौर उदाहरण लिस्बन की आईएसपी कंपनी एमईओ ने यूजर्स के के लिए पांच अलग-अलग पैक निर्धारित कर रखा है, जिसमें सोशल मीडिया (फेसबुक, इंस्टामा, ट्विटर, मैसेजिंग, व्हाट्सएप, वाइबर, स्काइप), वीडियो (नेटफ्लिक्स, यूट्यूब, ट्विच), म्यूजिक (पे म्यूजिक, स्पॉटिफ़ी, ट्यून इन) और ईमेल और क्लाउड (जीमेल, ड्राइव, ड्रॉपबॉक्स) शामिल हैं। इन ऐप्स सेवाओं के लिए ग्राहकों को हर पैकेज़ पर प्रति माह 4.99 डॉलर की अतिरिक्त राशि का भुगतान करना पड़ता है।